- प्रह्लाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिग सेवा के पूर्व अधिकारी
कोरोना महामारी के बीच एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रैस इंटरनेशनल (TRACE International) ने विश्व के 197 देशों में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर पर एक प्रतिवेदन जारी किया था। चूंकि भारत में कोरोना की दूसरी लहर जारी है। अतः इस प्रतिवेदन पर शायद किसी की नजर ही नहीं गई। इस प्रतिवेदन के अनुसार विश्व के 197 देशों में से भारत में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर बहुत तेजी से कम हुआ है। विश्व के 197 देशों की इस सूची में वर्ष 2014 में भारत का स्थान 185वां था जो वर्ष 2020 में 77वें स्थान पर पहुंच गया है। अर्थात 6 वर्षों के दौरान भारत ने 108 स्थानों की लम्बी छलांग लगाई है।
भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है और इसे प्राप्त करने के लिए देश में कई प्रयास किए गए हैं। भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में इतना बड़ा सुधार मुख्य रूप से इसलिए देखने में आया है क्योंकि देश में केंद्र सरकार ने समाज के सभी क्षेत्रों से भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी को हटाने का अभियान छेड़ दिया था। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार रोकथाम एवं निवारण कानून, 1988 में, 30 वर्षों के बाद, बहुत संशोधन करते हुए इसे कठोर बनाया गया है, जिसके तहत अब रिश्वत देने वाला एवं रिश्वत लेने वाला दोनों ही दोषी माने गए हैं। साथ ही, सरकार ने अपने दैनिक कार्यों में तकनीक के उपयोग को भी बढ़ाया है। ई-टेंडरिंग, ई- प्रोक्योरमेंट एवं विपरीत नीलामी जैसे नियमों को लागू करने से भी बहुत फर्क पड़ा है और इससे अभिशासन में पारदर्शिता बढ़ी है।
अब अधिकतर सरकारी काम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किया जाने लगा है। जिसके कारण अब अधिकारियों/कर्मचारियों एवं जनता के बीच सीधा-सीधा सम्पर्क कम ही रह गया है। फिर चाहे वह आयकर विभाग हो अथवा नगर निगम एवं नगर पालिकाएं, बिजली प्रदान करने वाली कम्पनियां भी अब ऑनलाइन बिल जारी करती हैं। देश में सबसे बड़ा अभियान तो जन-धन योजना के अंतर्गत चलाया गया जिसके अंतर्गत करोड़ों देशवासियों के विभिन्न बैकों में 40 करोड़ से अधिक जमा खाते खोले गए हैं, इनमे 22 करोड़ महिलाओं के खाते भी शामिल हैं।
इन जमा खातों में आज विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली लगभग सभी प्रकार की सहायता राशियां एवं सब्सिडी का पैसा केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा सीधे ही हस्तांतरित किया जा रहा है। मनरेगा योजना की बात हो अथवा केंद्र सरकार की अन्य योजनाओं की बात हो, पहिले ऐसा कहा जाता था कि केंद्र से चले 100 रुपए में से शायद केवल 8 रुपए से 16 रुपए तक ही अंतिम हितग्राही तक पहुंच पाते हैं, परंतु आज हितग्राहियों के खातों में सीधे ही राशि के जमा करने के कारण बिचोलियों की भूमिका एकदम समाप्त हो गई है और हितग्राहियों को पूरा का पूरा 100 प्रतिशत पैसा उनके खातों में सीधे ही जमा हो रहा है। साथ ही आज, मनरेगा योजना के अंतर्गत हजारों करोड़ रुपए की राशि भी ग्रामीण इलाकों में मजदूरों के खातों में सीधे ही हस्तांतरित की जा रही है। इस तरह के प्रयासों से भ्रष्टाचार पर सीधे ही अंकुश लगा है।
भारत में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम में हुए सुधार के चलते अब केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के द्वारा भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के मामलों में सीधे ही की जाने वाली कार्यवाही की संख्या में भी कमी देखने में आई है। वर्ष 2015 में जहां 3,592 प्रकरणों में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सीधे ही कार्यवाही की थी वहीं वर्ष 2019 में केवल 1,508 प्रकरणों में सीधी कार्यवाही की गई थी। इसी प्रकार, इस दौरान बाहरी संस्थानों से भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी से सम्बंधित प्राप्त शिकायतों की संख्या में भी कमी आई है। वर्ष 2014 में केंद्रीय सतर्कता आयोग को भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी से सम्बंधित 62,362 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जो वर्ष 2019 में घटकर 32,579 रह गईं थीं।
प्रायः यह भी पाया गया है कि व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर यदि किसी देश में अधिक रहता है तो उस देश के सरकारी खजाने में आय कम हो जाती है क्योंकि भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के माध्यम से उस रकम का कुछ हिस्सा कुछ अधिकारियों की जेब में पहुंच जाता है। इससे उस देश द्वारा विकास कार्यों पर ख़र्च की जाने वाली रकम पर विपरीत असर पड़ता है और उस देश की विकास दर भी प्रभावित होने लगती है।
भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में कमी का फायदा जीएसटी संग्रहण में लगातार हो रही वृद्धि के रूप में भी देखने में आया है। माह अप्रेल 2021 के दौरान देश में जीएसटी संग्रहण, पिछले सारे रिकार्ड को पार करते हुए, एक नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। माह अप्रेल 2021 में 141,384 करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रहण हुआ है। यह मार्च 2021 माह में संग्रहित की गई राशि से 14 प्रतिशत अधिक है। पिछले 7 माह से लगातार जीएसटी संग्रहण न केवल एक लाख रुपए की राशि से अधिक बना हुआ है, बल्कि इसमें लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। यह भी देश में भ्रष्टाचार के स्तर में कमी होने का एक संकेत माना जा सकता है।
जिन देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम कम है उन देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत तेजी से बढ़ता है क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास उस देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ता है। भारत भी इसका अपवाद नहीं हैं। भारत में शुद्ध विदेशी निवेश, वर्ष 2013-14 में, 2,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था, जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 4,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। वर्ष 2010-11 में तो यह मात्र 1,180 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही था। वर्ष 2010-11 एवं 2019-20 के बीच देश में शुद्ध विदेशी निवेश में 263 प्रतिशत की वृद्धि आंकी की गई है।
हालांकि, व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतख़ोरी जोखिम के स्तर एवं देश के सकल घरेलू उत्पाद में कोई सीधा सम्बंध तो पता नहीं चलता है। जब इसका आंकलन कई देशों के व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर को उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में हो रही वृद्धि दर से जोड़कर देखा गया तो पाया गया है कि जिन-जिन देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर कम है उन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर अधिक रही है। भारत में भी यह दृष्टिगोचर है। विश्व के अन्य देशों यथा- ब्रिटेन, ईजिप्ट, ग्रीस, इटली आदि देशों में भी व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में कमी देखी गई है तो उसी अवधि में इन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर तेज हुई है। वहीं दूसरी ओर चीन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, तुर्की, रूस जैसे देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में बढ़ोतरी देखी गई है तो उसी अवधि में इन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर भी कम हुई है।
भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम कम होते जाने का तात्पर्य यह कदाचित नहीं है कि देश में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी समाप्त हो गई है। हां, इस सूचकांक में लगातार हो रहे सुधार का आशय यह जरूर है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी कम हो रही है। परंतु अभी भी पूरे विश्व में 76 देश ऐसे हैं जहां भारत की तुलना में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी कम है।
- प्रहलाद सबनानी
बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी और आर्थिक मामलों के जानकार
देश में कोरोना महामारी के दूसरे चरण के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत बने रहने के संकेत मिले हैं। विगत अप्रैल माह के दौरान देश में जीएसटी संग्रहण, पिछले सारे रिकॉर्ड को पार करते हुए, एक नए स्तर पर पहुंच गया। अप्रैल में 141,384 करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रहण हुआ है। यह इसी मार्च माह में संग्रहित की गई राशि से 14 प्रतिशत अधिक है। पिछले 7 माह से लगातार जीएसटी संग्रहण न केवल एक लाख रुपए की राशि से अधिक बना हुआ है बल्कि इसमें लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।
इसी प्रकार, वित्त वर्ष 2020-21 में सकल व्यक्तिगत आयकर (रिफंड सहित) में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। आयकर संग्रह में वृद्धि तब हुई है, जब केलेंडर वर्ष 2020 में अधिकतर समय पूरे देश में तालाबंदी लगी हुई थी। वित्त वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड रिफंड जारी किए गए। इसके बावजूद शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहण 9.5 लाख करोड़ रुपये का रहा है। पिछले चार सालों में पहली बार कुल प्रत्यक्ष कर संग्रहण संशोधित अनुमान से ज्यादा रहा है। हालांकि, निगमित कर संग्रह 6.4 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के कर संग्रहण 6.7 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही कम है।
2.34 करोड़ व्यक्तिगत करदाताओं को करीब 87,749 करोड़ रुपये का आयकर रिफंड किया गया, जबकि निगमित कर के मामलों में 1.74 लाख करोड़ रुपये के रिफंड किए गए। उल्लेखनीय है कि 94 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में करदाताओं का स्पष्टीकरण मान लिया गया है और अतिरिक्त कर या जुर्माना नहीं लगाया गया। सिर्फ 1600 मामलों में यह माना गया है कि आय कम करके दिखाई गई है। उक्त कारणों के चलते वर्ष 2020-21 में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में कुछ कमी इसलिए भी आई है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर महामारी का नकारात्मक प्रभाव देखकर सरकार द्वारा रिफंड के मामलों का एक निश्चित समय-सीमा के अंदर निपटारा किया गया है।
सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह 12.1 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल के 12.33 लाख करोड़ रुपये के करीब है। माना जा रहा है कि अग्रिम कर में उल्लेखनीय वृद्धि से व्यक्तिगत आयकर संग्रह में वृद्धि हुई है। सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रहण वित्तीय वर्ष 2019-20 के 5.55 लाख करोड़ रुपये की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020-21 में करीब 5.7 लाख करोड़ रुपये रहा है। बावजूद इसके कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में प्रत्यक्ष कर रिफंड पिछले साल की तुलना में 43.3 प्रतिशत अधिक है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 2.38 करोड़ से ज्यादा करदाताओं को 2.62 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए हैं। पिछले साल 1.83 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए गए थे।
जीएसटी एवं प्रत्यक्ष कर संग्रहण के इत्तर अगर हाल ही के समय में उद्योग क्षेत्र में दर्ज की गई वृद्धि दर की बात की जाय तो मार्च 2021 में 8 कोर क्षेत्र के उद्योगों द्वारा 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सीमेंट उत्पादन में तो रिकार्ड 32.5 की वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। यह वृद्धि दर इन उद्योगों द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में भी हुई वृद्धि दर से मिलान दिखाती नजर आ रही है। मार्च 2021 माह में मध्यम उद्योगों द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में 28.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि मार्च 2020 के दौरान इन उद्योगों के ऋण की राशि में 0.7 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर रही थी।
विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भी अच्छी खबर आई है। भारत द्वारा विदेशों को किए जाने वाले निर्यात की राशि में भी बहुत अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है। जनवरी-मार्च 2021 तिमाही के दौरान भारत के निर्यात में 20 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात करने वाले सबसे बड़े देशों के बीच यह वृद्धि दर चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। विश्व व्यापार संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, केलेंडर वर्ष 2021 के दौरान, वैश्विक स्तर पर भी विदेशी व्यापार में 8 प्रतिशत की असरदार वृद्धि दर रह सकती है, जबकि इसमें केलेंडर वर्ष 2020 के दौरान 5.3 प्रतिशत की कमी दृष्टिगोचर हुई थी।
मुख्यतः कपड़ा उद्योग, जेम्स एवं ज्वेलरी उद्योग, पेपर उद्योग, लेदर उद्योग, ग्लास उद्योग, लकड़ी उद्योग एवं खाद्य पदार्थ प्रसंस्करण उद्योग द्वारा उपयोग किए गए ऋण की राशि में, माह मार्च 2021 में, माह मार्च 2020 की तुलना में, वृद्धि दर अधिक रही है। कृषि क्षेत्र द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में भी माह मार्च 2021 के दौरान 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि माह मार्च 2020 में यह वृद्धि दर मात्र 4.2 प्रातिशत की रही थी। उक्त उद्योगों द्वारा ऋण की अधिक राशि का उपयोग करने का आशय यह है कि इन उद्योगों में उत्पादन गतिवधियों का स्तर बढ़ रहा है।
कृषि क्षेत्र एवं विभिन उद्योगों में बढ़ते उत्पादन के स्तर को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 10.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। भारतीय रिज़र्व बैंक के ही अनुमान के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 की प्रथम तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 26.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी, वहीं द्वितीय तिमाही में यह वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत की रह सकती है, तृतीय तिमाही में यह दर 5.3 प्रतिशत की रह सकती है और चतुर्थ तिमाही में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर रह सकती है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के प्रथम माह अप्रेल 2021 माह में जीएसटी का शानदार संग्रहण, मध्यम उद्योग एवं कृषि क्षेत्र द्वारा ऋणों का अधिक उपयोग, निर्यात के क्षेत्र में आई तेजी एवं देश में कोरोना महामारी को रोकने के उद्देश्य से तेजी से चल रहे टीकाकरण से यह विश्वास हो चला है कि कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान तेज गति से आगे बढ़ने की ओर तत्पर दिखाई दे रही है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए शुक्रवार को राज्यों को 5,000 करोड़ रुपये की 17वीं किश्त जारी की है। अभी तक, राज्यों को कुल अनुमानित जीएसटी मुआवजे की कमी की 91 प्रतिशत यानी एक लाख करोड़ रूपये की राशि जारी की जा चुकी है।
भारत सरकार ने जीएसटी कार्यान्वयन के कारण पैदा हुई 1.10 लाख करोड़ रुपये की कमी को पूरा करने के लिए पिछले वर्ष अक्टूबर में एक विशेष उधार विंडो स्थापित की थी। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से भारत सरकार द्वारा इस विंडो के माध्यम से ऋण लिया जा रहा है। 23 अक्टूबर, 2020 से शुरू होने के बाद अब तक ऋण के 17 दौर पूरे हो चुके हैं।
विशेष विंडो के तहत, भारत सरकार 3 साल और 5 साल के कार्यकाल के लिए सरकारी स्टॉक में उधार ले रही है। प्रत्येक टेनर के तहत किए गए उधार को जीएसटी क्षतिपूर्ति की कमी के अनुसार सभी राज्यों में समान रूप से विभाजित किया गया है। वर्तमान जारी राशि के साथ, 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 5 साल के लिए लंबित जीएसटी अनुपात समाप्त हो गया है। ये राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश को पहली किस्त से जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी की जा रही थी।
इस सप्ताह जारी की गई राशि राज्यों को उपलब्ध कराई गई धनराशि की 17वीं किश्त थी। इस सप्ताह यह राशि 5.5924 प्रतिशत की ब्याज दर पर उधार ली गई है। अभी तक केंद्र सरकार द्वारा इस विशेष उधार विंडो के माध्यम से 4.8307 प्रतिशत की औसत ब्याज दर पर 1,00,000 करोड़ रुपये की राशि उधार ली गई है।
जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण राजस्व में हुई कमी को पूरा करने के लिए विशेष ऋण विंडो के माध्यम से धन उपलब्ध कराने के अलावा भारत सरकार ने जीएसटी मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए विकल्प-1 चुनने वाले राज्यों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.50 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति भी दी है, ताकि इन राज्यों की अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने में मदद की जा सके। सभी राज्यों ने विकल्प-1 के लिए अपनी प्राथमिकता दी है। इस प्रावधान के तहत 28 राज्यों को 1,06,830 करोड़ रुपये (जीएसडीपी का 0.50 प्रतिशत) की पूरी अतिरिक्त राशि उधार लेने की अनुमति दी गई है।
उत्तराखंड के हिस्से आया ये
उत्तराखंड को जीएसडीपी की 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त ऋण की अनुमति के रूप में अब तक 1405 करोड़ और विशेष विंडो के मार्फत 2227.49 की धनराशि जारी की गयी है।