उत्तराखंड दौरे पर RSS प्रमुख मोहन भागवत, मुवानी में किया विद्यालय भवन का लोकार्पण..
उत्तराखंड: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत दो दिवसीय उत्तराखंड दौरे के दौरान रविवार को पिथौरागढ़ पहुंचे। डीडीहाट स्थित शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार, मुवानी पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। संघ प्रमुख ने सबसे पहले समाजसेवी स्व. शेर सिंह कार्की की समाधि स्थल के पास चंदन के वृक्ष का पौधरोपण किया। इसके बाद उनकी फोटो में माल्यार्पण कर नव निर्मित शेर सिंह कार्की विद्यालय भवन का दीप जलाकर लोकार्पण किया। लोगों से भरे सभागार को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहाड़ों से पलायन को रोकने के लिए खेती करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि खेती को स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा दो तरह की होती है। एक बाहर की शिक्षा और एक अंदर की शिक्षा। शिक्षा मिलने के बाद उसका सटीक उपयोग दूसरे को अच्छी शिक्षा देना हैं।
उनका कहना हैं कि कालांतर में बड़े-बड़े ऋषि और अनपढ़ लोगों ने महान कार्य किए हैं। यदि वे ज्यादा पढ़े लिखे होते तो और महान कार्य करते। विद्या का उपयोग दूसरों को अपनी शिक्षा बांटना, उस शिक्षा से कमाया धन को दान करना और अपनी शक्ति का उपयोग उसकी सुरक्षा के लिए करने से ही शिक्षा का सही सदुपयोग होता है।
आपको बता दे कि मोहन भागवत ने सभी से विद्या भारती द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में कर रहे उल्लेखनीय योगदान में अपने-अपने स्तर से अंशमात्र सहयोग करने की अपील की। उन्होंने कहा कि आज पूरा विश्व भारत की कुटुंब व्यवस्था की बात को सही ठहरा रहा है। भारत की प्राचीन वैभव और अध्यात्म से ही आज पूरा विश्व हमें विश्व गुरु मान रहा है। हमारी सम्पूर्ण शिक्षा और स्वरोजगार के मार्ग से ही हम धीरे धीरे विश्व गुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस दौरान कार्यक्रम में पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा, डीडीहाट विधायक बिशन सिंह चुफाल समेत कुलपति उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय नैनीताल डॉ ओम प्रकाश सिंह नेगी और कई लोग मौजूद रहे।
– नरेन्द्र सहगल
वरिष्ठ स्तंभकार
चिर सनातन अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संस्थापक डॉ. हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे अज्ञात सेनापति थे, जिन्होंने अपने तथा अपने संगठन के नाम से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में अपना सब कुछ भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया था. बाल्यकाल से लेकर जीवन की अंतिम श्वास तक भारत की स्वतंत्रता के लिए जूझते रहने वाले इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने न तो अपनी आत्मकथा लिखी और न ही इतिहास और समाचार पत्रों में अपना तथा अपनी संस्था का नाम प्रकट करवाने का कोई प्रचलित हथकंडा ही अपनाया.
डॉ. हेडगेवार तो लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, त्रलोक्यनाथ, सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, रासबिहारी बोस, श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की श्रेणी के महापुरुष थे, जिन्हें स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सत्ता पर बैठने वाले शासकों ने पूर्णतया दरकिनार कर स्वतंत्रता संग्राम का पट्टा अपने नाम लिखवा लिया. आजाद हिंद फौज, अभिनव भारत, गदर पार्टी, अनुशीलन समिति, हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना, हिन्दू महासभा, आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी संस्थाओं के योगदान को धत्ता बताकर स्वतंत्रता संग्राम को एक ही नेता और एक ही दल के खाते में जमा कर देना एक राजनीतिक अनैतिकता और ऐतिहासिक अन्याय नहीं तो और क्या है?
उपरोक्त संदर्भ में सबसे अधिक घोर अन्याय डॉ. हेडगेवार के साथ हुआ, जिसने सशस्त्र क्रांति से लेकर सभी अहिंसक आंदोलनों एवं सत्याग्रहों में न केवल अग्रणी भूमिका ही निभाई, अपितु स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय दिशा देने का भरपूर प्रयास भी किया. डॉ. हेडगेवार की इस महत्वपूर्ण पार्श्व भूमिका को स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में समझना वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है. इस ऐतिहासिक सच्चाई से कौन इंकार करेगा कि सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात समस्त भारत में तेज गति से हो रहे हिन्दुत्व के जागरण, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुर्नस्थापन, चातुर्दिक क्रांतिकारी गतिविधियों, भारतीयों की स्वातंत्र्य प्राप्ति के लिए उत्कट इच्छा को कुचलकर उसे दिशा भ्रमित करने के लिए एक कट्टरपंथी ईसाई नेता ए.ओ. ह्यूम ने 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी.
ये प्रारम्भिक कांग्रेस अंग्रेज हुकूमत का सुरक्षा कवच (सेफ्टी वाल्व) था. अतः अंग्रेजों की इसी कुटिल चाल को विफल करने, भारतीयता को विदेशी और विधर्मी षड्यंत्रों से बचाने और स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय सनातन आधार प्रदान करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. यह संघ भारत की सनातन राष्ट्रीय पहचान ‘हिन्दुत्व’ का सुरक्षा कवच था और है. राष्ट्र की सर्वांग स्वतंत्रता एवं सर्वांग सुरक्षा के लिए देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों का शक्तिशाली संगठन.
डॉ. हेडगेवार की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि सैन्य पौरुष, ज्ञान विज्ञान, अतुलनीय समृद्धि, गौरवशाली संस्कृति इत्यादि सब कुछ होते हुए भी हम परतंत्र क्यों हुए? परतंत्रता के कारणों को जाने बिना स्वतंत्रता प्राप्ति के सभी प्रयासों का परिणाम अच्छा नहीं होगा, यही हुआ भी. सदियों पुराने राष्ट्र का दुखित विभाजन और आधी-अधूरी राजनीतिक स्वतंत्रता.
डॉ. हेडगेवार ने तत्कालीन सभी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संस्थाओं एवं आंदोलनों में भागीदारी करने के बाद मंथन में से यह निष्कर्ष निकालकर स्वतंत्रता सेनानियों, नेताओं, संतों महात्माओं सहित सभी भारतवासियों के सामने रखा – ‘‘हमारे समाज और देश का पतन मुस्लिम हमलावरों या अंग्रेजों के कारण नहीं है. अपितु, राष्ट्रीय भावना शिथिल होने पर व्यक्ति और समष्टि के वास्तविक संबंध बिगड़ गये तथा इस प्रकार की असंगठित व्यवस्था के कारण ही एक समय दिग्विजय का डंका दसों दिशाओं में बजाने वाला हिन्दू (भारतीय) समाज सैकड़ों वर्षों से विदेशियों की आसुरिक सत्ता के नीचे पददलित है’’. डॉ. हेडगेवार मानते थे कि भारत के वैभव, पतन, संघर्ष और उत्थान का इतिहास हिन्दुओं के सामाजिक उतार चढ़ाव के साथ जुड़ा हुआ है. अर्थात भारत की परतंत्रता के लिए हिन्दुओं में व्याप्त हो चुका जातिवाद, अंतर्कलह, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मनोवृत्ति, असंगठित व्यवस्था और छुआछूत की भयंकर बीमारी इत्यादि ही देश की पतन अवस्था के लिए जिम्मेदार हैं.
इसलिए देश को स्वतंत्र करने एवं बाद में स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए देश के बहुसंख्यक प्राचीन राष्ट्रीय समाज हिन्दू को संगठित, शक्तिशाली, चरित्रवान, स्वदेशी, स्वाभिमानी बनाना अति आवश्यक है. डॉ. हेडगेवार के इसी चिंतन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन्म दिया. अद्भुत कार्यपद्धति की सर्वोत्तम विशेषता यही है कि उन्होंने हिन्दू संगठन और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के दोनों मुख्य काम एक साथ करने में सफलता प्राप्त की.
डॉ. हेडगेवार द्वारा प्रदत हिन्दुत्व की कल्पना और अवधारणा में सभी भारतवासी शामिल हैं. जो भी भारतवर्ष को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्य भूमि मानता है, वह व्यक्ति हिन्दू ही है. हिन्दुत्व किसी जाति मजहब का परिचायक न होकर भारत की सनातन काल से चली आ रही राष्ट्रीय जीवन व्यवस्था है. देश के भूगोल और संस्कृति की पहचान है हिन्दुत्व. कथित रूप से कहे जाने वाले अल्पसंख्यक समाज इसी राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. इसलिए हिन्दुत्व ही वह आधार है, जिस पर सभी भारतवासियों की एकता सम्भव है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना किसी विशेष मजहब, जाति या दल के विरोध में नहीं हुई. भारत को स्वतंत्र करवाना और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना संघ का एकमात्र लक्ष्य था और आज भी है. संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने बाल्यकाल से ही अंग्रेजी साम्राज्य का विद्रोह शुरू कर दिया था. उनके बचपन की तीन घटनाएं उनके द्वारा भविष्य में स्थापित होने वाले शक्तिशाली संगठन और उसके महान उद्देश्य का शिलान्यास थीं. बाल केशव हेडगेवार द्वारा स्कूल में महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर बंटने वाली मिठाई को यह कहकर कूड़ेदान में फैंक दिया गया – ‘‘मैंने अंग्रेजी साम्राज्य को कूड़ेदान में फेंक दिया है, विदेशी राजा के जन्मदिन पर बांटी गई मिठाई को मैं नहीं खा सकता’’. नागपुर के सीताबर्डी किले पर लगे यूनियन जैक (अंग्रेजों का झंडा) के स्थान पर भगवा ध्वज लहराने के लिए घर के एक कमरे में ही अपने बाल सखाओं के साथ सुरंग खोदने का काम शुरु कर देना.
नागपुर के नीलसिटी हाई स्कूल में पढ़ते समय वंदे मातरम गीत पर लगे प्रतिबंध को तोड़कर सभी कक्षाओं में बच्चों द्वारा वंदे मातरम के उद्घोष करवाना, आदि घटनाएं उनके भीतर जन्म ले चुके अंग्रेज विरोध तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रत्येक प्रकार का बलिदान करने की दृढ़ता को दर्शाता है. वंदेमातरम गायन पर लगे प्रतिबंध को तोड़ने की सजा मिली ‘स्कूल से निष्काष्न’. किसी तरह पुणे में जाकर विद्यालय की शिक्षा पूरी की. तत्पश्चात उस समय के राष्ट्रीय नेताओं की योजना तथा व्यवस्थानुसार कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया. उद्देश्य था – उस समय के सबसे बड़े क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ का सदस्य बनकर देश भर के सभी क्रांतिकारियों से संबंध स्थापित कर लेना. वे इस महान कार्य में सफल हुए और 6 वर्ष के बाद डॉक्टरी की डिग्री और सशस्त्र क्रांति का प्रशिक्षण व अनुभव लेकर नागपुर लौट आए. परन्तु डॉक्टरी का व्यवसाय नहीं किया और न ही विवाह किया. अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया.
1915 में प्रथम विश्व युद्ध के बादल मंडराने लगे थे. डॉ. हेडगेवार ने इस अवसर पर पूरे देश में विप्लव करके अंग्रेजों को उखाड़ फैंकने की योजना पर कार्य किया. देश भर में क्रांतिकारियों को तैयार करने, प्रत्येक स्थान पर हथियार भेजने एवं क्रांति का बिगुल बजाने की तैयारी हो गई. परन्तु उस समय के कांग्रेस नेताओं का साथ न मिलने से यह योजना साकार नहीं हो सकी. तो भी देश की स्वतंत्रता के लिए गहन चिंतन और परिश्रम जारी रहा. सभी मार्गों का अनुभव लेने, उनमें भागीदारी करने और उनके संचालन के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे. डॉ. हेडगेवार कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में भी गए, उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस का सह-सचिव का पद भी सौंपा गया. नागपुर में सम्पन्न हुए कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में मुख्य व्यवस्थापकों में भी थे. उन्होंने इस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव भी रखा था जो पारित नहीं हो पाया.
डॉ. हेडगेवार ने कांग्रेस के भीतर रहकर अखंड भारत, सर्वांग स्वतंत्रता और शक्तिशाली हिन्दू संगठन की आवश्यकता का वैचारिक आधार तैयार करने का पूरा प्रयास किया था. वे कांग्रेस के मंचों पर अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र भाषण देने लगे. ऐसे ही एक उग्र भाषण पर डॉ. हेडगेवार को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मई 1921 में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. इसके एकतरफा फैसले में डॉक्टर जी को एक वर्ष के कठोर सश्रम कारावास की सजा दी गई. कारावास में भी पूर्ण स्वतंत्रता का चिंतन चलता रहा. जेल से लौटने के पश्चात भी महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में आयोजित होने वाले सभी सत्याग्रहों एवं आंदोलनों में भाग लेते रहे.
डॉ. हेडगेवार ने विजयदशमी 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना की. उस समय संघ के स्वयंसेवकों ने एक प्रतिज्ञा लेनी होती थी – ‘मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रमाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूं.’ डॉ. हेडगेवार ने घोषणा की – ‘हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है.’ जब कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को सायंकाल 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाने का आदेश दिया. सभी शाखाओं के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश पहनकर नगरों में पथ संचलन निकाले और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़कर भाग लेने की प्रतिज्ञा दोहराई. ध्यान दें कि संघ ऐसी पहली संस्था थी, जिसने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता का उद्देश्य रखा था.
1930 से पहले कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का नाम तक नहीं लिया. यह दल हाथ में कटोरा लेकर अंग्रेजों से आजादी की भीख मांगता रहा. तो भी डॉ. हेडगेवार ने महात्मा गांधी जी के सभी सत्याग्रहों और आंदोलनों में स्वयंसेवकों को भाग लेने की अनुमति दी. गांधी जी के नेतृत्व में आयोजित असहयोग आंदोलन में स्वयं डॉ. हेडगेवार ने 6 हजार से अधिक स्वयंसेवकों के साथ ‘जंगल सत्याग्रह’ में भाग लिया था. उन्हें 9 मास के सश्रम कारावास की सजा हुई थी. इसी प्रकार 1942 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सम्पन्न ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ में संघ के स्वयंसेवकों ने सरसंघचालक श्री गुरुजी के आदेशानुसार भाग लिया था. इतना ही नहीं कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को संघ के कार्यकर्ताओं ने अपने घरों में शरण भी दी थी. उदाहरणार्थ, दिल्ली के उस समय के प्रांत संघचालक हंसराज गुप्त जी के घर में अरुणा आसफ अली और जय प्रकाश नारायण ठहरे थे.
राष्ट्रीय अभिलेखागार में गुप्तचर विभाग की एक रिपोर्ट सुरक्षित रखी हुई है. इस रिपोर्ट में संघ के अनेक कार्यकर्ताओं के नाम भी मिलते हैं, जो १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में भागीदारी करने के कारण विभिन्न स्थानों पर हिरासत में लिए गए और जेलों में सजा भुगती. इन रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि विदर्भ के चिमूर आश्थी नामक स्थान पर संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी कर ली थी. संघ के स्वयंसेवकों ने अंग्रेज पुलिस के अमानवीय अत्याचारों का सामना किया. गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों से पता चलता है कि अपनी सरकार स्थापित करने के बाद सरकारी आदेशों से हुए लाठीचार्ज/गोलीबारी में एक दर्जन से ज्यादा स्वयंसेवक बलिदान हुए थे.
नागपुर के निकट रामटेक में संघ के नगर कार्यवाह रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहब देशपांडे को 1942 “अंग्रेजों भारत छोड़ो” के आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने पर मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी थी. परन्तु बाद में उन्हें इस सजा से मुक्त कर दिया गया. इन्हीं बालासाहब देशपांडे ने बाद में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी.
उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार ने द्वितीय महायुद्ध के मंडराते बादलों को भांप कर देश में एक सशक्त क्रांति करने की योजना पर सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर और त्रलोक्यनाथ चक्रवर्ती के साथ गहन चर्चा की थी. इसी चर्चा में से सेना में नौजवानों की भर्ती, सेना में विद्रोह और आजाद हिंद फौज के गठन का विचार उत्पन्न हुआ था. सारी योजना तैयार हो गई और काम शुरु हो गया. नौजवान योजनाबद्ध फौज में भर्ती हुए और सुभाष चंद्र बोस द्वारा विदेशों में जाकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाल लिया और इधर अभिनव भारत, हिन्दू महासभा, आर्य समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सभी सशस्त्र क्रांतिकारी संगठनों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाने के लिए शक्ति अर्जित करनी प्रारम्भ कर दी.
आखिर वह समय आया जब फौज में विद्रोह हुआ और आजाद हिंद फौज भी इम्फाल तक पहुंच गई. अंग्रेजों को भय लगा, इस भयंकर विकट परिस्थिति से निपटने में अपने को असमर्थ पाकर अंग्रेजों ने अपने पहले फैसले को बदलकर 10 महीने पहले ही 15 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन की घोषणा कर दी. पहले फैसले के अनुसार विभाजन की तिथि 8 जून, 1948 थी. यह देश का और स्वतंत्रता सेनानियों का दुर्भाग्य ही था कि कांग्रेस के नेताओं ने 1200 वर्षों से चले आ रहे स्वतंत्रता संग्राम और लाखों बलिदानी हुतात्माओं के ‘‘अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता’’ के उद्देश्य को ध्वस्त करते हुए देश का विभाजन स्वीकार करके आधी-अधूरी आजादी प्राप्त कर ली. यदि एक वर्ष और ठहर जाते तो स्वतंत्रता भी मिलती और भारत का विभाजन भी न होता.
विभाजन के बाद महात्मा गांधी जी ने एक पत्र लिखकर कांग्रेस के नेताओं को सुझाव दिया था कि अब कांग्रेस को समाप्त करके इसे एक सेवादल में परिवर्तित कर दो. महात्मा गांधी जी की इस इच्छा को ठुकरा दिया गया. उधर, संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने स्वयंसेवकों को तेज गति से अपनी शक्ति बढ़ाने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि ‘डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, उनका उद्देश्य था अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता और सर्वांगीण विकास. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1947 के बाद भी सक्रिय रहा. कश्मीर की सुरक्षा के लिए स्वयंसेवकों ने बलिदान दिया. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्रीनगर में जाकर अपनी कुर्बानी दी. स्वयंसेवकों ने हैदराबाद और गोवा की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह और संघर्ष किया.
यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इन सभी संघर्षों में संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की छत्रछाया में और तिरंगे की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं. उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंतिम उद्देश्य है – परम वैभवशाली अखंड हिन्दू राष्ट्र. परम वैभवशाली अर्थात : सर्वांग स्वतंत्रता, सर्वांग संगठित, सर्वांग विकसित और सर्वांग सुरक्षित राष्ट्र.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि कोरोना के क्रूर प्रहार से देश के कई हिस्से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस महामारी से निपटने में समाज के सभी लोगों का सहयोग आवश्यक है। कोरोना के प्रकोप पर शासन-प्रशासन व समाज के समन्वित प्रयास से ही भारत विजय प्राप्त करेगा।
आंबेकर ने नयी दिल्ली में डिजिटल माध्यम से आयोजित प्रेस वार्ता में संघ तथा सेवा भारती द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्यों के संबंध में जानकारी दी और कहा कि हमेशा की तरह संघ व सेवाभारती सहित अन्य संगठन व संस्थाएं प्रभावित क्षेत्रों व परिवारों में राहत पहुंचाने के काम में जुटे हैं। संघ की पहल पर आवश्यकता के अनुसार अभी बारह प्रकार के कार्य प्राथमिकता से प्रारंभ हुए हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड के संभावित लोगों हेतु आइसोलेशन केंद्र व पॉज़िटिव रोगियों हेतु कोविड केअर (सेवा) केंद्र, सरकारी कोविड केंद्र व अस्पतालों में सहायता, सहायता हेतु दूरभाष (हेल्पलाइन नंबर), रक्तदान, प्लाज्मादान, अंतिम संस्कार के कार्य, आयुर्वेदिक काढ़ा वितरण, समुपदेशन (काउंसलिंग), ऑक्सीजन आपूर्ति व एम्बुलेंस सेवा, भोजन, राशन व मास्क तथा टीकाकरण अभियान व जागरूकता जैसे आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर तत्काल कई प्रांतों में स्वयंसेवकों द्वारा प्रारंभ किया गया है। स्थानीय प्रशासन की भी हर संभव सहायता की जा रही है ताकि सभी मिलकर इस चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकें।
उन्होंने बताया कि इंदौर में संघ की पहल पर शासन, निजी अस्पताल, राधा स्वामी संत्संग आदि के सहयोग से दो हज़ार बिस्तर का कोविड केंद्र शासन व समाज के समन्वित कार्य का उत्कृष्ट उदाहरण बन गया है। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा अभी 43 प्रमुख शहरों में कोविड सेवा केंद्र चलाए जा रहे हैं तथा अन्य 219 स्थानों पर कोविड अस्पतालों में प्रशासन का सहयोग किया जा रहा है। टीकाकरण हेतु दस हजार से अधिक स्थानों पर जागरूकता अभियान के साथ 2442 टीकाकरण केंद्र अभी तक प्रारंभ किए गए हैं।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि आवश्यकता के अनुसार प्लाज्मा व रक्तदान में सहयोग किया जा रहा है। कुछ स्थानों पर संभावितों की सूची भी बनी है। दिल्ली में रक्तदाताओं की सूची उपलब्ध है। पूणे में जनजागरण अभियान के माध्यम से 600 लोगों ने प्लाज्मा डोनेट किया, जिससे 1500 लोगों का जीवन बचाने में सहायता मिली। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि विभिन्न शहरों में बुजुर्गों व अकेले रहने वालों को ध्यान में रखते हुए हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं। इनके माध्यम से जरूरतमंदों को आवश्यक सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि संघ कोरोना की महामारी में दिवंगत सभी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, ऑक्सीजन आदि सामग्री की आपूर्ति में लगे कर्मचारी, सुरक्षा व स्वच्छता कर्मियों सहित सभी कोरोना योद्धाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज की संवेदना व सक्रियता अद्भुत है। अपनी जान जोखिम में डालकर संकट की स्थिति में कार्य कर रहे हैं। परिस्थिति भले ही विकट हो, भारत में समाज की शक्ति भी विशाल है।
हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक यात्रियों की सेवा के साथ-साथ यातायात व्यवस्था में भी सहयोग करेंगे। इसके लिए प्रदेशभर से बड़ी संख्या में संघ के कार्यकर्त्ता हरिद्वार पहुंचे गए हैं। गंगा तट पर आयोजित “सेवा संकल्प” कार्यक्रम में इन सभी कार्यकर्ताओं को मां गंगा को साक्षी मान कर कुंभ ड्यूटी के दौरान पूर्ण निष्ठा से समाज की सेवा का संकल्प दिलाया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ के पश्चिम उत्तरप्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक सूर्यप्रकाश टोंक ने कहा कि मां गंगा की सेवा करने का मौका हर किसी को नहीं मिलता, महाकुम्भ में रहकर जन सेवा करने का अवसर स्वयंसेवकों को मिला है, वह सौभाग्य से मिला है। इस सेवा का फल कुम्भ स्नान से भी अधिक फलदाई है। उन्होंने कहा कि संघ का स्वभाव ही सेवा है। अब तक हजारों अवसरों पर संघ के स्वयंसेवक प्रतिकूल परिस्थितियों में समाज सेवा के लिए सड़कों पर उतरे हैं। लेकिन यह पहला अवसर है, जब अनुकूल परिस्थितियों में सेवा के लिए स्वयंसेवक मोर्चे पर तैनात हो रहा है।
संघ के उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक युद्धवीर ने कहा कि पूरे प्रदेश से आए कार्यकर्ता निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा के लिए यहां आए हैं। प्रत्येक स्वयंसेवक अपनी स्वेच्छा से कुंभ सेवा के लिए तैयार है। हमारे किसी भी व्यवहार से किसी को नुकसान न हो, इसके लिए हम सभी को शांति, संयम, अनुशासन से कार्य करना है। उन्होंने कहा कि यातायात व्यवस्था में तैनात स्वयंसेवक मौके पर तैनात पुलिस कर्मियों के सहयोग के लिए है। इसलिए वह प्वाइंट पर तैनात उच्चाधिकारियों के उचित मार्गदर्शन में ही कार्य करें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बाल्मीकि आश्रम के पीठाधीश्वर महंत मानदास महाराज ने कहा कि सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। संघ के स्वयंसेवक बिना भेदभाव के समाज सेवा के लिए संकल्पित रहते हैं। देश, धर्म, समाज की सेवा करने से ही परम मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस अवसर संघ के क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदम सिंह भी उपस्थित थे।
- अद्वैता काला
राजनैतिक विश्लेषक, वरिष्ठ स्तंभकार और फिल्म पटकथा लेखिका
विगत दिवस बेंगलुरु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक मे नए सरकार्यवाह का चुनाव एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा इसलिए, क्योंकि संघ के पदानुक्रम में सरकार्यवाह दूसरे पायदान पर आते हैं। कार्यपालक की भूमिका में उनके पास संगठन के दैनंदिन कार्यों का दायित्व होता है। सरकार्यवाह के चुनाव से जुड़ा दिलचस्प पहलू यह है कि वह आम सहमति से होता है। संघ की अन्य परंपराओं की तरह इसका फैसला भी पूर्ण सर्वानुमति के बाद सामूहिक निर्णय प्रक्रिया से होता है।
संघ अपने सामूहिक संकल्प से आने वालों वर्षों के लिए जो रोडमैप तैयार करता है, सरकार्यवाह उसे उस दिशा में ले जाते हैं। सरकार्यवाह का चयन तीन वर्ष के लिए होता है। जहां सरसंघचालक संघ के मार्गदर्शक एवं संरक्षक की भूमिका में होते हैं, वहीं इतने विशाल संगठन का वास्तविक संचालन सरकार्यवाह के हाथ में होता है। इस कार्य संचालन में सहयोग के लिए सह-सरकार्यवाहों की एक टीम होती है। नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले वर्ष 2009 से सह-सरकार्यवाह की भूमिका में ही थे और खासे अनुभवी माने जाते हैं।
संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। उसके अनुषंगी संगठनों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलुओं में गहरी पैठ है। संघ के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचकर अब दत्तात्रेय होसबाले संगठन के विस्तार और संघ के शताब्दी समारोह की तैयारियों को आगे बढ़ाने के अभियान पर ध्यान केंद्रित करेंगे। चार साल बाद 2025 में संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे।
गत एक दिसंबर को 65 वर्ष के हुए दत्तात्रेय होसबाले की जड़ें कर्नाटक से जुड़ी हैं। उनका जन्म शिमोगा जिले के होसबाले गांव में हुआ। तीन भाई और तीन बहनों के उनके परिवार का संघ से जुड़ाव रहा। संघ में होसबाले ‘दत्ताजी’ के नाम से लोकप्रिय हैं। वह कई भाषाएं बोल लेते हैं। संस्कृत, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और हिंदी पर उनकी अच्छी पकड़ है। वह अंग्रेजी साहित्य के छात्र रहे हैं। पढ़ने का उन्हें बहुत शौक है। अपनी व्यस्त दिनचर्या से भी वह अध्ययन के लिए समय निकाल ही लेते हैं। अध्ययन की अभिरुचि को उन्होंने कायम रखा हुआ है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। वह सुस्पष्ट विचारक हैं, जिन्हें समकालीन भारत और उसके समक्ष चुनौतियों की गहन समझ है।
होसबाले वर्ष 1968 में संघ से जुड़े। छात्र जीवन के दौरान वर्ष 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए। यह जुड़ाव आग से खेलने जैसा था। ऐसा इसलिए, क्योंकि रचनात्मक अभिरुचि के चलते वह फिल्म निर्माण में सक्रिय होना चाहते थे। एक स्क्रीनप्ले पर काम भी कर रहे थे, लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए भयावह मीसा कानून के तहत उन्हें 14 महीने जेल में गुजारने पड़े। एक तेजतर्रार कार्यकर्ता, आपातकाल के मुखर आलोचक और नागरिक अधिकारों के दमन के विरोध ने उन्हें पूर्णकालिक प्रचारक बना दिया। इस प्रकार फिल्में बनाने का सपना पीछे छूट गया और राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं सेवा की लंबी यात्रा आरंभ हुई।
विद्यार्थी परिषद में उनकी पारी बहुत लंबी रही। वह 1992-2003 के बीच परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे। छात्रों की कई पीढ़ियां आज भी उन्हें अपने संरक्षक के रूप में याद करती हैं। छात्रों पर उनका व्यापक प्रभाव रहा। वह छात्रों एव युवाओं के विश्व संगठन (डब्ल्यूओएसवाइ) के संस्थापक भी रहे। यह भारत में अध्ययन कर रहे दुनिया भर के छात्रों का संगठन है। एक वक्ता के रूप में खुद मैंने उनके कई सेमिनारों में भाग लिया है, जिसमें यही अनुभव हुआ कि यह विश्व के कोने-कोने से आए प्रतिभाशाली और बुद्धिजीवी छात्रों के एक अद्भुत संगम वाला मंच है। उन पर भारतीय अनुभवों की छाप दिखती है और छात्र समुदाय के बीच यह संगठन खासा लोकप्रिय है। प्रकांड विद्वान और लेखक दत्ताजी ने कन्नड़ पत्रिका ‘असीमा’ शुरू की और साहित्यिक-बौद्धिक उपक्रमों में सक्रिय रहे। कई प्रख्यात बुद्धिजीवी उनके घनिष्ठ मित्र हैं। साथ ही साथ दत्ताजी राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण सांगठनिक पदों पर आगे बढ़ते गए और इसी में सबसे ताजा पड़ाव है सरकार्यवाह पद पर ताजपोशी।
एक ऐसे समय में जब संघ में बड़ा बदलाव हो रहा है तो टीवी पर अक्सर ऐसी परिचर्चा सुनने को मिलती है कि नए सरकार्यवाह के नेतृत्व में आखिर संघ कैसे बदल जाएगा? यह दरअसल संघ को लेकर सतही सोच को ही दर्शाता है। जैसे कि सरकार्यवाह का चुनाव आम सहमति से होता है, उसी प्रकार संघ के निर्णय और उसे दी जाने वाली दिशा भी सर्वानुमति से तय होती है। ऐसे में संघ को लेकर ‘परिवर्तन’ और ‘नई दिशा’ जैसे जुमले अटकलबाजी और मनोरंजन का माध्यम मात्र ही हैं। अतीत में पारित किए गए संकल्पों पर दृष्टि डालना ही अगले एक वर्ष की थाह लेने का सबसे बेहतर संकेतक है। ये संकल्प अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अभिन्न अंग हैं। इसके गठन के बाद से यही परंपरा चली आई है। इन संकल्पों में देश के समक्ष मौजूद परिस्थितियों के अनुरूप संघ के विचार एवं लक्ष्य रेखांकित होते हैं।
सरसंघचालक के संरक्षण एवं मार्गदर्शन में सरकार्यवाह और उनकी टीम इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कार्ययोजना एवं रणनीति तैयार करती है। संघ के जानकार एवं लेखक डॉ. रतन शारदा से एक हालिया संवाद के दौरान जब मैंने संघ में सांगठनिक पदानुक्रम को लेकर प्रश्न किया तो उन्होंने एक दृष्टांत से इसे समझाया। उन्होंने बताया कि संघ में अनुशासन और सम्मान का मापदंड आम स्वयंसेवक से लेकर सरसंघचालक तक के लिए एकसमान ही है। अपनी भूमिका को रेखांकित करते हुए डॉ. मोहन भागवत ने बताया था कि उनकी दिनचर्या संघ द्वारा निर्धारित की जाती है और संगठन के कर्ताधर्ता की भूमिका में यदि सरकार्यवाह उनकी उपस्थिति कहीं और चाहते हैं तो उन्हें वहां जाना पड़ेगा। विनम्रता एवं अनुशासन का ऐसा स्तर संघ की परंपरा को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार नए सरकार्यवाह का चुनाव एक महत्वपूर्ण अवसर होने के साथ ही एक संगठन के रूप में संघ की निरंतरता का प्रतीक भी है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसस) के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले को सर्वसम्मति से संगठन का नया सरकार्यवाह चुना गया है। वे सुरेश (भैय्याजी) जोशी का स्थान लेंगे।
बेंगलुरु में संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की दो दिवसीय बैठक के अंतिम दिन शनिवार को होसबाले के नाम पर मुहर लगी। वे वर्ष 2009 से संघ के सह-सरकार्यवाह के दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। संघ में सरसंघचालक के बाद
दूसरा सबसे महत्पूर्ण पद सरकार्यवाह (महासचिव) का होता है।
प्रत्येक तीन वर्ष में होता है चुनाव
संघ में सरसंघचालक के पद पर नियुक्त व्यक्ति आजीवन पद पर बने रहते हैं। किसी अपरिहार्य परिस्थिति में वे अपने उत्तराधिकारी का चयन स्वयं करते हैं। मगर सरकार्यवाह के पद पर प्रत्येक 3 वर्ष में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में चुनाव होता है। निवर्तमान सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी इस पद पर लगातार चार बार निर्वाचित हुए।
Bangaluru : Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha of RSS elected Shri Dattatreya Hosabale as its ‘Sarkaryavah’. He was Sah Sarkaryavah of RSS since 2009. pic.twitter.com/ZZetAvuTo4
— RSS (@RSSorg) March 20, 2021
कौन हैं दत्तात्रेय होसबाले
संघ के नए सरकार्यवाह नियुक्त हुए दत्तात्रेय होसबाले की पहचान एक विचारक के रूप में होती है। उनका का जन्म 1 दिसंबर 1954 में कर्नाटक के शिमोगा जिले के होसबाले गांव में हुआ। उन्होंने बेंगलूरु यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा ग्रहण की।
13 वर्ष की आयु में बने संघ के स्वयंसेवक
होसबाले 1968 में 13 वर्ष की आयु में संघ के स्वयंसेवक बने और 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। वर्ष 1978 में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के पश्चात पूर्णकालिक बने। विद्यार्थी परिषद में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करने के पश्चात वे वर्ष 1992 से 2003 तक 11 वर्षों तक राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे। वे वर्ष 2003 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बने और वर्ष 2009 में सह-सरकार्यवाह के पद पर नियुक्त हुए।
आपातकाल में 14 माह तक जेल रहे
होसबाले 1975 में आपातकाल के दौरान चले आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और लगभग 14 माह तक ‘मीसा’ के अंतर्गत जेल में रहे।
कई भाषाओं के हैं ज्ञाता
होसबाले अपनी मातृभाषा कन्नड़ के अतिरिक्त अंग्रेजी, तामिल, मराठी, हिंदी व संस्कृत सहित अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। वे कन्नड़ मासिक पत्रिका असीमा के संस्थापक संपादक भी रहे।
होसबाले भारत में पढ़ रहे विदेशी छात्रों का संगठन विश्व विद्यार्थी युवा संगठन (WOSY) के संस्थापक महामंत्री रहे।उन्होंने अमेरिका, यूरोप सहित विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया है।
कार्यकारिणी में हुआ ये बड़ा बदलाव
डॉ. कृष्ण गोपाल, डॉ. मनमोहन वैद्य, सीआर मुकुंद, अरुण कुमार, रामदत्त चक्रधर को सह-सरकार्यवाह की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
राम लाल को अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख, सुनील अम्बेकर को अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख व आलोक कुमार को अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नियुक्त किया गया है।
निवर्तमान सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी, निवर्तमान सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी व वी भगैया, सुहास राव हिरेमथ, इंद्रेश कुमार, प्रो अनिरुद्ध देशपांडे व उदय कुलकर्णी को केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल का सदस्य बनाया गया है। इसके साथ ही भाजपा में राष्ट्रीय महामंत्री रहे राम माधव को भी कार्यकारिणी मंडल में रखा गया है।
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जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वैचारिक प्रभाव देश भर में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुत्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित संगठन के बारे में जानने समझने की ललक लोगों के बीच बढ़ती जा रही है। ‘आरएसएस’ या ‘संघ’ के नाम से अधिक पहचाने जाने वाले इस ‘परिवार’ के विभिन्न विषयों पर विचार तथा इसकी कार्यप्रणाली से आमजन परिचित होना चाहते हैं।
संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’, इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने का सफल प्रयास है। एक सामाजिक – सांस्कृतिक संगठन होते हुए भी संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रवाद की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी यह पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा आदि समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज के लिए कार्य न कर रहे हों। इसके अनुसार संघ व्यक्ति निर्माण के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। जो भी करता है, स्वयंसेवक करता है। अपनी शाखाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण करना संघ का मुख्य कार्य है। इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों में गए स्वयंसेवक संघ के कार्य को मूर्त रूप देते हैं।
लेखक का पूरा जीवन संघ के साथ ही बीता है। अतः पुस्तक का बड़ा भाग उनके स्वयं के अनुभवों पर आधारित है। उन्होंने बहुत ही व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से संघ के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को पाठकों के समक्ष रखा है इसलिए यह कहना उचित ही है कि यह पुस्तक उनके लिए है जो व्यवहार रूप में संघ को समझना चाहते हैं, उसके माध्यम से जिसने संघ को जिया है। पुस्तक संघ के बारे में फैलाई गई कई भ्रामक धारणाओं को स्पष्ट रूप से दूर करती है। साथ ही अनेक विवादित विषयों पर संघ के विचार सामने लाती है।
हिन्दू राष्ट्र को लेकर संघ का स्पष्ट मानना है कि यह संकल्पना किसी भी पंथ, संप्रदाय या रिलीजन’ की विरोधी नहीं है। हिन्दू राष्ट्र में सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान और स्वतंत्रता स्वयं सम्मिलित है। इसी प्रकार संघ जाति व्यवस्था को सनातन परंपरा का अंग नहीं मानता। इसलिए जन्म के आधार पर कोई भी छोटा या बड़ा नहीं। हमारे वेद भी यही कहते हैं। संघ का मानना है कि हमारी वर्ण व्यवस्था गुण कर्म पर आधारित थी, ना कि जन्म के आधार पर। वहीं, आरक्षण पर भी संघ ने दो टूक कह दिया है कि जब तक समाज में भेदभाव विद्यमान है। संघ आरक्षण का समर्थन करता रहेगा।
संघ मानता है कि भारत की सामाजिक, राजनीतिक अवधारणा का बीज हिंदू राष्ट्र में है और इस कारण भारत में इस्लाम, ईसाई तथा अन्य संप्रदायों के अनुयायियों को अपनी पूजा पद्धतियों के अनुपालन की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन हिंदुत्व भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा कवच है। जब जब हिंदुत्व सशक्त होता है, देश की एकता और अखंडता अभेद्य और अपराजेय बन जाती है। संघ का दृढ़ विश्वास है कि आने वाले समय में भारत से विदेशों को किया जाने वाला सबसे बड़ा सांस्कृतिक निर्यात हिंदुत्व होगा। संघ मानता है कि भारत उन सभी का है, जिनका यहां जन्म हुआ और यहां रहते हैं, फिर चाहे वे किसी भी मत पंथ या संप्रदाय के हों।
भारत के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में संघ अनुभव करता है कि यहां बहुत से राजनीतिक दल होंगे, किंतु वे सब प्राचीन भारतीय परंपरा एवं श्रद्धालुओं का सम्मान करेंगे। आधारभूत मूल्य तथा हिन्दू सांस्कृतिक परंपराओं के संबंध में एकमत होंगे, मतभेद तो होंगे लेकिन ये केवल देश के विकास के प्रारूपों के संदर्भ में ही होंगे। वहीं, आरएसएस के भविष्य के बारे में पुस्तक कहती है कि जब भारतीय समाज समग्र रूप में संघ के गुणों से युक्त हो जाएगा, तब संघ तथा समाज की दूरी समाप्त हो जाएगी। उस समय संघ संपूर्ण भारतीय समाज के साथ एकाकार हो जाएगा और एक स्वतंत्र संगठन के रूप में इसके अस्तित्व की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
संघ देश के समक्ष चुनौतियों को लेकर भी अत्यंत गंभीर है। इनमें इस्लामी आतंकवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ, हिंदुओं की घटती जनसंख्या, हिंदुओं का धर्मांतरण जैसे विषय शामिल हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह पुस्तक, जो संघ से परिचित हैं उनकी समझ को और अच्छा बनाएगी। जो अपरिचित हैं, उन्हें संघ से परिचित कराएगी। इसके अतिरिक्त संघ के विरोधियों को भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। जिससे वह पूर्वाग्रह और मिथ्या धारणाओं से युक्त चश्मे से मुक्त होकर इस राष्ट्रवादी संगठन को समझ सकेंगे। फिर भी इतने विशाल और बहुआयामी संगठन को मात्र किसी पुस्तक के आधार पर नहीं समझा जा सकता। संघ को समझना है तो संघ में आना पड़ेगा। इसलिए संघ का आह्वान है कि संघ से जुड़कर प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर रहते हुए तथा अपना कार्य करते हुए भी अपनी रुचि के अनुसार समाज हित का कार्य कर सकता है।
पुस्तक – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र
लेखक – सुनील आंबेकर
प्रकाशक – प्रभात पेपरबैक्स, 4/19 आसफ अली रोड , नई दिल्ली, पिन कोड – 110 002.
मूल्य – 250 रुपये
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अविरल गंगा-निर्मल गंगा के लिए अब कार्यकर्ताओं को भगीरथ प्रयास करना होगा, क्योंकि यह काम भारत की अन्तरात्मा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि गंगा भारत की संस्कृति की जीवन रेखा है। इसे हर हाल में बचाना होगा।
सरसंघचालक डॉ भागवत शनिवार को प्रयागराज में परेड स्थित विश्व हिंदू परिषद के शिविर में गंगा के लिए कार्य कर रहे गैर सरकारी संगठन गंगा समग्र के कार्यकर्ता संगम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में गंगा समग्र से जुड़े 6 प्रांतों से आए कार्यकर्ता उपस्थित थे।
डॉ भागवत ने कहा कि इस धरती पर जो प्रयास भागीरथ को गंगा जी को लाने के लिए करना पड़ा था, वही प्रयास कार्यकर्ताओं को गंगा एवं उससे जुड़ी नदियों को बचाने के लिए करना होगा। इस कठिन काम को आसान करने का मूल मंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि जन जागरण से यह काम संभव हो पाएगा। गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा के दोनों तटों पर पांच-पांच किलोमीटर के दायरे में बसे गांवों एवं शहरों में इसके लिए नित्य नैमित्तिक कार्यक्रम चलाने होंगे।
उन्होंने कहा कि यह काम जन-जन के भीतर के भगवान को जगा कर पूरा किया जा सकता है। इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए। स्वयं जनता को इस को अपने हाथों में लेना पड़ेगा। सभी आयामों की मजबूत टीम बनाकर केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका विधिवत प्रशिक्षित कर इस काम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए तटवर्ती गांव में प्रतिदिन सुबह-शाम गंगा आरती, तीर्थ पुरोहितों को कर्मकांड का प्रशिक्षण, घाटों की स्वच्छता, वृहद वृक्षारोपण, तालाबों में जल संचय कर उनको पुनर्जीवन देने से संभव हो पाएगा।
संघ प्रमुख ने निर्मल गंगा अविरल गंगा अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विकास और पर्यावरण दोनों का समान रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस काम में लगे सभी कार्यकर्ताओ को नदियों के जल प्रबंधन तथा जल संरक्षण का पूरा ज्ञान होना चाहिए। इस काम के लिए उन्होंने संतों का आशीर्वाद प्राप्त करने का भी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया।
गंगा समग्र के केंद्रीय महामंत्री डॉ.आशीष गौतम ने संगठन की संपूर्ण भूमिका रखी। उन्होंने बताया कि नर्मदा समग्र के माध्यम से नर्मदा नदी पर किए गए काम और उस में मिली सफलता के बाद गंगा समग्र की योजना बनी। इस काम के लिए उन्होंने स्वर्गीय अशोक सिंघल की प्रेरणा को भी महत्वपूर्ण बताया।
गंगा समग्र के केंद्रीय संगठन मंत्री मिथिलेश नारायण ने कचरा प्रबंधन एवं कचरा परिशोधन करने का तरीका कार्यकर्ताओं को समझाया। इसमें दिल्ली से आई संगठन की प्रांत संयोजिका नंदिनी पाठक ने भी नया प्रयोग करके कार्यकर्ताओं को दिखाया। प्रांत संयोजकों ने अपने-अपने प्रांतों में वृक्षारोपण, घाटों की स्वच्छता, गंगा आरती, गंगा जागरण यात्रा, प्राकृतिक खेती की जानकारी दी।
सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल ने किया समापन
कार्यक्रम का समापन आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अब गंगा समग्र का मजबूत सांगठनिक ढांचा तैयार हो गया है। कार्यकर्ता दोगुनी ताकत से अपने कार्यों का निर्वहन करेंगे। उन्होंने विश्वास जताया कि मजबूत संगठन के माध्यम से निर्मल गंगा का संकल्प अवश्य पूरा होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि श्रीराम जन्म भूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण व संपर्क अभियान धन संग्रह का नहीं, बल्कि समर्पण का कार्यक्रम है और समाज अपनी श्रद्धा एवं इच्छा से जो सहयोग करेगा, वह सब स्वीकार्य है।
भय्याजी जोशी ने यह बात जम्मू-कश्मीर में इस अभियान का शुभारंभ करते हुए कही। उन्होंने जम्मू शहर के गांधीनगर स्थित वाल्मीकि मोहल्ला में जाकर मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण हेतु संपर्क किया। इसके बाद डिगियाना स्थित श्री संत मेला सिंह जी दस्तकारी आश्रम के महंत मंजीत सिंह से भेंट कर मंदिर निर्माण के लिए सहयोग राशि ली। जम्मू-कश्मीर में यह अभियान मकर संक्रांति से शुरू होकर 27 फरवरी माघ पूर्णिमा तक चलेगा।
भय्याजी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय और प्रभु श्रीराम की इच्छा अनुसार अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है। भगवान के लिए समाज अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वयं प्रेरणा से सहयोग करेगा। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि की प्रत्येक कारसेवा में जम्मू कश्मीर के लोगों की अविस्मरणीय भूमिका रही है।
उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सिक्ख समाज के बंधुओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने कहा कि 30 नवंबर, 1858 को दर्ज एक एफआईआर की रिपोर्ट में लिखा है – निहंग सिक्ख, विवादास्पद ढांचे में घुस गए थे और राम नाम के साथ वहां हवन किया। निहंग सिक्खों ने वहां न सिर्फ हवन और पूजा की, बल्कि उस परिसर के भीतर श्रीराम का प्रतीक भी बनाया। उस समय उनके साथ 25 और सिक्ख थे, जिन्होंने वहां धार्मिक झंडे उठाए और उसकी दीवारों पर चारकोल के साथ ‘राम-राम’ लिखा था।
नई दिल्ली। अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के भाषणों का संकलन यशस्वी भारत का लोकार्पण जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी ने किया। इस अवसर पर संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि अब भारत पुन: अंगड़ाई ले रहा है और अपनी खोई अस्मिता व प्रतिष्ठा अर्जित करने के पथ पर अग्रसर है।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हमें संपन्न, सामर्थ्यवान, शक्तिशाली तो बनना है, लेकिन इससे आगे भारत को यशस्वी बनना है। उन्होंने कहा कि यश तब आता है, जब कोई परमार्थ करता है। प्राचीन भारत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम 18वीं शताब्दी तक दुनिया की आर्थिक महाशक्ति थे, शक्तिशाली भी थे। लेकिन हमारी प्रतिष्ठा सर्वे भवन्तु सुखिनः की हमारी नीति और सभी को ईश्वर का अंश मानने के हमारे भाव के कारण थी।
उन्होंने मिस्र, बेबीलोन, स्पार्टा आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि बर्बर, हिंसक और क्रूर सभ्यताएं सौम्य सभ्यताओं का नाश कर देती हैं। उन्होंने कहा कि हमने कोई हजार वर्षों तक ऐसे आक्रमणों से स्वयं को भी बचाया और धर्म की भी रक्षा की। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत के सभी उद्बोधनों का मूल स्वर यही है कि कैसे हम सब भारतीय जाति-धर्म-भाषा के भेद मिटाकर भारत की यशस्विता और सर्वांगीण समेकित विकास में सहभागी बन सकें। हम अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करें जब भारत ‘विश्वगुरु’ था और एक नायक की भांति विश्व का नेतृत्व करता था। अब भारत पुन: अंगड़ाई ले रहा है और अपनी खोई अस्मिता व प्रतिष्ठा अर्जित करने के पथ पर अग्रसर है।
स्वामी अवधेशानंद गिरी ने कहा कि स्थितियां बदल रही हैं। जाति की जकड़, स्त्रियों की स्थिति, समाज के चिंतन में बदलाव आया है। संन्यास परंपरा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अब तथाकथित छोटी जातियों से भी संन्यासी बन रहे हैं और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है। हिन्दू दूसरों का धर्म परिवर्तन नहीं कराते। कोरोना काल में दुनिया में जितने लोगों ने योग, आयुर्वेद और दूसरी भारतीय पद्धतियां अपनाईं, उससे भारतीय विचार का पूरे विश्व में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है। मोहन भागवत के चिंतनपरक उद्बोधनों में भारत के स्वर्णिम भविष्य के निर्माण का मार्ग है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भारत के पूर्व नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) राजीव महर्षि ने भी हिन्दू कौन विषय को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि संघ और सरसंघचालक मोहन भागवत के चिंतन में सदैव ‘राष्ट्र’ रहता है और इसीलिए इस वैश्विक संगठन की स्वीकार्यता समाज में निरंतर बढ़ रही है।
पुस्तक में सरसंघचालक मोहन भागवत के अलग-अलग अवसरों पर दिए गए 17 भाषणों का संकलन है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित 286 पृष्ठों की पुस्तक का संपादन लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर ने किया है। पुस्तक की प्रस्तावना संघ के पूर्व अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, प्रखर चिंतक-विचारक एमजी वैद्य ने लिखी है।प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार व प्रभात कुमार ने उपस्थित अभ्यागतों का स्वागत किया।