उत्तराखंड सरकार ने कोरोना काल में उपजी परिस्थितियों के मद्देनजर उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लि. (उपनल) के माध्यम से होने वाली नियुक्तियों के द्वार सबके लिए खोल दिए हैं। इससे पहले उपनल से सिर्फ पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को ही आउटसोर्स के आधार पर रोजगार मिलता रहा है। प्रदेश मंत्रिमंडल ने विगत 4 सितम्बर को इस महत्वपूर्ण फैसले को स्वीकृति दी थी। बुधवार को प्रदेश की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा इस सम्बन्ध में आदेश जारी कर दिए गए हैं।
सरकार ने कोरोना काल में बेरोजगारों को राहत देने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है। लॉकडाउन के कारण बड़े स्तर पर प्रवासी उत्तराखंड वापस लौटे हैं। प्रदेश सरकार उनके लिए रोजगार के साधन खोजने में लगी हुई है। इसके लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना समेत अनेक कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकार ने उपनल के माध्यम से ऑउटसोर्सिंग के आधार पर होने वाली नियुक्तियों में अन्य लोगों को भी रोजगार देने के लिए यह कवायद की है। स्वास्थ्य, हाउसकीपिंग, हॉस्पिटेलिटी और तकनीकी क्षेत्रों में सरकारी व निजी क्षेत्र की मांग के मुताबिक कई बार पूर्व सैनिक उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। ऐसे में सरकार के इस आदेश के बाद यह समस्या नहीं रहेगी।
उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने मंगलवार को सचिवालय में वर्ष 2021 में हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुंभ मेले की तैयारियों को लेकर बैठक की और कुम्भ मेले के कार्यों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और आवश्यक सामग्रियों की पुख्ता व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली जाएं।
मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा कि कुम्भ मेले के आयोजन के लिए कम समय रह गया है। सभी कार्याें को समयबद्ध तरीके से किया जाए। साथ ही कार्यों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाए। इसके लिए लगातार माॅनिटरिंग की जाए। उन्होंने डाम कोठी के जीर्णोद्धार के कार्य को समय से पूरा करने को कहा। निर्देश दिए कि मेला क्षेत्र में सीवर, पेयजल व विद्युत लाईन आदि के लिए सम्बन्धित विभागों से समन्वय बनाते हुए, पूर्व नियोजित तरीके से कार्य किए जाएं।
उन्होंने कहा कि आस्था पथ पर बाढ़ सुरक्षा कार्य को नदी में पानी का स्तर कम होते ही शुरू करने के निर्देश दिए और काँवड़ पटरी की ब्लैक टाॅपिंग का कार्य 15 नवम्बर तक पूर्ण करने के को कहा। उन्होंने कहा कि अस्थायी पुलों का निर्माण प्राथमिकता पर लेते हुए, इन्हें किसी भी दशा में 31 दिसम्बर तक तैयार करने को कहा। साथ ही कुम्भ मेले के लिए प्रस्तावित बस स्टैंड के लिए आवश्यक फाॅरेस्ट क्लीयरेंस लेकर कार्य तेजी से पूरा करने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने कोविड-19 के दृष्टिगत कुम्भ मेले में विशेष व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने और चिकित्सकों एवं अन्य आवश्यक स्टाफ की तैनाती समय पर किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए 500 बेड की व्यवस्था रखी जाए। साथ ही पेशेंट केयर एवं टेस्टिंग की भी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली जाएं। उन्होंने कहा कि कुम्भ मेले के लिए आवश्यक स्टाफ, मेला अधिकारी, उप मेला अधिकारी, सूचना अधिकारी, पुलिस फोर्स एवं होम गार्ड की तैनाती की प्रक्रिया भी शीघ्र पूर्ण कर ली जाए।
बैठक में प्रमुख सचिव आनन्द वर्धन, सचिव आर.के. सुधांशु, शैलेश बगोली, नीतेश झा, राधिका झा, सौजन्या, मेलाधिकारी दीपक रावत व अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में सोमवार को सचिवालय में मुख्यमंत्री सलाहकार समूह की प्रथम बैठक आयोजित की गई। राज्य में नवाचार और उद्यमिता (innovation and entrepreneurship) को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने स्टार्टअप, नवाचार और उद्यमिता पर मुख्यमंत्री सलाहकार समूह स्थापित किया है। राज्य में स्टार्टअप ईकोसिस्टम विकसित करने के लिए इस समूह द्वारा नवाचार और उद्यमिता के लिए राज्य में एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने, अनुसंधान और नये उत्पादों, सेवाओं, व्यापार मॉडल के विकास को प्रोत्साहित करने, उपयुक्त पॉलिसी योजनाओं और आवश्यक समर्थन प्रणाली को विकसित करने हेतु परामर्श देना है। इसके अलावा पाठ्यक्रम, मॉड्यूल प्रशिक्षण, कार्यशालाओं और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में नवाचार और उद्यमशीलता के बारे में जागरूकता, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निकायों और एजेंसियों के साथ आवश्यक साझेदारी हेतु सलाह देना है।
ये बनाये गए हैं सदस्य
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में बनाये गये मुख्यमंत्री सलाहकार समूह में 07 सरकारी एवं 06 गैर सरकारी सदस्य शामिल हैं। सरकारी सदस्यों में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव उद्योग, सचिव वित्त, सचिव सूचना प्रौद्योगिकी, सचिव मुख्यमंत्री, महानिदेशक उद्योग, एवं निदेशक उद्योग शामिल हैं। जबकि गैर सरकारी सदस्यों में इंडियन एंजल नेटवर्क के फाउण्डर डॉ. सौरभ श्रीवास्तव, सम्पर्क फाउण्डेशन के फाउण्डर विनीत नायर, क्वात्रो ग्लोबल सर्विस के चैयरमेन एवं प्रबंध निदेशक रमन रॉय, कन्ट्री हेड एच.एस.बी.सी नैना लाल किदवई, इन्फो एज के वाइस चैयरमेन संजीव बिखचंदानी एवं सन मोबिलिटी प्रा. लि. के वाइस चैयरमेन चेतन मणि शामिल है।
उद्यमिता, नवाचार एवं स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए राज्य में यह नई पहल
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लोकल के लिए वोकल बनने की जो बात कही गई यह उस दिशा में प्रयास है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड विविध जैव विविधताओं वाला राज्य है, यहां कि जैव विविधता का फायदा लेते हुए इस दिशा में अनेक कार्य हो सकते हैं। राज्य में इन्वेस्टर समिट के दौरान सवा लाख करोड़ के एमओयू हस्ताक्षरित किये गये। जिसमें से 25 हजार करोड़ के कार्यों की ग्राउंडिंग हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड 19 के जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, उससे औद्योगिक गतिविधियां जरूर प्रभावित हुई हैं। इस दौर दिक्कतें भी आई हैं और नई संभावनाएं भी विकसित हुई हैं। उन्होंने कहा कि ग्रुप के सभी सदस्यों के सुझावों पर गम्भीरता से कार्य किया जायेगा।
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से विशेषज्ञों के सुझाव
इस अवसर पर वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से इंडियन एंजल नेटवर्क के फाउण्डर डॉ. सौरभ श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि राज्य में उद्यमिता के विकास के लिए जो भी योजना बने राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से बने। स्टार्टअप के तहत जॉब क्रियेशन पर विशेष ध्यान दिया जाय। उत्तराखण्ड के उत्पादों की अलग ब्रांडिंग हो, वैल्यू एडिशन पर विशेष ध्यान दिया जाय। हैल्थ केयर में मेडिकल टूरिज्म पर ध्यान देने की जरूरत है।
नैना लाल किदवई ने कहा कि रूरल टूरिज्म एवं होम स्टे को बढ़ावा दिया जाय। एग्रो प्रोसेसिंग एवं फोरेस्टरी सेक्टर में अनेक कार्य किये जा सकते हैं। विनीत नायर ने कहा कि मेंटल हैल्थ के क्षेत्र में अनेक कार्य हो सकते हैं। हमें सबसे पहले बच्चों के मेंटल हैल्थ पर फोकस करना होगा। स्टार्टअप का भविष्य साइंस और तकनीक पर आधारित है। इस दिशा में पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। रमन रॉय ने कहा कि लाईवलीहुड बिजनेस पर ध्यान देने की जरूरत है। राज्य बिजनेस के कल्चर को प्रमोट करने की जरूरत है। विभिन्न सेक्टर में कार्य करने के लिए प्रत्येक सेक्टर के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने होंगे। संजीव बिखचंदानी ने कहा कि राज्य में कुछ बड़े उद्योग स्थापित करने होंगे। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत अनेक कार्य किये जा सकते हैं।
मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा कि राज्य में औद्योगिक विकास के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। कोरोना काल में साढ़े चार लाख से अधिक प्रवासी वापस उत्तराखण्ड आये हैं। उनको स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की गई है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार रवीन्द्र दत्त, अपर मुख्य सचिव मनीषा पंवार, सचिव आईटी आर.के. सुधांशु, सचिव मुख्यमंत्री राधिका झा, सचिव कौशल विकास डॉ. रणजीत कुमार सिन्हा, महानिदेशक उद्योग एस.ए. मुरूगेशन, अपर सचिव कौशल विकास आर राजेश कुमार, अपर सचिव मुख्यमंत्री ईवा श्रीवास्तव, निदेशक उद्योग सुधीर नौटियाल आदि उपस्थित थे।
हड़ताली प्रदेश की छवि बना चुका उत्तराखंड वर्तमान में उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्प्लायज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष व सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी के विरुद्ध जांच के विरोध में कर्मचारी आंदोलन से जूझ रहा है। जोशी के विरुद्ध शासन ने बिना सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के मीडिया में राज्य सरकार तथा उसकी नीतियों का विरोध करने के आरोप में जांच बैठायी है। जोशी पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने पदीय कर्तव्यों एवं दायित्वों से इतर जाकर प्रदेश सरकार पर टिप्पणी व वक्तव्य दिए हैं। इन आरोपों के क्रम में शासन ने उनके विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत कार्रवाई करते हुए आरोप पत्र जारी किया है और अपर सचिव, गृह के पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी कृष्ण कुमार वीके को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा पहली सितम्बर को जारी इस आदेश में जांच अधिकारी को एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सचिवालय प्रशासन विभाग को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश के जारी होने के बाद से प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन आंदोलनरत हैं। कर्मचारी संगठनों की और से ‘उग्र आंदोलन’ और ‘आर-पार की लड़ाई’ जैसी धमकियां प्रदेश सरकार को दी जा रही हैं। कर्मचारियों ने गत दिवस इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से गुहार लगाई थी। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव ओम प्रकाश को इस मामले को देखने के निर्देश दिए। मुख्य सचिव सोमवार को प्रकरण से संबंधित पत्रावलियों को देखेंगे और कर्मचारी संगठनों से बातचीत करेंगे। मुख्य सचिव इस मामले में क्या निर्णय लेंगे, यह सोमवार को ही पता चलेगा।
मगर, दीपक जोशी प्रकरण के बहाने कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब बात-बेबात में आंदोलन पर उतारू रहने वाले कर्मचारी संगठनों और कर्मचारियों की छोटी-मोटी व जायज समस्याओं की अनदेखी करने वाले नौकरशाहों को देना ही चाहिए। इन सवालों पर बात करने से पहले यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। रिपोर्ट वर्ष 2016 में देश भर में हुए विभिन्न आंदोलनों पर आधारित थी। रिपोर्ट में आंदोलनों के मामले में उत्तराखंड ने देश के बड़े राज्यों को पछाड़ कर पहले स्थान पर कब्जा जमा लिया था। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों के ताबड़तोड़ आंदोलन ने राज्य को देश में पहले स्थान पर पहुंचा दिया था। कर्मचारियों के आंदोलन ने राजनीतिक व छात्र आंदोलनों को भी कोसों दूर छोड़ दिया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में उत्तराखंड के कर्मचारी सर्वाधिक असंतुष्ट दिख रहे थे। यह आकड़ें भले वर्ष 2016 के हों। मगर परिस्थितियों में आज भी कोई अंतर नहीं है।
अब सवालों की बात करते हैं। शासन ने दीपक जोशी के विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत जाँच शुरू की है। यह नियमावली सरकारी कार्मिकों हेतु सरकारी सेवक के तौर पर उन्हें ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के साथ पदीय कर्तव्यों के निर्वहन के लिए एक ‘आचार संहिता’ है। आम तौर पर नियमावली के अधिकांश प्राविधानों का न तो कार्मिक पालन करते हैं और न ही सरकार इस मामले में सख्ती बरतती है। शासन ने जोशी को नियमावली के तमाम नियमों के तहत आरोप पत्र जारी किया है। जिसके बचाव में कर्मचारी संगठनो की और से यह तर्क दिया जा रहा है कि जोशी ने एक कर्मचारी संगठन के नेता के रूप में अपनी अपने वक्तव्य दिए हैं और एक संगठन के नेता के रूप में उन्हें यह अधिकार हासिल है।
मगर, ऐसे तर्क देने वालों से ये सवाल पूछा जाना जरुरी है कि क्या कर्मचारी नेता होने के नाते किसी को भी अपनी मांगों या समस्याओं से इतर जाकर कुछ भी बोलने का अधिकार मिल जाता है ? शासन द्वारा जोशी को दिए गए आरोप पत्र में क्या-क्या बिंदु शामिल किये गए हैं, यह पता नहीं चल सका है। मगर उनका उत्तराखंड को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर दिया गया बयान काफी चर्चाओं में रहा था। यह बयान सीधे-सीधे कर्मचारी आचरण नियमावली के बिलकुल विपरीत तो है ही, साथ ही यह भी सवाल खड़ा कर रहा है की ऐसे बयानों का कर्मचारी संगठनों की मांग से क्या सम्बन्ध है? अथवा यह बयान किसी राजनीति से प्रेरित से है ?
प्रदेश में कर्मचारी संगठनों की बात की जाए तो कई प्रमुख कर्मचारी संगठनों में सेवानिवृत कर्मचारी कमान संभाले हुए हैं। यह कर्मचारी संगठनों के लिए तय मानकों के विपरीत है। मगर इसके बावजूद लगातार ऐसा चल रहा है तो इसके पीछे क्या कारण है ? क्या यह कर्मचारी संगठनों की मंशा पर सवाल उठाने के लिए काफी नही है ? कर्मचारी संगठन आंदोलनों के बल पर प्रदेश की सरकारों को वोट बैंक के दवाब में लेकर अपनी जायज-नाजायज मांगों को मनवाने में भले ही सफल हो जाते हों। मगर उनकी हड़ताल पर हड़ताल से प्रदेश के विकास पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है, उसकी भरपाई शायद ही कभी हो सकेगी। ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है कि हड़ताली प्रदेश की छवि से कब मुक्त होगा उत्तराखंड ?
बहरहाल, प्रदेश में कर्मचारियों के लगातार आंदोलन के पीछे अफसरशाही भी कम दोषी नहीं है। उदाहरण के तौर पर पदोन्नति की बात की जाए। अफसरों की पदोन्नति में एक दिन का भी विलंब नहीं होता है। इसके विपरीत तमाम कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत हो जाते हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति की फाइल विभागों व सचिवालय की अंधेरी गलियों में गुम हो जाती हैं। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि यदि अधिकांश कर्मचारियों को तय समय पर पदोन्नति दे दी जाए, तो इससे सरकार पर किसी प्रकार का वित्तीय भार भी नहीं पड़ता है, क्योंकि अधिकांश कार्मिक पदोन्नति पर जाने वाले पद के अनुरूप वेतन ले रहे होते हैं। उनके लिए पदोन्नति एक सम्मान होता है, जो कार्मिकों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है।
उत्तराखंड भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70 वें जन्मदिन को सेवा सप्ताह के रूप में मनाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस क्रम में बुधवार को पार्टी के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों, सांसदों, मंत्रियों, विधायकों, सरकार में विभिन्न निगमों-बोर्डों के अध्यक्ष व उपाध्यक्षों और संगठन के जिलाध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद स्थापित किया।
राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति में एक नये युग की शुरुआत की है। मोदी ने विकासपरक राजनीति की अवधारणा को जन्म दिया है और राजनीति को समाज सेवा से जोड़ कर उसमें गुणात्मक परिवर्तन करके दिखाया है।
उन्होंने कहा कि 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी का 70 वां जन्मदिवस है। उनके जन्मदिवस को देखते हुए भाजपा ने 14 से 20 सितंबर तक सेवा सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दौरान प्रदेश से लेकर जिला, मंडल व बूथ स्तर तक कोविड-19 के मानकों का पालन करते हुए कार्यक्रम आयोजित करने हैं।
उन्होंने कहा कि सेवा सप्ताह के प्रथम दिन दिव्यांगों को कृत्रिम अंग वितरण, दूसरे दिन गरीबों व अस्पतालों में मरीजों को फल वितरण, तीसरे दिन भाजपा युवा मोर्चा की ओर से रक्तदान व प्लाज्मा डोनेशन कैम्प लगाकर कोरोना की लड़ाई में सहभाग करने का कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। सप्ताह के चौथे दिन वृक्षारोपण, पांचवे दिन प्लास्टिक मुक्त पर्यावरण, छठे दिन स्वच्छता कार्यक्रम और अंतिम दिन मोदी सरकार की उपलब्धियों का सोशल मीडिया के माध्यम से जनता में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए योजना बनाकर क्रियान्वित करने को कहा।
इसके साथ उन्होंने 25 सितम्बर को एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को बूथ स्तर पर तक आयोजित किए जाने की बात कही। उन्होंने बताया कि पार्टी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितम्बर से महात्मा गांधी व लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर तक आत्मनिर्भर भारत सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए उन्होंने कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाकर प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। उन्होंने कहा कि इन सभी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं से लेकर विधायक,सांसद व मंत्रियों तक की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए ।
इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार ने पार्टी के आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की और सभी कार्यकर्ताओं से कार्यक्रमों की सफलता के लिए जुटने की अपील की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिग द्वारा श्री बदरीनाथ धाम के प्रस्तावित मास्टर प्लान का प्रस्तुतीकरण किया गया। साथ ही श्री केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी भी प्रधानमंत्री को दी गई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने निर्देश दिए कि बद्रीनाथ धाम की आध्यात्मिकता व पौराणिकता बरकरार रखते हुए इसे स्पिरिचुअल सिटी के रूप में विकसित किया जाए।
वीडियो कांफ्रेंसिंग में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, मुख्य सचिव ओमप्रकाश, पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम के प्रस्तावित मास्टर प्लान में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि वहां का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व बना रहे। बद्रीनाथ धाम को मिनी स्मार्ट व स्पिरीचुअल सिटी के रूप में विकसित किया जाए। वहां होम स्टे भी विकसित जा सकते हैं। निकटवर्ती अन्य आध्यात्मिक स्थलों को भी इससे जोड़ा जाए। बदरीनाथ धाम के प्रवेश स्थल पर विशेष लाइटिंग की व्यवस्था हो जो आध्यात्मिक वातावरण के अनुरूप हो। मास्टर प्लान का स्वरूप पर्यटन पर आधारित न हो बल्कि पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हो। प्रधानमंत्री ने श्री केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की भी समीक्षा की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम व श्री केदारनाथ धाम के विकास कार्यों में स्थानीय लोगों का सहयोग मिल रहा है। निकटवर्ती गांवों में होम स्टे पर काम किया जा रहा है। सरस्वती व अलकनंदा के संगम स्थल केशवप्रयाग को भी विकसित किया जा सकता है। बदरीनाथ धाम में व्यास व गणेश गुफा का विशेष महत्व है। इनके पौराणिक महत्व की जानकारी भी श्रद्धालुओं को मिलनी चाहिए। बदरीनाथ धाम के मास्टर प्लान पर काम करने में भूमि की समस्या नहीं होगी। केदारनाथ की तरह बद्रीनाथ में भी 12 महीने कार्य किए जाएंगे।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना और चारधाम राजमार्ग परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। इससे श्रद्धालुओं के लिए चारधाम यात्रा काफी सुविधाजनक हो जाएगी।
श्री बदरीनाथ धाम के मास्टर प्लान का प्रस्तुतीकरण करते हुए अधिकारियों ने बताया कि इसमें 85 हैक्टेयर क्षेत्र लिया गया है। देवदर्शिनी स्थल विकसित किया जाएगा। एक संग्रहालय व आर्ट गैलेरी भी बनाई जाएगी। दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से दशावतार के बारे में जानकारी दी जाएगी। बदरीनाथ मास्टर प्लान को 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मास्टर प्लान को पर्वतीय परिवेश के अनुकूल बनाया गया है।
मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी देते हुए बताया कि आदि शंकराचार्य जी के समाधि स्थल का काम तेजी से चल रहा है। सरस्वती घाट पर आस्था पथ का काम पूरा हो गया है। दो ध्यान गुफाओं का काम इस माह के अंत तक पूर्ण हो जाएगा। ब्रह्म कमल की नर्सरी के लिए स्थान चिन्हित कर लिया गया है। नर्सरी के लिए बीज एकत्रीकरण का कार्य किया जा रहा है। गरुड़ चट्टी में ब्रिज का पुनर्निर्माण कर लिया गया है।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर ऐतिहासिक पहल कर चुके उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मुद्दे पर फ्रंट फुट पर खेलते दिखाई दे रहे हैं। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने पहले अस्थाई राजधानी देहरादून और फिर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधान भवन में ध्वजारोहण कर इतिहास ही नहीं रचा, अपितु गैरसैंण को लेकर ताबड़तोड़ घोषणाएं कर विपक्षियों पर भी बढ़त कायम कर ली। त्रिवेंद्र ने आज गैरसैंण को लेकर की गईं घोषणाओं और वहां ध्वजारोहण कर राजधानी के मुद्दे को लेकर अपने इरादों को भी साफ़ कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि, उत्तराखण्ड राज्य के गठन से पहले से ही गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाए जाने की मांग उठती रही है। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के समय भी गैरसैंण को ही राज्य की प्रस्तावित राजधानी माना गया। गैरसैंण को तब अधिक महत्व मिला, जब वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई और कल्याण सरकार ने गैरसैंण में अपर शिक्षा निदेशक के कार्यालय का उद्घाटन किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कल्याण सिंह सरकार ने ही उत्तराखंड पृथक राज्य निर्माण के संबंध में उत्तर प्रदेश विधान सभा में संकल्प प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था।
अलग राज्य निर्माण को लेकर उत्तराखंड के साथ कई अजीब विडंबना भी जुड़ी रही हैं। वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव सरकार ने प्रस्तावित राज्य की राजधानी निर्माण के मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपने कैबिनेट मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इस समिति ने गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में अपनी संस्तुति दी। मुलायम सरकार ने एक ओर जहां राज्य निर्माण के बिना ही राजधानी मामले में अपनी सक्रियता प्रदर्शित की, वहीं दूसरी तरफ राज्य निर्माण की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ मुजफरनगर में जघन्य व घृणित कांड को अंजाम दिया।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद उत्तराखंड राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। 9 नवम्बर, 2000 को उत्तराखण्ड को अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली। केंद्र सरकार ने राजधानी के मुद्दे पर जन भावनाओं और आधारभूत ढांचे को ध्यान में रखकर देहरादून को अस्थाई राजधानी के रूप में घोषित किया। मगर राज्य निर्माण के बाद गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग विभिन्न स्तरों पर उठती रही।
वर्ष 2001 में उत्तराखंड की नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में राजधानी के मुद्दे को लेकर एक आयोग का गठन किया। अगले वर्ष प्रदेश में पहली बार विधान सभा चुनाव हुए। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार गठित हुई। कांग्रेस सरकार के पूरे पांच साल के दौरान आयोग विस्तार पाता रहा और उसने कोई रिपोर्ट नहीं दी। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। एक सदस्यीय दीक्षित आयोग ने राजधानी पर अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी, जिसे 17 अगस्त 2008 को विधानसभा में पेश किया गया। दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था।
मगर जन भावनाओं के चलते दीक्षित आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई। गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्षधर यह मानते हैं कि पहाड़ी राज्य की राजधानी अगर पहाड़ में स्थित होगी तो वहां के विकास को नयी गति मिलेगी। गैरसैंण भावनात्मक मुद्दा होने के साथ ही राजनीतिक रंग भी लेता रहा। वर्ष 2012 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक कैबिनेट बैठक का आयोजन किया। इसके बाद बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण से लगभग 12 किमी दूर स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन, सचिवालय, ट्रांजिट हॉस्टल और विधायक आवास का शिलान्यास किया। विधान सभा आदि के निर्माण के बावजूद गैरसैंण को लेकर असमंजस बरक़रार रहा। इस बीच वहां विधान सभा के सत्र भी आयोजित होते रहे।
गैरसैंण के इतिहास में इस वर्ष 4 मार्च का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान उसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में घोषित कर दिया। गैरसैंण में ही आयोजित हुए बजट सत्र में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उन्होंने भावुक होकर कहा था कि “ये फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है”। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप विगत 8 जून को प्रदेश सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी। त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के साथ- साथ इसे ई-राजधानी के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई है, ताकि गैरसैंण में विधान सभा सत्र के आयोजन के दौरान फाइलों को अनावश्यक रूप से इधर-उधर नहीं ढोना पढ़े।
इस बीच कोरोना महामारी के कारण उपजी परिस्थितियों के चलते प्रदेश सरकार गैरसैंण को लेकर अपनी योजनाओं को गति नहीं दे सकी, तो कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाते हुए मुद्दे को लपकने की कोशिश की। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण की यात्रा कर भाजपा सरकार पर सवाल दागे। मगर तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अपने अंदाज में उनसे यही सवाल किया कि जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने राजधानी के विषय पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया ? मगर आज स्वतंत्रता दिवस के दिन त्रिवेंद्र ने गैरसैंण व आसपास के क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं व अन्य तमाम घोषणाएं कर राजनीतिक तौर पर बढ़त हासिल कर दी है। मुख्यमंत्री ने गैरसैण को लेकर घोषणाएं राजधानी देहरादून में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में की और इसके बाद वे विधान सभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल समेत अन्य प्रमुख लोगों के साथ गैरसैंण पहुंचे। गैरसैंण में विधान सभा भवन के सम्मुख ध्वजारोहण कर उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने आज ट्वीट कर इस अवसर को ऐतिहासिक बताया। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को लेकर जो प्रमुख घोषणाएं की, उनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण में 50 बेड्स के सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की स्थापना, विधानसभा परिसर में मिनी सचिवालय की स्थापना, स्थानीय हॉस्पिटल में टेलीमेडिसिन की सुविधा, क्षेत्र में पंपिंग पेयजल पाइप लाइन का निर्माण, जियो ओएफसी नेटवर्किंग का विस्तार, कोल्ड स्टोरेज की स्थापना आदि प्रमुख हैं।