डॉ. नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
आज सोशल मीडिया अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है, बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी ले चुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन भले ही 26 जनवरी के बाद से दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पा रहा हो, लेकिन ट्विटर पर अपने प्रवेश के साथ ही उसने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर लिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि बीतते समय और इस आंदोलन को लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों की उपलब्धता के साथ आंदोलनरत किसानों के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर उठती और देश का आम जन सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि इसी साल की जनवरी में एक अमेरिकी डाटा फर्म की सर्वे रिपोर्ट सामने आई, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को भारत ही नहीं विश्व का सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनेता माना गया। इस सर्वे में अमरीका, फ्रांस, ब्राज़ील, जापान सहित दुनिया के 13 लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया गया था। जिसमें 75 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है।
लेकिन यहां प्रश्न प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का नहीं है, बल्कि किसान आंदोलन की विश्वसनीयता और देश के आम जनमानस के ह्रदय में उसके प्रति सहानुभूति का है। क्योंकि देखा जाए तो 26 जनवरी की हिंसा के बाद से किसान आंदोलन ने अपनी प्रासंगिकता ही खो दी थी और किसान नेताओं सहित इस पूरे आंदोलन पर ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए थे। क्योंकि जब 26 जनवरी को देश ने दिल्ली पुलिस के जवानों पर आंदोलनकारियों का हिंसक आक्रमण देखा तो इस आंदोलन ने देश की सहानुभूति भी खो दी। दरअसल, लोग इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं कि देश का किसान जो इस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचता है वो देश के उस जवान पर कभी प्रहार नहीं कर सकता जो देश की आन को अपने खून से सींचता है। शायद यही कारण है कि जो सहानुभूति इस आंदोलन के लिए “आंदोलनजीवी” नहीं खोज पाए, उस सहानुभूति को उनके द्वारा अब विदेश से प्रायोजित करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइट और अन्य विदेशी मंचों का सहारा लिया जाता है। आइए कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं –
कुछ तथाकथित अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटीज़ द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन में उनके द्वारा किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर दिए जाने की खबरें सामने आती हैं। इन तथाकथित सेलेब्रिटीज़ में एक 18 साल की लड़की है और दो ऐसी महिलाएं हैं जो स्वयं अपने बारे में भी एक महिला की भौतिक देह से ऊपर उठ कर नहीं सोच पातीं। जब ऐसी महिलाएं किसान आंदोलन पर ट्वीट करके चिंता व्यक्त करती हैं तो कहने को कम और समझने के लिए ज्यादा हो जाता है। इतना ही नहीं कथित पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग द्वारा पहले किसान आंदोलन से संबंधित टूलकिट को शेयर किया जाता है और फिर हटा लिया जाता है जो अपने आप में कई गंभीर सवालों को खड़ा कर देता है।
किसान आंदोलन को लेकर ट्विटर की भूमिका संदेह के घेरे। भ्रामक एवं हिंसा भड़काने वाली जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सरकार के कहने के बाद भी ट्विटर उन पर आसानी से कार्रवाई को राजी नहीं हुआ। हाल ही में अमेरिका की लोकप्रिय सुपर बाउल लीग के दौरान भी किसान आंदोलन से जुड़ा विज्ञापन चलाया जाता है, जिसमें इसे ”इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन” बताया जाता है। इस बीच लेबर पार्टी के सांसद तनमजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 40 ब्रिटिश सांसदों द्वारा किसान आंदोलन के मुद्दे को ब्रिटेन की संसद में उठाकर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन ब्रिटेन की सरकार इसे भारत का अंदरूनी मामला बताकर खारिज कर देती है।
जाहिर है इन तथ्यों से देश में फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी का प्रवेश तथा आन्दोलनजीवियों के हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन किसान आंदोलन के पीछे चल रही इस राजनीति के बीच जब देश के कृषि मंत्री देश की संसद में यह खुलासा करते हैं कि पंजाब में जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बना है, उसमें करार तोड़ने पर किसान पर न्यूनतम पांच हजार रुपये जुर्माना जिसे पांच लाख तक बढ़ाया जा सकता है, इसका प्रावधान है। जबकि केंद्र द्वारा लागू कृषि कानूनों में किसान को सजा का प्रावधान नहीं है तो कांग्रेस का दोहरा चरित्र देश के सामने रखते हैं। क्योंकि पंजाब में फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट का यह कानून 2013 में बादल सरकार ने पारित किया था।
हैरत की बात है कि पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने केंद्र के कृषि क़ानूनों के विरोध में तो प्रस्ताव पारित कर दिया। लेकिन पहले से जो फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट कानून पंजाब में लागू था, जिसमें किसानों के लिए भी सजा का प्रावधान था उसे रद्द करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इस प्रकार मूलभूत तथ्यों को दरकिनार करते हुए जब किसानों के हितों के नाम विपक्ष द्वारा की जाने वाली राजनीति देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं तो तात्कालिक लाभ तो दूर की बात है, इस प्रकार के कदम यह बताते हैं कि विपक्ष में दूरदर्शी सोच का भी अभाव है। काश कि वो यह समझ पाते कि इस प्रकार के आचरण से कहीं उनकी भावी स्वीकार्यता भी समाप्त न हो जाए।
दो महीनों से किसानों की खाल ओढ़कर बैठे भेड़ियों की असली शक्ल गणतंत्र दिवस पर देश के सामने आ गई। आखिरकार वही हुआ जिसकी संभावना बीते कई दिनों से जताई जा रही थी। दिल्ली पुलिस बताती रही कि किसानों के आंदोलन में उपद्रवी तत्व घुस चुके हैं, इंटेलीजेंस बताता रहा कि पाकिस्तान से आन्दोलन को भड़काने की कोशिश कर रही है लेकिन अपने मद में चूर किसान नेता पुलिस की बात को अनसुना करते रहे। पुलिस समझाती रही और किसान नेता कहते रहे कि हम तिरंगा लहराएंगे लेकिन 26 जनवरी को तस्वीरें तलवार लहराने की सामने आईं। मीडिया पर तैर रही तमाम तस्वीरें और वीडियो किसी को भी यह सवाल पूछने के लिए विवश कर देंगे कि क्या यह मेरे देश का किसान है?
तोड़े सारे नियम
पहले तो किसान अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने अड़ गए। सरकार ने नरम रुख अपनाया। मगर फिर भी उनकी जिद में कहीं से कोई कमी नहीं आई। फिर किसानों ने जिद पकड़ी कि उन्हें 26 जनवरी को परेड निकालनी है। पहले तो पुलिस ने समझाया। बाद में पुलिस ने कुछ शर्तों के साथ उन्हें रैली की इजाजत भी दे दी, लेकिन जब रैली का दिन आया तो उन्होंने सारी शर्तों को धता बता दिया। सारे नियम तोड़ डाले गए। पुलिस के बैरिकेड माचिस की तीलियों की तरह तोड़ दिए गए और देश की राजधानी पर इस तरह से हमला किया गया है मान लो मुगलों की फौज दिल्ली लूटने आई हो।
जगह-जगह हिंसा
मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से इन कथित किसानों की अराजक तस्वीरें व वीडियो सामने आए हैं। एक वीडियो में एक निहंग सिख खुलेआम पुलिस वाले पर तलवार भांजता दिखाई दे रहा है। कहीं पुलिस वालों के सर से बहता हुआ खून है तो कहीं खिलौने की तरह नाचती हुई बस। पुलिस के ऊपर लाठियां चलाई जा रही है। साथ हीं जगह-जगह पत्थर भी बरसाए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने अराजकता की सारी सीमाओं को पार किया। महिला पुलिसकर्मियों से बदसलूकी की गई।
मोदी विरोधी ताकतों की मंशा पर फिरा पानी
जिस तरह तलवारें लहराई गयी, ईंट पत्थर फेंके गए, ट्रैक्टर से पुलिस वालों को कुचलने की कोशिश की गई, पुलिस ने तब भी संयम बरतते हुए अपनी जान बचाई, यह पूरे देश ने देखा है। मोदी विरोधी ताकतें पूरी उम्मीद में थीं कि मोदी के सब्र का बांध कभी तो टूटेगा और सरकार और उत्पाती आमने-सामने होंगे। लाशें गिरेंगी और इन्हें लोकतंत्र के नाम पर बकैती का अवसर हाथ आएगा। लेकिन सरकार के संयम ने इनकी इस मंशा पर भी पानी फेर दिया।
कथित किसानों का दांव उल्टा पड़ा
किसान आंदोलन के नाम पर कुछ लोग केंद्र सरकार को तानाशाह साबित करने पर तुले थे। मगर केंद्र सरकार ने संयमित रुख अपनाते किसानों की खाल में छिपे असामाजिक तत्वों की अराजकता को पूरी दुनिया के सामने नुमाया कर दिया और सिद्ध कर दिया कि यह पूरा आंदोलन एक बड़े षड्यन्त्र का हिस्सा था और इसके पीछे राष्ट्र विरोधी ताकतों का दिमाग और पैसा था।
भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि कांग्रेस और विपक्ष की अन्य पार्टियां कृषि कानून पर भ्रम फैलाने में जुटी हैं लेकिन सितंबर से लेकर दिसंबर के बीच देश के जिस भी हिस्से में चुनाव हुए हैं, वहां भाजपा को बड़ी जीत मिली है। उन्होंने कहा कि जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास करती है।
सोमवार को दिल्ली में पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए स्मृति ने देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए निकाय चुनाव और पंचायत चुनावों में भाजपा को मिली शानदार सफलता को प्रधानमंत्री मोदी और उनकी नीतियों में विश्वास बताया।
उन्होंने कहा कि इन सभी चुनावों में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक समग्र राष्ट्र की जनता का आशीर्वाद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को मिला है। इन चुनावों में भाजपा को मिली ऐतिहासिक विजय यह दर्शाती है कि देश को माननीय प्रधानमंत्री में एवं उनकी नीतियों में अटूट विश्वास है। देश की जनता ने कांग्रेस सहित विपक्ष की नकारात्मक और समाज को बांटने वाली राजनीति को सिरे से खारिज किया है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है। जबकि भारतीय जनता पार्टी को देश के ग्रामीण इलाकों में व्यापक समर्थन मिल रहा है और वह भी तब, जब किसान आंदोलन के नाम पर विपक्ष लोगों को भ्रमित करने का काम कर रहा है। जब से कृषि सुधार बिल देश की संसद ने पारित किए, तब से विपक्षी दल एक भ्रांति फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस का आरोप रहा है कि देश की ग्रामीण जनता भारत सरकार के सामने अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही है लेकिन आज हम उन राज्यों में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर रहे हैं, जहां कांग्रेस की सत्ता थी तो ये कई मायनों में खास है। उन्होंने कहा कि केरल में भी भारतीय जनता पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है जबकि वहां हमारे कार्यकर्ताओं को लगातार मौत के घाट उतारा जा रहा है।
हरिद्वार। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि कृषि सुधार कानून किसानों के हित में लाये गये कानून है। किसानों की आय दुगनी करने का केंद्र सरकार ने जो लक्ष्य रखा है, उसे प्राप्त करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि कृषि सुधार कानून के माध्यम से किसानों को स्वतंत्रता प्रदान की गयी है, अब किसान को जहां अच्छा मूल्य मिलेगा, वहां अपनी फसल बेचेगा।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र बुधवार को यहां ऋषिकुल मैदान में भाजपा किसान मोर्चा द्वारा आयोजित किसान सम्मेलन को वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञानी एम.एस.स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ये कानून बनाये गए हैं, जो किसानों के व्यापक हित में हैं।
नए कानूनों में किसानों के लिए अनेक विकल्प रखे गये हैं। पहले किसान की उपज की केवल मण्डी ही खरीदारी करती थी। मगर नए कानून लागू होने के बाद आज उसके लिए ओपन मार्केट की व्यवस्था हो गई है।
उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं को दूर करने हेतु उनसे लगातार वार्ता कर उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। प्रदेश में सरकारी गन्ना मिलों द्वारा किसानों को सौ प्रतिशत गन्ना मूल्य का भुगतान कर दिया गया है। धान मूल्य का भुगतान आरटीजीएस के माध्यम से बिल प्राप्त होने के 24 घण्टे के अन्दर किसानों के खाते में किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में निजी क्षेत्र की बन्द पड़ी इकबालपुर शुगर मिल को 36 करोड़ की गारन्टी देकर खुलवाया है, ताकि किसानों को उनके गन्ना मूल्य का भुगतान हो सके। राज्य में खाद्य की सब्सिडी दो साल पहले से ही दी जा रही है। किसानों को 03 लाख तक का ऋण एवं किसानों समुहों को 05 लाख तक का ऋण बिना ब्याज का दिया जा रहा है।
कार्यक्रम में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक, भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार, प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार, विधायक यतीश्वरानन्द, कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन, देशराज कर्णवाल, सुरेश राठौर, प्रदीप बत्रा, आदेश चौहान एवं संजय गुप्ता आदि भी उपस्थित थे।
जैविक खेती में नाम कमाने वाले प्रगतिशील किसान पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने कहा कि जो लोग किसानों के कथित समर्थन में अपने पुरस्कार वापस कर रहे हैं, उन्हें खेती में ये पुरस्कार नहीं मिला है। महज़ झूठी ख्याति प्राप्त करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृषि कानून को द्विपिक्षीय स्वरुप में समझने की ज़रूरत है। बिचौलियों की अंधेरगर्दी कृषि कानून से ही समाप्त होगी। कृषि क़ानून को लेकर सरकार की मंशा में कोई खोट नहीं है, बल्कि इससे खेती के नए विकल्प खुल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी अफवाह ये फैली है कि मंडियां खत्म हो जाएंगी, एमएसपी खत्म हो जाएगी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के ज़रिए किसानों की ज़मीनें हड़प ली जाएंगी। ये सरासर गलत है, क्योंकि सरकार ने बार-बार आश्वासन दिया है कि एमएसपी बराबर बनी रहेगी। वस्तु अधिनियम में भंडारण को संरक्षित करने की बात भी कही गई है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में ज़मीन का कोई मुद्दा नहीं है। इसे किसानों को समझने की ज़रुरत है।
उन्होंने आंदोलन करने वाले किसानों से निवेदन किया कि वो बातचीत के दौरान विरोध की मानसिकता से न जाएं, क्योंकि अगर हम विरोध की मानसिकता से बातचीत करते हैं तो कभी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि मंडी और बाजारों के जरिए किसानों को फसलों की पूरी कीमत नहीं मिलती थी। इसलिए इसे लेकर सार्थक पहल की ज़रुरत थी जो इस क़ानून में रहेगा। जिन किसानों को ये भ्रम है कि इससे उनका नुकसान होगा तो वो सरासर गलत है।
देशभर में जैविक खेती में नाम कमाने वाले किसान भारत भूषण त्यागी को वर्ष 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। बुलंदशहर जनपद की स्याना तहसील क्षेत्र के गांव बीहटा निवासी प्रगतिशील किसान भारत भूषण त्यागी ने जैविक खेती कर और देश-प्रदेश में किसानों को जैविक खेती के लिए जागरूक कर अपनी अलग छाप छोड़ी है। (विश्व संवाद केंद्र सेवा)