कुंभनगरी हरिद्वार में आयोजित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में धर्मांतरण व लव जिहाद जैसे मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई और इनके विरुद्ध ठोस कानूनों की जरुरत पर जोर दिया गया। बैठक में साधु-संतों ने देशभर में हिंदू मंदिरों के अधिग्रहण पर गहरा आक्रोश जताया और इस संबंध में एक प्रस्ताव प्रस्ताव पारित कर मंदिरों पर से सरकारी नियंत्रण समाप्त करने की मांग की गई। साथ ही इसके लिए देशभर में जनजागरण अभियान चलाने का संकल्प भी लिया गया।
विहिप की मार्गदर्शक मंडल की एक दिवसीय बैठक शुक्रवार को हरिद्वार के भोपतवाला स्थित अखण्ड परमधाम आश्रम में आयोजित हुई। बैठक की अध्यक्षता जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने की। बैठक में संतों ने लव जिहाद की समस्या पर आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि यह विधर्मियों की सोची समझी साजिश है, जिसके खिलाफ केन्द्र सरकार प्रभावी कानून बनाए।

शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती महाराज से चर्चा करते मुख्यमंत्री तीरथ
संतों ने मांग की, कि मंदिरों का अधिग्रहण समाप्त हो, देश की भूमि पर बढ़ती जा रही अवैध कब्रगाहों, मजारों पर प्रतिबंध लगे, देश में मठ-मंदिरों पर सरकारी टैक्सों को समाप्त किया जाए। गौ व गंगा की रक्षा के लिए निरंतर प्रयास किये जाएं। बैठक में पाकिस्तान में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों का मामला भी उठा। मांग की गई कि पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं को भारत में शरण मिलनी चाहिए। पाकिस्तान में हिन्दुओं की जो दुर्दशा हो रही है, वह हिन्दुत्व के लिए ही नहीं। अपितु मानवता के लिए भी चिंता का विषय है।

बैठक में उपस्थित संतगण
बैठक में पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पूर्व में प्रदेश सरकार द्वारा गठित किए गए चारधाम देवस्थानम बोर्ड में शामिल 51 मंदिरों के अधिग्रहण पर पुनर्विचार की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस संबंध में शीघ्र ही तीर्थ पुरोहितों की बैठक बुला कर निर्णय लिया जाएगा। चारधामों के बारे में शंकराचार्य द्वारा प्राचीन काल से जो व्यवस्था की गई है, उसका पूरी तरह से पालन किया जाएगा।
Press note containing deliberations made in the Kendriya Margdarshak Mandal Meet of VHP in Haridwar today. A resolution is also passed to free all Temples from Govt Control.. pic.twitter.com/WLepzXksln
— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) April 9, 2021
बैठक में जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, स्वामी परमानंद महाराज, निर्वाणी पीठाधीश्वर स्वामी विशोकानंद भारती, स्वामी अविचलदास, स्वामी ज्ञानानंद, स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती, स्वामी हरिचेतनानंद, स्वामी चिदानंद मुनि, स्वामी ललितानंद गिरि महाराज, स्वामी कैलाशानन्द गिरी समेत कई प्रमुख संतों ने अपने विचार रखे।
महाकुंभ के दौरान आयोजित हो रही विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय
मार्गदर्शक मंडल की बैठक में प्रमुख साधू-संतों के अलावा विहिप
के केंद्रीय पदाधिकारी भाग लेंगे और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
महाकुंभ के आयोजन के बीच विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की एक महत्वपूर्ण बैठक शुक्रवार 9 अप्रैल को हरिद्वार में होगी। प्रात: 10 बजे से सायं 6 बजे तक चलने वाली यह बैठक भोपतवाला स्थित अखंड परमधाम आश्रम में होगी।
मार्गदर्शक मंडल की इस बैठक में देशभर के वरिष्ठ साधू-संतों के अतिरिक्त विहिप के केंद्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार, उपाध्यक्ष व श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय, विहिप महामंत्री मिलिंद परांडे, केन्द्रीय धर्माचार्य संपर्क प्रमुख अशोक तिवारी, मार्गदर्शक मंडल के संयोजक जीवेश्वर मिश्र सहित अनेक केंद्रीय पदाधिकारियों के भाग लेने की संभावना है।
बैठक में श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान तथा मंदिर निर्माण, हिंदू मंदिरों की स्वायत्तता व सरकारी नियंत्रण से मुक्ति, धर्मांतरण व लव जिहाद जैसे अनेक सम-सामयिक विषयों पर चर्चा की संभावना है। विहिप हिन्दू मंदिरों की स्वायत्तता की पक्षधर है और मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखना चाहती है।
हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए घोषित अपने संकल्प पत्र में भाजपा ने जब धर्मांतरण का विरोध और मंदिरों को सरकारी अधिग्रहण से मुक्त करने की बात कही, तो विहिप ने भाजपा की इस घोषणा का बयान जारी कर स्वागत किया था।
उल्लेखनीय है कि, उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री समेत लगभग 50 से अधिक मंदिरों को अधिग्रहित कर बनाए गए उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर तीर्थ-पुरोहित समाज और स्थानीय हक-हकूकधारी नाराज हैं। विहिप की मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति के अभियान से देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे लोगों के पक्ष को मजबूती मिलेगी।
जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वैचारिक प्रभाव देश भर में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुत्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित संगठन के बारे में जानने समझने की ललक लोगों के बीच बढ़ती जा रही है। ‘आरएसएस’ या ‘संघ’ के नाम से अधिक पहचाने जाने वाले इस ‘परिवार’ के विभिन्न विषयों पर विचार तथा इसकी कार्यप्रणाली से आमजन परिचित होना चाहते हैं।
संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’, इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने का सफल प्रयास है। एक सामाजिक – सांस्कृतिक संगठन होते हुए भी संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रवाद की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी यह पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा आदि समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज के लिए कार्य न कर रहे हों। इसके अनुसार संघ व्यक्ति निर्माण के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। जो भी करता है, स्वयंसेवक करता है। अपनी शाखाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण करना संघ का मुख्य कार्य है। इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों में गए स्वयंसेवक संघ के कार्य को मूर्त रूप देते हैं।
लेखक का पूरा जीवन संघ के साथ ही बीता है। अतः पुस्तक का बड़ा भाग उनके स्वयं के अनुभवों पर आधारित है। उन्होंने बहुत ही व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से संघ के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को पाठकों के समक्ष रखा है इसलिए यह कहना उचित ही है कि यह पुस्तक उनके लिए है जो व्यवहार रूप में संघ को समझना चाहते हैं, उसके माध्यम से जिसने संघ को जिया है। पुस्तक संघ के बारे में फैलाई गई कई भ्रामक धारणाओं को स्पष्ट रूप से दूर करती है। साथ ही अनेक विवादित विषयों पर संघ के विचार सामने लाती है।
हिन्दू राष्ट्र को लेकर संघ का स्पष्ट मानना है कि यह संकल्पना किसी भी पंथ, संप्रदाय या रिलीजन’ की विरोधी नहीं है। हिन्दू राष्ट्र में सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान और स्वतंत्रता स्वयं सम्मिलित है। इसी प्रकार संघ जाति व्यवस्था को सनातन परंपरा का अंग नहीं मानता। इसलिए जन्म के आधार पर कोई भी छोटा या बड़ा नहीं। हमारे वेद भी यही कहते हैं। संघ का मानना है कि हमारी वर्ण व्यवस्था गुण कर्म पर आधारित थी, ना कि जन्म के आधार पर। वहीं, आरक्षण पर भी संघ ने दो टूक कह दिया है कि जब तक समाज में भेदभाव विद्यमान है। संघ आरक्षण का समर्थन करता रहेगा।
संघ मानता है कि भारत की सामाजिक, राजनीतिक अवधारणा का बीज हिंदू राष्ट्र में है और इस कारण भारत में इस्लाम, ईसाई तथा अन्य संप्रदायों के अनुयायियों को अपनी पूजा पद्धतियों के अनुपालन की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन हिंदुत्व भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा कवच है। जब जब हिंदुत्व सशक्त होता है, देश की एकता और अखंडता अभेद्य और अपराजेय बन जाती है। संघ का दृढ़ विश्वास है कि आने वाले समय में भारत से विदेशों को किया जाने वाला सबसे बड़ा सांस्कृतिक निर्यात हिंदुत्व होगा। संघ मानता है कि भारत उन सभी का है, जिनका यहां जन्म हुआ और यहां रहते हैं, फिर चाहे वे किसी भी मत पंथ या संप्रदाय के हों।
भारत के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में संघ अनुभव करता है कि यहां बहुत से राजनीतिक दल होंगे, किंतु वे सब प्राचीन भारतीय परंपरा एवं श्रद्धालुओं का सम्मान करेंगे। आधारभूत मूल्य तथा हिन्दू सांस्कृतिक परंपराओं के संबंध में एकमत होंगे, मतभेद तो होंगे लेकिन ये केवल देश के विकास के प्रारूपों के संदर्भ में ही होंगे। वहीं, आरएसएस के भविष्य के बारे में पुस्तक कहती है कि जब भारतीय समाज समग्र रूप में संघ के गुणों से युक्त हो जाएगा, तब संघ तथा समाज की दूरी समाप्त हो जाएगी। उस समय संघ संपूर्ण भारतीय समाज के साथ एकाकार हो जाएगा और एक स्वतंत्र संगठन के रूप में इसके अस्तित्व की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
संघ देश के समक्ष चुनौतियों को लेकर भी अत्यंत गंभीर है। इनमें इस्लामी आतंकवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ, हिंदुओं की घटती जनसंख्या, हिंदुओं का धर्मांतरण जैसे विषय शामिल हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह पुस्तक, जो संघ से परिचित हैं उनकी समझ को और अच्छा बनाएगी। जो अपरिचित हैं, उन्हें संघ से परिचित कराएगी। इसके अतिरिक्त संघ के विरोधियों को भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। जिससे वह पूर्वाग्रह और मिथ्या धारणाओं से युक्त चश्मे से मुक्त होकर इस राष्ट्रवादी संगठन को समझ सकेंगे। फिर भी इतने विशाल और बहुआयामी संगठन को मात्र किसी पुस्तक के आधार पर नहीं समझा जा सकता। संघ को समझना है तो संघ में आना पड़ेगा। इसलिए संघ का आह्वान है कि संघ से जुड़कर प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर रहते हुए तथा अपना कार्य करते हुए भी अपनी रुचि के अनुसार समाज हित का कार्य कर सकता है।
पुस्तक – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र
लेखक – सुनील आंबेकर
प्रकाशक – प्रभात पेपरबैक्स, 4/19 आसफ अली रोड , नई दिल्ली, पिन कोड – 110 002.
मूल्य – 250 रुपये
झारखंड की राज्य सरकार ने बहुमत से विधेयक पारित कर घोषित किया कि सरना धर्म को मानने वाले हिन्दू नहीं हैं। सरना, हिन्दू से अलग धर्म है। तभी दूसरी ओर आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी निर्णय लिया कि अनुसूचित जनजाति के लोग हिन्दू नहीं हैं और यह मानते हुए 2021 में होने वाली जनगणना के समय उन्हें हिन्दू के स्थान पर अनुसूचित जनजाति श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध किया जाएगा। यह दोनों समाचार पढ़कर इन दोनों निर्णय करने वालों में भारतबोध व हिंदुत्व की समझ का अभाव और राजकीय सत्ता के अहंकार का दर्शन हुआ।
हिंदुत्व कोई एक रिलिजन नहीं है। वह एक जीवन दृष्टि है ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्य किया है। इस जीवन दृष्टि की विशेषता है कि यह अध्यात्म आधारित है और भारतीय उपखंड में सदियों से रहते आए विभिन्न पद्धति से उपासना करने वाले, विविध भाषा बोलने वाले सभी लोग अपने आप को इसके साथ जोड़ते हैं। इस कारण इसके मानने वालों की, इस भूखंड में रहने वालों की एक अलग पहचान, एक व्यक्तित्व तैयार हुआ है।
उसकी एक विशेषता है – एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति । सत्य या ईश्वर एक है, उसे अनेक नाम से लोग जानते हैं, उसे जानने के अनेक विभिन्न मार्ग हो सकते हैं। ये सभी समान हैं। इसीलिए यहूदी, पारसी, सिरीयन ईसाई अलग-अलग समय पर अपने देश से प्रताड़ित हो कर आश्रय लेने हेतु भारत के भिन्न-भिन्न भू-भागों में आए। वहां के राजा, लोगों की भाषा, लोगों की उपासना पद्धति अलग-अलग होने पर भी भिन्न वंश, भाषा और उपासना वाले, आश्रयार्थ आए लोगों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार समान था, सम्मान का और उदारता का था। इसके मूल में यह कारण है। उस व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है – विविधता में एकता को देखना। एक ही चैतन्य विविध रूपों में अभिव्यक्त हुआ है, इसलिए इन विविध रूपों में अंतर्निहित एकता देखने की दृष्टि भारत की रही है।
इसलिए भारत विविधता को भेद नहीं मानता। विविध रूपों में निहित एकता को पहचानकर उन सब की विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए सब को साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत रखता है। तीसरी विशेषता है – प्रत्येक मनुष्य (स्त्री या पुरुष) में दिव्यत्व विद्यमान है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही इस दिव्यत्व को प्रकट करते हुए उस परम-दिव्यत्व के साथ एक होने का प्रयत्न करना है। यह दिव्यत्व प्रकट करने का मार्ग प्रत्येक का अलग अलग हो सकता है। वह उसका रिलिजन या उपासना होगी., इन विशेषताओं से युक्त इस व्यक्तित्व को दुनिया अनेक वर्षों से हिंदुत्व के नाते जानती आयी है। उसे कोई भारतीय, सनातन, इंडिक अन्य कोई नाम भी दे सकता है। सभी का आशय एक ही है।
इनमें से कौन सी बात सरना या जनजातीय समाज को स्वीकार नहीं है?
डॉ. राधाकृष्णन ने हिंदुत्व को Common Wealth of all Religions कहा। स्वामी विवेकानंद ने 1893 के अपने शिकागो व्याख्यान में हिंदुत्व को Mother of all Religions बताया। सर्वसमावेशकता, सर्वस्वीकार्यता, विविध मार्ग और विविध रूपों का स्वीकार करने की दृष्टि ही हिंदुत्व है दस हजार वर्षों से भी प्राचीन इस समाज में समय-समय पर लोगों के उपास्य देवता बदलते गए हैं। ऐसे परिवर्तन को स्वीकार करना यही हिंदुत्व है।
स्वामी विवेकानन्द ने 1893 के अपने सुप्रसिद्ध शिकागो व्याख्यान में यह श्लोक उद्धृत किया था।
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थ– हे परमपिता!!! आपको पाने के अनगिनत मार्ग हैं – सांख्य मार्ग, वैष्णव मार्ग, शैव मार्ग, वेद मार्ग आदि। लोग अपनी रुचि के अनुसार कोई एक मार्ग पसंद करते हैं। मगर अंत में जैसे अलग अलग नदियों का पानी बहकर समुद्र में जा मिलता है, वैसे ही, ये सभी मार्ग आप तक पहुंचते हैं। सच, किसी भी मार्ग का अनुसरण करने से आपकी प्राप्ति हो सकती है।
इस भारत के विचार की सुंदरता और सार यह है कि नए नए देवताओं का उद्भव होता रहेगा। पुराने देवताओं को साथ रखते हुए नए को भी समाविष्ट करने की प्रवृत्ति – यही हिंदुत्व है।
गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने स्पष्ट कहा – अनेकता में एकता देखना और विविधता में ऐक्य प्रस्थापित करना यही है भारत का अन्तर्निहित धर्म। भारत विविधता को भेद नहीं मानता और पराये को दुश्मन नहीं मानता। इसलिए नए मानव समूह के संघात से हम भयभीत नहीं होंगे। उनकी (नए लोगों की) विशेषता पहचान कर उन्हें अपने साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत की है। इसलिए भारत में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई परस्पर लड़ते हुए दिखेंगे, पर वे लड़ कर मर नहीं जाएंगे। वे एक सामंजस्य स्थापित करेंगे ही। यह सामंजस्य अहिन्दु नहीं होगा। वह होगा विशेष भाव से हिन्दू।
यह सामंजस्य की, एकता की दृष्टि हिंदुत्व की है। अब कोई सरना या अनुसूचित जनजाति के बंधु यह कहें कि वे हिंदुत्व से कैसे अलग है। क्योंकि हिंदुत्व किसी एक रूप (form) की बात नहीं करता, बल्कि जिस एक ही चैतन्य के ये सभी रूप हैं, उस एकता या एकत्व की दृष्टि माने हिंदुत्व है।
कुछ वर्ष पूर्व पूर्वोत्तर (असम) के जनजाति बहुल क्षेत्र में एक प्रयोग हुआ। वहां के विभिन्न राज्यों की 18 जनजातियों के सम्मेलन में ये कुछ प्रश्न पूछे गए थे। 1- ईश्वर के बारे में हमारी संकल्पना। 2- धरती के बारे में हमारी अवधारणा? 3- हम प्रार्थना में क्या मांगते हैं? 4- पाप और पुण्य की संकल्पना? 5- दूसरों की पूजा पद्धति के बारे में हमारा अभिमत क्या है? 6- क्या आप दूसरी पूजा परंपरा वालों को उनकी पूजा छुड़वाकर अपनी पूजा वालों में मिला लेना चाहते हैं?
इन प्रश्नों के पूछने पर सभी के उत्तर वही थे जो देश के किसी भी भाग में बसा हिंदू देता है। इनकी प्रस्तुति के पश्चात् यह सभी के लिए आश्चर्यजनक था कि अलग-अलग भाषाएं बोलने वाली इन सभी जनजातियों के विचार में सभी विषयों पर साम्य है और इन का भारत की आध्यात्मिक परंपरा से परस्पर मेल है।
इस भू-सांस्कृतिक इकाई में पूजा या उपासना के विविध रूपों में अन्तर्निहित एकता का आधार हिंदुत्व और भारत की अध्यात्म आधारित एकात्म, सर्वांगीण, सर्व-समावेशक हिन्दू जीवन दृष्टि ही है।
ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक दृष्टि से जनजाति समाज हिन्दू ही है। राजनैतिक, सांस्कृतिक और उपासना की दृष्टि से वे अनादि काल से हिन्दू समाज का अभिन्न अंग रहे हैं।
सेमेटिक मूल के होने के कारण ईसाई और मुस्लिम रिलीजन्स में यह सामंजस्य की दृष्टि नहीं है। वे मानवता को दो हिस्सों में बाँटते हैं। और दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। इसीलिए इनका कन्वर्जन का इतिहास रक्तरंजित तथा हिंसा, लालच और धोखे का रहा है। ईशान्य भारत के जनजातियों में भी ईसाई चर्च द्वारा वहां के जनजातीय लोग हिन्दू नहीं हैं ऐसा झूठा प्रचार करने का प्रयास पहले ब्रिटिश शासक और बाद में भारतीय शासकों की सहायता से वर्षों से चलते आए हैं। इसी कारण वहां अलगाववादी शक्तियां भी अधिक सक्रिय हुईं यहां भी नयी और अलग पहचान देने के नाम पर उनकी सांस्कृतिक जड़ों को गहराई से धीरे-धीरे उखाड़ना और फिर आत्माओं की खेती, यानि soul harvesting, करने की योजना चल रही थी। परन्तु अब वहां के जनजातियों को यह आभास हो गया है कि ईसाई के साथ रहकर हमारी सांस्कृतिक और पूजा पद्धति की पहचान खोने का संकट दिखता है। वे यह भी अनुभव कर रहे हैं कि हिन्दू समाज में, इसके साथ रहेंगे तो उनकी अलग सांस्कृतिक और पूजा की पहचान बनी रहेगी, सुरक्षित रहेगी। यह उनका विश्वास दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए वहां डोनी पोलो, सेंग खासी जैसे भारतीय आस्था अभियान शुरू हो गए हैं और बढ़ रहे हैं। सरना आदि अन्य जनजाति के नेताओं को भी एक बार इन भारतीय आस्था अभियान (indigenous faith movements) के लोगों के अनुभव से सीख लेनी चाहिए। और अपनी संस्कृति और पूजा पद्धति की विशेष पहचान सुरक्षित बचाकर उन्हें और अधिक समृद्ध करने की दृष्टि से हिंदुत्व से अपना नाता बनाये रखना चाहिए।
जब देवताओं के कोई रूप (forms) या नाम भी नहीं थे, तब निर्गुण निराकार ईशत्व की चर्चा, आराधना और उपासना सभी करते थे। ईशावास्यं इदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् यही उसका आधार था।
फिर तरह तरह के विभिन्न देवताओं के रूप के माध्यम से उसी परम तत्व की उपासना और आराधना शुरू हुई। परन्तु ये सभी प्रकृति की पूजा, पंच-महाभूत की पूजा तो करते ही थे। आगे भी अनेक अवतारी पुरुषों के माध्यम से नए नए उपासना मार्ग जुड़ते चले गए। ये सभी फिर भी भूमि, अग्नि, वृक्ष, पहाड़, सागर के माध्यम से प्रकृति पूजा करते ही हैं। इसलिए प्रकृति पूजा तो आरम्भ से ही है। उसके आगे कालक्रमानुसार नित नयी बातें जुड़ती चली गयीं। पर अन्यान्य माध्यम से प्रकृति पूजा तो हिन्दू समाज के सभी वर्गों में आज भी चल रही है। इसलिए केवल प्रकृति पूजा करने वालों के साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज का तादात्म्य वैसा ही बरकरार है। केवल कुछ तत्व विविधता को भेद बता कर बुद्धि भ्रम का प्रयास कर रहे हैं, उनसे सभी को सावधान रहना होगा।
केवल सरना या अनुसूचित जनजाति बंधु ही नहीं, भारत में विविध समाज वर्गों में गत कुछ वर्षों से यह प्रचलित करने का योजनाबद्ध प्रयास चल रहा है कि हम हिन्दू नहीं हैं। हिंदुत्व की जो विविधता में एकता देखने की विशेष दृष्टि है उसे भुला कर इस विविधता को भेद नाते बता कर, उभारकर हिन्दू समाज में विखंडन निर्माण करने के अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हो रहे हैं। हिन्दू एक रहेगा तो समाज एक रहेगा, देश एक रहेगा। देश एक रहेगा तभी देश आगे बढ़ेगा। ऐसा ना हो, इसमें जिनके स्वार्थ निहित हैं वे सभी तत्व भारत विखंडन के कार्य में लिप्त हैं।
भारत विखंडन के प्रयास कैसे चल रहे हैं, इस पर अनेक शोधपरक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसमें एक शक्ति ईसाई चर्च की भी है। उन्हें भारत में धर्मांतरण कर ईसाई संख्या बढ़ानी है। उनकी धर्मांतरण करने वाली सभी संस्थाओं की वेबसाइट पर इसका स्पष्ट उल्लेख है। कुछ ईसाई संस्था छद्म रूप से विभिन्न नामों से समाज में पहले भ्रम, फिर विरोध, फिर विखंडन और बाद में अलगाववाद निर्माण करने के कार्य में लगी हैं। कन्वर्जन के प्रयास को वे फसल काटना (harvesting) संज्ञा देते हैं। यह फसल काटने के प्रयास ब्रिटिश शासन के समय से ही चल रहे हैं। पर भारत की सांस्कृतिक जड़ें बहुत गहरी हैं और अनेक साधु-संतों द्वारा समय समय पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना जगाने के प्रयास यहां पीढ़ियों से चल रहे हैं। ऐसी कोई जाति या जनजाति भारत में नहीं है, जिसमें ऐसे संत-साधु पैदा नहीं हुए. इसलिए ईसाई कन्वर्जन के सभी प्रयास अन्य देशों की तुलना में भारत में कम सफल होते दिखते हैं। तभी नए-नए हथकंडे भी अपनाये जा रहे हैं। भारत विखंडन के प्रयास करने वाले सभी तत्व आपस में अच्छा तालमेल बनाकर अपना अपना एजेंडा चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रत्येक जाति और जनजाति में आध्यात्मिक-सांस्कृतिक जागरण का काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहने से इन सभी समाज में सांस्कृतिक जड़ें गहरी उतर चुकी है। कन्वर्जन आसानी से हो इस हेतु आवश्यक हैं कि जिनका कन्वर्जन करना है, उनकी सांस्कृतिक जड़ें जिस गहराई तक पहुंची है, वहां से उखाड़ना। जब जड़ें कमजोर और उथली होंगी तो उनकी (harvesting) फसल काटना आसान होगा। इसलिए तरह तरह के तर्क देकर और हथकंडे अपनाकर भ्रम फैलाने का षड्यंत्र चल ही रहा है। इसे सभी को समझना होगा, चेतना होगा, जागृत रहना होगा। प्रसिद्ध कवि प्रसून जोशी की एक कविता है –
उखड़े उखड़े क्यों हो वृक्ष सूख जाओगे।
जितनी गहरी जड़ें तुम्हारी उतने ही तुम हरियाओगे।
जिन दो राज्यों में ये निर्णय लिए गए, वे राज्य अनेक वर्षों से ईसाई गतिविधि और कन्वर्ज़न के केंद्र रहे हैं, यह महज संयोग नहीं मानना चाहिए। harvesting के लिए जड़ों की गहराई कम करना उपयोगी होता है।
तरह-तरह के भ्रम फैलाकर, उसके लिए बहुत बड़ी मात्रा में धन का प्रयोग करने के व्यापक षड्यंत्र का ही यह हिस्सा है। देश भर में जड़ों से उखाड़ने के ऐसे जितने भी प्रयास चल रहे हैं, उनके पीछे के तत्व और उनकी फंडिंग को देखेंगे तो यह समझ आएगा। (विसंकें)
उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश भी लव जिहाद के विरुद्ध सख्त कानून बनाएगा। इस क्रम में शनिवार को मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल ने ‘मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक, 2020’ को स्वीकृति दे दी। प्रदेश में अब लव जिहाद करने वाले आरोपी को 10 वर्ष की जेल होगी साथ ही इस कृत्य में उसका साथ देने वाले सहयोगियों के लिए भी सजा का प्रावधान इस क़ानून में है। सरकार ने इस क़ानून में लव जिहाद कराने वाले मौलवी और पादरी को भी 5 साल की सजा का प्रावधान किया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की वर्चुअल बैठक में लव जिहाद के खिलाफ प्रस्तावित बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी गई है। अब इसे 28 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम को कठोर बनाने के साथ कुछ ऐसे प्रावधान किए गए है जो देश के किसी भी राज्य में अब तक नहीं है।
बिल की ख़ास बातें
जबरन धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाएगा। धर्मांतरण और धर्मांतरण के बाद होने वाले विवाह के 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को धर्मांतरण और विवाह करने और करवाने वाले दोनों पक्षों को लिखित में आवेदन देना होगा।
बहला-फुसलाकर, धमकी देकर जबर्दस्ती धर्मांतरण और शादी करने पर 10 साल की सजा और एक लाख रूपये तक के जुर्माने का देना पड़ेगा। यह अपराध गैर जमानती होगा। धर्मांतरण और जबरन विवाह की शिकायत पीड़ित, माता- पिता, परिजन या गार्जियन द्वारा की जा सकती है।
सहयोग करने वालों को भी मुख्य आरोपी बनाया जाएगा। उन्हें अपराधी मानते हुए मुख्य आरोपी की तरह ही सजा होगी। इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं को डोनेशन देने वाली संस्थाएं या लेने वाली संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन भी रद्द होगा।
बगैर आवेदन दिए धर्मांतरण करवाने वाले धर्मगुरु, काजी, मौलवी या पादरी को भी 5 साल तक की सजा का प्रावधान है। इस प्रकार के धर्मांतरण या विवाह में सहयोग करने वाले सभी आरोपियों के विरुद्ध मुख्य आरोपी की तरह ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अपने धर्म में वापसी करने पर इसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा। पीड़ित महिला और पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण का हक हासिल करने का प्रावधान किया गया है। आरोपी को ही निर्दोष होने के सबूत प्रस्तुत करना होगा। (वीएसके इनपुट साथ हिमदूत ब्यूरो)
लव जिहाद या रोमियो जिहाद अर्थात मुस्लिम पुरुषों अथवा युवकों द्वारा हिन्दू महिलाओं या युवतियों को छल-कपट और बहला-फुसलाकर प्रेम का स्वांग रचाकर इस्लाम कबूलने के लिए विवश करना है। मुस्लिम युवा अपनी पहचान छिपाकर न सिर्फ हिन्दू समुदाय की लड़कियों को बहलाते फुसलाते हैं, बल्कि घर से भगा कर उनका यौन शोषण करते हैं। शादी के लिए मजबूर कर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए भी बाध्य करते हैं।
पहली बार वर्ष 2009 में केरल और कर्नाटक में लव जिहाद की अवधारणा सामने आई और आज एक दशक पूरा होने के बाद पूरे देश में चिंता का बड़ा सबब बन गयी है। भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में इस्लामी जिहादी ताकतें सैकड़ों लव जिहाद के मामलों को अंजाम दे चुकी हैं।
पाकिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी हिन्दू, सिक्ख और ईसाई नाबालिग बच्चियां शिकार बन रही हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में 2009, 2010, 2011 और 2014 से लगातार बढ़ रहे लव जिहाद के मामलों से हिन्दू, सिक्ख और ईसाई संगठन बेहद चिंतित हैं। केरल हाईकोर्ट वर्षों पूर्व लव जिहाद के बढ़ते मामलों को बड़ा खतरा बता चुका है।
भारत के अन्य राज्यों के साथ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लव जिहाद की घटनाएं प्रशासन के लिए सरदर्द और सामाजिक वैमनस्यता का कारण बन गयी हैं। देश के सभी राज्यों में लव जिहाद पर नियन्त्रण के लिए ठोस क़ानून की मांग के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में 24 नवम्बर को हुई कैबिनेट की बैठक में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी गई है।
इस कानून के लागू होने के बाद छल-कपट व जबरन धर्मांतरण के मामलों में एक से दस वर्ष तक की सजा हो सकती है। खासकर किसी नाबालिग लड़की या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिला का छल से या जबरन धर्मांतरण कराने के मामले में दोषी को तीन से दस वर्ष तक की सजा भुगतनी होगी।
धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश को स्वीकृति देकर जबरन धर्मांतरण के मामलों में दो से सात साल तक की सजा के प्रस्ताव को सरकार ने और कठोर करने का निर्णय किया है। सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में भी तीन से 10 वर्ष तक की सजा होगी। जबरन या कोई प्रलोभन देकर किसी का धर्म परिवर्तन कराया जाना अपराध माना जाएगा। दूसरे धर्म में शादी से दो माह पहले नोटिस देना अनिवार्य हो गया है। इसके साथ ही जिला अधिकारी की अनुमति भी जरूरी हो गई है। नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल की सजा होगी।
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने अध्यादेश का स्वागत करते हुए कहा कि बच्चियों को बहलाने-फुसलाने वालों के खिलाफ हम लगातार सख्त हैं। लव जिहाद के सिंडीकेट का खुलासा हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने किया था। दिनेश, रमेश, सुरेश नाम रखने वालों की जब जांच हुई तो वे मुख्तार, अंसार, रईस निकले। जो इस प्रकार का षड्यंत्र कर रहे थे, उनके खिलाफ कानून लाया गया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी पिछले दिनों अपने एक निर्णय में स्पष्ट किया कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन जरूरी नहीं है। लव जिहाद की व्याधि से परेशान राज्य चाहे कर्नाटक हो, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार अथवा केरल या पश्चिम बंगाल हो, देर-सवेर सभी को इस्लामी जिहाद की इस घिनौनी चाल को रोकने के लिए ठोस क़ानून बनाना ही होगा।
इसमें किसी समुदाय विशेष को टार्गेट करने की कोई बात नहीं है। यह क़ानून व्यक्तिगत विवाह की स्वतंत्रता को भी बाधा नहीं पहुंचाएगा। बल्कि यह बेटियों को सुरक्षा और अधिकार देगा। संवैधानिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता में शादी के बाद जबरन धर्म परिवर्तन को कैसे जायज माना जाए। जब क़ानून बनेगा तो उसमें भारत के सभी नागरिक आएंगे, फिर मुस्लिम समुदाय की चिंता की बात ही क्यों?