2000 ग्रेड-पे वाले कर्मियों को EO की कुर्सी, निकायों में नियमों की अनदेखी पर उठे सवाल..
उत्तराखंड: नगर निकायों को लेकर एक चौंकाने वाला प्रशासनिक फैसला सामने आया है, जहां संवर्ग और ग्रेड-पे के मानकों को दरकिनार करते हुए ऐसे कर्मचारियों को अधिशासी अधिकारी (EO) का जिम्मा सौंपा गया है, जो नियमों के अनुसार कभी इस पद के योग्य नहीं थे। पालिका लेखा सेवा के कर्मचारियों को भी EO का प्रभार ‘रेवड़ी’ की तरह बांट दिया गया है। यह नियुक्ति प्रक्रिया योग्यता और सेवा नियमों की पूरी तरह अनदेखी करती नजर आ रही है।
उत्तराखंड सरकार ने पिछले पांच वर्षों में 15 से अधिक नए नगर निकायों का गठन किया है। इन निकायों को काफी बड़ा बजट भी आवंटित किया गया है, लेकिन इतनी महत्वपूर्ण संस्थाओं की बागडोर प्रभारी अधिशासी अधिकारियों (EO) के हवाले कर दी गई हैं। जिनमें कई नियमित संवर्ग के बाहर से अनुभव और योग्यता से परे नियुक्त किए गए हैं। वर्तमान में 46 नगर निकाय ऐसे हैं, जहां स्थायी अधिशासी अधिकारियों की जगह प्रभारी व्यवस्था चल रही है।करोड़ों के बजट, विकास योजनाओं और संसाधनों की जिम्मेदारी ऐसे अधिकारियों को सौंप दी गई है, जिनकी नियुक्ति प्रक्रियाएं प्रशासनिक नियमों पर सवाल खड़े करती हैं। निकायों में यह प्रभारी व्यवस्था नीतिगत पारदर्शिता, वित्तीय अनुशासन और स्थानीय प्रशासनिक जवाबदेही को प्रभावित कर रही है।
नगर निकायों में प्रभारी अधिशासी अधिकारियों (EO) की नियुक्ति को लेकर अब गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2000 ग्रेड-पे वाले उन कर्मचारियों को भी EO की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो अपने पूरे सेवा काल में पदोन्नति के बाद भी इस पद तक नहीं पहुंच सकते। EO जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद जिन पर निकायों का बजट, विकास और नीतिगत फैसलों की ज़िम्मेदारी होती है, अब ऐसे कर्मचारियों को सौंपे जा रहे हैं जो संवर्गीय रूप से अयोग्य हैं। इससे न केवल सेवा नियमों की अवहेलना हो रही है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवाल उठ रहे हैं। प्रभारी व्यवस्था को “रेवड़ी वितरण” की तरह लागू करने पर अब अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच भ्रांतियां और असंतोष भी सामने आ रहा है।
उत्तराखंड के नगर निकायों में छह महीने में मतदाताओं की संख्या पहुंची 30.58 लाख..
उत्तराखंड: प्रदेश के नगर निकायों में छह माह में मतदाताओं की संख्या में तीन लाख से अधिक की बढ़ोतरी हो गई है। मई माह में प्रदेश में कुल मतदाता 27 लाख 28 हजार 907 थे, जिनकी संख्या नवंबर में बढ़कर 30 लाख 58 हजार 299 पर पहुंच गई है। देहरादून नगर निगम में विवाद के बाद परिसीमन के हिसाब से मतदाता सूची अपग्रेड की गई है। 11 नगर निकाय ऐसे थे, जिनके अपग्रेडेशन या परिसीमन के बाद वोटर लिस्ट बनाने का काम पूरा हो चुका है। राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल गोयल का कहना हैं कि 2018 के निकाय चुनाव में प्रदेश में 25 लाख 22 हजार 656 मतदाता थे। इस बार के चुनाव में यह आंकड़ा 30 लाख 58 हजार 299 पर पहुंच गया है। मई माह में राज्य में रुद्रप्रयाग को छोड़कर 12 जिलों में मतदाताओं की संख्या 27 लाख 28 हजार 907 थी, जो रुद्रप्रयाग के 18,130 मतदाता जोड़कर वर्तमान में 30 लाख 58 हजार 299 पर पहुंच गई है।
नगर निकायों में स्वीकृत पदों से अलग भर्ती आउटसोर्स, शासन ने मांगी रिपोर्ट..
उत्तराखंड: नगर निकायों में स्वीकृत पदों के अलग भर्ती आउटसोर्स, संविदाकर्मी, दैनिक वेतन कर्मी हटाए जाएंगे। शहरी विकास विभाग ने इस पर कार्रवाई शुरू कर दी है। शासन ने एक सप्ताह में इसकी रिपोर्ट मांगी है। सचिव शहरी विकास नितेश झा की ओर से जारी आदेश के अनुसार शहरी विकास विभाग के 12 जून 2015 को पुनर्गठित ढांचे के स्वीकृत पदों से इतर किसी भी प्रकार की नियुक्ति नहीं की जा सकती। अगर किसी निकाय में स्वीकृत पदों से इतर शासन की अनुमति के बिना नियुक्ति की गई है तो यह अनियमित मानी जाएगी।
इसे तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि पूर्व के शासनादेश के अनुसार अगर कार्मिकों की नियुक्ति निकायों ने अपने स्तर पर करते हुए अनियमित वेतन जारी किया है तो उसकी वसूली संबंधित शहरी निकाय के नियंत्रक या सक्षम प्राधिकारी से की जाएगी। सचिव शहरी विकास का कहना हैं कि कार्मिक विभाग के 27 अप्रैल 2018 को जारी शासनादेश और शहरी विकास विभाग के आदेश के तहत निकायों में की गई अनियमित नियुक्तियां अवैध समझी जाएंगी। उन्होंने निदेशक शहरी विकास से सभी निकायों में इस पर कार्रवाई करते हुए एक सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है।
चेयरमैन के स्तर से भर्ती किए गए कर्मचारी
कई निकायों में चेयरमैन के स्तर से कर्मचारियों को दैनिक वेतन, आउटसोर्स या संविदा पर भर्ती किया गया है। इन सभी की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएंगी। वेतन जारी करने वाले अफसरों से वसूली भी होगी।
केंद्र ने उत्तराखंड के दस नगर निकायों को अभिनव प्रयासों में किया शामिल..
उत्तराखंड: प्रदेश के 10 नगर निकायों के कार्यों को आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल पूरे होने पर देश के 75 अभिनव प्रयासों में शामिल किया है। सचिव शहरी विकास नितेश झा का कहना हैं कि विभिन्न निकायों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत जो कार्य हुए हैं, उन्हें सरकार ने सराहनीय माना है। मंत्रालय ने नगर पालिका बागेश्वर में सखी एरिया लेवल फेडरेशन महिला स्वयं सहायता समूह के डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण, नगर निगम हल्द्वानी की अपशिष्ट प्रबंधन की क्रांतिकारी बैणी सेना पहल, नगर निगम रुद्रपुर में वेस्ट टू वंडर्स के तहत जिला प्रशासन एवं अन्य पार्टनर के सहयोग से 30 साल पुराने पहाड़गंज का कायाकल्प कर ट्रेंचिंग ग्राउंड को सुंदर बनाने, नगर पालिका ज्योर्तिमठ के वेस्ट टू वेल्थ के तहत स्थापित मैटेरियल रिकवरी सेंटर में प्लास्टिक अपशिष्टों को 35 श्रेणियों में छंटनी व एक करोड़ की कमाई।
नगर पंचायत केदारनाथ में निजी सहभागिता के माध्यम से डिजिटल रिफंड सिस्टम से प्लास्टिक कचरे का निस्तारण, नगर निगम हरिद्वार में प्रदेश के पहले स्मार्ट सार्वजनिक शौचालय की पहल, नगर पंचायत कीर्तिनगर में स्थापित ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण और निपटान सुविधा केंद्र, नगर पंचायत गंगोत्री गीले अपशिष्टों का प्रबंधन कर कंपोस्ट तैयार करने की पहल, नगर पंचायत नौगांव उत्तरकाशी में मैटेरियल रिकवरी सेंटर के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन और नगर निगम देहरादून के नथुवावाला वार्ड में 2019 में स्थापित देहरादून का सैनिटेशन पार्क टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है।
अब नगर निगम, पालिका और नगर पंचायत मनमर्जी से खर्च नहीं कर पाएंगे बजट..
उत्तराखंड: प्रदेश के नगर निकाय अब मनमर्जी से खर्च नहीं कर पाएंगे। निकायों की आमदनी और खर्च को व्यवस्थित करने के लिए पहली बार नीति बनाई जा रही है। इस नीति के आने के बाद निकायों के नेता बिना बजट की हवा-हवाई घोषणाएं नहीं कर पाएंगे। न ही निर्धारित सीमा से अधिक खर्च कर सकेंगे। राज्य के नगर निकाय लगातार सरकार की इमदाद पर निर्भर रहते हैं। कई निकायों की तो कमाई बेहद कम होने से हर खर्च सरकार के बजट से ही चलता है। यहां बजट खर्च करने की व्यवस्था निर्धारित नहीं है।
सरकार से मिलने वाले पैसे के अलावा खुद की आमदनी को भी कहीं विकास कार्यों में ही खर्च कर दिया जाता है, तो कहीं वेतन और भत्तों में ही बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि नगर निकाय कुल बजट व राजस्व प्राप्ति को श्रेणीकरण के हिसाब से खर्च करें। कई निकायों में अक्सर चुनाव से पहले नेता व पार्षद, सभासद बजट की अनुपलब्धता के बावजूद कई घोषणाएं कर देते हैं। इससे या तो वे घोषणाएं पूरी नहीं हो पाती या फिर कम बजट के बावजूद बड़ी योजनाएं निकायों पर बोझ बन जाती हैं। शहरी विकास विभाग के स्तर से नगर निकायों के लिए बजट खर्च, राजस्व प्राप्ति की नीति तैयार की जा रही है। यह नीति भविष्य में कैबिनेट में लाई जाएगी। कैबिनेट की मुहर के बाद यह अस्तित्व में आ जाएगी।
इतना बजट देती है सरकार..
आपको बता दे कि सरकार हर बजट में नगर निकायों को 10-10 करोड़ रुपये का प्रावधान करती है। अनिर्वाचित निकायों बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री के लिए दो-दो करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाता है। 2023 के बजट में भी नगर निगमों के लिए सरकार ने 392 करोड़ 96 लाख, नगर पालिकाओं के लिए 464 करोड़ 37 लाख, नगर पंचायतों के लिए 114 करोड़ 70 लाख का प्रावधान किया था। इस साल के बजट में भी कमोबेश ऐसे ही बजटीय प्रावधान किए गए हैं। नए निकायों को सीधे 10-10 करोड़ दिए जाते हैं। अनिर्वाचित निकाय बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री को दो-दो करोड़ का बजट दिया जाता है। दूसरी ओर, केंद्रीय वित्त आयोग से भी निकायों को करीब 450 करोड़ मिलते हैं।