भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी की भूमिका निभाते हुए बंगाल के बिगड़ते हालात से देश के आमजन को अवगत कराएगी, ताकि जम्मू-कश्मीर जैसी स्थिति को वहां आने से रोका जा सके।
विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रभारी भी हैं। उन्होंने मंगलवार को चुनाव पश्चात बंगाल की वर्तमान परिस्थिति के संबंध में उत्तराखंड भाजपा द्वारा आयोजित एक वेबिनार को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने बंगाल की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किस प्रकार हिन्दू समाज का कुछ कट्टरपंथियों द्वारा दमन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बंगाल के हालात राज्य के साथ—साथ देश के लिए चिंता का विषय बने हैं।
उन्होंने कहा कि प्रखर राष्ट्रवाद के अगुआ डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बांग्ला बचाओं के लिए काम किया था। भाजपा के लोग मुखर्जी के कार्यों को आगे बढ़ाते हुए बंगाल के बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे। भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी होने के नाते वहां की संस्कृति, भाषा और क्रांतिकारियों के योगदान को कमजोर नहीं होने देगी।
आज पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की परिस्थितियों पर वेबिनार के जरिए विचार-विमर्श किया गया।
जिसमें @ukcmo श्री @TIRATHSRAWAT जी, @BJP4UK के प्रदेशाध्यक्ष श्री @madankaushikbjp जी, राष्ट्रीय महामंत्री श्री @dushyanttgautam जी एवं उत्तराखंड भाजपा के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे। pic.twitter.com/naMogHHniW
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) June 1, 2021
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की धरती से आनन्द मठ, वंदेमातरम, जनगण मन जैसे नारे और गीत राष्ट्र को मिले हैं। ऐसी महान धरती के लोगों के साथ अन्याय और चिन्हित कर सताने का काम किया जा रहा है। भाजपा देश विरोधी गतिविधियों के हमेशा से लड़ती आई है और आगे भी लड़ेगी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल खुश है। लेकिन उन्हें वहां अपनी हार पर तरस नहीं आ रही। वहां के लोगों के संकटपूर्ण जीवन व बिगड़ते माहौल पर विपक्ष भी मौन बना हुआ। भाजपा पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ खड़ी है।
वेबीनार में प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम, प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय, महामंत्री सुरेश भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान समेत तमाम पार्टी पदाधिकारी जुड़े थे। बेबीनार का संयोजन प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने किया।
- सुभाष चमोली
उत्तराखंड की सल्ट विधानसभा के प्रतिष्ठापूर्ण उपचुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बाजी मार ली। रविवार को हुई मतगणना में भाजपा प्रत्याशी महेश जीना ने कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली को 4697 मतों से पराजित किया।
चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जीना को 21,874 जबकि कांग्रेस की गंगा को 17,177 मत प्राप्त हुए। उप चुनाव में भाजपा, कांग्रेस समेत कुल सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इस सीट पर मतदान 17 अप्रैल को हुआ था। चुनाव में कुल 43.28 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।
भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के मृत्यु के बाद खाली हुई इस सीट पर पार्टी ने उनके बड़े भाई महेश जीना को अपना प्रत्याशी बनाया था, जबकि कांग्रेस पार्टी ने विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे चुकीं गंगा पंचोली को फिर से मैदान में उतारा था।
उत्तराखंड में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में सल्ट विधानसभा उपचुनाव दोनों ही पार्टियों भाजपा व कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था। उपचुनाव प्रदेश के नव नियुक्त मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए इम्तिहान भी था। उनके नेतृत्व में यह कोई भी पहला चुनाव था। सल्ट के परिणामों ने उनके नेतृत्व पर मोहर मार दी और कोरोना काल में उन्हें घेर रहे विपक्ष को भी बड़ा झटका दे दिया है।
उधर, सत्ता में वापसी के लिए छटपटा रही कांग्रेस के लिए सल्ट उपचुनाव के परिणाम किसी सदमे से कम नहीं है। सल्ट में कांग्रेस ही नहीं, अपितु पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की साख भी दांव पर लगी थी। कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली को हरीश रावत के गुट का माना जाता है। इन चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस की राजनीति में नेतृत्व की लड़ाई के और तेज होने के आसार हैं।
उल्लेखनीय है कि हरीश रावत अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात उठा चुके हैं। इसके बाद हरीश रावत के समर्थकों द्वारा लगातार उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ाई जाने की मांग की जा रही थी। मगर सल्ट उपचुनावों से उनकी इस मुहिम को निश्चित ही धक्का पहुंचा है।
- प्रवीण गुगनानी
लेखक व स्वतंत्र स्तंभकार
बंगाली में एक कहावत है – डूबे डूबे झोल खाबा। इसी भावार्थ की एक देसी कहावत है – ऊंट की चोरी नेवड़े नेवड़े नहीं हो सकती। दोनों ही कहावतों का एक सा अर्थ है कि बड़ी चोरी आज नहीं तो कल पकड़ी ही जाएगी। पश्चिम बंगाल में हिंदू हितों की चोरी ममता दीदी की एक ऐसी ही चोरी थी जिसका पकड़ा भी जाना तय था और उसका दंड मिलना भी तय था। तुर्रा यह था की यहां ममता दीदी द्वारा हिंदू हितों को चोरी करना या बलि चढ़ाने का कार्य डूबे डूबे झोल खाबा की शैली में नहीं, बल्कि बड़ी ही बेशर्मी से सीनाजोरी करके किया जा रहा था। चोरी ऊपर से सीनाजोरी करने की ही हद थी जब ममता दीदी ने उनके द्वारा प्रतिवर्ष कराए जाने वाले एक कार्यक्रम में कहा था – ”पश्चिम बंगाल में 31 फीसद मुस्लिम हैं। इन्हें सुरक्षा देना मेरी जिम्मेदारी है और अगर आप इसे तुष्टीकरण कहते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है।” यहां उल्लेखनीय है कि ममता दीदी उन्हें केवल सुरक्षा नहीं दे रही थी, बल्कि मुस्लिमों को हिन्दुओं के विरुद्ध समय-समय पर भड़का रही थी और हिंदुओं को बार-बार चिढ़ा रही थी।
ममता दीदी पंडालों में दुर्गा पूजा व विद्यालयों में सरस्वती पूजा को रोक रही थी। मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन की तिथियां आगे बढ़ाई जा रही थी। मुस्लिमों हेतु नई सस्ती, सहज, आसान कर्ज नीति लाई जा रही थी। उनके लिए नई रोजगार नीति, मदरसों को धड़ाधड़ मान्यता व सहायता, आवास सब्सिडी, आवास भत्ता, फुरफुरा शरीफ डेवलपमेंट अथारिटी के माध्यम से वित्तीय सहायता से लाद देना, दो करोड़ बच्चों को छात्रवृत्ति, मुस्लिमों को उच्च शिक्षा व सरकारी नौकरी में 17% आरक्षण आदि आदि ऐसे कार्य थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तीव्र गति से किए जा रहे थे। ममता दीदी के लिए इस चुनाव में संकट बन चुके अब्बास सिद्दीकी भले ही भाजपा से चिढ़कर कहते हों, किंतु कहते अवश्य हैं कि – “मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन की तिथि आगे बढ़ाये जाने के निर्णय गलत थे।”
बंगाल में 35 वर्ष वामपंथ का शासन व 10 वर्ष ममता दीदी का शासन वस्तुतः ऐसा शासन था जिसमें राम के इस प्रदेश में राम का नाम लेना ही गुनाह हो गया था। वामी तो राम के विरोधी थे ही, दीदी उनसे भी बड़ी राम विरोधी निकली और चलती गाड़ी से स्वयं निकलकर जय श्रीराम के नारे लगाते बच्चों को बड़ी ही निर्लज्जता से डांटने लगी थी। बच्चों को श्रीराम का नारा लगाने पर डांटना एक छोटी किंतु प्रतीकात्मक बड़ी घटना है जिसके बड़े ही विशाल अर्थ निकलते हैं।
अतीव ईश्वरवादी, संस्कृतिनिष्ठ व राष्ट्र्प्रेमी प्रदेश बंगाल में 35 वर्षो तक अनीश्वरवादी व संस्कृति विरोधी वामियों व 10 वर्षों का ऐसा ही ममता का शासन अपने आप में आश्चर्य का ही विषय है। 45 वर्षों के इस रामविरोधी या यूं कहें हिंदू विरोधी शासनकाल में भाजपा बंगाल में 2016 तक एक-एक विधानसभा सीट जीतने को भी तरसती रही। इसी मध्य चमत्कार हुआ जब 2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा ने अच्छा-खासा मत लेकर सनसनी फैला दी। फिर यहां से प्रारंभ हुई बंगाल में वामपंथ से रामपंथ की यात्रा, जिसका अगला पड़ाव 2019 के लोकसभा चुनाव में आया और भाजपा को बंगाल ने जयश्रीराम कहते हुए 40 प्रतिशत मत व 42 में से 18 लोकसभा सीटें दे दी।
वर्तमान समय में जबकि विधानसभा चुनाव के पांच चरण संपन्न हो चुके हैं तब बंगाल में पुराने वामपंथी भी एक सुर में यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि – “21 में राम और 26 में वाम” यानि वर्तमान में सत्ता ममता से लेकर भाजपा को दे दो और फिर 2026 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा की सरकार पुनः ले आओ। आश्चर्यजनक है किंतु यही सत्य है। बंगाल में मैदानी स्तर पर यह बात सतह से ऊपर आकर दिख रही है। बंगाल में मृत्युशैया पर पड़े वामपंथ का अब यही मंतव्य भी है और नियति भी। सार यह कि ममता को सबक सिखाने का मन बंगाल ने बना लिया है।
ये सब अचानक नहीं हुआ है, मुस्लिम तुष्टिकरण की दीदी की नीति ने बंगाल की जनता को विवश कर दिया था। भाजपा के घोर विरोधी व ममता के समर्थक माने जाने वाले नोबेल सम्मानित अर्थशास्त्री अमृत्य सेन की संस्था प्रतीचि ट्रस्ट ने अपनी 2016 की रिपोर्ट “लिविंग रिएलिटी ऑफ़ मुस्लिम्स इन वेस्ट बंगाल” में कहा था कि तृणमूल के प्रभाव वाले क्षेत्रों में मुसलमानों की स्थिति अन्य लोगों की अपेक्षा बहुत सुधर गई है। हावड़ा के पंचपारा मदरसे के बड़े इमाम के अनुसार – ” ममता बनर्जी के आने के बाद से स्थिति बेहतर हुई है। अब बच्चों को राशन, कपड़ा, किताबें सब कुछ मिलता है। पुरानी सरकार की तुलना में इस सरकार ने बेहतर काम किया है।
हुबली के एक शख़्स मोहम्मद फ़ैसल का कहना है कि “दीदी ने जो काम किया है, उसके बाद दीदी के खिलाफ कोई नहीं जा सकता है। दीदी ने जो हम लोगों के लिए किया है, हमारे बच्चों के लिए किया है, वैसा कभी नहीं हुआ। हम लोग बहुत ख़ुश हैं दीदी के राज में। दीदी ने हम लोगों का बहुत ध्यान रखा है।” एक बात यह भी बड़ी विशेष है कि ममता राज में बंगाल पुलिस में भी मुस्लिम नियुक्ति का अनुपात भी बड़े आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ गया है। कम शिक्षित मुस्लिम समाज को अधिक शिक्षित हिंदू समाज की अपेक्षा अधिक नौकरियां मिलना भला बिना किसी उच्चस्तरीय षड्यंत्र के कैसे संभव है? ममता दीदी द्वारा राज्य की 97 प्रतिशत मुस्लिम जनता को ओबीसी में सम्मिलित कर लिया जाना एक बड़ा सामाजिक अन्याय और असमानता उत्पन्न करने का कारण है यहां।
इन कष्टप्रद व संघर्षप्रद परिस्थितियों में 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने संगठन सुदृढ़ करने हेतु मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता व हरियाणा चुनाव में प्रभारी के तौर पर स्वयं को सिद्ध कर चुके कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल भेजा। कैलाश विजयवर्गीय ने भी जैसे इंदौर को छोड़कर बंगाल को अपना घर ही बना लिया। अथक परिश्रम, सुदृढ़ योजना, कार्यकर्ताओं के घर परिवार तक पहुंचना, उनके दुःख सुख में सतत सम्मिलित होना, केंद्र सरकार की योजनाओं को बंगाल में सुव्यवस्थित रीती-नीति से संचालित करना आदि कैलाश विजयवर्गीय की इस सफल कार्यशैली की विशेषताएं रही है।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बंगाली जनता के विश्वास को मतों में बदलने में सफल होते दिखाई पड़ रहे हैं। इन सब कार्यों से बंगाल में भाजपा का संगठन नये सिरे से खड़ा होता चला गया। बंगाल में एक नया राष्ट्रीय भाव भी सम्मिलित होता चला गया और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राग में राग मिलाकर “आमार शोनार बांग्ला” भारत माता की जय का भी जयघोष करने लगा। बंगाल की भद्र जनता को “खेला होबे” जैसा असभ्य नारा चिढ़ा रहा है, शोनार बांग्ला के लोग कभी खिलंदड़ नहीं रहे हैं। वे समूचे भारत को बौद्धिक दिशा देने में सक्षम लोग रहे हैं। बंगाल के इस विधानसभा चुनाव में बंगाल की जनता शेष राष्ट्र को क्या संदेश देती है यह देखना बड़ा ही रुचिकर व चर्चा का विषय रहने वाला है।
वॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स (कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया)। यह शीर्षक एक पुस्तक का है। पुस्तक के शीर्षक को देखकर यह अनुमान लगाने में किसी को कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि इसका लेखक कांग्रेस का कोई घोर आलोचक होगा। यह आलोचक कोई और नहीं, दलितों, पिछड़ों, मजदूरों व महिला अधिकारों और सामाजिक समरसता के ध्वजवाहक बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर थे। बाबा साहेब ने अपनी इस पुस्तक में कांग्रेस पार्टी के दलित प्रेम को ढोंग करार दिया है। पुस्तक में डॉ आंबेडकर ने लिखा है कि कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों के उद्धार के लिए सैद्धांतिक सहमति देकर भी केवल राजनीतिक लाभ के लिए उनका उपयोग किया। उन्होंने कांग्रेस पर सुधार विरोधी बनने का आरोप लगाया है।
असाधारण प्रतिभा संपन्न व सामाजिक क्रांति के अग्रदूत डॉ आंबेडकर जैसे व्यक्ति को अनुसूचित समाज के प्रति कांग्रेस के रवैए पर पुस्तक लिखने को विवश होना पड़ा तो इसके निहितार्थ तलाशने में किसी को भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। बाबा साहेब ने दलित समाज की कठिनाइयों को न केवल देखा, बल्कि दलित होने की त्रासदी को जमकर झेला। परिणामस्वरुप, उन्होंने सामाजिक हो या राजनीतिक हर माध्यम से वंचित समाज की लड़ाई को लड़ा। इस लड़ाई के दौरान डॉ साहब को कांग्रेस की कथनी और करनी में फर्क महसूस हुआ तो उन्होंने न केवल अपनी सभाओं में कांग्रेस के चरित्र को उजागर किया, अपितु पुस्तक के द्वारा भी तथ्यों को सामने रखा।
डॉ.आंबेडकर की कांग्रेस के प्रति ऐसी सोच बेवजह नहीं थी। अपने समकालीन राजनेताओं में सर्वाधिक पढ़े-लिखे प्रख्यात कानूनविद व अर्थशास्त्री डॉ आंबेडकर को खुद कांग्रेस के राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार होना पड़ा। कांग्रेस नहीं चाहती थी बाबा साहब को पंडित नेहरू जैसे नेता के समकक्ष मान्यता मिले। कांग्रेस डॉ आंबेडकर की भूमिका मात्र एक दलित नेता तक सीमित रखना चाहती थी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण वर्ष 1952 में देश के पहले लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला। कांग्रेस ने कम्युनिस्टों के साथ मिलकर बाबा साहेब को संसद में न पहुंचने देने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल किया। बाबा साहेब उत्तरी मुंबई लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए। डॉ आंबेडकर ने वर्ष 1954 में भंडारा लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा। इस उपचुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरु खुद चुनाव प्रचार में उतरे और डॉ आंबेडकर को हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दोनों चुनावों में डॉ आंबेडकर का समर्थन किया।
यहां इस तथ्य की चर्चा करना प्रासंगिक होगा कि डॉ अंबेडकर संघ के सामाजिक समरसता के प्रयासों से प्रभावित थे। संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार के अनुरोध पर आंबेडकर वर्ष 1936 में पुणे में संघ के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद वे स्वयंसेवकों के बीच घूमे और स्वयंसेवकों से मिले। महात्मा गांधी की हत्या के बाद वर्ष 1948 में संघ पर जब पहली बार प्रतिबंध लगा तो डॉ अंबेडकर ने इसका विरोध किया। प्रतिबंध समाप्त होने के बाद संघ के तत्कालीन सर संघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ”श्री गुरु जी” ने डॉ अंबेडकर को पत्र लिखकर इसके लिए कृतज्ञता ज्ञापित की।
डॉ.आंबेडकर के प्रति उपेक्षित व्यवहार के बावजूद कई बार कांग्रेस के कुछ नेता उनके नाम को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं। कुछ कांग्रेसी तर्क देते हैं कि उनकी पार्टी ने उन्हें संविधान निर्माण की जिम्मेदारी दी और केंद्र सरकार में मंत्री बनाया। मगर यह बात पूरी तरह से सही नहीं है।
देश की आजादी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। इसके लिए संविधान सभा का गठन किया जाना था। संविधान सभा के लिए कुल 389 प्रतिनिधियों में से विभिन्न प्रांतों से 296 सदस्यों का चुनाव होना था। डॉ आंबेडकर तत्कालीन संविधान सभा के लिए निर्दलीय सदस्य चुने गए। संविधान सभा का निर्वाचन होने पर कई समितियां गठित की गई। जिनमें से एक समिति संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉ अंबेडकर को नियुक्त किया गया। डॉ आंबेडकर की योग्यताओं क्षमताओं को देखते हुए ही प्रारूप समिति जैसे जटिल कार्य की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। देश की पहली अंतरिम सरकार में डॉ अंबेडकर को बतौर मंत्री शामिल करने के पीछे सरदार पटेल जैसे नेताओं की सोच थी।
पटेल जैसे नेताओं का मानना था कि मंत्रिमंडल को राष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए कुछ वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को शामिल किया जाना चाहिए। इस क्रम में भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, शिक्षाविद् व अर्थशास्त्री जान मथाई एवं डॉ आंबेडकर जैसे तीन गैर कांग्रेसी नेताओं को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया। हालांकि, सरकार से मतभेदों के चलते तीनों ने बाद में मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसे दुर्योग ही कहना चाहिए कि तत्कालीन भारतीय राजनीति के दो प्रखर व दिग्गज नेता डॉ मुखर्जी की वर्ष 1953 में रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई और वर्ष 1956 में बीमारी के कारण डॉ.आंबेडकर चल बसे।
कांग्रेस ने बाबा साहब को उनकी मृत्यु के बाद भी अपेक्षित सम्मान देना उचित नहीं समझा। इंदिरा गांधी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में भारत रत्न पुरस्कार पा गईं। पंडित नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक को भारत रत्न से नवाजा गया, किंतु डॉ आंबेडकर को 1990 में भाजपा के समर्थन से गठित वीपी सिंह की सरकार ने डॉ सुब्रमण्यम स्वामी की पहल पर भारत रत्न प्रदान किया। संसद के सेंट्रल हॉल में बाबा साहेब का चित्र लगाने से लेकर अन्य तमाम अवसरों पर बाबा साहब के प्रति कांग्रेस का रवैया नकारात्मक रहा है।
देश में राजनीतिक व सामाजिक परिवर्तन लाने वाले डॉ आंबेडकर के व्यक्तित्व का असल मूल्यांकन केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में गठित नरेंद्र मोदी सरकार ने किया। मोदी सरकार ने बाबासाहेब के व्यक्तित्व व विचारों को चिरस्थाई बनाने के लिए वर्ष 2017 में दिल्ली में डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर की स्थापना की। मोदी सरकार का एक बड़ा निर्णय बाबा साहेब के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को “पंचतीर्थ” के रूप में विकसित करने का है। पहला तीर्थ, महू (मध्य प्रदेश) बाबा साहेब का जन्म स्थान। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद महू गए। मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो बाबा साहेब के जन्म स्थान पर गए। दूसरा तीर्थ, लंदन (ब्रिटेन)में जहां बाबा साहब ने अध्ययन के दौरान निवास किया था। तीसरा, नागपुर की वह दीक्षाभूमि जहां उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। चौथा, दिल्ली के अलीपुर स्थित महापरिनिर्वाण स्थल और पांचवां, मुंबई स्थित चैत्यभूमी पर समारक।
बहरहाल, डॉ अंबेडकर ने कांग्रेस के विरुद्ध जो अभियान छेड़ा था, आज उसके परिणाम सामने आने लगे हैं। वर्षों तक दलित वोट बैंक की ठेकेदार बनी रही कांग्रेस की कारगुजारियों से आज यह वर्ग भली-भांति वाकिफ हो चुका है और दलित समाज समझ रहा है कि उनके नाम पर कांग्रेस और अन्य गैर भाजपाई दलों ने केवल राजनीति की है। इसका स्पष्ट प्रमाण यह है कि आज देश में सर्वाधिक दलित सांसद, विधायक व मेयर भाजपा के हैं।
कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मंगलवार को राजधानी देहरादून से लेकर कुंभनगरी हरिद्वार तक ताबड़तोड़ कई कार्यक्रमों में भाग लिया। मुख्यमंत्री तीरथ की 22 मार्च को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी। इसके बाद वे होम आइसोलेशन में चले गए थे।
जनता की सुनी समस्याएं
मुख्यमंत्री ने सबसे पहले बीजापुर सेफ हाउस में विभिन्न समस्याओं को लेकर पहुंचे लोगों से मुलाकात की और उनके निस्तारण के निर्देश दिए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता सर्वोपरि है। जनता की समस्याओं को दूर करना सरकार का दायित्व है। कोशिश की जा रही है कि लोगो की शिकायतों और समस्याओं का निराकरण स्थानीय स्तर पर ही हो जाए। वर्चुअल रात्रि चौपाल इसी क्रम में आयोजित की जा रही हैं। अधिकारियों को सख्त निर्देश दिये गए हैं कि लोगों को अपने काम के लिए अनावश्यक चक्कर न काटने पड़ें। जनता और प्रशासन के बीच संवाद कायम किया जा रहा है।
भाजपा स्थापना दिवस के कार्यक्रम में हुए सम्मिलित
मुख्यमंत्री तीरथ बीजापुर सेफ हाउस से प्रदेश भाजपा के मुख्यालय पहुंचे। पार्टी मुख्यालय में उन्होंने भाजपा के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने भाजपा के क्रमिक विकास पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। अटल जी ने कहा था – अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा। आज भाजपा का कमल पूरे देश में खिल रहा है और भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री व उत्तराखंड के प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम, प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, शहरी विकास मंत्री बंशीधर भगत समेत कई नेता उपस्थित थे।
विस अध्यक्ष का 4 साल का कार्यकाल पूर्ण होने पर आयोजित कार्यक्रम में प्रतिभाग
मुख्यमंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के अध्यक्ष के रूप में 04 साल पूर्ण होने पर रायवाला में आयोजित कार्यक्रम में भी प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि 04 साल से विधानसभा अध्यक्ष के रूप में अग्रवाल का कुशल नेतृत्व राज्य को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जनभावनाओं के अनुरूप प्रदेश के विकास के लिए राज्य सरकार प्रयासरत है। कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल के अलावा कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत, भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक, प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम आदि उपस्थित थे।
कुंभनगरी में गंगा महापूजन में लिया भाग
कार्यक्रमों की श्रृंखला में मुख्यमंत्री तीरथ कुंभनगरी हरिद्वार भी पहुंचे। वहां उन्होंने हर की पैड़ी में श्री गंगा सभा द्वारा आयोजित गंगा महापूजन कार्यक्रम में भाग लिया। महापूजन का आयोजन कुंभ मेले के सफल आयोजन के उद्देश्य से किया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिव्य और भव्य के साथ ही सुरक्षित कुंभ का आयोजन करने के लिए सरकार संकल्पित है। हरिद्वार के तीन संस्कृत महाविद्यालयों से आए 151 आचार्यों ने महापूजन के दौरान चारों ओर से मंत्रोच्चारण और शंखनाद किया। कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल, सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि, मुख्य सचिव ओमप्रकाश समेत पुलिस–प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
- डॉ नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जहां पुडुचेरी, केरल और तमिलनाडु में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होंगे, वहीं पश्चिम बंगाल में आठ चरणों तो असम के लिए तीन चरणों में चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया है। भारत केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश नहीं है अपितु सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी वो अपार विविधता को अपने भीतर समेटे है। एक ओर खान-पान, बोली-भाषा एवं धार्मिक मान्यताओं की यह विविधता इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा खूबसूरत बनाती हैं। तो दूसरी ओर यही विविधता इस देश की राजनीति को जटिल और पेचीदा भी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति की दिशा में धीरे धीरे किंतु स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है।
तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ-सबका विकास और वोट बैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे। इतिहास में अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज़ादी के बाद देश के सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प मौजूद नहीं था। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने लगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत होते गए। लेकिन ये दल क्षेत्रीय ही बने रहे। अपने क्षेत्रों से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने में कामयाब नहीं हो पाए।
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि समय के साथ ये दल अपने अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनने में अवश्य कामयाब हो गए। आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं आम चुनावों में कांग्रेस की स्थिति का आंकलन इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वो लगातार दो बार से अपने इतने प्रतिनिधियों को भी लोकसभा में नहीं पहुंचा पा रही कि सदन को नेता प्रतिपक्ष दे पाए। उसे चुनौती मिल रही है एक ऐसी पार्टी से जो अपनी उत्पत्ति के समय से ही तथाकथित सेक्युलर सोच वाले दलों ही नहीं वोटरों के लिए भी राजनैतिक रूप से अछूत बनी रही।
1980 में अपनी स्थापना ,1984 आम चुनावों में में मात्र दो सीटों पर विजय, फिर 1999 में एक वोट से सरकार गिरने से लेकर 2019 लोकसभा में 303 सीटों तक का सफर तय करने में बीजेपी ने जितना लम्बा सफर तय किया है उससे कहीं अधिक लम्बी रेखा अन्य दलों के लिए खींच दी है। क्योंकि आज वो पूर्ण बहुमत के साथ केवल केंद्र तक सीमित नहीं है बल्कि लगभग 17 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। वो दल जो केवल हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित था, आज वो असम में अपनी सरकार बचाने के लिए मैदान में है, केरल तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्यों में अपनी जड़ें जमा रहा है तो पश्चिम बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल है।
असम की अगर बात करें तो घुसपैठ से परेशान स्थानीय लोगों की वर्षो से लंबित एनआरसी की मांग को लागू करना, बोडोलैंड समझौता, बोडो को असम की ऑफिशियल भाषा में शामिल करना, डॉ भूपेंद्र हज़ारिका सेतु, बोगिबिल ब्रिज, सरायघाट ब्रिज जैसे निर्माणों से असम को नार्थ ईस्ट के अलग अलग हिस्सों से जोड़ना। कालीबाड़ी घाट से जोहराट का पुल और धुबरी से मेघालय में फुलबारी तक पुल जो असम और मेघालय की सड़क मार्ग की करीब ढाई सौ किमी की वर्तमान दूरी को मात्र 19 से 20 किमी तक कर देगा जैसे विकास कार्यों के साथ भाजपा की वर्तमान सरकार जनता के सामने है। वहीं अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्षरत कांग्रेस ने अपने पुराने तर्ज़ पर ही चलते हुए,सत्ता में आने पर सीएए को निरस्त करना, सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देना, राज्य की हर महिला को 2000 रूपए प्रति माह देना और 5 लाख नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं।
बंगाल की बात करें तो यहां लगभग 34 वर्षों तक शासन करने वाली लेफ्ट और 20 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस दोनों ही रेस से बाहर हैं। विगत दो बार से सत्ता पर काबिज़ तृणमूल का एकमात्र मुख्य मुकाबला भाजपा से है। उस भाजपा से जिसका 2011 के विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुला था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी ने वाम का 34 साल पुराना किला ढहाया था, आज उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा ने उसी हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।
केरल में लेफ्ट और कांग्रेस आमने सामने हैं। यह अलग बात है कि अन्य राज्यों में लेफ्ट उसकी सहयोगी होती है। अभी तक ऐसा देखा गया है कि हर पांच साल में दोनों बारी-बारी से सत्ता में आते हैं। इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसकी सत्ता में वापसी हो सकती है। चुनाव परिणाम क्या आएंगे, यह तो समय ही बताएगा लेकिन चूंकि राहुल गांधी केरल से लोकसभा पहुंचे हैं तो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए केरल की जीत मायने रखती है। भाजपा की अगर बात करें तो 2011 में उसे केरल विधानसभा में मात्र एक सीट मिली थी और इस बार वो मेट्रोमैन ई.श्रीधरन की छवि और अपने विकास के वादे के साथ मैदान में है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतरी लेफ्ट ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए चुनावों से पहले सबरीमाला से जुड़े सभी केसों को वापस लेने का फैसला लिया है। जाहिर है गैर हिंदी भाषी केरल में भाजपा वर्तमान में अवश्य अपनी जमीन तलाश रही है लेकिन उसकी निगाहें भविष्य पर हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और लेफ्ट भले ही केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन दोनों का ही मुख्य मुकाबला भाजपा से है।
पुड्डुचेरी में कांग्रेस सरकार चुनावों से ऐन पहले गिर गई। यह दक्षिण में कांग्रेस की आखिरी सरकार थी। यहां भी भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दा है। राहुल गांधी के पुड्डुचेरी दौरे पर एक महिला की शिकायत का मुख्यमंत्री द्वारा गलत अनुवाद करने का वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था और पुड्डुचेरी सरकार की हकीकत बताने के लिए काफी था। हालांकि यहां भी भाजपा का अबतक कोई वजूद नहीं था लेकिन आज वो मुख्य विपक्षी दल है।
तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहां हिंदी भाषी नेता जनता को आकर्षित नहीं करते। लेकिन ऐसा 40 सालों में पहली बार होगा जब यहां चुनाव दो दिग्गज जयललिता और करुणानिधि के बिना होने जा रहे हैं। जयललिता छः बार और करुणानिधि पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी टक्कर एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही है। डीएमके और कांग्रेस यहां मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा एआइएडीएमके के साथ गठबंधन में है। जयललिता या करुणानिधि जैसे चेहरे के अभाव में जनता किस को चुनती है यह तो समय बताएगा। तमिलनाडु के चुनावी मुद्दों की बात करें तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा भाषा का होता है। दरअसल, तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। राहुल गांधी ने अपने हाल के दौरे में लोगों को भरोसा दिलाया कि तमिल यहां की पहली भाषा होगी। उन पर अन्य कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि उनमें एक कमी यह रह गई कि वो तमिल भाषा नहीं सीख पाए।
कहा जा सकता है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जहां कभी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था आज भाजपा वहां सबसे मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में इन राज्यों के चुनाव परिणाम ना सिर्फ इन राजनैतिक दलों का भविष्य तय करेंगे बल्कि काफी हद तक देश की राजनीति का भी भविष्य तय करेंगे।
डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
पश्चिम बंगाल में चुनावों की औपचारिक घोषणा के साथ ही राजनैतिक पारा भी उफान पर पहुँच गया है। देखा जाए तो चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होते हैं सैद्धांतिक रूप से तो चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है।और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं।
लेकिन जब इन्हीं चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आती हैं जिनमें लोगों की जान तक दांव पर लग जाती हो तो प्रश्न केवल कानून व्यवस्था पर ही नहीं लगता बल्कि लोकतंत्र भी घायल होता है।
वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को तथ्यात्मक तरीके से प्रमाणित भी करते हैं। इनके अनुसार 2016 में बंगाल में राजनैतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं जिसमें 206 लोग इसके शिकार हुए। इससे पहले 2015 में राजनैतिक हिंसा की 131 घटनाएं दर्ज की गई जिनके शिकार 184 लोग हुए थे। वहीं गृहमंत्रालय के ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2017 में बंगाल में 509 राजनैतिक हिंसा की घटनाएं हुईं थीं और 2018 में यह आंकड़ा 1035 तक पहुंच गया था।
इससे पहले 1997 में वामदल की सरकार के गृहमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बाकायदा विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनैतिक हिंसा में मारे गए थे। निसंदेह यह आंकड़े पश्चिम बंगाल की राजनीति का कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करते हैं।
पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल का रक्तरंजित इतिहास उसकी “शोनार बंगला” की छवि जो कि रबिन्द्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों की देन है उसे भी धूमिल कर रहा है।
बंगाल की राजनीति वर्तमान में शायद अपने इतिहास के सबसे दयनीय दौर से गुज़र रही है जहाँ वामदलों की रक्तरंजित राजनीति को उखाड़ कर एक स्वच्छ राजनीति की शुरुआत के नाम पर जो तृणमूल सत्ता में आई थी आज सत्ता बचाने के लिए खुद उस पर रक्तपिपासु राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं।
हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा के ये आंकड़े भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वो भाजपा के विभिन्न रोड़ शो के दौरान हिंसा की घटनाएं हों या उनकी परिवर्तन यात्रा को रोकने की कोशिश हो या फिर जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव हो।
यही कारण है कि चुनाव आयुक्त को कहना पड़ा कि बंगाल में जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे यहाँ पर शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करना चुनाव आयोग के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग इस बार 2019 के लोकसभा चुनावों की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक सुरक्षा कर्मियों की तैनाती करने पर विचार कर रहा है।
लेकिन इस चुनावी मौसम में बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य पर घोटालों के बादल भी उभरने लगे हैं जो कितना बरसेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन वर्तमान में उनकी गर्जना तो देश भर में सुनाई दे रही है।
दरअसल, केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने राज्य में कोयला चोरी और अवैध खनन के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बैनर्जी की पत्नी रुजीरा बैनर्जी और उनकी साली को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है।
इससे कुछ दिन पहले शारदा चिटफंड घोटाला जिसमें देश के पूर्व वित्तमंत्री चिदम्बरम और खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर आरोप लगे थे, इस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की थी। इसके अनुसार बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया। कथित तौर पर यह राशि मीडिया कर्मियों के वेतन के भुगतान के लिए दी गई।
गौरतलब है कि जांच के दौरान तारा टीवी के शारदा ग्रुप ऑफ कम्पनीज का हिस्सा होने की बात सामने आई थी। सीबीआई का कहना है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। इससे कुछ समय पहले या यूँ कहा जाए कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी शारदा घोटाले की जाँच को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार आमने सामने थीं।
वैसे भारत जैसे देश में घोटाले होना कोई नई बात नहीं हैं और ना ही चुनावी मौसम में घोटालों के पिटारे खुलना। ऐसे संयोग इस देश के आम आदमी ने पहले भी देखे हैं। चाहे वो रोबर्ट वाड्रा के जमीन और मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले हों या फिर सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं के नेशनल हेराल्ड जैसे केस हों या यूपी में अवैध खनन के मामले में अखिलेश यादव और या फिर स्मारक घोटाले में मायावती पर ईडी की कार्यवाही। अधिकाँश संयोग कुछ ऐसा ही बना कि चुनावी मौसम में ही ये सामने आते हैं और फिर पाँच साल के लिए लुप्त हो जाते हैं।
देश की राजनीति अब उस दौर से गुज़र रही है जब देश के आम आदमी को यह महसूस होने लगा है कि हिंसा और घोटाले चुनावी हथियार बनकर रह गए हैं और उसके पास इनमें से किसी का भी मुकाबला करने का सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि जब तक तय समय सीमा के भीतर निष्पक्ष जांच के द्वारा इन घोटालों के बादलों पर से पर्दा नहीं उठाता, वो केवल चुनावों के दौरान विपक्षी दल की हिंसा के प्रतिउत्तर में गरजने के लिए सामने आते रहेंगे, बंगाल हो या बिहार या फिर कोई अन्य राज्य।
अगर बंगाल की ही बात करें तो एक तरफ चुनावों के पहले सामने आने वाले घोटालों से राज्य की मुख्यमंत्री और उनका कुनबा सवालों के घेरे में है। वहीं दूसरी तरफ जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वहाँ सत्तारूढ़ दल द्वारा सत्ता बचाने और भाजपा द्वारा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से दोनों दलों के बीच होने वाली राजनैतिक हिंसा के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।
लेकिन सत्ता बचाने और हासिल करने की इस उठापटक के बीच राजनैतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि आज का वोटर इतना नासमझ भी नहीं है जो इन घोटालों और हिंसा के बीच की रेखाओं को ना पढ़ सके। खास तौर पर तब जब इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान बोले जाने वाले “आर नोई अन्याय” (और नहीं अन्याय) या फिर “कृष्ण कृष्ण हरे हरे, पद्म (कमल) फूल खिले घरे घरे”, या बांग्ला “निजेर मेयकेई चाए” ( बंगाल अपनी बेटी को चाहता है) जैसे शब्द कभी “नारों” की दहलीज पार करके यथार्थ में परिवर्तित नहीं होते। इसलिए “लोकतंत्र” तो सही मायनों में तभी मजबूत होगा जब चुनावी मौसम में घोटाले सिर्फ सामने ही नहीं आएंगे बल्कि उसके असली दोषी सज़ा भी पाएंगे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं है, अपितु भाजपा ने विश्व को सबसे लोकप्रिय व यशस्वी नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिए हैं।
डॉ निशंक शुक्रवार को राजधानी देहरादून की धर्मपुर विधान सभा अंतर्गत त्यागी रोड पर भाजपा के शक्ति केंद्र की कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बूथ का कार्यकर्ता हमारी असली ताकत है। बूथ के कार्यकर्ता के बल पर ही सरकार बनती है।
उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी जो मार्ग खोज लेता है और प्रकृति को अपने अनुरूप ढाल देता है, वही योद्धा होता है। उन्होंने कहा कि सही मायनों में बूथ के कार्यकर्ता योद्धा हैं। उन्होंने कहा कि बूथ जीता तो चुनाव जीता और बूथ जीता तो देश जीता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह गौरव की बात है कि वह विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के सदस्य हैं। इसके साथ ही यह भी सम्मान की बात है कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रभावी नेताओं में शामिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं।
केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि आजादी के बाद देश को मोदी के रूप में पहले प्रधानमंत्री मिले, जिन्होंने शौचालय जैसे छोटी मगर महत्वपूर्ण मुद्दे की चर्चा की। प्रधानमंत्री की इस सोच के चलते करोड़ों मां-बहनों को शौचालय की सुविधा मिली।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए निःशुल्क गैस कनेक्शन वितरित किए गए। मजदूरों व किसानों के लिए पेंशन जैसी योजनाएं संचालित की गईं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने समाज के हर वर्ग के कल्याण के तमाम योजनाएं तैयार की है ।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। कांग्रेस इतने वर्षों तक सत्ता में रही। मगर उसने किसानों के हित में कभी कुछ नहीं किया। मोदी सरकार किसानों के लिए काम कर रही है तो कांग्रेस क्षुद्र राजनीति पर उतर आई है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे विपक्षियों के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने केंद्र व प्रदेश की सरकार की उपलब्धियों की चर्चा पूरी ताकत के साथ करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि प्रदेश में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। इन्हें आमजन तक पहुंचाएं।
कार्यक्रम में उत्तराखंड रेशम फेडरेशन के अध्यक्ष अजीत चौधरी, भाजपा महानगर अध्यक्ष सीता राम भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनबीर चौहान, मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश संयोजक राजीव तलवार, पूर्व दायित्वधारी अजेंद्र अजय, संदीप मुखर्जी, दिनेश सती, गोपाल पुरी, मुकेश सिंघल, जयंती प्रसाद कुर्मांचली आदि उपस्थित थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक 5 जनवरी से गुजरात के कर्णावती में आयोजित होगी। संघ की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझी जाने वाली यह बैठक वर्ष में दो बार आयोजित की जाती है।
कर्णावती डेंटल कॉलेज, उवारसद में 5 से 7 जनवरी तक आयोजित होने वाली बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी सहित संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित रहेंगे। इसके अलावा भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि जैसे आनुषांगिक संगठनों के चुनिंदा केंद्रीय पदाधिकारी भी भाग लेंगे।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा 5 से 7 दिसंबर तक तीन दिन के उत्तराखंड भ्रमण पर रहेंगे। इस दौरान नड्डा राजधानी देहरादून में पार्टी की निचली इकाई मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश की सर्वोच्च मानी जानी वाली कोर कमेटी तक के नेताओं से मिलेंगे और बैठक लेंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रदेश भ्रमण के लिए केंद्रीय संगठन की ओर से 5,6 व 7 दिसंबर की तिथि दी गई है। कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविवार को महामंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। कार्यक्रम की रूपरेखा तय कर केंद्र को भेजी जाएगी। केंद्र उसे अंतिम रूप देगा।
नड्डा अपने तीन दिवसीय भ्रमण के दौरान प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी के अलावा विधायकों, मंत्रियों, सांसदों, विभिन्न स्तरों के पार्टी पदाधिकारियों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारियों आदि के साथ अलग-अलग लगभग एक दर्जन बैठक करेंगे।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बिहार चुनाव से निजात पाने के बाद भाजपा अध्यक्ष नड्डा सभी प्रदेशों का इसी तरह से भ्रमण करेंगे और राज्यों में पार्टी संगठन की गतिविधियों का जायजा लेंगे। साथ ही आगामी रणनीति तैयार करेंगे। आगामी समय में जिन राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव होने हैं, उन पर नड्डा का विशेष फोकस रहेगा।
भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बतौर नड्डा गत वर्ष नवम्बर माह में भी देहरादून के एक दिवसीय भ्रमण पर आए थे। मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उत्तराखंड का उनका यह पहला भ्रमण है। नड्डा इससे पूर्व कई बार उत्तराखंड आ चुके हैं। वर्ष 2017 में उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें व केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी थी। तब नड्डा केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे।
विधान सभा चुनाव में नड्डा ने लगातार कई दिन तक उत्तराखंड में डेरा डाले रखा था। चुनावी रणनीति तैयार करने से लेकर चुनाव प्रबन्धन और सभाओं को संबोधित करने तक में उनकी सक्रिय भूमिका रही है।
पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) नड्डा की देखरेख में तैयार हुआ था।