उत्तराखंड में पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतर जाएगी भाजपा..
उत्तराखंड: प्रदेश में भाजपा शुक्रवार से विधानसभा चुनाव के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर जाएगी। पार्टी हर घर भाजपा, घर-घर भाजपा अभियान से अपने प्रचार का आगाज करेगी। कल पार्टी के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम, सह प्रभारी रेखा वर्मा, सह चुनाव प्रभारी आरपी सिंह व लॉकेट चटर्जी चुनाव प्रचार गरमाने के लिए विधानसभा क्षेत्रों में उतर जाएंगे। इन सभी केंद्रीय नेताओं को अनुसूचित जाति, ओबीसी, बंगाली और सिख मतदाताओं को साधने के उद्देश्य से जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।
पार्टी प्रभारी दुष्यंत गौतम व रेखा वर्मा को टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून और हरिद्वार की विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। दोनों नेताओं को अनुसूचित जाति और ओबीसी मतदाताओं के प्रभाव वाली सीटों का जिम्मा सौंपा गया है। चुनाव सह प्रभारी लॉकेट चटर्जी यूएस नगर की बंगाली मतदाता प्रभाव वाली छह सीटों की जिम्मेदारी संभालेंगी।
पार्टी ने उन्हें बंगाली वोटरों को साधने के लिए दायित्व सौंपा है। इसके साथ ही वह अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर व चंपावत जिले की विधानसभा सीटों को भी देखेंगी। सह चुनाव प्रभारी आरपी सिंह यूएसनगर की सिख प्रभाव वाली तीन सीटों के अलावा नैनीताल जिले की छह विधानसभा सीटों पर मोर्चा संभालेंगे।
देहरादून में 12 को बनेंगी प्रचार की रणनीति..
जानकारी के अनुसार 12 नवंबर को देहरादून प्रदेश पार्टी कार्यालय में बैठकों के दौर चलेंगे। पार्टी के प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रहलाद जोशी भी बैठक में शामिल होंगे। इसी दिन प्रदेश टोली की बैठक होगी, जिसमें पार्टी के आगामी कार्यक्रमों पर अंतिम मुहर लगेगी। इस बैठक में 15 दिसंबर तक के कार्यक्रम तय हो जाएंगे।
चुनाव प्रचार अभियान को धार देने के लिए भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक इस महीने के अंत में होगी। चुनावी बैठक होने की वजह से इसमें 200 से अधिक सदस्य भाग लेंगे। बैठक में 2022 के विधानसभा चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई जाएगी। बैठक में प्रदेश पदाधिकारियों के अलावा सांसद, विधायक, जिलाध्यक्ष, मोर्चों के अध्यक्ष भाग लेंगे।
नड्डा का दौरा तय, मोदी-शाह जल्द आएंगे..
विधानसभा चुनाव प्रचार में जान फूंकने के लिए पार्टी ने केंद्रीय नेताओं के प्रस्तावित दौरे तकरीबन तय कर दिए गए हैं। टोली कमेटी की बैठक में इन दौरों पर अंतिम मुहर लगेगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का दौरा तय हो गया है। वह 15 नवंबर को दो दिवसीय दौरे पर आएंगे। वह कुमाऊं में प्रवास करेंगे। बता दे कि नड्डा कुमाऊं में अल्मोड़ा व रुद्रपुर में प्रवास कर सकते हैं। प्रधानमंत्री व गृह मंत्री के दौरे भी प्रस्तावित हैं।
विधानसभा चुनाव से पहले छात्रों को टैबलेट देने में जानें क्या बनी बाधा..
उत्तराखंड: विधानसभा चुनाव से पहले 2.65 लाख छात्रों को टैबलेट उपलब्ध कराने की योजना पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। त्योहारी सीजन के चलते विभाग को एक साथ इतनी मात्रा में टैबलेट नहीं मिल पा रहे हैं। इस कारण चुनाव से पहले सभी चिन्हित युवाओं के हाथों में टैबलेट पहुंचने की उम्मीद अब बहुत कम है। प्रदेश सरकार चुनावी साल में सभी सरकारी डिग्री कॉलेजों के साथ ही सरकारी स्कूलों में 10वीं और 12वीं के छात्रों को टैबलेट देने की घोषणा कर चुकी है।
पहले सरकार ने दिवाली से पहले छात्रों के हाथों में टैबलेट पहुंचाने का निर्णय लिया था। लेकिन योजना का प्रस्ताव कैबिनेट तक पहुंचने में ही समय लग गया। अब दिवाली में एक सप्ताह का ही समय रह गया है, लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक इसका ऑर्डर नहीं दिया गया। अभी पिछले सप्ताह ही टेक्नीकल कमेटी ने आठ से दस इंच स्क्रीन वाला टैबलेट देने पर मुहर लगाई है अब टेंडर प्रक्रिया के जरिए सरकार टैबलेट का ऑर्डर देगी।
आपूर्ति में संकट
जानकारी के अनुसार शासन स्तर से इस संबंध में बाजार में सर्वे किया गया था। लेकिन त्योहारी सीजन के चलते मांग में आए उछाल के कारण डीलर इतनी मात्रा में एक साथ टैबलेट आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी तरफ टैबलेट निर्माता कंपनियों ने भी ग्लोबल चिप संकट के चलते टैबलेट आपूर्ति करने में एक से डेढ़ महीने का समय लगने की बात कही है। एकरूपता के चलते सरकार के सामने एक ही कपंनी का टैबलेट लेने की भी मजबूरी है।
भाजपा सोशल मीडिया को बनाएगी विधानसभा चुनाव में हथियार..
उत्तराखंड: भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी पार्टी के मीडिया और सोशल मीडिया प्रभारियों को विधानसभा चुनाव के मद्देनजर टिप्स देंगे। चुनावी साल में भाजपा सोशल मीडिया वार के जरिए भी पार्टी के लिए माहौल बनाने का काम करेगी। भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार ने इस पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा तय कर दी है। यह कार्यशाला 24 सितंबर को आईटीडीए सभागार में होगी।
इसमें सांसद अनिल बलूनी के साथ एक और राष्ट्रीय प्रवक्ता भी पहुंचेंगे। इस वर्कशॉप में विभिन्न मोर्चों और जिलों के मीडिया, सोशल मीडिया प्रभारियों के साथ ही पार्टी के पैनलिस्ट भी शिरकत करेंगे। भाजपा के प्रांतीय मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान का कहना हैं कि पार्टी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हर रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया प्रभारियों की क्या भूमिका रहने वाली है।
इस पर राज्यसभा सांसद बलूनी विस्तार से प्रशिक्षण देंगे। विपक्ष के हमलों का सोशल मीडिया के जरिए किस रणनीति से जवाब दिया जाना है, इन सभी बिंदुओं के बारे में जानकारी देंगे। इसके साथ ही पैनालिस्ट को अब और ज्यादा मुखर करने के लिए भी टिप्स दिए जाएंगे।
उत्तराखंड में फिर सरकार बनाएगी भाजपा- केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी..
उत्तराखंड: भाजपा के चुनाव प्रभारी का दायित्व मिलने के बाद पहली बार देहरादून पहुंचे केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्त्ताओं का आह्वान किया कि वे ‘मिशन-2022’ के लिए पूरे मनोयोग से जुट जाएं। प्रदेश भाजपा कार्यालय में हुई बैठक में उन्होंने कहा कि भाजपा इस बार उस मिथक को तोड़ेगी, जिसमें कहा जाता है कि उत्तराखंड में एक दल की सरकार रिपीट नहीं होती। उन्होंने कहा कि इस मर्तबा पिछली बार से अधिक सीटें जीतने का पार्टी ने लक्ष्य रखा है।
चुनाव प्रभारी जोशी का कहना हैं कि राज्य में फिर से भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार लाने के लिए प्रत्येक कार्यकर्त्ता को अपने बूथ को मजबूत करने पर जोर देना है।उनका कहना हैं कि जिस प्रकार केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के सात सालों में उस पर कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है, उसी प्रकार प्रदेश की भाजपा सरकार ने ईमानदारी से जनहित के कार्य किए हैं। इस दौरान उस पर भी कहीं कोई आरोप नहीं लगा, जबकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों में घपले-घोटालों की लंबी श्रृंखला सी बन गई थी।
उन्होंने केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का उल्लेख भी किया। उन्होंने सभी जिला प्रभारियों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने जिले के मंडलों, शक्ति केंद्रों और बूथों में निरंतर प्रवास करने के साथ ही कार्यकर्त्ताओं से संवाद स्थापित करें। उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं व कार्यों को जनता के बीच ले जाने के निर्देश भी दिए।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं प्रदेश चुनाव सह प्रभारी आरपी सिंह ने भी कार्यकर्त्ताओं से लगातार संवाद के साथ ही पार्टी के कार्यक्रमों के सुचारू क्रियान्वयन पर जोर दिया। प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कहना हैं कि चुनाव प्रभारी व सह प्रभारियों के मार्गदर्शन में प्रदेश में भारी बहुमत से भाजपा सरकार बनाएगी। प्रदेश महामंत्री संगठन अजेय ने सभी पदाधिकारियों का परिचय चुनाव प्रभारी व सह प्रभारियों से कराया। उन्होंने बूथ समितियों के गठन और उनका सत्यापन कार्य पूर्ण होने की जानकारी दी। साथ ही कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए संगठनात्मक रूप से पार्टी पूरी तरह तैयार है।
विधानसभा चुनाव को लेकर दिखाई देने लगा मंत्रियों-विधायकों पर परफॉर्मेंस का दबाव..
उत्तराखंड: प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सत्तारूढ़ भाजपा के मंत्रियों और विधायकों पर परफॉर्मेंस का दबाव साफ नजर आ रहा है। कहीं अफसरशाही की मनमानी के खिलाफ खुलकर नाराजगी दिख रही है तो कहीं अपनी ही पार्टी के नेताओं से विधायक की तकरार सामने आ रही है।
सियासी जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में मंत्रियों और विधायकों पर यह दबाव और ज्यादा दिखाई देगा। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत और बंशीधर भगत से जुड़े कई बयान और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिनमें वे अपने विभागों और जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर अफसरों को फटकार रहे हैं।
कैबिनेट मंत्री महाराज का अफसरों को फटकारते वीडियो वायरल हुए। देहरादून में एनएच मार्ग में खराब काम को लेकर वह अधिकारियों की जमकर क्लास लेते नजर आए तो यूएस नगर में एक अफसर को उन्होंने खुली बैठक में खूब फटकार लगाई। वही कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने पिछले दिनों राजकीय उद्यानों को पीपीपी मोड पर देने के प्रस्ताव में ढिलाई को लेकर अफसरों को अल्टीमेटम दिया कि 15 दिन में सुधार नहीं हुआ तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
बात अगर करे सौम्य माने जाने वाले यशपाल आर्य की तो वो भी पिछले दिनों गुस्से में दिखे। उन्होंने नैनीताल में एक विभाग के अधिकारी को लापरवाही के लिए जमकर फटकार लगाई। इसके साथ ही कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत भी ऊर्जा निगम के अधिकारियों के खिलाफ कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भगत के धरने में शामिल होने के बहाने सरकार पर तंज भी किया।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने पिछले दिनों विधानसभा टिहरी जिले के मसलों को लेकर विधानसभा एक बैठक बुलाई। तैयारी के साथ न आने पर उन्होंने अधिकारियों की जमकर क्लास ली और कहा कि वे दाल-भात खाने नहीं आए हैं। मंत्री रेखा आर्य ने महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं को लेकर अफसरशाही की हीलाहवाली को लेकर मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधू को पत्र लिखकर खुलकर नाराजगी जाहिर की।
साथ ही धर्मपुर से भाजपा विधायक विनोद चमोली सिस्टम के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर करते दिखाई दिए। दो दिन पहले चमोली अपने विधानसभा क्षेत्र में कुछ सड़कों के चौड़ीकरण के मामले में हो रही देरी से नाराज थे। सड़क निर्माण की मांग को लेकर कुछ लोग जब उनके आवास पर धरना देने पहुंचे तो चमोली भी उनके साथ बैठ गए। उन्होंने चेतावनी दी थी कि सड़क का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो वे क्षेत्र के लोगों के साथ सचिवालय में धरना देंगे।
रायपुर से भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ तो अपनी ही पार्टी के नेताओं से तकरार को लेकर चर्चाओं में हैं। पिछले दिनों कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत की उपस्थिति में काऊ की क्षेत्र के भाजपा नेता के साथ जमकर बहस हुई।
चुनाव प्रभारी प्रहलाद जोशी का उत्तराखंड दौरा 16 सितंबर से
उत्तराखंड: अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी बनाए गए केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी 16 सितंबर को सह प्रभारियों के साथ पहली बार देहरादून आ रहे हैं। अपने दो दिवसीय प्रवास के दौरान वह पार्टी के प्रांतीय पदाधिकारियों, विधायकों, मंत्रियों, विधानसभा प्रभारियों और पार्टी के कोर ग्रुप के साथ चुनाव प्रबंधन को लेकर विचार विमर्श करेंगे।
आपको बता दे कि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने आठ सितंबर को उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के लिए चुनाव प्रभारियों की घोषणा की। उत्तराखंड में केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी को चुनाव प्रभारी का दायित्व सौंपा गया, जबकि बंगाल से सांसद लाकेट चटर्जी और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी बनाया गया। यह दायित्व मिलने के बाद तीनों ही 16 सितंबर की सुबह देहरादून पहुंच रहे हैं।
भाजपा के प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने चुनाव प्रभारी और सह प्रभारियों के दौरे की पुष्टि करते हुए कहा कि 16 व 17 सितंबर को चुनाव प्रभारी छह-सात बैठकों में भाग लेंगे। वह पार्टी के मीडिया और सोशल मीडिया विभाग की बैठकों में भी शिरकत करेंगे।
विधानसभा चुनाव से पहले BJP के लिए रेड सिग्नल, शुरू हुई गुटबाज़ी..
उत्तराखंड: देहरादून जिले में रायपुर के भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ के मामले के बहाने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में मंत्री और विधायक बने नेताओं ने ठीक विधानसभा चुनाव के वक्त एकजुटता का सूत्र तलाश लिया है। काऊ के समर्थन में खड़े होने वाले नेताओं में अब एक नाम कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का भी जुड़ गया है।
सियासी जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं पर पार्टी कार्यकर्ताओं की घेराबंदी बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए अब ये मंत्री और विधायक कड़ियों की तरह जुड़ रहे हैं ताकि पार्टी में अपने प्रभाव को बनाए रख सकें। पिछले करीब साढ़े चार साल में महाराज पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ भाजपा में आए विधायकों से फासला बनाकर चलते रहे हैं। लेकिन बुधवार को विधायक काऊ के समर्थन में खुलकर बयान दिया।
काऊ प्रकरण पर महाराज ने बेशक यह कहा कि ये कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मैं काऊ के साथ हूं और उनकी बात पार्टी फोरम पर रखूंगा।उन्होंने कहा कि हम सब में समन्वय की भावना है। बातचीत से हर समस्या का हल है। पिछले दिनों ही कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी काऊ के समर्थन में खुलकर बयान दागे थे।
भाजपा में अब गुटबाजी सतह पर दिखने लगी है। रायपुर में भाजपा विधायक काऊ के साथ पार्टी के नेता की तकरार के बाद दोनों ओर से केंद्रीय नेतृत्व को एक-दूसरे के खिलाफ शिकायतें की गईं। दिल्ली से लौटकर काऊ ने यह कहकर हलचल पैदा कर दी कि उनकी समस्या का निदान नहीं हुआ तो वह पार्टी से बाहर बने संगठन में ये बात रखेंगे।
आपको बता दे कि काऊ का इशारा उनके साथ भाजपा में आए सभी विधायकों व पूर्व विधायकों की ओर है जो अब पार्टी नेतृत्व को भी यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अच्छे व बुरे वक्त में वे एक-दूसरे के साथ मजबूती से खड़े हैं। उनकी यह एकजुटता पार्टी नेताओं को असहज कर रही है।
BJP ने पांच राज्यों में नियुक्त किए प्रभारी..
उत्तराखंड: भारतीय जनता पार्टी अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गई है। बुधवार को बीजेपी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान किया। पार्टी ने केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी को आगामी चुनाव के लिए उत्तराखंड का प्रभारी नियुक्त किया है वहीं, लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी और सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी है। उत्तराखंड के अलावा भाजपा ने अन्य चार चुनावी राज्यों के लिए भी अपने प्रभारियों के नाम का ऐलान कर दिया है।
देश की राजनीति में सबसे अहम रोल निभाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाया गया है जबकि सह प्रभारी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर होंगे। बीजेपी ने पंजाब विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ-साथ हरदीप पुरी, मीनाक्षी लेखी, विनोद चावड़ा के हाथों सौंपी है। पार्टी ने इस सभी को पंजाब चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है।
इसके अलावा गोवा में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके लिए बीजेपी ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कंधों पर पार्टी के जीत की जिम्मेदारी रखी है। वहीं, मणिपुर के विधानसभा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी बनाया गया है।
आपको बता दे कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भारतीय जनता पार्टी ने पांचों राज्यों में अपने प्रभारी नियुक्त कर चुनावी बिगुल बजा दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगल साल मार्च से अप्रैल के बीच में इन राज्यों में मतदान की तारीख का ऐलान हो सकता है।
चुनाव के मद्देनजर बीजेपी-कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने भी कमर कस ली है, दिलचस्प बात ये है कि इनमें से चार राज्यों में भाजपा की सरकार है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह चुनाव मिशन 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
- प्रवीण गुगनानी
लेखक व स्वतंत्र स्तंभकार
बंगाली में एक कहावत है – डूबे डूबे झोल खाबा। इसी भावार्थ की एक देसी कहावत है – ऊंट की चोरी नेवड़े नेवड़े नहीं हो सकती। दोनों ही कहावतों का एक सा अर्थ है कि बड़ी चोरी आज नहीं तो कल पकड़ी ही जाएगी। पश्चिम बंगाल में हिंदू हितों की चोरी ममता दीदी की एक ऐसी ही चोरी थी जिसका पकड़ा भी जाना तय था और उसका दंड मिलना भी तय था। तुर्रा यह था की यहां ममता दीदी द्वारा हिंदू हितों को चोरी करना या बलि चढ़ाने का कार्य डूबे डूबे झोल खाबा की शैली में नहीं, बल्कि बड़ी ही बेशर्मी से सीनाजोरी करके किया जा रहा था। चोरी ऊपर से सीनाजोरी करने की ही हद थी जब ममता दीदी ने उनके द्वारा प्रतिवर्ष कराए जाने वाले एक कार्यक्रम में कहा था – ”पश्चिम बंगाल में 31 फीसद मुस्लिम हैं। इन्हें सुरक्षा देना मेरी जिम्मेदारी है और अगर आप इसे तुष्टीकरण कहते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है।” यहां उल्लेखनीय है कि ममता दीदी उन्हें केवल सुरक्षा नहीं दे रही थी, बल्कि मुस्लिमों को हिन्दुओं के विरुद्ध समय-समय पर भड़का रही थी और हिंदुओं को बार-बार चिढ़ा रही थी।
ममता दीदी पंडालों में दुर्गा पूजा व विद्यालयों में सरस्वती पूजा को रोक रही थी। मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन की तिथियां आगे बढ़ाई जा रही थी। मुस्लिमों हेतु नई सस्ती, सहज, आसान कर्ज नीति लाई जा रही थी। उनके लिए नई रोजगार नीति, मदरसों को धड़ाधड़ मान्यता व सहायता, आवास सब्सिडी, आवास भत्ता, फुरफुरा शरीफ डेवलपमेंट अथारिटी के माध्यम से वित्तीय सहायता से लाद देना, दो करोड़ बच्चों को छात्रवृत्ति, मुस्लिमों को उच्च शिक्षा व सरकारी नौकरी में 17% आरक्षण आदि आदि ऐसे कार्य थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तीव्र गति से किए जा रहे थे। ममता दीदी के लिए इस चुनाव में संकट बन चुके अब्बास सिद्दीकी भले ही भाजपा से चिढ़कर कहते हों, किंतु कहते अवश्य हैं कि – “मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन की तिथि आगे बढ़ाये जाने के निर्णय गलत थे।”
बंगाल में 35 वर्ष वामपंथ का शासन व 10 वर्ष ममता दीदी का शासन वस्तुतः ऐसा शासन था जिसमें राम के इस प्रदेश में राम का नाम लेना ही गुनाह हो गया था। वामी तो राम के विरोधी थे ही, दीदी उनसे भी बड़ी राम विरोधी निकली और चलती गाड़ी से स्वयं निकलकर जय श्रीराम के नारे लगाते बच्चों को बड़ी ही निर्लज्जता से डांटने लगी थी। बच्चों को श्रीराम का नारा लगाने पर डांटना एक छोटी किंतु प्रतीकात्मक बड़ी घटना है जिसके बड़े ही विशाल अर्थ निकलते हैं।
अतीव ईश्वरवादी, संस्कृतिनिष्ठ व राष्ट्र्प्रेमी प्रदेश बंगाल में 35 वर्षो तक अनीश्वरवादी व संस्कृति विरोधी वामियों व 10 वर्षों का ऐसा ही ममता का शासन अपने आप में आश्चर्य का ही विषय है। 45 वर्षों के इस रामविरोधी या यूं कहें हिंदू विरोधी शासनकाल में भाजपा बंगाल में 2016 तक एक-एक विधानसभा सीट जीतने को भी तरसती रही। इसी मध्य चमत्कार हुआ जब 2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा ने अच्छा-खासा मत लेकर सनसनी फैला दी। फिर यहां से प्रारंभ हुई बंगाल में वामपंथ से रामपंथ की यात्रा, जिसका अगला पड़ाव 2019 के लोकसभा चुनाव में आया और भाजपा को बंगाल ने जयश्रीराम कहते हुए 40 प्रतिशत मत व 42 में से 18 लोकसभा सीटें दे दी।
वर्तमान समय में जबकि विधानसभा चुनाव के पांच चरण संपन्न हो चुके हैं तब बंगाल में पुराने वामपंथी भी एक सुर में यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि – “21 में राम और 26 में वाम” यानि वर्तमान में सत्ता ममता से लेकर भाजपा को दे दो और फिर 2026 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा की सरकार पुनः ले आओ। आश्चर्यजनक है किंतु यही सत्य है। बंगाल में मैदानी स्तर पर यह बात सतह से ऊपर आकर दिख रही है। बंगाल में मृत्युशैया पर पड़े वामपंथ का अब यही मंतव्य भी है और नियति भी। सार यह कि ममता को सबक सिखाने का मन बंगाल ने बना लिया है।
ये सब अचानक नहीं हुआ है, मुस्लिम तुष्टिकरण की दीदी की नीति ने बंगाल की जनता को विवश कर दिया था। भाजपा के घोर विरोधी व ममता के समर्थक माने जाने वाले नोबेल सम्मानित अर्थशास्त्री अमृत्य सेन की संस्था प्रतीचि ट्रस्ट ने अपनी 2016 की रिपोर्ट “लिविंग रिएलिटी ऑफ़ मुस्लिम्स इन वेस्ट बंगाल” में कहा था कि तृणमूल के प्रभाव वाले क्षेत्रों में मुसलमानों की स्थिति अन्य लोगों की अपेक्षा बहुत सुधर गई है। हावड़ा के पंचपारा मदरसे के बड़े इमाम के अनुसार – ” ममता बनर्जी के आने के बाद से स्थिति बेहतर हुई है। अब बच्चों को राशन, कपड़ा, किताबें सब कुछ मिलता है। पुरानी सरकार की तुलना में इस सरकार ने बेहतर काम किया है।
हुबली के एक शख़्स मोहम्मद फ़ैसल का कहना है कि “दीदी ने जो काम किया है, उसके बाद दीदी के खिलाफ कोई नहीं जा सकता है। दीदी ने जो हम लोगों के लिए किया है, हमारे बच्चों के लिए किया है, वैसा कभी नहीं हुआ। हम लोग बहुत ख़ुश हैं दीदी के राज में। दीदी ने हम लोगों का बहुत ध्यान रखा है।” एक बात यह भी बड़ी विशेष है कि ममता राज में बंगाल पुलिस में भी मुस्लिम नियुक्ति का अनुपात भी बड़े आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ गया है। कम शिक्षित मुस्लिम समाज को अधिक शिक्षित हिंदू समाज की अपेक्षा अधिक नौकरियां मिलना भला बिना किसी उच्चस्तरीय षड्यंत्र के कैसे संभव है? ममता दीदी द्वारा राज्य की 97 प्रतिशत मुस्लिम जनता को ओबीसी में सम्मिलित कर लिया जाना एक बड़ा सामाजिक अन्याय और असमानता उत्पन्न करने का कारण है यहां।
इन कष्टप्रद व संघर्षप्रद परिस्थितियों में 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने संगठन सुदृढ़ करने हेतु मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता व हरियाणा चुनाव में प्रभारी के तौर पर स्वयं को सिद्ध कर चुके कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल भेजा। कैलाश विजयवर्गीय ने भी जैसे इंदौर को छोड़कर बंगाल को अपना घर ही बना लिया। अथक परिश्रम, सुदृढ़ योजना, कार्यकर्ताओं के घर परिवार तक पहुंचना, उनके दुःख सुख में सतत सम्मिलित होना, केंद्र सरकार की योजनाओं को बंगाल में सुव्यवस्थित रीती-नीति से संचालित करना आदि कैलाश विजयवर्गीय की इस सफल कार्यशैली की विशेषताएं रही है।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बंगाली जनता के विश्वास को मतों में बदलने में सफल होते दिखाई पड़ रहे हैं। इन सब कार्यों से बंगाल में भाजपा का संगठन नये सिरे से खड़ा होता चला गया। बंगाल में एक नया राष्ट्रीय भाव भी सम्मिलित होता चला गया और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राग में राग मिलाकर “आमार शोनार बांग्ला” भारत माता की जय का भी जयघोष करने लगा। बंगाल की भद्र जनता को “खेला होबे” जैसा असभ्य नारा चिढ़ा रहा है, शोनार बांग्ला के लोग कभी खिलंदड़ नहीं रहे हैं। वे समूचे भारत को बौद्धिक दिशा देने में सक्षम लोग रहे हैं। बंगाल के इस विधानसभा चुनाव में बंगाल की जनता शेष राष्ट्र को क्या संदेश देती है यह देखना बड़ा ही रुचिकर व चर्चा का विषय रहने वाला है।
- डॉ नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जहां पुडुचेरी, केरल और तमिलनाडु में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होंगे, वहीं पश्चिम बंगाल में आठ चरणों तो असम के लिए तीन चरणों में चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया है। भारत केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश नहीं है अपितु सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी वो अपार विविधता को अपने भीतर समेटे है। एक ओर खान-पान, बोली-भाषा एवं धार्मिक मान्यताओं की यह विविधता इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा खूबसूरत बनाती हैं। तो दूसरी ओर यही विविधता इस देश की राजनीति को जटिल और पेचीदा भी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति की दिशा में धीरे धीरे किंतु स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है।
तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ-सबका विकास और वोट बैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे। इतिहास में अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज़ादी के बाद देश के सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प मौजूद नहीं था। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने लगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत होते गए। लेकिन ये दल क्षेत्रीय ही बने रहे। अपने क्षेत्रों से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने में कामयाब नहीं हो पाए।
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि समय के साथ ये दल अपने अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनने में अवश्य कामयाब हो गए। आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं आम चुनावों में कांग्रेस की स्थिति का आंकलन इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वो लगातार दो बार से अपने इतने प्रतिनिधियों को भी लोकसभा में नहीं पहुंचा पा रही कि सदन को नेता प्रतिपक्ष दे पाए। उसे चुनौती मिल रही है एक ऐसी पार्टी से जो अपनी उत्पत्ति के समय से ही तथाकथित सेक्युलर सोच वाले दलों ही नहीं वोटरों के लिए भी राजनैतिक रूप से अछूत बनी रही।
1980 में अपनी स्थापना ,1984 आम चुनावों में में मात्र दो सीटों पर विजय, फिर 1999 में एक वोट से सरकार गिरने से लेकर 2019 लोकसभा में 303 सीटों तक का सफर तय करने में बीजेपी ने जितना लम्बा सफर तय किया है उससे कहीं अधिक लम्बी रेखा अन्य दलों के लिए खींच दी है। क्योंकि आज वो पूर्ण बहुमत के साथ केवल केंद्र तक सीमित नहीं है बल्कि लगभग 17 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। वो दल जो केवल हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित था, आज वो असम में अपनी सरकार बचाने के लिए मैदान में है, केरल तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्यों में अपनी जड़ें जमा रहा है तो पश्चिम बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल है।
असम की अगर बात करें तो घुसपैठ से परेशान स्थानीय लोगों की वर्षो से लंबित एनआरसी की मांग को लागू करना, बोडोलैंड समझौता, बोडो को असम की ऑफिशियल भाषा में शामिल करना, डॉ भूपेंद्र हज़ारिका सेतु, बोगिबिल ब्रिज, सरायघाट ब्रिज जैसे निर्माणों से असम को नार्थ ईस्ट के अलग अलग हिस्सों से जोड़ना। कालीबाड़ी घाट से जोहराट का पुल और धुबरी से मेघालय में फुलबारी तक पुल जो असम और मेघालय की सड़क मार्ग की करीब ढाई सौ किमी की वर्तमान दूरी को मात्र 19 से 20 किमी तक कर देगा जैसे विकास कार्यों के साथ भाजपा की वर्तमान सरकार जनता के सामने है। वहीं अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्षरत कांग्रेस ने अपने पुराने तर्ज़ पर ही चलते हुए,सत्ता में आने पर सीएए को निरस्त करना, सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देना, राज्य की हर महिला को 2000 रूपए प्रति माह देना और 5 लाख नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं।
बंगाल की बात करें तो यहां लगभग 34 वर्षों तक शासन करने वाली लेफ्ट और 20 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस दोनों ही रेस से बाहर हैं। विगत दो बार से सत्ता पर काबिज़ तृणमूल का एकमात्र मुख्य मुकाबला भाजपा से है। उस भाजपा से जिसका 2011 के विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुला था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी ने वाम का 34 साल पुराना किला ढहाया था, आज उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा ने उसी हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।
केरल में लेफ्ट और कांग्रेस आमने सामने हैं। यह अलग बात है कि अन्य राज्यों में लेफ्ट उसकी सहयोगी होती है। अभी तक ऐसा देखा गया है कि हर पांच साल में दोनों बारी-बारी से सत्ता में आते हैं। इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसकी सत्ता में वापसी हो सकती है। चुनाव परिणाम क्या आएंगे, यह तो समय ही बताएगा लेकिन चूंकि राहुल गांधी केरल से लोकसभा पहुंचे हैं तो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए केरल की जीत मायने रखती है। भाजपा की अगर बात करें तो 2011 में उसे केरल विधानसभा में मात्र एक सीट मिली थी और इस बार वो मेट्रोमैन ई.श्रीधरन की छवि और अपने विकास के वादे के साथ मैदान में है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतरी लेफ्ट ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए चुनावों से पहले सबरीमाला से जुड़े सभी केसों को वापस लेने का फैसला लिया है। जाहिर है गैर हिंदी भाषी केरल में भाजपा वर्तमान में अवश्य अपनी जमीन तलाश रही है लेकिन उसकी निगाहें भविष्य पर हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और लेफ्ट भले ही केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन दोनों का ही मुख्य मुकाबला भाजपा से है।
पुड्डुचेरी में कांग्रेस सरकार चुनावों से ऐन पहले गिर गई। यह दक्षिण में कांग्रेस की आखिरी सरकार थी। यहां भी भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दा है। राहुल गांधी के पुड्डुचेरी दौरे पर एक महिला की शिकायत का मुख्यमंत्री द्वारा गलत अनुवाद करने का वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था और पुड्डुचेरी सरकार की हकीकत बताने के लिए काफी था। हालांकि यहां भी भाजपा का अबतक कोई वजूद नहीं था लेकिन आज वो मुख्य विपक्षी दल है।
तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहां हिंदी भाषी नेता जनता को आकर्षित नहीं करते। लेकिन ऐसा 40 सालों में पहली बार होगा जब यहां चुनाव दो दिग्गज जयललिता और करुणानिधि के बिना होने जा रहे हैं। जयललिता छः बार और करुणानिधि पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी टक्कर एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही है। डीएमके और कांग्रेस यहां मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा एआइएडीएमके के साथ गठबंधन में है। जयललिता या करुणानिधि जैसे चेहरे के अभाव में जनता किस को चुनती है यह तो समय बताएगा। तमिलनाडु के चुनावी मुद्दों की बात करें तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा भाषा का होता है। दरअसल, तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। राहुल गांधी ने अपने हाल के दौरे में लोगों को भरोसा दिलाया कि तमिल यहां की पहली भाषा होगी। उन पर अन्य कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि उनमें एक कमी यह रह गई कि वो तमिल भाषा नहीं सीख पाए।
कहा जा सकता है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जहां कभी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था आज भाजपा वहां सबसे मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में इन राज्यों के चुनाव परिणाम ना सिर्फ इन राजनैतिक दलों का भविष्य तय करेंगे बल्कि काफी हद तक देश की राजनीति का भी भविष्य तय करेंगे।