Home उत्तराखंड निर्देशों के बावजूद कर्मचारियों की समयबद्ध पदोन्नति ना किये जाने के मामले में उत्तराखंड सरकार सख्त

निर्देशों के बावजूद कर्मचारियों की समयबद्ध पदोन्नति ना किये जाने के मामले में उत्तराखंड सरकार सख्त

निर्देशों के बावजूद कर्मचारियों की समयबद्ध पदोन्नति ना किये जाने के मामले में उत्तराखंड सरकार सख्त

निर्देशों के बावजूद कर्मचारियों की समयबद्ध पदोन्नति ना किये जाने के मामले में प्रदेश सरकार ने सख्त रूख दिखाया है। सरकार ने समयबद्ध तरीके से पदोन्नति की कार्रवाई नहीं किये जाने पर नाराजगी जताते हुए इसे अनुचित करार दिया है। शासन की ओर से सोमवार को कर्मचारियों की पदोन्नति के सम्बन्ध में शीघ्रातिशीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिएअनुस्मारक जारी किया है।

प्रदेश की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा राज्याधीन सेवाओं, शिक्षण संस्थानों, सार्वजनिक उद्यमों, निगमों व स्वायत्तशासी संस्थाओं में पदोन्नति के संबंध में जारी किये गए अनुस्मारक पत्र में शासन के इस वर्ष 18 मार्च व 20 मई को जारी शासनादेशों का हवाला दिया गया है, जिसके तहत समस्त विभागों में पदोन्नति के रिक्त पदों पर प्रत्येक दशा में एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। अनुस्मारक पत्र में कहा गया है कि विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा शासन के संज्ञान में लाया गया है कि अभी तक कई विभागों में पदोन्नतियां लंबित हैं और विभागों द्वारा समयबद्ध रूप से कार्रवाई नहीं की जा रही है।

सवाल – आखिर क्यों नहीं होती समयबद्ध पदोन्नति ?

गौरतलब है, कि प्रदेश में विभिन्न विभागों में लम्बे समय से पदोन्नतियां लटकी पड़ी हैं। विभागाध्यक्ष अथवा शासन स्तर पर कर्मचारियों की पदोन्नति के मामले में अधिकारी रूचि नहीं लेते हैं। इसे विडंबना ही कहना चाहिए कि जहाँ एक ओर अधिकारियों के पदोन्नति के प्रकरणों में एक दिन की भी देरी नहीं होती है, वहीं कर्मचारियों के प्रकरण में वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं होती है। कार्मिकों की पदोन्नति की फाइलें विभागों व सचिवालय की अंधेरी गलियों में गुम होकर रह जाती हैं और कई कार्मिक बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। यहाँ इस तथ्य का उल्लेख करना भी जरुरी होगा, कि अधिकांश मामलों में कर्मचारियों की पदोन्नति के फलस्वरूप सरकार पर किसी प्रकार से राजस्व का अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ता है। अधिकांश कार्मिक वरिष्ठता के कारण पदोन्नत होने वाले पद के समतुल्य अथवा उससे अधिक वेतन पा रहे होते हैं। इन कार्मिकों को पदोन्नति का लाभ वरिष्ठ पद के सम्मान से जुड़ा होता है। मगर उच्च अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते कर्मचारी पदोन्नति से वंचित ही नहीं होते हैं, अपितु उनके मनोबल व कार्यक्षमता पर भी इसका सीधा असर पड़ता है। नतीजन, कर्मचारी संगठनों को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ता है।

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