प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
इस वर्ष बजट में राजकोषीय नीति को विस्तारवादी बनाया गया है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके। केंद्र सरकार द्वारा बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। केंद्र सरकार विभिन्न मदों पर कुल मिलाकर 30.42 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च करने जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा बाजार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा।
चूंकि निजी क्षेत्र अभी अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलायमान रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अपने पूंजीगत खर्चों में भारी भरकम वृद्धि करते हुए अपने निवेश को बढ़ा रही है। यानी केंद्र सरकार निवेश आधारित विकास करना चाह रही है। इस सब के लिए तरलता की स्थिति को सुदृढ़ एवं ब्याज की दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना बहुत जरुरी है और यह कार्य भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से आसानी किया जा सकता है। आरबीआई ने विगत 5 फरवरी को घोषित की गई मौद्रिक नीति के माध्यम से इसका प्रयास किया भी है।
आरबीआई ने मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। आरबीआई के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का एलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है।
साथ ही आरबीआई के गवर्नर ने वर्तमान वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई की दर में कमी आई है और यह अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे आई है। यह भी कहा गया है कि आज समय की मांग है कि अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाय। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाने से यह संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कमी की जा सकती है। एक प्रकार से मौद्रिक नीति अब देश की राजकोषीय नीति का सहयोग करती दिख रही है। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाना एक अच्छी नीति है क्योंकि कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध होने से ऋण की मांग बढ़ती है।
कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार व आरबीआई तालमेल से कार्य कर रहे हैं, यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) से अधिक होते ही आरबीआई रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता है। परंतु वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रा स्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना जरुरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेजी लाना अभी अधिक आवश्यक है। मुद्रा स्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फ़ोकस करना ज़रूरी है। वैसे भी अभी खुदरा महंगाई दर 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है।
केंद्र सरकार की इस वित्तीय वर्ष में भारी मात्रा में बाजार से कर्ज लेने की योजना है ताकि बजट में किए गए खर्चों संबंधी वायदों को पूरा किया जा सके। इसलिए भी आरबीआई के लिए यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाए और ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास करे। अन्यथा की स्थिति में बजट ही फैल हो सकता है। रेपो रेट को बढ़ाना मतलब केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से उधार ली जाने वाली राशि पर अधिक ब्याज का भुगतान करना। वैसे वर्तमान में तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में तरलता उपलब्ध है।
अब तो कोरोना की बुरी आशकाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। अतः व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का विश्वास भी वापिस आ रहा है। सरकार ने बजट में खर्चे को बहुत बड़ा पुश दिया है। सरकार निवेश आधारित विकास करना चाहती है और इस खर्चे व निवेश का क्रियान्वयन केंद्र सरकार खुद लीड कर रही है। वितीय सिस्टम में न तो पैसे की कमी है और न ब्याज की दरें बढ़ी हैं। अतः इन अनुकूल परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने का प्रयास केंद्र सरकार भी कर रही है जिसका पूरा पूरा फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होने जा रहा है।
सामान्यतः देश में यदि मुद्रा स्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी कीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रा स्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई जरुरत भी नहीं हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत से कुछ ही अधिक उपयोग हो पा रहा है जब तक यह 75-80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचता है तब तक निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ाएगा और इस प्रकार मुद्रा स्फीति में वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है। मुद्रा स्फीति पर ज्यादा सख्त होने से देश की विकास दर प्रभावित होगी, जो कि देश में अभी के लिए प्राथमिकता है। हालांकि अभी हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में स्थापित क्षमता के उपयोग में सुधार हुआ है और अर्थव्यवस्था में रिकवरी और तेज हुई है।
बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को भी मदद देने की बात की गई है क्योंकि यही क्षेत्र कोरोना महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतम लोग बेरोजगार हो गए थे। अतः इस क्षेत्र को शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की बात की जा रही है। साथ ही इस क्षेत्र को तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाना जरुरी है। यह क्षेत्र ही देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा। इसलिए भी मौद्रिक नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र को ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा सके एवं तरलता बनाए रखी जा सके।
देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से उसी ओर बढ़ रही है। रिजर्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष में 10 से 10.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेगी।
वर्तमान समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है। इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब रिज़र्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नजर बनाए रखनी होगी। यदि यह दर बढ़ती है तो देश के विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।
निर्माणाधीन दिल्ली-सहारनपुर-देहरादून आर्थिक गलियारा (Economic Corridor) के बन कर तैयार हो जाने पर दोनों शहरों के बीच की दूरी 235 किलोमीटर से घटकर 210 किलोमीटर हो जाएगी। दोनों शहरों के बीच यात्रा अवधि जो अभी लगभग 6.5 घंटा है वह केवल 2.5 घंटा हो जाएगी। यह देश का पहला राजमार्ग होगा जहां वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए 12 किलोमीटर लंबा एलिवेटेड कॉरिडोर होगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार इस परियोजना को ईपीसी (Engineering, Procurement and Construction) मोड के तहत पूरा करने का निर्णय लिया गया है। पूरे कॉरिडोर को न्यूनतम 100 किमी प्रति घंटा की गति के साथ ड्राइविंग के लिए डिजाइन किया गया है।
इस कॉरिडोर पर ड्राइविंग करने वाले को बेहतर अनुभव देने के लिए हर 25-30 किमी की दूरी पर विभिन्न सुविधाओं का प्रावधान किया गया है। इस सड़क पर वाहन चालकों को टोल टैक्स के रूप में उतना ही भुगतान करना होगा, जितना की वो दूरी तय करेंगे। इसके लिए राजमार्ग पर क्लोज्ड टोल मैकेनिज्म को अपनाया जाएगा।
मंत्रालय के अनुसार इस कॉरिडोर के विकास से इसके आसपास के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विशेष रूप से उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। परियोजना के कार्यान्वयन के लिए दिल्ली के अक्षरधाम से देहरादून तक के इस राजमार्ग को 4 खंडों में विभाजित किया जाएगा।
खंड-1 में छह लेन के साथ छह लेन सर्विस रोड विकसित की जा रही है। इसे 2 पैकेजों में विभाजित किया गया है। पैकेज 1 दिल्ली के हिस्से में है यह 14.75 किमी में है और जिसमें से 6.4 किमी एलिवेटेड है। पैकेज 2 यूपी में 16.85 किमी की लंबाई में पड़ती है और यह 11.2 किमी एलिवेटेड है। इन दोनों पैकेजों की निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। यह खंड डीएमई के पास अक्षरधाम मंदिर से शुरू होगा और गीता कॉलोनी, खजुरीखास, मंडोला आदि से होकर गुजरेगा। इस राजमार्ग का उद्देश्य उत्तर पूर्वी दिल्ली पर जाम के बोझ को कम करना है। साथ ही ट्रोनिका सिटी, यूपी सरकार की मंडोला विहार योजना की विकास क्षमता को भी बढ़ाना है।
खंड-2 पूरी तरह से 6 लेन ग्रीनफील्ड योजना है जो बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिलों से गुजरती है। डीपीआर का काम पूरा हो गया है और चार पैकेजों में निविदा प्रक्रिया शुरू की गई है। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया चल रही है और वन / पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन दिए गए हैं।
खंड-3 सहारनपुर बाईपास से शुरू होता है और गणेशपुर पर समाप्त होता है। हाल ही में पूरी लंबाई को एनएचएआई ने चार लेन में पूरा किया है। न्यूनतम 100 किमी प्रति घंटे की गति को प्राप्त करने के लिए इसे पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए आवश्यक अंडरपास और सर्विस रोड की योजना बनाई जा रही है।
खंड-4 में छह लेन है जिसमें पूर्ण अभिगम नियंत्रित है। यह खंड मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य में आरक्षित वन से होकर गुजरता है। 20 किमी में से, 5 किमी का विस्तार ब्राउनफील्ड है, और 15 किमी में से वन्य जीवन गलियारे (12 किमी) के लिए एलिवेटेड और सुरंग (340 मीटर) है। वन्यजीव की चिंताओं के कारण सामान्य तौर पर आरओडब्ल्यू 25 मीटर तक सीमित है। वन और वन्यजीव की मंजूरी मिल गई है। मूल्यांकन के तहत 3 पैकेजों में बोलियां प्राप्त हुई हैं।
उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को अब एक ही पोर्टल के माध्यम से सभी सरकारी पदों पर होने वाली भर्तियों की सूचना मिल सकेगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने एकीकृत भर्ती पोर्टल शुरू किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिवालय में एक बैठक में एकीकृत भर्ती पोर्टल http://irp.uk.gov.in का शुभारम्भ किया।
पोर्टल पर खाली पदों के विवरण से लेकर भर्ती प्रक्रिया की जानकारी तक होगी। अभ्यर्थी को भर्ती पोर्टल पर खुद को पंजीकृत करना होगा। इसके बाद सरकारी क्षेत्र में किसी भी भर्ती की सूचना उनको एसएमएस द्वारा प्राप्त हो जाएगी। इस पोर्टल के माध्यम से समस्त विभागों, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग एवं उत्तराखण्ड मेडिकल बोर्ड को जोड़ा गया है। एकीकृत भर्ती पोर्टल में रोस्टर बनाने में समय भी कम लगेगा और त्रुटियों की संभावनाएं भी बहुत कम होगी। अधियाचन का लगभग 90 प्रतिशत भाग पोर्टल द्वारा स्वतः ही भरा हुआ मिलेगा, जिससे विभागों को अधियाचन भरने में कम समय लगेगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि विभिन्न विभागों में रिक्त पदों की भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाई जाय। विभागों का ढांचा वर्तमान की आवश्यकताओं एवं भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर होना चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि समान प्रकृति वाले पदों की भर्ती प्रक्रिया एक साथ की जाय। ताकि उन पदों पर विभागों की मांग के अनुसार नियुक्तियां दी जा सके।
उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव संतोष बडोनी ने जानकारी दी कि आयोग को वर्ष 2019 से अभी तक 7250 पदों के लिए अधियाचन मिला है। जिसमें से 5163 पद विज्ञापित हो चुके हैं। 942 पदों पर परीक्षा पूर्ण हो चुकी है।
बैठक में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, सचिव आर.के.सुधांशु, अमित नेगी, नितेश झा, राधिका झा, दिलीप जावलकर, शैलेश बगोली, सौजन्या, सुशील कुमार, दीपेन्द्र चौधरी आदि उपस्थित थे।
सुखदेव वशिष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार
किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को घेरने और देश के बढ़ते यश को कम करने के लिए बनाई गई रणनीति का खुलासा हो गया। दरअसल, बुधवार को स्वीडन की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने एक टूलकिट (गूगल फॉर्म) को ट्वीट किया था। जिसमें किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार को घेरने और भारत को बदनाम करने को रची गई साजिश की जानकारी थी। ग्रेटा ने बवाल बढ़ता देख इस ट्वीट को तुरंत डिलीट भी कर दिया। हालांकि, बाद में उन्होंने दूसरा ट्वीट कर नए टूलकिट को शेयर किया। जिसमें कुछ संस्थानों, व पत्रकारों के नाम गायब थे। किसान आंदोलन के समर्थन में पॉप स्टार रिहाना का ट्वीट वायरल होने के बाद से ही आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ गई थी, जो ग्रेटा के ट्वीट के बाद और बढ़ी।
विदेश मंत्रालय ने इसे लेकर एक बयान जारी किया। जिसमें स्पष्ट कहा कि ऐसे मामलों पर कॉमेंट करने से पहले मुद्दे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए। सनसनी के लालच में सोशल मीडिया चल रहे हैशटैग्स और कॉमेंट्स, खासकर जिन्हें सेलिब्रिटी कर रहे हैं, ना तो वे सही हैं और न ही जिम्मेदारी भरे हैं।
विदेश मंत्रालय की तरफ से दिये गए बयान के बाद बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार और अजय देवगन सहित बॉलीवुड व देश की नामचीन हस्तियों, खिलाड़ियों ने कृषि बिल पर सरकार के पक्ष का समर्थन किया. और सोशल मीडिया पर इंडिया टुगेदर और इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा हैशटैग ट्रेड करने लगे.
दिल्ली पुलिस ने कहा कि एक खास सोशल मीडिया अकाउंट से एक डॉक्यूमेंट/’टूल किट अपलोड किया गया था। यह टूल किट खालिस्तान से जुड़े एक संगठन ‘पोएटिक जस्टिस’ का है।’ स्पेशल कमिश्नर के अनुसार, ‘एक सोशल मीडिया हैंडल से अपलोड किए गए टूल किट में किसान आंदोलन के नाम पर डिजिटल स्ट्राइक की बात कही गई है। 26 जनवरी को फिजिकल ऐक्शन, ट्वीट स्टॉर्म की बात कही गई है। 26 जनवरी और उसके आसपास के हिंसा को देखें तो इससे पता चलता है कि पूरे प्लान तरीके से इसी के अनुसार सब कुछ किया गया है। यह दिल्ली पुलिस के लिए चिंता की बात है। ‘
इस टूलकिट या टेररकिट के लिंक पर क्लिक करके अंदर जाने पर किसान आंदोलन से जुड़ी कई सामग्री मिलती है। साथ में पेज नंबर तीन पर वेबसाइट का लिंक www.askindiawhy मिलता है। इस वेबसाइट के आखिरी पेज पर एक लिंक मिलता है ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडडेशन’। संस्था के इंस्टाग्राम पेज से पता चलता है कि यह संस्था पॉप सिंगर रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग को फंड करती है।
बता दें कि फाउंडेशन को चलाने वाले एम ओ धालीवाल और सिक्ख फॉर जस्टिस के मुख्य संरक्षक गुरपतवंत सिंह पन्नु का सिक्ख फॉर जस्टिस एक खालिस्तानी संगठन है और भारत में इस पर प्रतिबंध है। साथ ही इस पन्नु को भी यूएपीए के तहत आतंकी घोषित किया गया है।
खालिस्तान के विफल प्रयोग को कुछ लोग अभी भी उनके निजी हितों के कारण ढो रहे हैं, जबकि पंजाब का युवा इस सबसे दूर वैश्वीकरण के दौर में पूरे विश्व से अपनी प्रतिभा के बल पर सबसे आगे चलना चाहता है। भारत एक परिपक्व लोकतांत्रिक देश है, भारत की समझदार जनता ने पूर्ण बहुमत से राष्ट्र को आगे लेकर जाने के लिए कुशल नेतृत्व को अपनी बागडोर सौंपी है। भारत कैसा हो, भारत को कैसा चलाया जाना है, भारत का विकास किस प्रकार किया जाए, इसके जिम्मेदारी भारतीय समाज की है। विदेशों से हस्तक्षेप करने वाले लोग अपने देश की रंगभेदी, नस्लभेदी नीतियों के बारे में विषय रखें तो अच्छा रहेगा. क्लाइमेट चेंज के बारे में बात करने वाले भारत के कृषि और उसका पर्यावरण पर प्रभाव इस विषय का भी अध्ययन करें तो अच्छा रहेगा।
किसान आंदोलन की आड़ में छिपी विदेशी ताकतों के प्रयोग का सावधानीपूर्ण सामना करना होगा। सरकार द्वारा असली किसानों के प्रति धैर्य और स्नेह के भाव से आंदोलन को गलत दिशा में ले जाने वाली विदेशी ताकतों के चेहरे बेनकाब होते जा रहे हैं। (विसंकें)
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शनिवार को एक कार्यक्रम में दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण कृषि ऋण योजना का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम आज प्रदेश के सभी 95 विकास खण्डों समेत पांच अन्य स्थानों पर भी आयोजित किया गया। इस योजना के तहत 25 हजार लोगों को कृषि एवं कृषि यंत्रों, मत्स्य पालन, जड़ी-बूटी उत्पादन, मुर्गी पालन कुक्कुट पालन, मौन पालन आदि प्रयोजनों हेतु तीन लाख रूपये का ब्याज रहित ऋण वितरण किया जाएगा।
राजधानी देहरादून के रेसकोर्स में स्थित बन्नू स्कूल में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने 11 लाभार्थियों को 03-03 लाख के चेक वितरित किए। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने खेती और बागवानी के क्षेत्र में सराहनीय कार्यों के लिए इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुने गए किसान प्रेमचन्द्र शर्मा को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार किसानों की आर्थिकी में सुधार के लिए अनेक प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि देश और प्रदेश के विकास के लिए जवानों और किसानों का सम्मान बहुत जरूरी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित में जो नए कृषि सुधार कानून लाये गये हैं, उनसे किसानों को आने वाले समय में बहुत फायदा होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एम.एस. स्वामीनाथन की सिफारिशों को धरातल पर लाने का कार्य किया है। किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दी जा रही है।
इस अवसर पर सहकारिता एवं उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, विधायक विनोद चमोली, हरवंश कपूर, गणेश जोशी, खजानदास, मुन्ना सिंह चौहान, सहदेव पुण्डीर, उमेश शर्मा काऊ, एंग्लो इण्डियन विधायक जार्ज आईवन ग्रेगरी मैन, मेयर सुनील उनियाल गामा, सचिव सहकारिता आर.मीनाक्षी सुंदरम आदि उपस्थित थे।
शनिवार से प्रदेश में शुरू हुए इस ऋण वितरण कार्यक्रम में विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचन्द अग्रवाल, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, मदन कौशिक, सुबोध उनियाल, डॉ. हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, अरविन्द पाण्डेय, राज्य मंत्री रेखा आर्या, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश एवं संबधित क्षेत्रों के विधायकगण उपस्थित रहे।
केंद्र सरकार के सहयोग से देहरादून में 173 करोड़ रुपए की लागत से साइंस सिटी की स्थापना होगी। इसके लिए शुक्रवार को राज्य सरकार व केंद्र सरकार के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
मुख्यमंत्री आवास में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की उपस्थित में साइंस सिटी के लिए प्रदेश सरकार की ओर से उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (यूकॉस्ट) और केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् (एनसीएसएम ) के मध्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल एवं सचिव एनसीएसएम ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
एनसीएसएम भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की एक स्वायत्तशासी संस्था है जो देश में विज्ञान संग्रहालयों का निर्माण तथा संचालन करती है। देहरादून में स्थापित होने वाली साइंस सिटी झाझरा स्थित विज्ञान धाम में विकसित होगी।
साइंस सिटी लगभग चार वर्षों में बनकर तैयार हो जाएगी। 173 करोड़ रूपये की इस परियोजना के लिए 88 करोड़ रूपये केन्द्र सरकार एवं 85 करोड़ रूपये राज्य सरकार वहन करेगी।
इस अवसर पर त्रिवेंद्र ने कहा कि देहरादून में बनने वाले साइंस सिटी सबके आकर्षण का केन्द्र बने इसके लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने निर्देश दिए कि इसे निर्धारित समयावधि से पूर्व पूर्ण करने के प्रयास किये जाएं। उन्होंने कहा कि भारत की वैज्ञानिक संस्कृति को आगे बढ़ाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। राज्य सरकार का प्रयास होगा कि उत्तराखण्ड के वैशिष्ट्य को लोग साइंस सिटी के माध्यम से देख सकें।
प्रस्तावित साइंस सिटी में खगोल एवं अंतरिक्ष विज्ञान, रोबोटिक्स, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विरासत, भू-गर्भीय जीवन, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी, वर्चुअल रियलिटी, ऑग्मेंटेड रियलिटी, आर्टिफीसियल इंटेलीजेन्स के साथ स्पेस थियेटर सहतारामंडल, हिमालय की जैवविविधता पर डिजिटल पैनोरमा, सिम्युलेटर, एक्वेरियम, उच्च वोल्टेज व लेजर, आउटडोर साइंस पार्क, थीम पार्क, बायोडोम, बटरफ्लाई पार्क, जीवाश्म पार्क एवं मिनिएचर उत्तराखंड आदि होंगे।
साथ ही अन्य सुविधाओं के रूप में कन्वेंशन सेंटर तथा प्रदर्शनी हॉल आदि भी साइंस सिटी का हिस्सा होंगे। साइंस सिटी प्रदेश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के संचार, लोकव्यापीकरण तथा नवप्रवर्तन की दिशा में विद्यार्थियों, शिक्षकों, आम नागरिकों एवं पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण तथा आकर्षण का केन्द्र होगी।
इस अवसर पर विधायक सहदेव सिंह पुण्डीर, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एस.एस. नेगी, मुख्यमंत्री के तकनीकि सलाहकार डॉ. नरेन्द्र सिंह, सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आर.के सुधांशु, एनसीएसएम के भूतपूर्व महानिदेशक गंगा सिंह रौतेला, निदेशक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम डॉ. अजंन रे, अपर सचिव विजय यादव, अपर प्रमुख वन संरक्षक डॉ. समीर सिन्हा, डॉ. प्रकाश चौहान आदि उपस्थित थे।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि इस बार का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देगा। यह सब अचानक नहीं हुआ है बल्कि यह सोच भारतीय मानस में पिछले तीस वर्षों से कहीं न कहीं काम कर रही थी। सीतारमण ने उद्योग संगठन फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए ये बात कही।
उन्होंने कहा कि खर्च के लिए बहुत ज्यादा पैसों की आवश्यकता होने के बावजूद बजट में इस तरह से वित्तीय संसाधन जुटाने के प्रयास किए गए हैं जो करों पर आधारित नहीं है। उन्होंने कहा “यह एक ऐसा बजट है जिसमें बिना करों के वित्तीय संसाधन जुटाने की कोशिश की गई है। बजट में दिशात्मक परिवर्तन अपने आप में इतना विशिष्ट है जो ऐसी उद्यमिता को प्रोत्साहित करेगा जिसका प्रदर्शन सही अवसर पर मिलने पर देशवासी अक्सर करते हैं”।
वित्त मंत्री ने कहा, “मैं यह जोकर देकर कहना चाहती हूं कि हमने समाज के किसी भी वर्ग पर एक रुपए का भी अतिरिक्त बोझ नहीं डाला”। उन्होंने कहा ” हमें इस बात का भरोसा है कि इस वर्ष से राजस्व संग्रह में सुधार होगा और सरकार केवल अपनी परिसंपत्तियों में विनिवेश के माध्यम से ही नहीं बल्कि कई अन्य तरीकों से भी गैर कर राजस्व जुटाने का प्रयास करेगी”।
सीतारमण ने उद्योग जगत से अनुरोध किया कि वह भी निवेश करने के लिए आगे आएं। उन्होंने कहा “मुझे उम्मीद है कि उद्योग जगत उस भावना को समझेगा जिसके साथ बजट लाया गया है। इसलिए आप सभी को इस काम में हाथ बंटाने के लिए आगे आना चाहिए”। उन्होंने कहा कि अपने सभी कर्ज और देनदारियों से मुक्त हो चुके उद्योगों को अब निवेश करने और अपना कारोबार बढ़ाने की स्थिति में आ जाना चाहिंए और उनसे ऐसा संकेत मिलना चाहिए कि जरुरी प्रौद्योगिकी हासिल करने के लिए आगे वे किसी भी तरह के संयुक्त उपक्रम लगा सकते हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था को तत्काल प्रोत्साहन देने के लिए सरकार सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और कृषि पर ज्यादा खर्च करेगी। उन्होंने कहा कि “सरकार भले ही पैसों से भरा बैग ले आए तो भी वह विकसित होते आकांक्षी भारत की सारी जरुरतें अकेले पूरा नहीं कर सकती”।
सीतारमण ने कहा कि सरकार ने इस बार बजट में एक विश्वसनीय और पारदर्शी लेखा विवरण दिया है। इसमें न तो कुछ छुपाया गया है और न ही किसी तरह की लीपा-पोती की गई है। यह सरकारी वित्त के साथ ही घोषित आर्थिक सुधारों और प्रोत्साहन पैकेजों के बारे में जानकारी देने का एक ईमानदार प्रयास है। इसने यह साफ कर दिया है कि सरकार किसी तरह की आशंका से घिरी नहीं बैठी है, बल्कि भारतीय उद्योगों और व्यापार जगत पर पूरा भरोसा करते हुए आगे बढ़ रही है।
वित्त सचिव डा. अजय भूषण पांडे, आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज तथा निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव तुहिन कांत पांडे सहित कई लोगों ने भी इस अवसर पर फिक्की के सदस्यों को संबोधित किया।
फिक्की के अध्यक्ष उदय शंकर ने कहा कि इस बजट का सबसे संतोषजनक पहलू यह है कि इसमें करों को लेकर कोई बहुत अधिक बदलाव नहीं किए गए। यह नीति को लेकर निश्चितंता और निवेशकों में भरोसा कायम करती है। बजट में नियमों के आसान अनुपालन और फेसलेस टैक्स असेसमेंट की व्यवस्था के माध्यम से देश में कारोबारी सुगमता की दिशा में सरकारी प्रयासों को जारी रखा गया है। इससे करदाताओं को बड़ी राहत मिली है। इससे दीर्घ अवधि में देश में कर आधार का दायरा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
कार्यक्रम के समापन पर फिक्की के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजीव मेहता ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
सरकार जनता के द्वार को चरितार्थ करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत बुधवार को सीमांत जनपद चमोली के दुर्गम माने जाने वाली दूर्मी घाटी में पहुंचे। इस दुर्गम व सीमांत घाटी में पहुंचने वाले त्रिवेंद्र पहले मुख्यमंत्री हैं ।
यहां बता दें कि बीते 9 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक दुर्मी ताल (तालाब) के पुनर्निर्माण की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के एवज में जनता ने उन्हें यहां आमंत्रित करते हुए उनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया था।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने दुर्मी-निजमुला घाटी में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने समेत बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिए बुनियादी सुविधाओं से संबंधित लगभग एक दर्जन घोषणाएं कीं।
दरअसल, दुर्मी घाटी में 14 ग्राम पंचायत शामिल हैं। घाटी की जनसंख्या लगभग 8000 है। विकास और बुनियादी सुविधाओं की दृष्टि से इस घाटी में अभी बहुत कुछ होना बाकी है। क्षेत्रीय जनता पिछले कई वर्षों से सन 1970 की बाढ़ में टूट चुके दुर्मी ताल के निर्माण की मांग कर रही है। जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने की। दुर्मी घाटी में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम को लेकर उत्साह देख गया।
इस मौके पर क्षेत्रीय विधायक महेन्द्र भट्ट, भाजपा के जिलाध्यक्ष रघुवीर बिष्ट, दर्जाधारी राज्यमंत्री रिपुदमन सिंह रावत, जिला सहकारी बैंक चमोली के अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह रावत आदि मौजूद रहे।
- प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
कोरोना महामारी के समय पूरे विश्व में ही लाखों लोगों के रोज़गार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। भारत भी इससे अछूता नहीं रह सका और हमारे देश में भी कई लोगों के रोज़गार पर असर पड़ा। हालांकि, छोटी अवधि के लिए इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से कोरोना महामारी के दौरान, लगभग 80 करोड़ लोगों को 8 महीनों तक मुफ़्त अनाज, दालें एवं अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध करायी गईं थी। साथ ही, करोड़ों परिवारों को मुफ़्त गैस सिलेंडर उपलब्ध कराए गए एवं जन धन योजना के अंतर्गत खोले गए करोड़ों महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 500 रुपए केंद्र सरकार द्वारा जमा किए जाते रहे। करोड़ों किसानों के खातों में भी इस दौरान रुपए 6000 जमा किए गए थे। परंतु, बेरोज़गारी की समस्या का लम्बी अवधि के लिए समाधान निकालना बहुत आवश्यक प्रतीत होता है।
कोरोना महामारी के चलते वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की अर्थप्राप्ति में बहुत कमी रही है। जबकि ख़र्चों में कोई कमी नहीं आने दी गई ताकि इस महामारी के दौर में जनता को किसी प्रकार की तकलीफ़ महसूस न हो। देश में तरलता के प्रवाह को लगातार बनाए रखा गया तथा आत्म निर्भर भारत पैकेज को लागू करते हुए इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की भरपूर मदद की गई। आत्म निर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों सहित, कुल मिलाकर 27.1 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय प्रभाव रहा है, यह सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत है।
विगत दिवस वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में बजट पेश किया। यह बजट कई विपरीत परिस्थितियों में पेश किया गया है। इस लिहाज़ से यह बजट भी अपने आप में विशेष बजट ही कहा जाएगा। इस बजट के माध्यम से भरपूर प्रयास किया गया है कि देश में रोज़गार के अधिक से अधिक नए अवसर सृजित किए जा सकें। सबसे पहले तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। इसका सीधा सीधा परिणाम देश में रोज़गार के नए अवसरों के सृजित होने के रूप में देखने को मिलेगा।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में किए गए 13 वायदों पर तेज़ी से काम हो रहा है। अगले वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र चुने गए हैं, जिन पर विशेष ध्यान केंद्रित कर तेज़ी से काम किया जाएगा। इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शामिल हैं स्वास्थ्य सेवाएं, स्वच्छ जल की व्यवस्था, स्वच्छ भारत, अधोसंरचना का विकास, गैस की उपलब्धता, आदि।
कोरोना महामारी के दौर में देश में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता मिली है और यह ज़रूरी भी है कि अब देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाए। अतः प्रधानमंत्री आत्म निर्भर स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक स्वास्थ्य देखभाल अधोसंरचना को और भी मज़बूत करने के उद्देश्य से अगले 6 वर्षों के दौरान 64,180 करोड़ रुपए ख़र्च करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि स्वास्थ्य योजनाओं पर वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल मिलाकर 223,846 करोड़ रुपए ख़र्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, इस मद पर किए जाने वाले कुल ख़र्च में 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी दृष्टिगोचर है।
कोरोना वायरस महामारी को रोकने हेतु तैयार की गई वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यदि आवश्यकता होगी तो और फ़ंड भी उपलब्ध कराया जाएगा। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ ही ग्रामीण एवं शहरी इलाक़ों में समस्त परिवारों को स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस मद पर अगले 5 वर्षों के दौरान 2.87 लाख करोड़ रुपए ख़र्च किए जाने का प्रावधान किया गया है। इस कार्य को गति देने के उद्देश्य से शीघ्र ही शहरी जल जीवन मिशन भी प्रारम्भ किया जा रहा है।
स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत के नारे को साकार करने के उद्देश से “शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2” को भी प्रारम्भ किया जा रहा है। इसके लिए 1.42 लाख करोड़ रुपए ख़र्च करने की योजना बनाई गई है।
देश में अधोसंरचना को एक लेवल और आगे ले जाने के लिए नए- नए सड़क मार्ग विकसित करने के साथ ही सड़क, रेलवे व पोर्ट को आपस में जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है। देश के अंदर ही नदियों को जल मार्ग के रूप में विकसित किए जाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं क्योंकि जल मार्ग यातायात का एक बहुत ही सुगम एवं सस्ता साधन है। अतः देश में अधोसंरचना विकसित करने के उद्देश्य से रोड मंत्रालय को वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये रुपए 1.18 लाख करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में राष्ट्रीय राजमार्ग के 13,000 किलोमीटर रोड बनाए जाने के लिए टेंडर पास किए गए थे। इसके अतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी राष्ट्रीय राजमार्ग के 8500 किलोमीटर नए रोड का निर्माण किए जाने का प्रावधान किया गया है।
इसी प्रकार, रेलवे मंत्रालय को भी वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। दिसम्बर 2023 के अंत तक देश में रेलवे की समस्त ब्रॉड गेज लाइन का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा और 27 नगरों में मेट्रो रेल लाइन उपलब्ध करा दी जाएगी। देश में कुछ पोर्ट्स का निजीकरण किए जाने की योजना भी बनाई गई है।
100 नए शहरों में गैस वितरण, पाइप लाइन के ज़रिए किए जाने की योजना है। साथ ही, उज्जवला योजना के अंतर्गत 1 करोड़ गैस के नए कनेक्शन योग्य परिवारों को उपलब्ध कराए जायेंगे। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइप लाइन को तेज़ी से विकसित करने के उद्देश्य से वित्तीय विकास संस्था के माध्यम से राज्य एवं केन्द्र उपक्रमों को पूंजी उपलब्ध करायी जाएगी।
अधोसंरचना को विकसित करने के लिए किए जा रहे भारी भरकम ख़र्च के चलते देश में न केवल रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे बल्कि इससे अन्य कई उत्पादों जैसे सीमेंट, स्टील, आदि की मांग में भी वृद्धि होगी जिसके कारण अन्य कई उद्योग भी तेज़ी से विकास करते नज़र आएंगे।
भारत में बीमा के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है क्योंकि देश का बहुत बड़ा वर्ग बीमा के कवरेज से बाहर है। अतः बीमा क्षेत्र को तेज़ी से विकसित करने के उद्देश्य से बीमा कम्पनियों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत किया जा रहा है, इसके लिए बीमा क़ानून में ज़रूरी संशोधन भी किया जा रहा है।
देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को विभिन्न समस्याओं से बाहर निकालने के उद्देश्य से हालांकि सरकारी क्षेत्र की बैंकों में पिछले 5 वर्षों के दौरान 3.16 लाख करोड़ रुपए की पूंजी सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गई है। फिर भी, वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकारी क्षेत्र के बैकों को 20,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध करायी जाएगी। सरकारी क्षेत्र की बैंकों में दबाव में आई आस्तियों के लिए विशेष आस्ती प्रबंधन कम्पनियों की स्थापना किए जाने की योजना है। इससे इन बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी की जा सकेगी।
75 वर्ष से अधिक की आयु के बुज़ुर्गों को, जिनकी आय केवल पेंशन एवं ब्याज की मदों से होती है, अब आय कर विवरणी फ़ाइल करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह देश के बुज़ुर्गों के लिए एक विशेष तोहफ़ा माना जा रहा है।
कोरोना महामारी के चलते केंद्र सरकार की कुल आय में आई भारी कमी के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 9.5 प्रतिशत का राजकोषीय घाटा होने का अनुमान लगाया गया है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसे घटाकर 6.8 प्रतिशत पर लाया जाएगा एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में इसे 5.5 प्रतिशत तक नीचे लाया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकार द्वारा विभिन मदों पर ख़र्चों के लिए किए गए प्रावधानों के चलते बाज़ार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा। साथ ही, 1.75 करोड़ रुपए का पूंजी विनिवेश भी किया जाएगा ताकि देश की जनता के लिए किए जा रहे विकास कार्यों पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आए।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में प्रस्तुत किए गए बजट में यह प्रयास किया गया है कि देश में किस प्रकार रोज़गार के अधिक से अधिक नए अवसर सृजित किए जाएं।
वर्ष 2013 की भीषण आपदा में बुरी तरह से तहस-नहस हुए विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य तेजी पर हैं। धाम में लगभग 180 करोड़ रूपये के काम पूरे होने को हैं। केदारनाथ में द्धितीय चरण में 128 करोड़ रूपये के निर्माण कार्य भी जल्द शुरू किए जाएंगे। केदार पुरी में आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनकर तैयार हो गई है और शंकराचार्य की समाधि का कार्य भी जल्द पूर्ण हो जाएगा। धाम में श्रद्धालुओं को ध्यान लगाने के लिए तीन गुफाओं का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इसके अलावा सरस्वती घाट भी बन कर तैयार हो चुका है।
मंगलवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा राजधानी देहरादून में आयोजित समीक्षा बैठक में अधिकारियों ने यह जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने केदारनाथ व बद्रीनाथ के पुनर्निर्माण कार्यों की समीक्षा के दौरान अधिकारियों से निर्माण कार्यों की प्रगति की विस्तार से जानकारी ली को निर्देश दिए कि कार्यों को निर्धारित समयावधि में पूर्ण करने के साथ ही गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा जाए। उन्होंने कहा कि बर्फवारी के कारण जो कार्य बाधित हुए उन कार्यों में तेजी लाएं।
मुख्यमंत्री ने आगामी समय में केदारनाथ व बद्रीनाथ के कपाट खुलने से पूर्व श्रद्धालुओं की सुविधा के दृष्टिगत महत्वपूर्ण प्रकृति के सभी कार्य पूर्ण करने को कहा। उन्होंने कहा कि यात्रियों की सुविधा के लिए बैठने, पेयजल एवं शेड की भी उचित व्यवस्था हो। जन सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए मन्दिर के आस-पास सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जाय।
प्रदेश के पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने जानकारी दी कि केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों में प्रथम चरण में मंडप से संबधित कार्य 85 प्रतिशत काम हो चुके हैं। आगामी15 अप्रैल तक यह कार्य पूर्ण हो जाएंगे। बैठक में यह भी जानकारी दी गई कि बद्रीनाथ धाम में प्रथम चरण में 245 करोड़ रूपये के कार्यों का प्लान तैयार हो चुका है। यात्रा सीजन को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण प्रकृति के कार्यों को पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
बैठक में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, मुख्य सचिव ओमप्रकाश, प्रमुख सचिव आनन्द वर्द्धन, गढ़वाल कमिश्नर रविनाथ रमन, अपर सचिव आशीष चौहान, आर. राजेश कुमार एवं संबंधित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।