मुख्य सचिव ओमप्रकाश की अध्यक्षता में बुधवार को सचिवालय में 1580 करोड़ की सौंग बांध पेयजल योजना के सम्बन्ध में उच्च अधिकार प्राप्त समिति की बैठक आयोजित हुई । बैठक के दौरान इस परियोजना के पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन हेतु नीति का ड्राफ्ट भी प्रस्तुत किया गया।
बैठक में बताया गया कि सौंग बांध पेयजल परियोजना, सौंग नदी पर मालदेवता से 10 किमी अपस्ट्रीम में सौंदणा गांव में प्रस्तावित है। परियोजना की प्रस्तावित लागत 1580 करोड़ है। बांध की ऊँचाई 130.60 मी. एवं लम्बाई 225 मी. होगी। इससे निर्मित होने वाली झील की लम्बाई 3.5 कि.मी. तथा धारण क्षमता 264 लाख घनमीटर होगी।
परियोजना से देहरादून नगर की 10 लाख की जनसंख्या को वर्ष 2051 तक 150 एमएलडी पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। परियोजना से पेयजल आपूर्ति के बाद भूजल दोहन में कमी आएगी, जिसके फलस्वरूप नलकूपों के निर्माण, अनुरक्षण एवं संचालन में कमी के साथ ही इनके संचालन में विद्युत व्यय में भी कमी आएगी। बताया गया कि परियोजना के निर्माण से कुल 275 परिवार एवं 10.641 हैक्टेयर भूमि प्रभावित होगी।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि पुनर्वास नीति में परियोजना से प्रभावित परिवारों को बेहतर जीवन स्तर उपलब्ध कराने हेतु प्रयास किए जाएं। उन्होंने कहा कि देहरादूनवासियों को इस योजना का लाभ समय पर मिल सके, इसके लिए परियोजना को धरातल पर लाने हेतु शीघ्रअतिशीघ्र प्रयास किए जाएं। निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर भी विशेष ध्यान दिया जाए।
बैठक में सचिव नितेश झा, सौजन्या, सुशील कुमार सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
जैविक खेती में नाम कमाने वाले प्रगतिशील किसान पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने कहा कि जो लोग किसानों के कथित समर्थन में अपने पुरस्कार वापस कर रहे हैं, उन्हें खेती में ये पुरस्कार नहीं मिला है। महज़ झूठी ख्याति प्राप्त करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृषि कानून को द्विपिक्षीय स्वरुप में समझने की ज़रूरत है। बिचौलियों की अंधेरगर्दी कृषि कानून से ही समाप्त होगी। कृषि क़ानून को लेकर सरकार की मंशा में कोई खोट नहीं है, बल्कि इससे खेती के नए विकल्प खुल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी अफवाह ये फैली है कि मंडियां खत्म हो जाएंगी, एमएसपी खत्म हो जाएगी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के ज़रिए किसानों की ज़मीनें हड़प ली जाएंगी। ये सरासर गलत है, क्योंकि सरकार ने बार-बार आश्वासन दिया है कि एमएसपी बराबर बनी रहेगी। वस्तु अधिनियम में भंडारण को संरक्षित करने की बात भी कही गई है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में ज़मीन का कोई मुद्दा नहीं है। इसे किसानों को समझने की ज़रुरत है।
उन्होंने आंदोलन करने वाले किसानों से निवेदन किया कि वो बातचीत के दौरान विरोध की मानसिकता से न जाएं, क्योंकि अगर हम विरोध की मानसिकता से बातचीत करते हैं तो कभी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि मंडी और बाजारों के जरिए किसानों को फसलों की पूरी कीमत नहीं मिलती थी। इसलिए इसे लेकर सार्थक पहल की ज़रुरत थी जो इस क़ानून में रहेगा। जिन किसानों को ये भ्रम है कि इससे उनका नुकसान होगा तो वो सरासर गलत है।
देशभर में जैविक खेती में नाम कमाने वाले किसान भारत भूषण त्यागी को वर्ष 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। बुलंदशहर जनपद की स्याना तहसील क्षेत्र के गांव बीहटा निवासी प्रगतिशील किसान भारत भूषण त्यागी ने जैविक खेती कर और देश-प्रदेश में किसानों को जैविक खेती के लिए जागरूक कर अपनी अलग छाप छोड़ी है। (विश्व संवाद केंद्र सेवा)
केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए रोडमैप तैयार करने के उद्देश्य से कार्यबल का गठन किया है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि केंद्रीय उच्च शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में गठित यह कार्यबल विभिन्न हितधारकों द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करेगा और एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट देगा।
एक उच्च स्तरीय बैठक में शिक्षा मंत्री डॉ निशंक ने यह निर्णय लिया। बैठक में उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के निदेशक, शिक्षाविद और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
इस अवसर पर डॉ निशंक ने कहा कि आज की बैठक प्रधानमंत्री की इस सोच को हासिल करने की दिशा में विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग और कानून आदि व्यावसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर सकें।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि किसी भी विद्यार्थी पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। मगर यह प्रावधान जरूर किए जाएंगे, जिससे कोई भी होनहार विद्यार्थी इसलिए तकनीकी शिक्षा से वंचित न रह जाए कि वह अंग्रेजी भाषा नहीं जानता था।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मंगलवार को सचिवालय में यू.एन.डी.पी तथा एवं सेंटर फाॅर पब्लिक पाॅलिसी एण्ड गुड गवर्नेंस, नियोजन विभाग के सहयोग से तैयार सस्टनेबल डेवलपमेंट गोल (SDG) मोनिटरिंग हेतु तैयार डैश बोर्ड का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि 2030 तक सतत विकास का जो लक्ष्य रखा गया है, इसके लिए और तेजी से प्रयासों की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि राज्य में कुपोषण से मुक्ति के लिए चलाये गए अभियान, अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना, जल संचय, संरक्षण तथा नदियों के पुनर्जीवीकरण की दिशा में भी अनेक प्रयास किये गए हैं। लोगों को स्वच्छ एवं उच्च गुणवत्तायुक्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रयासरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र एक रूपये में पानी का कनेक्शन दिया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में भी जल्द ही पानी का कनेक्शन सस्ती दरों पर दिया जाएगा।
त्रिवेंद्र ने कहा कि जिला योजना का 40 प्रतिशत बजट स्वरोजगार के लिए खर्च किया जा रहा है। उत्तराखण्ड के स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग करने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है। भारत नेट 2 से नेटवर्किंग और कनेक्टिविटी बढ़ेगी, इसका भी लोगों की आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने निर्देश दिए कि लक्ष्यों के आधार पर जो भी योजनाएं बनाई गई हैं, उनको पूरा करने के लिए नियमित माॅनिटरिंग भी की जाए।
उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को यह भी निर्देश दिए कि सतत विकास लक्ष्य के लिए जो 17 क्षेत्र चुने गए हैं, उनमें दिये गए सभी इन्डीकेटर पर किए जा रहे कार्यों की समय-समय पर समीक्षा की जाय। उन्होंने कहा कि डैशबोर्ड में सभी जनपद समय-समय पर अपनी उपलबिधयां अपलोड करेंगे तथा रैंकिंग के आधार पर जिन योजनाओं/ इंडीकेटरों में कमी प्रदर्शित होती है उनको प्राथमिकता में लेते हुए सतत विकास का लक्ष्य कार्यान्वयन में सुधार करने के हर संभव प्रयास करेंगे।
अपर मुख्य सचिव नियोजन, मनीषा पंवार ने कहा कि राज्य में सतत विकास लक्ष्य के क्रियान्वयन हेतु 2018 में उत्तराखण्ड विजन 2030 बनाया गया। जो 17 क्षेत्रों में वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु रौडमेप प्रदान कर रहा है। भारत सरकार के नीति आयोग के दिशा-निर्देशों पर 371 संकेतक चयनित किये गए हैं।
इस अवसर पर यूएनडीपी की राष्ट्रीय प्रमुख शोको नोडा, सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम, डाॅ. पंकज पाण्डेय, सुशील कुमार, यूएनडीपी की स्टेट हैड रश्मि बजाज उपस्थित थे। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सभी जिलाधिकारी तथा सीडीओ कार्यक्रम से जुड़े थे।
- राकेश सैन
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमान विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में हुए आंदोलन और केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार अधिनियम को लेकर पंजाब सहित उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में हो रहे किसान आंदोलन के बीच की समानता को उर्दू शायर फैज के शब्दों में यूं बयां किया जा सकता है कि – ‘वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था, वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।’
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमानों का विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, इसमें न तो फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को समाप्त करने की बात कही गई है और न ही मंडी व्यवस्था खत्म करने की। परंतु इसके बावजूद आंदोलनकारी इस मुद्दे को जीवन मरण का प्रश्न बनाए हुए हैं। अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से ही पंजाब में चला आ रहा किसान आंदोलन बीच में मद्धम पड़ने के बाद किसानों के ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान के बाद फिर जोर पकड़ रहा है।
जैसी आशंका जताई जा रही थी वही हुआ, आंदोलन के चलते पिछले लगभग दो महीनों से परेशान लोगों की किसानों के अड़ियल रवैये से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। ज्यादातर जगहों पर किसानों को रोकने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं। लंबे जाम और किसानों के आक्रामक रुख को देखते हुए पुलिस ने ज्यादा सख्ती नहीं की और उन्हें आगे बढ़ने दिया। साफ सी बात है कि आने वाले दिनों में आम लोगों की परेशानी और बढ़ने वाली है, क्योंकि किसान पूरी तैयारी के साथ डटे हैं। उनकी संख्या भी हजारों में है। चाहे कुछ मार्गों पर रेल यातायात कुछ शुरू हुआ है, परंतु यह पूरी तरह बहाल नहीं हो पाया है। अब सड़क मार्ग भी बाधित होने के कारण समस्या और बढ़ गई है। इसके साथ ही सरकार और किसानों के बीच टकराव भी बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। किसानों को अलग-अलग राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है। चूंकि पंजाब में लगभग एक साल बाद विधानसभा चुनावों का बिगुल बज जाना है, इसलिए कोई भी इस आंदोलन का लाभ लेने से पीछे हटने के लिए तैयार दिखाई नहीं दे रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर जो विरोध हो रहा है, वह साधारण लोगों के लिए तो क्या कृषि विशेषज्ञों व प्रगतिशील किसानों के लिए भी समझ से बाहर की बात है। कुछ राजनीतिक दल व विघ्नसंतोषी शक्तियां अपने निजी स्वार्थों के लिए किसानों को भड़का कर न केवल अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, बल्कि वे खुद नहीं जानते कि ऐसा करके वह किसानों का कितना बड़ा नुक्सान करने जा रहे हैं। कितना हास्यास्पद है कि पंजाब के राजनीतिक दल उन्हीं कानूनों का विरोध कर रहे हैं जो राज्य में पहले से ही मौजूद हैं और उनकी ही सरकारों के समय में इन कानूनों को लागू किया गया था। इन कानूनों को लागू करते समय इन दलों ने इन्हें किसान हितैषी बताया था और आज वे किसानों के नाम पर ही इसका विरोध कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के इसी आक्रोश का राजनीतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से पंजाब विधानसभा में केंद्र के कृषि कानूनों को निरस्त भी कर चुके हैं और अपनी ओर से नए कानून भी पारित करवा चुके हैं। परंतु उनका यह दांवपेच असफल हो गया क्योंकि प्रदर्शनकारी किसानों ने पंजाब सरकार के कृषि कानूनों को भी अस्वीकार कर दिया है।
संघर्ष के पीछे की राजनीति समझने के लिए हमें वर्ष 2006 में जाना होगा। उस समय पंजाब में कांग्रेस सरकार ने कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट एमेंडमेंट एक्ट) के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी। कानून में निजी यार्डों को भी अनुमति मिली थी। किसानों को भी छूट दी गई कि वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है। साल 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसी प्रकार के कानून बनाने का वायदा किया था, जिसका वह आज विरोध कर रही है। अब चलते हैं साल 2013 में, जब राज्य में अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ की स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार सत्तारूढ़ थी। बादल सरकार ने इस दौरान अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग) की अनुमति देते हुए कानून बनाया। कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री स. सरदारा सिंह जौहल अब पूछते हैं कि अब जब केंद्र ने इन दोनों कानूनों को मिला कर नया कानून बनाया है तो कांग्रेस व अकाली दल इसका विरोध किस आधार पर कर रहे हैं।
पंजाब में चल रहे कथित किसान आंदोलन का संचालन ढाई दर्जन से अधिक किसान यूनियनें कर रही हैं। कहने को तो भारतीय किसान यूनियन किसानों का संगठन है, परंतु इनकी वामपंथी सोच जगजाहिर है। दिल्ली में चले शाहीन बाग आंदोलन में किसान यूनियन के लोग हिस्सा ले चुके हैं। किसान आंदोलन को भड़काने के लिए गीतकारों से जो गीत गवाए जा रहे हैं, उनकी भाषा विशुद्ध रूप से विषाक्त नक्सलवादी चाशनी से लिपटी हुई है। ऊपर से रही सही कसर खालिस्तानियों व कट्टरवादियों ने पूरी कर दी। प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में कई स्थानों पर खालिस्तान को लेकर भी नारेबाजी हो चुकी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक नहीं, बल्कि भारी संख्या में पेज ऐसे चल रहे हैं जो इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ कर देख रहे हैं और युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं।
सच्चाई तो यह है कि केंद्र के नए कृषि अधिनियम अंतत: किसानों के लिए लाभकारी साबित होने वाले हैं। इनके अंतर्गत ऑनलाइन मार्केट भी लाई गई है, जिसमें किसान अपनी फसल को इसके माध्यम से कहीं भी अपनी इच्छा से बेच सकेगा। इस कानून में राज्य सरकारों को भी अनुमति दी गई है कि वह सोसायटी बना कर माल की खरीददारी कर सकती हैं और आगे बेच भी सकती हैं। नए कानून के अनुसार, किसानों व खरीददारों में कोई झगड़ा होता है तो उपमंडल अधिकारी को एक निश्चित अवधि में इसका निपटारा करवाना होगा। इससे किसान अदालतों के चक्कर काटने से बचेगा। हैरत की बात यह है कि किसानों को नए कानून के लाभ के बारे में कोई भी नहीं जानकारी दे रहा। एक और हैरान करने वाला तथ्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में पंजाब में धान की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर की है। परंतु इसके बावजूद MSP को लेकर प्रदर्शनकारियों में धुंधलका छंटने का नाम नहीं ले रहा और उन बातों को लेकर विरोध हो रहा है, जिनका जिक्र तक नए कृषि कानूनों में नहीं है। (विश्व संवाद केंद्र)
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में घोषित गैरसैंण में स्थापित होने वाले सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के सम्बन्ध में प्रस्तुतीकरण का अवलोकन किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि यह सेंटर स्थानीय स्तर पर लोगों की आर्थिकी में सुधार एवं कौशल विकास की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा।
राजधानी देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में आयोजित एक बैठक में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को लेकर अधिकारियों ने प्रस्तुतिकरण दिया। यह सेंटर यूएनडीपी के सहयोग से संचालित किया जाएगा। बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के युवा परिश्रमी एवं ईमानदार हैं। उनके हुनर को कौशल विकास से और अधिक निखारा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हमें क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए कार्ययोजना बनानी होगी। कृषि में मंडूआ, झंगोरा, मसूर, चौलाई के साथ ही अन्य क्षेत्रीय उत्पादों को ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग के माध्यम से राजस्व सृजन का बेहतर श्रोत बनाना होगा। स्थानीय उत्पादों को और अधिक डिजीटल प्लेटफार्म उपलब्ध कराना होगा।
सीएम ने कहा कृषि, बागवानी, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन, भेड़-बकरी पालन के साथ ही स्थानीय उत्पादों की बेहतर प्रोसेसिंग आदि की आधुनिक तकनीकि दक्षता के साथ प्रशिक्षण प्राप्त होने से लोगों को इन व्यवसायों से जुड़ने में मदद मिलेगी तथा अधिक से अधिक लोग इन क्षेत्रों में स्वरोजगार के लिये आगे आएंगे।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन को रोकने एवं लोगों की आर्थिकी में सुधार की दिशा में राज्य सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश में स्थापित किए जा रहे विभिन्न रूरल ग्रोथ सेंटर भी लोगों की आर्थिकी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एस.एस. नेगी ने बताया कि सेंटर की स्थापना के संबंध में विभिन्न अवस्थापना सुविधाओं के विकास एवं योजनाओं के विषयगत प्रशिक्षण आदि की रूप रेखा निर्धारित करने हेतु गठित समिति के सदस्यों ने जनपद चमोली के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से सम्पर्क कर उनके सुझाव व विचार जाने। इसके साथ ही चमोली के विभिन्न स्वयं सहायता समूहों से डेयरी विकास, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, हेल्थ एण्ड वेलनेस, पर्यटन व हैण्डीक्राफ्ट सेक्टर में सामने आ रही चुनौतियों के सम्बन्ध में भी चर्चा की।
प्रस्तुतीकरण में निदेशक कौशल विकास डॉ. आर राजेश कुमार ने बताया कि इस सेंटर में लोगों को उद्यमिता विकास एवं आजीविका बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जायेंगे। यूएनडीपी द्वारा सेंटर के संचालन हेतु तकनीकी, परामर्शीय एवं कॉरपोरेट स्पान्सर्स के माध्यम से वित्तीय सहयोग दिया जायेगा। आरंभ में सेंटर राजकीय पॉलिटेक्नीक, गैरसैंण से संचालित किया जायेगा।
बैठक में मुख्यमंत्री के तकनीकि सलाहकार डॉ. नरेन्द्र सिंह, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, अपर सचिव झरना कमठान सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने शनिवार को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से कोविड-19 की समीक्षा करते हुए निर्देश दिये कि कोविड डेथ रेट को कम करने के लिए विशेष प्रयास किये जाएं। उन्होंने कहा कि इस बात का पूरा विश्लेषण किया जाए कि जिन कोविड रोगियों की मृत्यु हो रही है, वे किसी अन्य रोग से ग्रसित थे, अथवा देरी से अस्पताल पहुंचे या अन्य किस कारण से ?
उन्होंने कहा कि किसी भी कोविड के मरीज को हायर सेंटर रेफर किया जाना है, तो इसमें बिलकुल भी विलम्ब न किया जाए। उन्होंने रिकवरी रेट बढ़ाने के लिए और प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया।
मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिए कि जिलों में टेस्टिंग और तेजी लाएं। आरटी-पीसीआर टेस्ट पर विशेष ध्यान दिया जाए। यह सुनिश्चित किया जाय कि सैंपल लेने के बाद शहरी क्षेत्रों में 24 घण्टे के अन्दर व पर्वतीय क्षेत्र में 48 घण्टे के अन्दर लोगों को कोविड की रिपोर्ट मिल जाय।
उन्होंने कहा कि मास्क न लगाने पर जिन लोगों के चालान किए जा रहे हैं, उनको मास्क जरूर उपलब्ध हों। हमारा उद्देश्य कोविड से लोगों को बचाना है, न कि चालान कर राजस्व वसूलना। बिना मास्क दिए चालान करने वालों पर सख्त कारवाई की जाएगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि सर्दियों का मौसम, आगामी हरिद्वार कुंभ, योग महोत्सवों व पर्यटन की दृष्टि से आने वाले कुछ माह चुनौतीपूर्ण होंगे। इन सबको ध्यान में रखते हुए कोविड से बचाव के लिए जनपदों में लगातार जागरूकता अभियान चलाये जाएं। जो लोग होम आईसोलेशन में हैं, उनके नियमित स्वास्थ्य की जानकारी लें।
उन्होंने निर्देश दिया कि कोविड के लक्षण पाए जाने पर भी यदि कोई टेस्ट कराने के लिए मना कर रहें है, तो ऐसे लोगों पर सख्ती बरतें।
बैठक में मुख्य सचिव ओम प्रकाश, सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी, पुलिस महानिदेशक (कानून व व्यवस्था) अशोक कुमार, सचिव शैलेष बगोली, एस.ए. मुरूगेशन, डॉ. पंकज पाण्डेय, मेलाधिकारी (कुंभ) दीपक रावत, आईजी अभिनव कुमार, संजय गुंज्याल, डीआईजी अरूण मोहन जोशी, अपर सचिव युगल किशोर पंत, महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ. अमिता उप्रेती आदि उपस्थित थे। वीडियो कांफ्रेंसिंग में प्रदेश के सभी जिलाधिकारी, एसएसपी एवं सीएमओ उपस्थित थे।
केंद्रीय शिक्षा, संचार एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना व प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने शुक्रवार को उत्तराखंड के प्रवास के दौरान राजधानी देहरादून में आयोजित बैठक में दूरसंचार सुविधाओं को लेकर विभागीय अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। उन्होंने उत्तराखंड में इंटरनेट सुविधाओं व मोबाइल नेटवर्क के प्रसार के संबंध में दूरसंचार विभाग, बीएसएनएल और बीबीएनएल के अधिकारियों के साथ विस्तृत चर्चा की। इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड बीएसएनएल के ई-ऑफिस का भी उद्घाटन किया।
केंद्रीय राज्यमंत्री ने बैठक में उत्तराखंड के दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में यू.एस.ओ. (सार्वभौमिक सेवा दायित्व) निधि द्वारा वित्तीय सहायता से मोबाइल टावरों की स्थापना की प्रगति, भारतनेट परियोजना के तहत ग्राम पंचायतों और गांवों के लिए ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी और राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान (एन.बी.एम.) के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की प्रगति की समीक्षा की।
उन्होंने विशेष रूप से उत्तराखंड के प्रवासी निवासी जो घर से काम कर रहे हैं और छात्र जो वर्तमान COVID-19 स्थिति में ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे हैं, की जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की मजबूती पर जोर दिया। उन्होंने चार धाम यात्रा मार्ग पर मोबाइल नेटवर्क के कवरेज को बेहतर बनाने का भी निर्देश दिया। साथ ही दूरसंचार विभाग को निर्देशित किया कि उत्तराखंड सरकार और सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के साथ समन्वय कर दूरसंचार सेवाओं से वंचित क्षेत्रों को संचार सेवाओं से जोड़ने का प्रयास करें। उन्होंने राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान के तहत ब्रॉडबैंड के प्रसार के बारे में परिकल्पित लक्ष्यों को पूरा करने के भी अधिकारियों को दिए।
बैठक में बताया गया कि उत्तराखंड में 27,108 मोबाइल बेस स्टेशन काम कर रहे हैं। इनमें से 18,598 4G तकनीक के हैं जो हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं।
बीएसएनएल ने हाल ही में नीती घाटी के मलारी क्षेत्र में मोबाइल सेवाओं को स्थापित और लॉन्च किया है।
बैठक में यह भी बताया गया कि यू.एस.ओ. परियोजना के तहत चमोली, चंपावत, पिथौरागढ़, और उत्तरकाशी के सीमावर्ती क्षेत्रों में अट्ठाइस 4G मोबाइल टावर्स की योजना प्रस्तावित है। इनमें से 22 साइटों को अधिग्रहित किया जा चुका है और 11 स्थलों पर टॉवर स्थापना का काम चल रहा है। इन क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी से हमारी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा कर रहे अर्धसैनिक और रक्षा कर्मियों को अपने परिवार के संपर्क में रहने में मदद मिलेगी।
बताया गया कि उत्तराखंड के दूरदराज और कठिन क्षेत्रों में टेलीकॉम नेटवर्क के विस्तार से स्थानीय लोग टेली-मेडिसिन और टेली-शिक्षा और घर से काम करने सहित ई-सेवाओं का लाभ लेने के लिए 4G के उच्च गति डेटा नेटवर्क का उपयोग करने में सक्षम होंगे। इससे उत्तराखंड में तीर्थयात्रा, ट्रैकिंग और स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
केंद्रीय राज्य मंत्री धोत्रे ने राज्य में बीएसएनएल के लिए ई-ऑफिस का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि बीएसएनएल की यह पहल कागजों के उपयोग को कम करने के साथ-साथ कार्यालय के काम में तत्परता और पारदर्शिता लाएगी।
बैठक में ये रहे उपस्थित
बैठक में दूरसंचार विभाग के विभाग प्रमुख एवं उप महानिदेशक (राज्य समन्वय), उत्तराखंड क्षेत्र इकाई अरुण कुमार वर्मा, बीएसएनएल उत्तराखंड के मुख्य महा प्रबन्धक सतीश शर्मा, बीबीएनएल के महाप्रबंधक महेश सिंह निखुरपा, उप महानिदेशक (रूरल) दीपक कुमार, प्रधान महाप्रबंधक सुनील कुमार सिंह, महाप्रबंधक सुनील लखेरा, निदेशक (कंप्लायंस) सुमित गुप्ता, महाप्रबंधक पंकज कुमार, निदेशक (रूरल) विजय कुमार, सहायक महानिदेशक (कंप्लायंस) अभिनव कुमार वर्मा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
Union Minister for Finance & Corporate Affairs Nirmala Sitharaman today held Video Conference with Secretaries of the Ministries of Power, Mines and Department of Atomic Energy and the CMDs of 10 CPSEs belonging to these Ministries, to review the capital expenditure (CAPEX) in this financial year.
This was 5th in the ongoing series of meetings that the Finance Minister is having with various stakeholders to accelerate the economic growth in the background of COVID–19 pandemic.
The overall achievement as on 23rd November is Rs.24227 crore (39.4%) against the CAPEX target for 2020-21 i.e. Rs.61483 crore.
While reviewing the performance of CPSEs, Sitharaman said that CAPEX by CPSEs is a critical driver of economic growth and need to be scaled up for the FYs 2020-21 & 2021-22.

The Finance Minister appreciated the efforts of the Ministries and CPSEs for making visible efforts to meet out the CAPEX targets. However, Sitharaman said that more efforts are still required to achieve the target of 75% CAPEX by Q3 and more than 100% by Q4 of the FY 21.
The Finance Minister encouraged the CPSEs to perform better to achieve targets and to ensure that the capital outlay provided to them for the year 2020-21 is spent properly and within time.
Sitharaman asked the Secretaries to closely monitor the performance of CPSEs in order to ensure to achieve the target of CAPEX and make plan for it. She also asked the Secretaries to proactively sort out the unresolved issues of the CPSEs.