हिंदुओं के विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट इस वर्ष 18 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। मंगलवार को बसंत पंचमी के अवसर पर विधि-विधान के साथ कपाट खोलने की तिथि निर्धारित की गई।
उत्तराखंड के चमोली जनपद में लगभग 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि हर वर्ष बसंत पंचमी को तय की जाती है। प्राचीन परंपरा के अनुसार नरेंद्रनगर (टिहरी) स्थित राजदरबार में महाराजा मनुजयेन्द्र शाह की उपस्थिति में आयोजित एक समारोह में कपाट खुलने की तिथि तय की गई। पंडित कृष्ण प्रसाद उनियाल एवं विपिन उनियाल ने पूजा-अर्चना व पंचाग गणना की और परंपरानुसार महाराजा ने कपाट खुलने की तिथि घोषित की। इस वर्ष मंगलवार, 18 मई को प्रातः 4 :15 बजे विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ के कपाट खोले जाएंगे।

इस अवसर पर बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वरीप्रसाद नंबूदरी, टिहरी सांसद महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह, गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत , पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन सिंह गांववासी, चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष शिवप्रसाद ममगाईं, उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी.सिंह, धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल, अधिशासी अभियंता अनिल ध्यानी, डा. हरीश गौड़ सहित डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पदाधिकारी हरीश डिमरी, पंकज डिमरी, विनोद डिमरी, सुरेश डिमरी, आशुतोष डिमरी आदि मौजूद रहे।
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक करण राजदान अपनी आनेवाली फिल्म हिंदुत्व की अधिकांश शूटिंग उत्तराखंड में करेंगे। सोमवार को देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने फिल्म का मुहूर्त शाॅट लिया।

फिल्म के मुख्य कलाकार आशीष शर्मा व सोनारिका भदौरिया हैं। भजन सम्राट अनूप जलोटा फिल्म में गायकी के साथ ही अपने अभिनय का जलवा भी बिखेरेंगे। प्रसिद्ध टीवी सीरियल रामायण की सीता फेम दीपिका चिखालिया भी फिल्म में अभिनय करती दिखेंगी। फिल्म में अनूप जलोटा के अलावा दलेर मेहंदी भी गानों को अपनी आवाज देंगे। फिल्म की पटकथा करण राजदान ने खुद लिखी है।

इस अवसर मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस उद्देश्य के साथ हिंदुत्व फिल्म बनाई जा रही है, उम्मीद है कि यह फिल्म हिंदुत्व को दुनिया में पहुंचाने में सफल होगी। उन्होंने कहा कि फिल्मों का समाज एवं मानव जीवन कितना गहरा प्रभाव पड़ता है, इसके अनेक उदाहरण है। हिंदुत्व शब्द प्रेम, उदार और विश्वास का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है, और सनातन संस्कृति का आधार हिंदुत्व है।

फिल्म के निर्देशक करण राजदान ने कहा कि हिंदुत्व फिल्म में प्रेम, बलिदान एवं सद्भावना के मिलन को दिखाने का प्रयास किया जाएगा। इसके साथ ही फिल्म के माध्यम से दुनियाभर में हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश भी होगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही उत्तराखंड में एक और फिल्म की शूटिंग भी की जाएगी।
उत्तराखंड में आगामी सत्र में कार्मिकों के तबादले वार्षिक स्थानांतरण अधिनयम के प्रावधानों के तहत ही होंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कार्मिक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
पिछले साल 20-21 में वार्षिक स्थानांतरण सत्र को शून्य किया गया था। वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम की धारा-27 के अधीन गठित समिति की 3 फरवरी, 21 को हुई बैठक में शून्य सत्र को समाप्त किए जाने का निर्णय लिया गया था। मुख्य सचिव ने प्रस्ताव में बताया कि आगामी वर्ष में विधानसभा के निर्वाचन भी होने हैं। इस कारण निर्वाचन की आदर्श आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। आम तौर पर निर्वाचन कार्य में संलग्न सभी विभागों के कार्मिकों के लिए एक स्थान पर 3 साल से अधिक रहने का निषेध है। इसलिए आगामी सत्र को शून्य नहीं किया जा सकता। इसमें वित्तीय दृष्टिकोण से 10 फीसदी या आदर्श चुनावी आचार संहिता के अनुरूप वांछित स्थानांतरण ही किए जाने की व्यवस्था की गई है।
इस प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष लाया गया था। इस पर मुख्यमंत्री ने अनुमोदन दे दिया है। साथ ही आगामी सत्र के लिए वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम के प्राविधान ही लागू किए जाने और स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू करने के प्रस्ताव पर भी मोहर लगा दी है।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने चमोली जिले के सीमांत क्षेत्र में आई प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इलाके का दौरा किया और क्षेत्र में बीआरओ द्वारा चलाए जा रहे बचाव, राहत एवं पुनर्वास कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में आपदा प्रभावित क्षेत्र में काम कर रहे बीआरओ की टीम की हौंसला अफजाई भी की।
विगत 7 फरवरी को चमोली जिले के सीमांत रैणी गांव के पास हिमस्खलन से धौली गंगा व ऋषि गंगा के जलस्तर में अचानक वृद्वि हो गई थी और इसने भीषण बाढ़ का रूप ले लिया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए हैं, जिनमें से 40 लोगों के शव बरामद हो गए हैं। आपदा में निजी क्षेत्र के ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट समेत NTPC जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुक्सान पहुंचा। इसके अलावा ऋषिगंगा नदी पर रैणी गांव के पास जोशीमठ-मलारी रोड पर बीआरओ का 90 मीटर आरसीसी पुल भी बह गया । यह पुल चीन सीमा के निकट स्थित नीति घाटी तक पहुंचने का एकमात्र लिंक था।

प्रभावित क्षेत्र के भ्रमण के दौरान बीआरओ के महानिदेशक जनरल चौधरी ने बताया कि आपदा के बाद उनके संगठन ने राहत व बचाव कार्यों में 100 से अधिक वाहनों/उपकरणों व संयंत्रों को शामिल किया गया। बीआरओ ने भारतीय वायु सेना की सहायता से महत्वपूर्ण उपकरणों को भी अपने अभियान में शामिल किया है । प्रोजेक्ट शिवालिक के तहत 21 बीआरटीएफ की लगभग 20 टीमों को बचाव और पुनर्वास उद्देश्यों के लिए तैनात किया गया है।
प्रारंभिक निरीक्षण के बाद बीआरओ ने सभी आवश्यक मोर्चों पर कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित करने के लिए काम शुरू किया है। सुदूर किनारे पर खड़ी चट्टानों और दूसरी तरफ 25-30 मीटर ऊंचे मलबे/ कीचड़ के कारण यह स्थल बहुत चुनौतीपूर्ण था, हालांकि बीआरओ ने इन चुनौतियों को दूर कर लिया है और युद्धस्तर पर कार्य जारी है।
जनरल चौधरी ने विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर रहे बीआरओ के जवानों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि मौसम की चुनौतियों के बीच बीआरओ की टीम चौबीसों घंटे काम कर रही है, ताकि क्षेत्र में जल्द से जल्द कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित किया जा सके। उन्होंने बीआरओ को आवश्यक सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को धन्यवाद भी दिया।
रेल मंत्रालय ने मीडिया में चल रही उन खबरों का खंडन किया है, जिनमें आगामी अप्रैल माह से सभी रेल गाड़ियों को फिर से शुरू किए जाने की बात कही गई है।
मंत्रालय ने फिर से दोहराया है कि सभी रेल गाड़ियों को फिर से शुरू किए जाने के संबंध में ऐसी कोई तिथि अभी निर्धारित नहीं की गई है।
एक आधिकारिक बयान में मंत्रालय ने कहा है कि रेलवे अपनी रेलगाड़ियों की संख्या वृद्धि अवश्य कर रहा है लेकिन यह वृद्धि चरणबद्ध ढंग से की जा रही है।
वर्तमान समय में 65% रेलगाड़ियां चल रही हैं। जनवरी महीने में 250 रेल गाड़ियों को शुरू किया गया। इसी तरह से आने वाले समय में भी क्रमशः रेल गाड़ियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
गाड़ियों की संख्या बढ़ाए जाने के निर्णय में सभी आवश्यक एहतियाती उपायों को ध्यान में रखा जा रहा है और सभी पक्षों की राय ली जा रही है।
मंत्रालय ने इस संबंध में किसी तरह की अटकलबाज़ी को नजरअंदाज करने की अपील की है और कहा है कि जब भी ऐसे निर्णय लिए जाएंगे मीडिया के माध्यम से जनता को विधिवत सूचित किया जाएगा।
डॉ. नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
आज सोशल मीडिया अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है, बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी ले चुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन भले ही 26 जनवरी के बाद से दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पा रहा हो, लेकिन ट्विटर पर अपने प्रवेश के साथ ही उसने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर लिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि बीतते समय और इस आंदोलन को लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों की उपलब्धता के साथ आंदोलनरत किसानों के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर उठती और देश का आम जन सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि इसी साल की जनवरी में एक अमेरिकी डाटा फर्म की सर्वे रिपोर्ट सामने आई, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को भारत ही नहीं विश्व का सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनेता माना गया। इस सर्वे में अमरीका, फ्रांस, ब्राज़ील, जापान सहित दुनिया के 13 लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया गया था। जिसमें 75 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है।
लेकिन यहां प्रश्न प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का नहीं है, बल्कि किसान आंदोलन की विश्वसनीयता और देश के आम जनमानस के ह्रदय में उसके प्रति सहानुभूति का है। क्योंकि देखा जाए तो 26 जनवरी की हिंसा के बाद से किसान आंदोलन ने अपनी प्रासंगिकता ही खो दी थी और किसान नेताओं सहित इस पूरे आंदोलन पर ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए थे। क्योंकि जब 26 जनवरी को देश ने दिल्ली पुलिस के जवानों पर आंदोलनकारियों का हिंसक आक्रमण देखा तो इस आंदोलन ने देश की सहानुभूति भी खो दी। दरअसल, लोग इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं कि देश का किसान जो इस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचता है वो देश के उस जवान पर कभी प्रहार नहीं कर सकता जो देश की आन को अपने खून से सींचता है। शायद यही कारण है कि जो सहानुभूति इस आंदोलन के लिए “आंदोलनजीवी” नहीं खोज पाए, उस सहानुभूति को उनके द्वारा अब विदेश से प्रायोजित करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइट और अन्य विदेशी मंचों का सहारा लिया जाता है। आइए कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं –
कुछ तथाकथित अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटीज़ द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन में उनके द्वारा किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर दिए जाने की खबरें सामने आती हैं। इन तथाकथित सेलेब्रिटीज़ में एक 18 साल की लड़की है और दो ऐसी महिलाएं हैं जो स्वयं अपने बारे में भी एक महिला की भौतिक देह से ऊपर उठ कर नहीं सोच पातीं। जब ऐसी महिलाएं किसान आंदोलन पर ट्वीट करके चिंता व्यक्त करती हैं तो कहने को कम और समझने के लिए ज्यादा हो जाता है। इतना ही नहीं कथित पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग द्वारा पहले किसान आंदोलन से संबंधित टूलकिट को शेयर किया जाता है और फिर हटा लिया जाता है जो अपने आप में कई गंभीर सवालों को खड़ा कर देता है।
किसान आंदोलन को लेकर ट्विटर की भूमिका संदेह के घेरे। भ्रामक एवं हिंसा भड़काने वाली जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सरकार के कहने के बाद भी ट्विटर उन पर आसानी से कार्रवाई को राजी नहीं हुआ। हाल ही में अमेरिका की लोकप्रिय सुपर बाउल लीग के दौरान भी किसान आंदोलन से जुड़ा विज्ञापन चलाया जाता है, जिसमें इसे ”इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन” बताया जाता है। इस बीच लेबर पार्टी के सांसद तनमजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 40 ब्रिटिश सांसदों द्वारा किसान आंदोलन के मुद्दे को ब्रिटेन की संसद में उठाकर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन ब्रिटेन की सरकार इसे भारत का अंदरूनी मामला बताकर खारिज कर देती है।
जाहिर है इन तथ्यों से देश में फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी का प्रवेश तथा आन्दोलनजीवियों के हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन किसान आंदोलन के पीछे चल रही इस राजनीति के बीच जब देश के कृषि मंत्री देश की संसद में यह खुलासा करते हैं कि पंजाब में जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बना है, उसमें करार तोड़ने पर किसान पर न्यूनतम पांच हजार रुपये जुर्माना जिसे पांच लाख तक बढ़ाया जा सकता है, इसका प्रावधान है। जबकि केंद्र द्वारा लागू कृषि कानूनों में किसान को सजा का प्रावधान नहीं है तो कांग्रेस का दोहरा चरित्र देश के सामने रखते हैं। क्योंकि पंजाब में फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट का यह कानून 2013 में बादल सरकार ने पारित किया था।
हैरत की बात है कि पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने केंद्र के कृषि क़ानूनों के विरोध में तो प्रस्ताव पारित कर दिया। लेकिन पहले से जो फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट कानून पंजाब में लागू था, जिसमें किसानों के लिए भी सजा का प्रावधान था उसे रद्द करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इस प्रकार मूलभूत तथ्यों को दरकिनार करते हुए जब किसानों के हितों के नाम विपक्ष द्वारा की जाने वाली राजनीति देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं तो तात्कालिक लाभ तो दूर की बात है, इस प्रकार के कदम यह बताते हैं कि विपक्ष में दूरदर्शी सोच का भी अभाव है। काश कि वो यह समझ पाते कि इस प्रकार के आचरण से कहीं उनकी भावी स्वीकार्यता भी समाप्त न हो जाए।
प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
इस वर्ष बजट में राजकोषीय नीति को विस्तारवादी बनाया गया है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके। केंद्र सरकार द्वारा बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। केंद्र सरकार विभिन्न मदों पर कुल मिलाकर 30.42 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च करने जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा बाजार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा।
चूंकि निजी क्षेत्र अभी अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलायमान रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अपने पूंजीगत खर्चों में भारी भरकम वृद्धि करते हुए अपने निवेश को बढ़ा रही है। यानी केंद्र सरकार निवेश आधारित विकास करना चाह रही है। इस सब के लिए तरलता की स्थिति को सुदृढ़ एवं ब्याज की दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना बहुत जरुरी है और यह कार्य भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से आसानी किया जा सकता है। आरबीआई ने विगत 5 फरवरी को घोषित की गई मौद्रिक नीति के माध्यम से इसका प्रयास किया भी है।
आरबीआई ने मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। आरबीआई के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का एलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है।
साथ ही आरबीआई के गवर्नर ने वर्तमान वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई की दर में कमी आई है और यह अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे आई है। यह भी कहा गया है कि आज समय की मांग है कि अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाय। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाने से यह संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कमी की जा सकती है। एक प्रकार से मौद्रिक नीति अब देश की राजकोषीय नीति का सहयोग करती दिख रही है। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाना एक अच्छी नीति है क्योंकि कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध होने से ऋण की मांग बढ़ती है।
कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार व आरबीआई तालमेल से कार्य कर रहे हैं, यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) से अधिक होते ही आरबीआई रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता है। परंतु वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रा स्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना जरुरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेजी लाना अभी अधिक आवश्यक है। मुद्रा स्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फ़ोकस करना ज़रूरी है। वैसे भी अभी खुदरा महंगाई दर 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है।
केंद्र सरकार की इस वित्तीय वर्ष में भारी मात्रा में बाजार से कर्ज लेने की योजना है ताकि बजट में किए गए खर्चों संबंधी वायदों को पूरा किया जा सके। इसलिए भी आरबीआई के लिए यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाए और ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास करे। अन्यथा की स्थिति में बजट ही फैल हो सकता है। रेपो रेट को बढ़ाना मतलब केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से उधार ली जाने वाली राशि पर अधिक ब्याज का भुगतान करना। वैसे वर्तमान में तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में तरलता उपलब्ध है।
अब तो कोरोना की बुरी आशकाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। अतः व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का विश्वास भी वापिस आ रहा है। सरकार ने बजट में खर्चे को बहुत बड़ा पुश दिया है। सरकार निवेश आधारित विकास करना चाहती है और इस खर्चे व निवेश का क्रियान्वयन केंद्र सरकार खुद लीड कर रही है। वितीय सिस्टम में न तो पैसे की कमी है और न ब्याज की दरें बढ़ी हैं। अतः इन अनुकूल परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने का प्रयास केंद्र सरकार भी कर रही है जिसका पूरा पूरा फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होने जा रहा है।
सामान्यतः देश में यदि मुद्रा स्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी कीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रा स्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई जरुरत भी नहीं हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत से कुछ ही अधिक उपयोग हो पा रहा है जब तक यह 75-80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचता है तब तक निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ाएगा और इस प्रकार मुद्रा स्फीति में वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है। मुद्रा स्फीति पर ज्यादा सख्त होने से देश की विकास दर प्रभावित होगी, जो कि देश में अभी के लिए प्राथमिकता है। हालांकि अभी हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में स्थापित क्षमता के उपयोग में सुधार हुआ है और अर्थव्यवस्था में रिकवरी और तेज हुई है।
बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को भी मदद देने की बात की गई है क्योंकि यही क्षेत्र कोरोना महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतम लोग बेरोजगार हो गए थे। अतः इस क्षेत्र को शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की बात की जा रही है। साथ ही इस क्षेत्र को तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाना जरुरी है। यह क्षेत्र ही देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा। इसलिए भी मौद्रिक नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र को ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा सके एवं तरलता बनाए रखी जा सके।
देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से उसी ओर बढ़ रही है। रिजर्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष में 10 से 10.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेगी।
वर्तमान समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है। इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब रिज़र्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नजर बनाए रखनी होगी। यदि यह दर बढ़ती है तो देश के विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।
निर्माणाधीन दिल्ली-सहारनपुर-देहरादून आर्थिक गलियारा (Economic Corridor) के बन कर तैयार हो जाने पर दोनों शहरों के बीच की दूरी 235 किलोमीटर से घटकर 210 किलोमीटर हो जाएगी। दोनों शहरों के बीच यात्रा अवधि जो अभी लगभग 6.5 घंटा है वह केवल 2.5 घंटा हो जाएगी। यह देश का पहला राजमार्ग होगा जहां वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए 12 किलोमीटर लंबा एलिवेटेड कॉरिडोर होगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार इस परियोजना को ईपीसी (Engineering, Procurement and Construction) मोड के तहत पूरा करने का निर्णय लिया गया है। पूरे कॉरिडोर को न्यूनतम 100 किमी प्रति घंटा की गति के साथ ड्राइविंग के लिए डिजाइन किया गया है।
इस कॉरिडोर पर ड्राइविंग करने वाले को बेहतर अनुभव देने के लिए हर 25-30 किमी की दूरी पर विभिन्न सुविधाओं का प्रावधान किया गया है। इस सड़क पर वाहन चालकों को टोल टैक्स के रूप में उतना ही भुगतान करना होगा, जितना की वो दूरी तय करेंगे। इसके लिए राजमार्ग पर क्लोज्ड टोल मैकेनिज्म को अपनाया जाएगा।
मंत्रालय के अनुसार इस कॉरिडोर के विकास से इसके आसपास के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विशेष रूप से उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। परियोजना के कार्यान्वयन के लिए दिल्ली के अक्षरधाम से देहरादून तक के इस राजमार्ग को 4 खंडों में विभाजित किया जाएगा।
खंड-1 में छह लेन के साथ छह लेन सर्विस रोड विकसित की जा रही है। इसे 2 पैकेजों में विभाजित किया गया है। पैकेज 1 दिल्ली के हिस्से में है यह 14.75 किमी में है और जिसमें से 6.4 किमी एलिवेटेड है। पैकेज 2 यूपी में 16.85 किमी की लंबाई में पड़ती है और यह 11.2 किमी एलिवेटेड है। इन दोनों पैकेजों की निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। यह खंड डीएमई के पास अक्षरधाम मंदिर से शुरू होगा और गीता कॉलोनी, खजुरीखास, मंडोला आदि से होकर गुजरेगा। इस राजमार्ग का उद्देश्य उत्तर पूर्वी दिल्ली पर जाम के बोझ को कम करना है। साथ ही ट्रोनिका सिटी, यूपी सरकार की मंडोला विहार योजना की विकास क्षमता को भी बढ़ाना है।
खंड-2 पूरी तरह से 6 लेन ग्रीनफील्ड योजना है जो बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जिलों से गुजरती है। डीपीआर का काम पूरा हो गया है और चार पैकेजों में निविदा प्रक्रिया शुरू की गई है। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया चल रही है और वन / पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन दिए गए हैं।
खंड-3 सहारनपुर बाईपास से शुरू होता है और गणेशपुर पर समाप्त होता है। हाल ही में पूरी लंबाई को एनएचएआई ने चार लेन में पूरा किया है। न्यूनतम 100 किमी प्रति घंटे की गति को प्राप्त करने के लिए इसे पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए आवश्यक अंडरपास और सर्विस रोड की योजना बनाई जा रही है।
खंड-4 में छह लेन है जिसमें पूर्ण अभिगम नियंत्रित है। यह खंड मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य में आरक्षित वन से होकर गुजरता है। 20 किमी में से, 5 किमी का विस्तार ब्राउनफील्ड है, और 15 किमी में से वन्य जीवन गलियारे (12 किमी) के लिए एलिवेटेड और सुरंग (340 मीटर) है। वन्यजीव की चिंताओं के कारण सामान्य तौर पर आरओडब्ल्यू 25 मीटर तक सीमित है। वन और वन्यजीव की मंजूरी मिल गई है। मूल्यांकन के तहत 3 पैकेजों में बोलियां प्राप्त हुई हैं।
उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं को अब एक ही पोर्टल के माध्यम से सभी सरकारी पदों पर होने वाली भर्तियों की सूचना मिल सकेगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने एकीकृत भर्ती पोर्टल शुरू किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिवालय में एक बैठक में एकीकृत भर्ती पोर्टल http://irp.uk.gov.in का शुभारम्भ किया।
पोर्टल पर खाली पदों के विवरण से लेकर भर्ती प्रक्रिया की जानकारी तक होगी। अभ्यर्थी को भर्ती पोर्टल पर खुद को पंजीकृत करना होगा। इसके बाद सरकारी क्षेत्र में किसी भी भर्ती की सूचना उनको एसएमएस द्वारा प्राप्त हो जाएगी। इस पोर्टल के माध्यम से समस्त विभागों, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग एवं उत्तराखण्ड मेडिकल बोर्ड को जोड़ा गया है। एकीकृत भर्ती पोर्टल में रोस्टर बनाने में समय भी कम लगेगा और त्रुटियों की संभावनाएं भी बहुत कम होगी। अधियाचन का लगभग 90 प्रतिशत भाग पोर्टल द्वारा स्वतः ही भरा हुआ मिलेगा, जिससे विभागों को अधियाचन भरने में कम समय लगेगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि विभिन्न विभागों में रिक्त पदों की भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाई जाय। विभागों का ढांचा वर्तमान की आवश्यकताओं एवं भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर होना चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि समान प्रकृति वाले पदों की भर्ती प्रक्रिया एक साथ की जाय। ताकि उन पदों पर विभागों की मांग के अनुसार नियुक्तियां दी जा सके।
उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव संतोष बडोनी ने जानकारी दी कि आयोग को वर्ष 2019 से अभी तक 7250 पदों के लिए अधियाचन मिला है। जिसमें से 5163 पद विज्ञापित हो चुके हैं। 942 पदों पर परीक्षा पूर्ण हो चुकी है।
बैठक में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, सचिव आर.के.सुधांशु, अमित नेगी, नितेश झा, राधिका झा, दिलीप जावलकर, शैलेश बगोली, सौजन्या, सुशील कुमार, दीपेन्द्र चौधरी आदि उपस्थित थे।
सुखदेव वशिष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार
किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को घेरने और देश के बढ़ते यश को कम करने के लिए बनाई गई रणनीति का खुलासा हो गया। दरअसल, बुधवार को स्वीडन की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने एक टूलकिट (गूगल फॉर्म) को ट्वीट किया था। जिसमें किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार को घेरने और भारत को बदनाम करने को रची गई साजिश की जानकारी थी। ग्रेटा ने बवाल बढ़ता देख इस ट्वीट को तुरंत डिलीट भी कर दिया। हालांकि, बाद में उन्होंने दूसरा ट्वीट कर नए टूलकिट को शेयर किया। जिसमें कुछ संस्थानों, व पत्रकारों के नाम गायब थे। किसान आंदोलन के समर्थन में पॉप स्टार रिहाना का ट्वीट वायरल होने के बाद से ही आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ गई थी, जो ग्रेटा के ट्वीट के बाद और बढ़ी।
विदेश मंत्रालय ने इसे लेकर एक बयान जारी किया। जिसमें स्पष्ट कहा कि ऐसे मामलों पर कॉमेंट करने से पहले मुद्दे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए। सनसनी के लालच में सोशल मीडिया चल रहे हैशटैग्स और कॉमेंट्स, खासकर जिन्हें सेलिब्रिटी कर रहे हैं, ना तो वे सही हैं और न ही जिम्मेदारी भरे हैं।
विदेश मंत्रालय की तरफ से दिये गए बयान के बाद बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार और अजय देवगन सहित बॉलीवुड व देश की नामचीन हस्तियों, खिलाड़ियों ने कृषि बिल पर सरकार के पक्ष का समर्थन किया. और सोशल मीडिया पर इंडिया टुगेदर और इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा हैशटैग ट्रेड करने लगे.
दिल्ली पुलिस ने कहा कि एक खास सोशल मीडिया अकाउंट से एक डॉक्यूमेंट/’टूल किट अपलोड किया गया था। यह टूल किट खालिस्तान से जुड़े एक संगठन ‘पोएटिक जस्टिस’ का है।’ स्पेशल कमिश्नर के अनुसार, ‘एक सोशल मीडिया हैंडल से अपलोड किए गए टूल किट में किसान आंदोलन के नाम पर डिजिटल स्ट्राइक की बात कही गई है। 26 जनवरी को फिजिकल ऐक्शन, ट्वीट स्टॉर्म की बात कही गई है। 26 जनवरी और उसके आसपास के हिंसा को देखें तो इससे पता चलता है कि पूरे प्लान तरीके से इसी के अनुसार सब कुछ किया गया है। यह दिल्ली पुलिस के लिए चिंता की बात है। ‘
इस टूलकिट या टेररकिट के लिंक पर क्लिक करके अंदर जाने पर किसान आंदोलन से जुड़ी कई सामग्री मिलती है। साथ में पेज नंबर तीन पर वेबसाइट का लिंक www.askindiawhy मिलता है। इस वेबसाइट के आखिरी पेज पर एक लिंक मिलता है ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडडेशन’। संस्था के इंस्टाग्राम पेज से पता चलता है कि यह संस्था पॉप सिंगर रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग को फंड करती है।
बता दें कि फाउंडेशन को चलाने वाले एम ओ धालीवाल और सिक्ख फॉर जस्टिस के मुख्य संरक्षक गुरपतवंत सिंह पन्नु का सिक्ख फॉर जस्टिस एक खालिस्तानी संगठन है और भारत में इस पर प्रतिबंध है। साथ ही इस पन्नु को भी यूएपीए के तहत आतंकी घोषित किया गया है।
खालिस्तान के विफल प्रयोग को कुछ लोग अभी भी उनके निजी हितों के कारण ढो रहे हैं, जबकि पंजाब का युवा इस सबसे दूर वैश्वीकरण के दौर में पूरे विश्व से अपनी प्रतिभा के बल पर सबसे आगे चलना चाहता है। भारत एक परिपक्व लोकतांत्रिक देश है, भारत की समझदार जनता ने पूर्ण बहुमत से राष्ट्र को आगे लेकर जाने के लिए कुशल नेतृत्व को अपनी बागडोर सौंपी है। भारत कैसा हो, भारत को कैसा चलाया जाना है, भारत का विकास किस प्रकार किया जाए, इसके जिम्मेदारी भारतीय समाज की है। विदेशों से हस्तक्षेप करने वाले लोग अपने देश की रंगभेदी, नस्लभेदी नीतियों के बारे में विषय रखें तो अच्छा रहेगा. क्लाइमेट चेंज के बारे में बात करने वाले भारत के कृषि और उसका पर्यावरण पर प्रभाव इस विषय का भी अध्ययन करें तो अच्छा रहेगा।
किसान आंदोलन की आड़ में छिपी विदेशी ताकतों के प्रयोग का सावधानीपूर्ण सामना करना होगा। सरकार द्वारा असली किसानों के प्रति धैर्य और स्नेह के भाव से आंदोलन को गलत दिशा में ले जाने वाली विदेशी ताकतों के चेहरे बेनकाब होते जा रहे हैं। (विसंकें)