बसंत पंचमी के दिन से कुमाऊं में होता है बैठकी होली का आगाज..
उत्तराखंड: देशभर में बसंत पंचमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तराखंड में इस त्यौहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। जहां एक ओर बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है तो वहीं दूसरी ओर देवभूमि में इस त्यौहार पर प्रकृति का धन्यवाद किया जाता है और सुख समृद्धि की कामना की जाती है। उत्तराखंड के सभी त्यौहारों में भी प्रकृति प्रेम की भावना झलकती है। उत्तराखंड में बसंत पंचमी के त्यौहार को उत्तराखंड के लोक जीवन में जौ त्यार या जौ सग्यान के रूप में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही इस दिन दान और स्नान का खासा महत्व होता है। पहाड़ों पर पवित्र नदियों में स्नान या प्राकृतिक जल श्रोतों पर स्नान किया जाता है।
पहाड़ों पर इस समय नई फसल जौ की फसल होती है। नई फसल होने के साथ जौ को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसलिए कुमाऊं में बसंत पंचमी के दिन लोग खेत में जाकर पूर्ण विधि-विधान यानि धूप, दीप, अक्षत-पिठ्यां के साथ जौ लेकर आते हैं। जिसके बाद उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद इन्हें ईष्ट-देवता, कुल देवता सभी को चढ़ाया जाता है और भोग लगाया जाता है।
बच्चों से लेकर बड़े और बूढ़े सभी लोग स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनते हैं। इसके साथ ही एक पीली रूमाल को पुरूष सिर पर और महिलाएं हाथों पर बांधती हैं। जिसके बाद महिलाएं ‘जी रये, जागी रये…. शुभकामना के साथ घर के सबसे छोटे बच्चों के सिर में जौ के पौधें रखती हैं। जबकि घर की बेटी अपने से बड़ों के सिर में इस जौ के पौधे रखकर आशीर्वाद लेती है। इसके साथ ही इन जौ के पांच-पांच पौधों को लेकर घर के दरवाजों और खिड़कियों पर लगाया जाता है। इन्हें लगाते हुए घर की सुख और समृद्धि की कामना की जाती है।
कुमाऊं में होती है बैठकी होली की शुरूआत..
बसंत पंचमी को खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पहाड़ में शुभ काम किए जाते हैं। इसके साथ ही कुमाऊं में बैठकी होली की शुरूआत हो जाती है। वैसे तो पूस के रविवार से इसकी शुरूआत हो जाती है। लेकिन होली गायन की शुरूआत बसंत पंचमी के दिन से श्रृंगार रस की होली गाने से होती है। इसके बाद होली के पहले जिस दिन रंग पड़ता है उस दिन से पूरे कुमाऊं में रंगों की होली की शुरुआत होती है। जो छलड़ी के दिन तक चलती है।