देहरादून। प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी ने केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ को मंजूरी दिए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यह योजना देश के कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में मील का पत्थर साबित होगी।
मीडिया को जारी अपने बयान में मंत्री जोशी ने कहा कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की उत्पादकता में वृद्धि, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना और सतत खेती (सस्टेनेबल एग्रीकल्चर) को प्रोत्साहित करना है। साथ ही, यह योजना कटाई के बाद भंडारण क्षमता बढ़ाने, सिंचाई सुविधाओं में सुधार लाने और किसानों को अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक ऋण सुलभ कराने के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।
उन्होंने बताया कि यह योजना उन क्षेत्रों को लक्षित करेगी जहां उत्पादकता कम है, फसल सघनता न्यून है और कृषि ऋण का वितरण अपेक्षाकृत कम रहा है। योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य से कम से कम एक जिला शामिल किया जाएगा और वर्ष 2025-26 तक देश के 100 जिलों में इसे लागू किया जाएगा।
कृषि मंत्री ने विश्वास जताया कि ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष तक किसानों की आय दोगुनी करने के विजन को पूर्णता तक पहुंचाने की दिशा में एक ठोस कदम है। उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी इस किसान हितैषी निर्णय के लिए आभार जताया।
“संस्कारों की सुबह”– धामी सरकार का नया फैसला, प्रार्थना सभा में अब अनिवार्य होगा गीता पाठ
देहरादून। शिक्षा से जुड़े एक ऐतिहासिक निर्णय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार ने राज्य के सभी स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान भगवद गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य कर दिया है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि “गीता का संदेश न केवल धार्मिक, बल्कि जीवन की जटिलताओं में मार्गदर्शन करने वाला दर्शन है। यह विद्यार्थियों को न केवल पढ़ाई में बल्कि उनके व्यक्तित्व, सोच और आचरण में सकारात्मक बदलाव लाएगा।”
क्या होगा इस निर्णय के तहत.?
हर स्कूल में प्रतिदिन की प्रार्थना सभा में गीता के चयनित श्लोकों का पाठ होगा।
श्लोकों के साथ उनका सरल अर्थ और व्याख्या भी विद्यार्थियों को समझाई जाएगी।
शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर, शिक्षकों को इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
सरकार का उद्देश्य :-
नैतिकता, अनुशासन, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को शिक्षा से जोड़ना।
भावनात्मक विकास और आत्मबोध को शिक्षा प्रणाली में समाहित करना।
छात्रों को एक बेहतर इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनाना।
मुख्यमंत्री धामी का साफ़ कहना है —
“यह कोई धार्मिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।”
शिक्षाविदों और अभिभावकों ने इस फैसले का स्वागत किया है। लेकिन एक बात स्पष्ट है उत्तराखंड अब शिक्षा को केवल किताबों तक नहीं, बल्कि संस्कारों तक पहुँचाने की दिशा में एक ठोस कदम उठा रहा है।
जागेश्वर धाम बनेगा सांस्कृतिक विरासत का नया केंद्र, ₹146 करोड़ की परियोजना स्वीकृत
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जागेश्वर मंदिर समिति द्वारा आयोजित श्रावणी मेले 2025 के शुभारंभ अवसर पर वर्चुअल माध्यम से प्रतिभाग करते हुए सभी श्रद्धालुओं एवं आयोजकों को मेले की शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जागेश्वर धाम देवभूमि उत्तराखंड की पौराणिक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि श्रावणी मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह हमारी लोक आस्था, परंपराओं एवं सांस्कृतिक मूल्यों का जीवंत प्रतीक भी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सांस्कृतिक विरासत के पुनरुत्थान का अमृतकाल चल रहा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकाल लोक तथा केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम के पुनर्निर्माण इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार मानसखंड मंदिर माला मिशन के अंतर्गत कुमाऊं के प्रमुख धार्मिक स्थलों के संरक्षण एवं विकास के लिए प्रतिबद्ध है। जागेश्वर मास्टर प्लान के प्रथम चरण में ₹146 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है। दूसरे चरण की विकास परियोजनाएं भी स्वीकृत हो चुकी हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जनपद अल्मोड़ा में कोसी नदी के किनारे 40 किमी का साइकिल ट्रैक, शीतलाखेत को ईको टूरिज्म, द्वाराहाट और बिनसर को आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाने के लिए कार्यरत है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड ने सतत विकास लक्ष्यों में देश में पहला स्थान प्राप्त किया है। राज्य में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से कम हुई है। पिछले चार वर्ष में 24 हजार से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी प्रदान की गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हेतु सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून, समान नागरिक संहिता और ऑपरेशन कालनेमी जैसे कठोर कदम भी उठाए गए हैं।
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, विधायक मोहन सिंह मेहरा, उपाध्यक्ष मंदिर प्रबंधन समिति नवीन भट्ट, जिलाधिकारी अल्मोड़ा आलोक कुमार पांडेय, मुख्य विकास अधिकारी रामजी शरण शर्मा मौजूद थे।
नौलों-धारों के संरक्षण लिए जलागम ने बनाया ‘भगीरथ एप’
जलागम मंत्री ने हरेला पर किया वृक्षारोपण, “जलागम दर्पण” पत्रिका का भी किया लोकार्पण
देहरादून। हमारी सरकार उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संसाधनों और यहां की हरियाली के संरक्षण के लिए अत्यंत गंभीर है। इसके लिए हर स्तर प्रयास किए जा रहे हैं। जलागम विभाग द्वारा भी केन्द्र पोषित ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलागम घटक 2.0’ तथा विश्व बैंक वित्त पोषित उत्तराखण्ड जलवायु अनुकूल बारानी कृषि परियोजना के माध्यम से हरियाली और पानी को संरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं।
उक्त बात प्रदेश के जलागम, पर्यटन, धर्मस्व, संस्कृति, पंचायतीराज, लोक निर्माण, सिंचाई एवं ग्रामीण निर्माण, मंत्री सतपाल महाराज ने बुधवार को इंदिरानगर स्थित जलागम निदेशालय परिसर में लोक पर्व हरेला पर वृक्षारोपण करने के पश्चात आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कही। उन्होंने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हरेला पर्व उत्तराखण्ड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण लोकपर्व है। यह पर्व प्रकृति और हरियाली के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारी का एहसास करवाता है। हर वर्ष श्रावण मास में मनाया जाने वाला यह लोकपर्व नई फसलों की शुरूआत का प्रतीक है। यह सामाजिक सद्भाव के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जलागम एवं संस्कृति मंत्री महाराज ने कहा कि प्रदेश सरकार उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संसाधनों और यहां की हरियाली के संरक्षण के लिए अत्यंत गंभीर है और इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हमारी वनस्पतियों और पेड-पौधों के कारण ही पानी संरक्षित होता है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जलागम विभाग द्वारा केन्द्र पोषित ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलागम घटक 2.0’ तथा विश्व बैंक वित्त पोषित उत्तराखण्ड जलवायु अनुकूल बारानी कृषि परियोजना के माध्यम से हरियाली और पानी को संरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। जलागम मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में जलागम विभाग के अंतर्गत ‘स्प्रिंग एण्ड रिवर रिजुविनेशन एथॉरिटी (सारा) का गठन भी किया गया है। इसके अंतर्गत नौलों और धारों के संरक्षण में सभी प्रदेशवासियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ‘भगीरथ एप’ बनाया गया है। इसके माध्यम से वह अब तक पाँच हजार से अधिक जलस्रोत चिन्हित किए जा चुके हैं।
महाराज ने कहा कि प्रदेश को हरा भरा करने के लिए जलागम और पंचायतीराज विभाग को साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि हमारे जलस्रोत पुनर्जीवित हो लोक पर्व हरेला को मनाने का उद्देश्य पूरा हो सकें। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जीवन में वृक्षों के महत्व को जन-जन तक पहुँचाने के लिए “एक वृक्ष माँ के नाम जैसे अभियान का शंखनाद किया है जो भावनात्मक रूप से हम सभी को धरती की हरियाली से जोड़ता है। महाराज ने कार्यक्रम के दौरान जलागम द्वारा प्रदेश में किए गये कार्यों पर आधारित पत्रिका “जलागम दर्पण” का भी लोकार्पण किया।
इस अवसर पर विधायक सविता कपूर, जलागम सचिव दिलीप जावलकर, परियोजना निदेशक डॉक्टर हिमांशु खुराना, डॉक्टर एस के डिमरी, डॉक्टर एस के सिंह, नवीन सिंह बरफाल, डॉ मीनाक्षी जोशी, दीपचंद सहित जलागम के अनेक कर्मचारी एवं अधिकारियों उपस्थित थे।
प्रदेश में हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ” थीम पर किया गया पौधा रोपण
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला के पावन अवसर पर गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज परिसर, देहरादून में “हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ” थीम पर आयोजित राज्यव्यापी पौधारोपण कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए समस्त प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर उन्होंने रुद्राक्ष का पौधा रोपा ।
हरेला हमारी संस्कृति और चेतना का पर्व है
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और चेतना से जुड़ा एक गहरा भाव है, जो हमें पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। उन्होंने बताया कि हरेला पर्व के दिन लगभग 5 लाख पौधे रोपे जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग के प्रत्येक डिवीजन में 50 प्रतिशत फलदार पौधे लगाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। उन्होंने कहा कि इस महाभियान में सरकार द्वारा जनसहभागिता, स्वयंसेवी संगठनों, छात्र-छात्राओं, महिला समूहों और पंचायतों का सहयोग लिया जा रहा है।
पेड़ बनना ही पौधारोपण की सच्ची सफलता
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लगाए गए पौधों की नियमित देखभाल की जाए, जब तक वे वृक्ष का रूप न ले लें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से समृद्ध राज्य है, जिसकी रक्षा करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है।
प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण को नया आयाम
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे ‘पंचामृत संकल्प’, ‘नेट ज़ीरो इमिशन’, ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे अभियानों का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य सरकार भी इन्हीं मूल्यों को आत्मसात करते हुए कार्य कर रही है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष देशभर में 108 करोड़ पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
जल स्रोतों के संरक्षण हेतु ठोस पहल: SARRA का गठन
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी (SARRA)’ का गठन किया गया है। इसके माध्यम से अब तक 6,500 से अधिक जल स्रोतों का संरक्षण और 3.12 मिलियन घन मीटर वर्षा जल का संचयन किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है और वाहनों में कूड़ेदान अनिवार्य कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से आह्वान किया कि वे अपने जीवन के विशेष अवसरों पर एक पौधा अवश्य लगाएं और उसकी देखभाल करें, जिससे पर्यावरण संरक्षण को जनांदोलन बनाया जा सके।
कृषि मंत्री गणेश जोशी और वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी दी शुभकामनाएं
कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड में श्रावण मास में हरेला पूजन के उपरांत वृक्षारोपण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो हमारी सांस्कृतिक चेतना और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का प्रमाण है। हरेला पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा करना केवल दायित्व नहीं, बल्कि एक पुनीत कर्तव्य है।
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि लोकपर्व हरेला प्रदेश के 2,389 स्थानों पर मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में हरेला पर्व पर लगाए गए पौधों का सर्वाइवल रेट 80 प्रतिशत से अधिक रहा है। उन्होंने जल स्तर में हो रही गिरावट को गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा कि इसके लिए हमें पौधारोपण एवं जलधाराओं के संरक्षण हेतु निरंतर प्रयास करने होंगे।
इस अवसर पर विधायक श्रीमती सविता कपूर, खजान दास, देहरादून के मेयर सौरभ थपलियाल, मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन, प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु, पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ, प्रमुख वन संरक्षक समीर सिन्हा सहित वन विभाग के अधिकारीगण उपस्थित रहे।
भगवा रंग में रंगी धर्मनगरी, हर-हर महादेव के नारों से गूंजा वातावरण
अब तक 80 लाख से अधिक शिवभक्त लौटे गंतव्य की ओर
हरिद्वार। श्रावण मास की शुरुआत के साथ ही कांवड़ यात्रा ने रफ्तार पकड़ ली है। पहले ही सप्ताह में आस्था का जनसैलाब हरिद्वार से लेकर गंगनहर पटरी और नेशनल हाईवे तक उमड़ पड़ा है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के बीच धर्मनगरी पूरी तरह शिवमय हो गई है। पुलिस प्रशासन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 10 जुलाई से लेकर मंगलवार शाम 6 बजे तक कुल 80 लाख 90 हजार कांवड़ यात्री हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने गंतव्य की ओर लौट चुके हैं।
हालांकि, कांवड़ मेले की औपचारिक शुरुआत 11 जुलाई से मानी जा रही है, लेकिन श्रद्धालु उससे पहले ही हरिद्वार पहुंचने लगे थे। सोमवार शाम 6 बजे से मंगलवार शाम 6 बजे के बीच ही करीब 31 लाख श्रद्धालुओं ने हर की पैड़ी और अन्य घाटों से गंगाजल भरा।
हरिद्वार की सड़कें, गंगनहर किनारे की पटरी और हाईवे शिवभक्तों की कतारों से भर चुके हैं। भगवा वस्त्रधारी शिवभक्तों के “बोल बम”, “हर-हर महादेव” और “बम बम भोले” के जयघोष से संपूर्ण वातावरण गूंज रहा है।
भीड़ को नियंत्रित करने और यातायात व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और प्रशासन पूरी सतर्कता के साथ तैनात है। श्रद्धा और सुरक्षा दोनों को संतुलित रखने की चुनौती को प्रशासन अब तक बखूबी संभाल रहा है।
शिक्षक संघ ने कहा—सभी धर्मों का सम्मान जरूरी, किसी एक ग्रंथ को थोपना अनुचित
देहरादून। उत्तराखंड में प्रार्थना सभा के दौरान स्कूलों में भगवद गीता के श्लोक पढ़ाने के निर्देश का एससी-एसटी शिक्षक संघ ने विरोध किया है। संघ का कहना है कि यह कदम भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ है और शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक तटस्थता को कमजोर करता है।
शिक्षा निदेशक को सौंपा गया ज्ञापन
एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखते हुए इस निर्देश को तत्काल वापस लेने की मांग की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 28(1) के अनुसार, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों को प्रार्थना सभा में अनिवार्य रूप से पढ़ाना न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि इससे विद्यार्थियों के बीच भेदभाव की भावना भी पनप सकती है।
समावेशी शिक्षा पर असर
एसोसिएशन का तर्क है कि सरकारी स्कूलों में सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के छात्र अध्ययन करते हैं, ऐसे में किसी एक धर्म विशेष के ग्रंथ को प्राथमिकता देना शिक्षा की समावेशी प्रकृति के विपरीत है। संघ ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक सोच और समानता को बढ़ावा देना होना चाहिए, न कि धार्मिक मान्यताओं को थोपना।
निर्देश वापसी की मांग
शिक्षक संघ ने चेतावनी दी कि यदि इस आदेश को जल्द वापस नहीं लिया गया, तो वह राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर होंगे। संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों का अपमान नहीं, बल्कि संविधान सम्मत और समावेशी शिक्षा प्रणाली की रक्षा करना है।
देहरादून। प्रदेश के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने आज लोकपर्व हरेला के पावन अवसर पर अपने शासकीय आवास पर अपनी धर्मपत्नी निर्मला जोशी के साथ फलदार वृक्ष का रोपण किया। इस अवसर पर मंत्री ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।
कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि हरेला का अर्थ हरियाली से जुड़ा है और यह पर्व हरियाली, समृद्धि एवं नई ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि परंपरागत मान्यताओं के अनुसार हरेला जितना बड़ा होगा, किसान की फसल उतनी ही अधिक फलदायी होगी। उन्होंने कहा कि हरेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा पर्व है, जो हमें हरियाली, पशुपालन और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है। मंत्री ने कहा कि श्रावण मास में हरेला पूजन के उपरांत वृक्षारोपण की परंपरा उत्तराखंड की विशेष पहचान रही है।
कृषि मंत्री ने इस अवसर पर लोगों से आह्वान किया कि “एक वृक्ष लगाना दस बच्चों के समान है”, इस भावना के साथ सभी को पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश भर में विभिन्न संस्थाओं, स्वयंसेवी संगठनों (NGO) और आम जनमानस की सहभागिता से फलदार पौधों का रोपण किया जा रहा है।
हमारे लोक पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत की है पहचान
हरेला पर्व हमें अपनी परम्पराओं से जुड़े रहने का देता है संदेश- मुख्यमंत्री
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामना दी है। इस अवसर पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने के साथ लोक संस्कृति एवं पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। हरेला पर्व को सुख, समृद्धि एवं सौहार्द का प्रतीक बताते हुये मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पर्व हमें अपनी परम्पराओं से जुड़े रहने का भी संदेश देता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला पर्व हमें अपनी धरती और पर्यावरण की देखभाल के प्रति भी प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध और स्वस्थ वातावरण देने के लिए वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड अपने धर्म, अध्यात्म और संस्कृति के लिए विख्यात है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता हर किसी को आकर्षित करती है। इसलिए, पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। हमें अपने जल स्रोतों, नदियों और गदेरों के पुनर्जीवन और संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे।
उन्होंने कहा कि हमारे लोक पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं। राज्य की समृद्ध लोक संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए हम सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करने होंगे। तभी हम अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक जड़ों से जुड़े रह पाएंगे और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचा पाएंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विजन के अनुरूप हरेला पर्व के साथ ही एक पेड़ माँ के नाम अभियान के तहत संपूर्ण प्रदेश में वृहद स्तर पर यह पौधरोपण अभियान चलाया जायेगा। इस अभियान के तहत सार्वजनिक स्थानों, वनों, नदियों, गाड, गदेरों के किनारे, स्कूलों, कॉलेज, विभागीय परिसर, सिटी पार्क, आवासीय परिसर में पौधरोपण किया जाएगा। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों, छात्रों, विभागीय कर्मियों, एनसीसी, एनएसएस के साथ ही आमजनमानस की सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस वर्ष हरेला पर्व पर पूरे प्रदेश में एक ही दिन में 05 लाख से अधिक पौधे रोपे जाएंगे। जिसमें से गढ़वाल मंडल में 03 लाख और कुमाऊं मंडल में 02 लाख पौधे रोपण का लक्ष्य रखा गया है। इस बार हरेला का त्योहार मनाओ, धरती मां का ऋण चुकाओ और एक पेड़-माँ के नाम की थीम पर यह पौधरोपण आयोजित किया जाएगा। पूरे माह इस पर्व के तहत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इस पौधरोपण अभियान की सफलता में ग्रामीणों से लेकर स्कूली छात्र और विभिन्न विभागों की सहभागिता भी सुनिश्चित की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने सभी प्रदेशवासियों का आह्वान किया कि वे अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दें। उन्होंने इस दिशा में जन सहभागिता को महत्वपूर्ण बताते हुए सभी सामाजिक संगठनों और संस्थाओं से भी सहयोग की अपील की है।
बोले– सिर्फ सरकारी प्रयास नहीं, जनभागीदारी से ही होगा 2025 तक टीबी पर पूर्ण नियंत्रण
देहरादून। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने मंगलवार को राजभवन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित ‘‘टीबी मुक्त भारत अभियान’’ के अंतर्गत पुरस्कार समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने टीबी रोगियों को गोद लेकर नियमित निगरानी और मानसिक संबल प्रदान कर रोगियों के स्वस्थ होने में मदद करने वाले 13 निःक्षय मित्रों को सम्मानित किया। वहीं उन्होंने 13 ट्रीटमेंट सपोटर्स को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया, जिन्होंने जमीनी स्तर पर कार्य कर, रोगियों के उपचार की नियमित मॉनिटरिंग और उनकी समुचित देखभाल की।
इस दौरान राज्यपाल ने टीबी उन्मूलन की दिशा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले जनपदों देहरादून, चम्पावत और रुद्रप्रयाग को भी सम्मानित किया। उन्होंने टीबी रोग से स्वस्थ हुए ‘टीबी चैंपियनों‘‘ को भी सम्मानित किया और गोद लिए गए टीबी मरीजों को पोषण किट प्रदान की।
राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि टीबी उन्मूलन केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए जनभागीदारी और सामूहिक संकल्प आवश्यक है। उन्होंने कहा कि टीबी से स्वस्थ हुए लोग असली योद्धा हैं और समाज के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इस अवसर पर राज्यपाल ने टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी लोगों, स्वयं सेवी संस्थाओं और स्वास्थ्य विभाग के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इन सभी लोगों की मेहनत से हमारा प्रदेश अग्रणी राज्यों में है।
राज्यपाल ने बताया कि उन्हें भी निःक्षय मित्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, और अब तक उन्होंने 75 टीबी रोगियों को गोद लिया है, जिनमें से 62 मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं। उन्होंने समाज के सामर्थ्यवान व्यक्तियों से अपील की कि वे भी आगे आकर निःक्षय मित्र बनें और इस अभियान को गति दें। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से आग्रह किया कि जानकारी के अभाव में कोई भी रोगी उपचार से वंचित न रहे। यह सुनिश्चित किया जाए कि अभियान अंतिम छोर तक पहुंचे और प्रत्येक रोगी को समुचित देखभाल एवं उपचार मिल सके। राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि सभी के सम्मिलित प्रयासों से प्रदेश को 2025 में टीबी मुक्त बनाने में सफल होंगे।
इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि 2025 तक उत्तराखण्ड को पूरी तरह से टीबी मुक्त बनाना और इस राष्ट्रीय प्रयास में अग्रणी भूमिका निभाना है। हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसके लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि टीबी मुक्त अभियान को 01 अगस्त, 2025 से राज्य भर में एक व्यापक अभियान शुरू किया जाएगा। इस अभियान के तहत सभी नगर पंचायतों के वार्डों और नगर निगमों के सभी पार्षद वार्डों में विशेष शिविर (कैंप) लगाए जाएंगे। इन शिविरों का उद्देश्य समुदाय स्तर पर टीबी के मामलों की पहचान करना, उनका उपचार सुनिश्चित करना और जागरूकता फैलाना होगा।
कार्यक्रम में सचिव राज्यपाल रविनाथ रामन, सचिव स्वास्थ्य डॉ. आर. राजेश कुमार, अपर सचिव राज्यपाल श्रीमती रीना जोशी, महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ. सुनीता टम्टा, निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना, चेयरमैन रेडक्रॉस सोसायटी डॉ. नरेश चौधरी सहित स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी व मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राएं मौजूद रहें।
सम्मानित होने वाले लोगों की सूची-
सम्मानित होने वाले निःक्षय मित्र में हिमालयन वेलनेस कम्पनी के डॉ. फारुख, हंस कल्चरल फाउंडेशन की सुश्री पूनम किमोठी, देहरादून के मुकेश मोहन, पंकज गुप्ता, साईं इंस्टीट्यूट की डॉ. आरती, रेडक्रॉस सोसायटी की सुश्री कल्पना बिष्ट, कनिष्क हॉस्पिटल की डॉ. रितु गुप्ता, आस संस्था की सुश्री हेमलता बहन, स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी के राजीव बिजल्वाण, देव भूमि स्वराज फाउंडेशन के इन्दर रमोला, महिला जिजीविषा मंच देहरादून की सुश्री डॉली डबराल, लायंस क्लब के रजनीश गोयल और सुश्री ममता थापा शामिल हैं।
वहीं ट्रीटमेंट सपोर्टर में कम्युनिटी वॉलिंटियर सुप्रिया, जोया, कनक एवं आशा कार्यकत्रियों में नीरज, नीरा कंडारी, मीना काला, गंगा भंडारी, सरोज, नीरू जैन, पूजा जोशी, शिखा अरोड़ा, निर्मला जोशी एवं सचि तिवारी को सम्मानित किया गया।