ई-अदालत परियोजना के तहत देश भर के लगभग 2927 अदालत परिसरों को अभी तक तीव्र गति वाले वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) से जोड़ा जा चुका है। परियोजना के तहत 2992 अदालत परिसरों को तीव्र गति WAN से जोड़े जाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसका 97.86 प्रतिशत हासिल किया जा चुका है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने शुक्रवार को बताया कि विधि विभाग ने BSNL के साथ मिलकर शेष अदालत परिसरों को भी संपर्क मुहैया कराने के काम में संलग्न है।
इन अदालत परिसरों को ऑप्टिक फाइबर केबल (OFC), रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF), वैरी स्मॉल अपरचर टर्मिनल (V-SAT) इत्यादि से जोड़ा जाना था। मई, 2018 में इन सभी परिसरों को मैनेज्ड एमपीएलएस–वीपीएन सेवा से जोड़ने का कार्य BSNL को सौंपा गया था।
ई-अदालत परियोजना के तहत आने वाले बहुत से अदालत परिसर ऐसे दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं जहां संपर्क उपलब्ध कराने के लिए स्थलीय केबल का उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे इलाकों को तकनीकी तौर पर नहीं जुड़ने योग्य (TNF) कहा जाता है। विधि विभाग ने इस डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने के लिए इन TNF स्थलों पर RF और V-SAT आदि जैसे वैकल्पिक माध्यमों से संपर्क उपलब्ध कराया।
कोविड-19 महामारी के माहौल में संपर्क का महत्व बहुत ज्यादा है, क्योंकि अदालतों पर मामलों की ऑनलाइन सुनवाई करने का बहुत भारी दबाव पड़ रहा है। विधि विभाग ने इसके लिए बीएसएनएल, एनआईसी, ई-कमेटी आदि के प्रतिनिधियों की एक समिति का गठन किया है, जो इस बदले हुए माहौल में बैंडविड्थ की आवश्यकता की समीक्षा करेगी।
विधि विभाग ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के साथ मिलकर डिजिटल अंतरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है और न्याय तंत्र में बदलाव तथा आम नागरिक की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।
सरकार ने ई-अदालत परियोजना के पहले चरण के दौरान 14,249 जिला एवं अधीनस्थ अदालतों को कम्प्यूटरीकृत करने की मंजूरी दी थी। ई-अदालत परियोजना का लक्ष्य वादी, वकीलों और न्याय तंत्र को देश भर की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के जरिए न्याय तक उचित पहुंच बनाने के लिए सेवाएं मुहैया कराना था।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने देश भर की सभी अदालतों के पूर्ण कम्प्यूटरीकरण के जरिए भविष्य में और अधिक ICT पहुंच बढ़ाने की परिकल्पना के साथ दूसरे चरण को जुलाई, 2015 में मंजूरी दी थी। यह कार्य 1670 करोड़ रुपये की लागत से किया जाना था और इसके तहत 16845 अदालतों का कम्प्यूटरीकरण किए जाने का लक्ष्य रखा गया था।