यौन अपराध पीड़ित बच्चों को मिलेगा भावनात्मक और कानूनी सहारा, हर जिले में बनाए जा रहे सहायक पैनल..
उत्तराखंड: सरकार ने यौन अपराधों का शिकार हुए बच्चों के लिए एक सार्थक और मानवीय कदम उठाया है। अब ऐसे बच्चों को अस्पताल में इलाज से लेकर अदालत में पूरी कार्यवाही तक भावनात्मक सहायता प्रदान करने के लिए विशेष सहायक उपलब्ध कराए जाएंगे। राज्य सरकार का यह निर्णय POCSO एक्ट के तहत पीड़ित बच्चों को बेहतर संरक्षण और सहयोग देने के उद्देश्य से लिया गया है। सहायक की भूमिका होगी कि वह बच्चे के साथ मानसिक सहारा, संवाद और विश्वास का वातावरण बनाए रखे, जिससे बच्चा प्रक्रिया के दौरान असहज या भयभीत न महसूस करे। इस व्यवस्था के तहत पीड़ित बच्चों को चिकित्सा, पुलिस प्रक्रिया, न्यायिक बयान, और कोर्ट ट्रायल के दौरान एक प्रशिक्षित, सहानुभूतिपूर्ण व्यक्ति का साथ मिलेगा जो उसे भावनात्मक रूप से संभाल सके।
इसके लिए महिला एवं बाल कल्याण विभाग सभी जिलों में सहायकों का पैनल तैयार कर रहा है। विभाग के निदेशक प्रशांत आर्य का कहना हैं कि यह पहल खासकर उन बच्चों के लिए है जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आते हैं। अक्सर उनके अभिभावक अस्पताल, पुलिस और अदालत की प्रक्रिया को समझ नहीं पाते, जिससे पीड़ित को समुचित मदद नहीं मिल पाती। अब सहायक इन सभी प्रक्रियाओं में बच्चे और उसके परिवार को मार्गदर्शन और सहारा देंगे।सहायकों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाएगा कि वे संवेदनशीलता के साथ बच्चे की मानसिक स्थिति को संभाल सकें, और उसे न्याय प्रणाली से डरने की बजाय उससे सहयोग करने में सहज अनुभव हो। यह पैनल बच्चों को सिर्फ भावनात्मक सहयोग ही नहीं देगा, बल्कि उनके लिए आवश्यक चिकित्सा, पुलिस रिपोर्टिंग, कानूनी बयान, और अदालत में उपस्थिति जैसी प्रक्रियाओं में भी सहायक भूमिका निभाएगा।
वह पूरी प्रक्रिया में सक्रिय नहीं रह पाते या पर्याप्त समय नहीं दे पाते। इसलिए सरकार ने पॉक्सो पीड़ित सभी बच्चों को जिले की ओर से सहायक उपलब्ध कराने का फैसला किया है, जो चिकित्सा सुविधाएं दिलाने से लेकर पुलिस जांच और फिर अदालती कार्यवाही पूरी होने तक पीड़ित बच्चे का साथ देंगे। सहायकों की नियुक्ति के लिए जनपदों में विज्ञापन निकाले जा रहे हैं।
चार चरणों में मिलेगा मानदेय..
विभाग की उप मुख्य परिवीक्षा अधिकारी अंजना गुप्ता का कहना हैं कि सहायक को चार चरणों में कुल 20 हजार रुपये का मानदेय दिया जाएगा। प्रथम चरण में नियुक्ति और रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर दूसरे चरण में साक्ष्य दर्ज होने पर तीसरे चरण में केस की मासिक रिपोर्ट देने पर और अंतिम चरण में अदालत का फैसला आने पर पांच-पांच हजार रुपयों का भुगतान किया जाएगा।
हर जिले में बनेगा पैनल, यह योग्यता होगी..
हर जिले में सहायकों का पैनल बनाकर अलग-अलग केसों की जिम्मेदारी दी जाएगी, हालांकि प्रत्येक सहायक एक समय में अधिकतम पांच केस का संचालन कर सकेगा। सहायकों में उन युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी, जो गैर-राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता हों। उनके पास सामाजिक कार्य, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान या बाल विकास में स्नातकोत्तर डिग्री हो या फिर बाल शिक्षा व विकास में तीन वर्ष के अनुभव के साथ स्नातक डिग्री हो। पैनल का चयन जनपद स्तरीय चयन समिति करेगी, जिसकी अवधि तीन साल होगी। संतोषजनक सेवा के आधार पर उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इस कार्य को पार्ट टाइम में कर सकेंगे। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की मॉडल गाइडलाइन्स को उत्तराखंड में अपनाते हुए सहायक व्यक्तियों की नियुक्ति की जा रही है, जो पीड़ित बच्चों को कानूनी प्रक्रिया, भावनात्मक समर्थन और पुनर्वास में मदद करेंगे।