सचिवालय और जिला कारागार सुद्धोवाला ईट राईट कैम्पस घोषित, सीएस ने सौंपा प्रमाण पत्र..
उत्तराखंड: भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, भारत सरकार (एफएसएसएआई) ने उत्तराखण्ड सचिवालय एवं जिला कारागार परिसर सुद्धोवाला को ईट राईट कैंपस घोषित किया है। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सचिव, सचिवालय प्रशासन एवं महानिरीक्षक जेल को भारत सरकार द्वारा निर्गत प्रमाणपत्र सौंपते हुए इस पहल को महत्वपूर्ण, सराहनीय एवं कारगर बताया।
उत्तराखंड सचिवालय ईट राईट कैंपस के रूप में प्रमाणीकृत देश के चुनिन्दा सचिवालय परिसरों में शामिल हो गया है। सुरक्षित स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय दृष्टि से बेहतर भोजन उपलब्ध कराने एवं स्वच्छता के मानकों का पालन सुनिश्चित कराने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा राज्य सचिवालय परिसर एवं जिला कारागार परिसर को ईट राईट कैंपस का प्रमाणपत्र निर्गत किया गया है।
मुख्य सचिव ने की सचिवालय प्रशासन की सराहना..
राज्य सचिवालय स्थित सभागार में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में इस सम्बन्ध में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर मुख्य सचिव द्वारा भारत सरकार की ओर से निर्गत ईट राईट कैम्पस प्रमाण पत्र को सचिवालय प्रशासन के सचिव दीपेन्द्र चौधरी एवं उपमहानिरीक्षक जेल को प्रदान किया गया। इस महत्वपूर्ण एवं कारगर पहल के लिए मुख्य सचिव ने सचिवालय प्रशासन की सराहना की और कार्यक्रम में मौजूद महानिरीक्षक जेल की ओर से ईट राईट कैंपस प्रमाणीकरण के लिए किए गए प्रयासों की प्रशंसा की।
राधा रतूड़ी ने इस उपलब्धि के लिए सचिवालय परिसर में कार्यशील विभिन्न खान-पान सेवाओं, इंदिरा अम्मा भोजनालय, जी.एम.वी.एन कैन्टीन के फूड सुपरवाइजर को अपनी ओर से शुभकामनाएं दी। उनका कहना हैं कि उन्हें सुरक्षित एवं स्वच्छ खाद्य पदार्थ के मानक अनुसार अपनी सेवाऐं बनाए रखने की कसौटी पर प्रतिदिन खरा उतरना चाहिए।
सीएम धामी ने अधिकारियों को दिए ये निर्देश..
उत्तराखंड: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को सचिवालय में सचिव समिति की बैठक में प्रतिभाग किया। सीएम धामी राज्य के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने सचिव समिति की बैठक में प्रतिभाग किया। तीन घण्टे तक चली इस बैठक में राज्यहित से जुड़े विभिन्न विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। सीएम धामी का कहना हैं कि राज्य हित से जुडी योजनाओं के नीति-निर्धारण और सरकार द्वारा संचालित जनकल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पंहुचाने में सचिवगणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सचिव सरकार और जनता के बीच सेतु का कार्य करते हैं। शासन और प्रशासन एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। राज्य के हर क्षेत्र में विकास के साथ ही, लोगों का जीवन स्तर उठाने के लिए हम सबको सामुहिक प्रयास करने होंगे। लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाये बिना राज्य के समग्र विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है।
उनका कहना हैं कि योजनाओं के बेहतर निर्माण के साथ ही उनके सफल क्रियान्वयन के लिए पूरा एक्शन प्लान बनाया जाना चाहिए। सरकार की योजनाओं और निर्णयों का प्रभाव करोड़ों लोगों के जीवन पर पड़ता है। इसलिए योजनाओं और निर्णयों में राष्ट्रहित और जनहित पहली प्राथमिकता में होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने सचिवों को निर्देश दिए कि विभागों के रिक्त पदों का अधियाचन शीघ्र आयोगों को भेजे जाएं। सुनिश्चित कार्ययोजना के साथ आगामी दो सालों में रिक्त पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण की जाए।
सीएम ने कहा कि कार्यों और योजनाओं के निर्माण में नवाचार पर विशेष ध्यान दिया जाए और आधुनिक तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल किया जाए। जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए जनहित से जुड़े कार्यों में सही रास्ता निकालने की सबके मन में भावना होनी चाहिए। जन अपेक्षाओं के अनुसार हम उनकी समस्याओं के समाधान के लिए अपने कार्यक्षेत्र में क्या विशिष्ट कार्य कर सकते हैं, इस दिशा में सभी अधिकारी पूरे मनोयोग से कार्य करें। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि गुड गवर्नेंस की दिशा में विशेष ध्यान दिया जाए। नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्यों में जिन इंडिकेटरों में हमें सुधार की आवश्यकता है, उन पर विशेष ध्यान दिया जाए। जिन इन्डीकेटर पर राज्य में अच्छा कार्य हुआ है, उनको बनाये रखना हमारे सामने चुनौती भी होगी।
सीएम ने बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिये कि सचिव समिति की बैठक में राज्यहित से जुड़े विषयों की नियमित समीक्षा की जाए। श्रेष्ठ उत्तराखण्ड के निर्माण के लिए सभी को एकजुट होकर कार्य करना है। उन्होंने कहा कि आगामी एक वर्ष के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं का एक रोस्टर प्लान बनाया जाए। जिसमें ऐसी योजनाएं शामिल हों, जो व्यापक जनहित वाली हों। जनपदों के प्रभारी सचिव समय-समय पर जनपदों में जाकर योजनाओं की नियमित समीक्षा करें और विभिन्न व्यवस्थाओं में सहयोग करें।
उत्तराखंड विधानसभा भर्ती विधानसभा सचिव में भर्ती पर मनमानी नहीं होगी..
उत्तराखंड: विधानसभा सचिवालय में अब कर्मचारियों की भर्ती में मनमानी नहीं चलेगी। इसे संबोधित करने के लिए विधान सभा भर्ती और सेवा विनियमों में एक संशोधन प्रस्तावित कर मंजूरी के लिए शासन को भेजा गया है। विधानसभा सचिवालय में रिक्त पदों को भरने के लिए लोक सेवा आयोग एवं अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से कराने का प्रावधान किया जा रहा है। इसके साथ ही जरूरत के हिसाब से पदों का ढांचा भी निर्धारित किया जाएगा।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने नियम विरूद्ध तदर्थ नियुक्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठाया था। जिसमें 2016 से 2021 में तदर्थ आधार पर नियुक्त 228 कर्मचारियों की विशेषज्ञ जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सेवाएं समाप्त की गई। भविष्य में विधानसभा सचिवालय में होने वाली नियुक्तियां नियम व पारदर्शिता हो। इसके लिए स्पीकर ने नियमावली में संशोधन की पहल की थी। विधानसभा सचिवालय में भर्ती एवं सेवा नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है।
नियमावली में ये किए जा रहे प्रावधान
नियमावली में सीधी भर्ती के साथ ही पदोन्नति के नियमों में भी बदलाव हो रहे हैं। इसमें विधानसभा सचिव पद के लिए न्यायिक सेवा अधिकारी या विधानसभा व संसद के किसी अनुभवी अधिकारी को प्रतिनियुक्ति तैनात करने का प्रावधान किया जा सकता है। तदर्थ आधार पर नियुक्तियों के बजाय लोक सेवा आयोग, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से खाली पदों पर भर्ती की जाएगी। विधानसभा को प्रशासकीय विभाग बनाने के प्रावधान को समाप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही नियमावली में स्पीकर को विशेष दशा में कर्मचारियों के अनुभव व शैक्षिक योग्यता के आधार पर छूट देने, छह महीने में पद सृजित करने की व्यवस्था को खत्म किया जाएगा। विधानसभा सचिवालय में जरूरत के अनुसार पदों का युक्तिकरण का ढांचा बनाया जाएगा।
2011 में बनीं थी नियमावली..
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश विधानसभा भर्ती एवं सेवा नियमावली 1974 लागू थी। 2011 में उत्तराखंड विधानसभा भर्ती एवं सेवा नियमावली बनाई गई। वर्ष 2015 व 2016 में नियमावली में कई संशोधन किए गए थे। नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है। शासन की ओर से नियमावली को कैबिनेट में रखा जाएगा। मंजूरी मिलने के बाद ही नियमावली लागू की जाएगी।
आउटसोर्स कंपनी द्वारा अजय कोठियाल को मिली चौकीदार की नौकरी..
उत्तराखंड: आउटसोर्स कंपनी द्वारा बेरोजगारों के साथ किस तरह से छलावा किया जा रहा है, इसका जीता जागता उदाहरण आप देख लीजिये। आपको बता दे कि आज सचिवालय में अजय कोठियाल नियुक्ति लेने पहुंच गए। उत्तराखण्ड में आउटसोर्सिंग एजेंसियों से धड़ल्ले से अवैध नियुक्ति चल रही हैं। इसका खुलासा करने के लिए कर्नल अजय कोठियाल ने गजब का तरीका अपनाया।
उन्होंने महिला एवं बाल विकास विभाग में ए स्क़वायर कम्पनी के जरिये नौकरी के लिए एप्लाई किया, तो उनको भी कम्पनी ने चौकीदार की नौकरी दे दी। इसके लिए उन्होंने कम्पनी को 25 हजार रुपये चुकाए। ये पैसे निर्मल सेवा समिति के खाते में जमा किये गए। करनल कोठियाल बेरोजगारों के साथ उत्तराखंड सचिवालय पहुंचे। कर्नल कोठियाल का कहना हैं कि बेरोजगारों के साथ मजाक किया जा रहा है और उनसे उनका हक छीना जा रहा है।
आउटसोर्स कंपनी ने कर्नल कोठियाल को चंपावत में गार्ड की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर भेजा है। उन्होंने कहा कि मुझे चौकीदार की नौकरी दी है, अब में युवाओं के हक के लिए चौकीदार बनूंगा। कर्नल ने कहा कि बेरोजगारों के साथ नौकरी के नाम पर कमीशन खोरी और अवैध पैसा वसूला जा रहा है। उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी स्कैम के बाद आप ने बीजेपी सरकार में आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा अवैध वसूली का खुलासा किया है।
कोरोना से बढ़ती मौतों को देखते हुए राज्य सरकार ने जनता से कोविड के लक्षण दिखते ही उपचार शुरू करने की अपील की है। साथ ही राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि जो भी टेस्ट करवाएगा, उसे तुरंत दवाई दे देंगे। रिजल्ट का इंतजार नहीं किया जाएगा। सरकार के अनुसार यह व्यवस्था हर जनपद में लागू हो गई है और कोविड किट बंटना शुरू हो गई है।
प्रदेश के मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने जनता से अपील की कि जब भी लक्षण दिखना शुरू हो, तो तत्काल उपचार करवाएं। उन्होंने कहा कि तत्काल उपचार शुरू होने से कोविड के मामलों और मौत के आंकड़ों में कमी आ सकती है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को आईसीयू की जरूरत नहीं है और अगर वे इसका उपयोग कर रहे हैं, उनकी निगरानी के लिए एक समिति गठित की गई है, जो हाॅस्पिटल्स की मॉनिटरिंग करेगी।
सोमवार को सचिवालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य सचिव ने बताया कि प्रदेश को एक लाख वैक्सीनेशन प्रतिदिन के हिसाब से आवश्यकता है। हमने भारत सरकार को लिखा है कि राज्य सरकार अगर बाहर से सीधे वैक्सीन आयात कर सकती है तो उसके लिए हमें अनुज्ञा दी जाए। बहुत जल्द हम मोबाइल टेस्टिंग वैन भी शुरू करेंगे, जो दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में जाकर मरीजों की पहचान करेगी और वहीं उनकी जांच करेगी। इससे उन्हें उपचार के लिए शहर आने की आवश्यकता नहीं होगी।
सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा एक साल में लगातार स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाई गई हैं। राज्य में मार्च 2020 में ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड्स 673 थे जो कि वर्तमान में 5500 से अधिक हैं। इसी प्रकार आईसीयू 216 के मुकाबले, अब 1390 है। वेंटिलेटर्स 116 से बढ़ कर अब 876 हो गये हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर्स 1193 थे जो कि वर्तमान में 9900 हो गये हैं। ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर्स 275 के मुकाबले अब 1293 हैं। वर्तमान में एंबुलेंस 307 और 64 टूनाड मशीन हैं। वहीं मार्च 2020 में केवल एक टेस्टिंग लैब थी, वर्तमान मे 10 सरकारी लैब और 26 प्राइवेट लैब हैं।
उन्होंने बताया कि हाॅस्पिटल्स को निर्देश दिए हैं कि ऑक्सीजन बेड की उपलब्धता की स्थिति को लगातार अपडेट करते रहें। पब्लिक को परेशानी न हो, इसके लिए अस्पतालों की वेबसाइट पर लिखे गए सभी पीआरओ के नंबर भी अपडेट किए जाने चाहिए। हमने एक टास्क फोर्स का भी गठन किया है, जिसमें डीएम, पुलिस, मेडिकल डिपार्टमेंट के स्पेशलिस्ट होंगे, जो सभी शिकायतों पर संज्ञान लेकर आगे कार्रवाई करेंगे।
प्रभारी सचिव पंकज पांडे ने बताया कि टेस्टिंग और रिजल्ट में अंतर आने को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि जो भी टेस्ट करवाएगा, उसे तुरंत दवाई दे देंगे, उसके लिए रिजल्ट का इंतजार नहीं करेंगे। यह व्यवस्था हर जनपद में लागू हो गई है और किट बंटना शुरू हो गई है। यह कार्य चरणबद्ध तरीके से चल रहा है। राज्य सरकार का प्रमुख लक्ष्य मौत के आंकड़ों को कम करना है।
उन्होंने बताया कि रेमडिसिविर के भाव भारत सरकार ने तय किए हैं। जितने रूपए में सरकार को यह उपलब्ध हो रहा है, उतने ही रूपयों में निजी अस्पतालों को भी ट्रांसफर हो रहा है। हमने निजी अस्पतालों को भी निर्देश दिए हैं कि जनता को भी उतने ही रूपए में रेमडिसिविर उपलब्ध करवाए जाएं, जितने में हमने उन्हें दिया है।
कोरोना वायरस संक्रमण के चलते सचिवालय में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के निर्देश पर संक्रमण में आयी कमी के बाद सरकारी अथवा व्यक्तिगत कार्य से सचिवालय में आने वाले बाहरी आगन्तुकों व मीडियाकर्मियों को पूर्व की भांति कतिपय प्रतिबन्धों के साथ सचिवालय में प्रवेश हेतु अनुमति प्रदान की गई है।
कोरोना वायरस संक्रमण के दृष्टिगत इसके रोकथाम एवं बचाव हेतु सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा गैर सरकारी बाहरी व्यक्तियों और मीडियाकर्मियों का सचिवालय में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था।
एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार सचिवालय में आने वाले आगुंतकों द्वारा मास्क/ फेस कवर का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाएगा। बगैर मास्क/फेस कवर के आगन्तुक को सचिवालय परिसर में प्रवेश की अनुमति नही दी जाएगी।
सचिवालय के मुख्य सुरक्षा अधिकारी का दायित्व होगा कि वह अपने अधीन सुरक्षा कर्मियों को निर्देश दें कि वे आगन्तुक को स्पष्ट अवगत कराएं कि जिस अधिकारी से भेंट हेतु प्रवेश पत्र दिया गया है उसी अधिकारी से भेंट करें। सचिवालय में अन्य अधिकारियों के कार्यालय में अनावश्यक प्रवेश न करें, शासकीय कार्यों में व्यवधान उत्पन्न न हो।
इस सम्बन्ध में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा जारी कार्यालय ज्ञाप में यह भी स्पष्ट किया गया है कि आगान्तुक पास जारी होने के समय से दो घण्टे की अवधि से अधिक समय तक सचिवालय परिसर में नहीं रहेंगे।
हड़ताली प्रदेश की छवि बना चुका उत्तराखंड वर्तमान में उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्प्लायज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष व सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी के विरुद्ध जांच के विरोध में कर्मचारी आंदोलन से जूझ रहा है। जोशी के विरुद्ध शासन ने बिना सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के मीडिया में राज्य सरकार तथा उसकी नीतियों का विरोध करने के आरोप में जांच बैठायी है। जोशी पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने पदीय कर्तव्यों एवं दायित्वों से इतर जाकर प्रदेश सरकार पर टिप्पणी व वक्तव्य दिए हैं। इन आरोपों के क्रम में शासन ने उनके विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत कार्रवाई करते हुए आरोप पत्र जारी किया है और अपर सचिव, गृह के पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी कृष्ण कुमार वीके को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा पहली सितम्बर को जारी इस आदेश में जांच अधिकारी को एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सचिवालय प्रशासन विभाग को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश के जारी होने के बाद से प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन आंदोलनरत हैं। कर्मचारी संगठनों की और से ‘उग्र आंदोलन’ और ‘आर-पार की लड़ाई’ जैसी धमकियां प्रदेश सरकार को दी जा रही हैं। कर्मचारियों ने गत दिवस इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से गुहार लगाई थी। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव ओम प्रकाश को इस मामले को देखने के निर्देश दिए। मुख्य सचिव सोमवार को प्रकरण से संबंधित पत्रावलियों को देखेंगे और कर्मचारी संगठनों से बातचीत करेंगे। मुख्य सचिव इस मामले में क्या निर्णय लेंगे, यह सोमवार को ही पता चलेगा।
मगर, दीपक जोशी प्रकरण के बहाने कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब बात-बेबात में आंदोलन पर उतारू रहने वाले कर्मचारी संगठनों और कर्मचारियों की छोटी-मोटी व जायज समस्याओं की अनदेखी करने वाले नौकरशाहों को देना ही चाहिए। इन सवालों पर बात करने से पहले यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। रिपोर्ट वर्ष 2016 में देश भर में हुए विभिन्न आंदोलनों पर आधारित थी। रिपोर्ट में आंदोलनों के मामले में उत्तराखंड ने देश के बड़े राज्यों को पछाड़ कर पहले स्थान पर कब्जा जमा लिया था। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों के ताबड़तोड़ आंदोलन ने राज्य को देश में पहले स्थान पर पहुंचा दिया था। कर्मचारियों के आंदोलन ने राजनीतिक व छात्र आंदोलनों को भी कोसों दूर छोड़ दिया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में उत्तराखंड के कर्मचारी सर्वाधिक असंतुष्ट दिख रहे थे। यह आकड़ें भले वर्ष 2016 के हों। मगर परिस्थितियों में आज भी कोई अंतर नहीं है।
अब सवालों की बात करते हैं। शासन ने दीपक जोशी के विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत जाँच शुरू की है। यह नियमावली सरकारी कार्मिकों हेतु सरकारी सेवक के तौर पर उन्हें ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के साथ पदीय कर्तव्यों के निर्वहन के लिए एक ‘आचार संहिता’ है। आम तौर पर नियमावली के अधिकांश प्राविधानों का न तो कार्मिक पालन करते हैं और न ही सरकार इस मामले में सख्ती बरतती है। शासन ने जोशी को नियमावली के तमाम नियमों के तहत आरोप पत्र जारी किया है। जिसके बचाव में कर्मचारी संगठनो की और से यह तर्क दिया जा रहा है कि जोशी ने एक कर्मचारी संगठन के नेता के रूप में अपनी अपने वक्तव्य दिए हैं और एक संगठन के नेता के रूप में उन्हें यह अधिकार हासिल है।
मगर, ऐसे तर्क देने वालों से ये सवाल पूछा जाना जरुरी है कि क्या कर्मचारी नेता होने के नाते किसी को भी अपनी मांगों या समस्याओं से इतर जाकर कुछ भी बोलने का अधिकार मिल जाता है ? शासन द्वारा जोशी को दिए गए आरोप पत्र में क्या-क्या बिंदु शामिल किये गए हैं, यह पता नहीं चल सका है। मगर उनका उत्तराखंड को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर दिया गया बयान काफी चर्चाओं में रहा था। यह बयान सीधे-सीधे कर्मचारी आचरण नियमावली के बिलकुल विपरीत तो है ही, साथ ही यह भी सवाल खड़ा कर रहा है की ऐसे बयानों का कर्मचारी संगठनों की मांग से क्या सम्बन्ध है? अथवा यह बयान किसी राजनीति से प्रेरित से है ?
प्रदेश में कर्मचारी संगठनों की बात की जाए तो कई प्रमुख कर्मचारी संगठनों में सेवानिवृत कर्मचारी कमान संभाले हुए हैं। यह कर्मचारी संगठनों के लिए तय मानकों के विपरीत है। मगर इसके बावजूद लगातार ऐसा चल रहा है तो इसके पीछे क्या कारण है ? क्या यह कर्मचारी संगठनों की मंशा पर सवाल उठाने के लिए काफी नही है ? कर्मचारी संगठन आंदोलनों के बल पर प्रदेश की सरकारों को वोट बैंक के दवाब में लेकर अपनी जायज-नाजायज मांगों को मनवाने में भले ही सफल हो जाते हों। मगर उनकी हड़ताल पर हड़ताल से प्रदेश के विकास पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है, उसकी भरपाई शायद ही कभी हो सकेगी। ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है कि हड़ताली प्रदेश की छवि से कब मुक्त होगा उत्तराखंड ?
बहरहाल, प्रदेश में कर्मचारियों के लगातार आंदोलन के पीछे अफसरशाही भी कम दोषी नहीं है। उदाहरण के तौर पर पदोन्नति की बात की जाए। अफसरों की पदोन्नति में एक दिन का भी विलंब नहीं होता है। इसके विपरीत तमाम कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत हो जाते हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति की फाइल विभागों व सचिवालय की अंधेरी गलियों में गुम हो जाती हैं। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि यदि अधिकांश कर्मचारियों को तय समय पर पदोन्नति दे दी जाए, तो इससे सरकार पर किसी प्रकार का वित्तीय भार भी नहीं पड़ता है, क्योंकि अधिकांश कार्मिक पदोन्नति पर जाने वाले पद के अनुरूप वेतन ले रहे होते हैं। उनके लिए पदोन्नति एक सम्मान होता है, जो कार्मिकों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है।