उत्तराखंड (Uttarakhand) भाजपा (BJP) के प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय ने पार्टी के भीतर एक नई पहल शुरु की है। विगत दिवस कुमायूं मंडल के विस्तृत भ्रमण के दौरान उन्होंने तमाम स्थानों पर पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठकें लीं। मगर ये बैठकें रुटीन में आयोजित होने वाली बैठकों से अलग थीं। इन बैठकों में कई स्थानों पर भावुक कर देने वाले दृश्य भी देखने को मिले। ऐसे दृश्यों के पीछे बड़ा और स्वाभाविक कारण था।
संगठन मंत्री अजेय ने बैठकों में वर्तमान पदाधिकारियों के साथ-साथ पार्टी के पुराने और बुजुर्ग कार्यकर्ताओं भी आमंत्रित किया था। आमतौर पर पुराने व पद पर न रहने वाले कार्यकर्ताओं को भुला दिया जाता है। उन्हें अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाता है और वे पार्टी में अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं। कई बार ऐसे कार्यकर्त्ता व नेता अपनी पीड़ा जाहिर भी करते हैं। उनकी अपेक्षा मात्र इतनी रहती है कि उनके क्षेत्र अथवा नगर में आ रहे वरिष्ठ नेताओं, निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के आगमन की सूचना उन तक भी पहुंचा दी जाए। ताकि, वो भी उनको मिलने पहुंच सकें और अपनी बात उन तक पहुंचा सके।

अजेय द्वारा वरिष्ठ और पुराने कार्यकर्ताओं को बैठक में बुलाने और उनके हाल-चाल जानने से कई कार्यकर्ता भावुक हो गए। ऐसे कार्यकर्ताओं ने संगठन मंत्री के सामने अपने मन की बात रखी। पुराने अनुभव व संस्मरण भी सुनाए। इस दौरान संगठन मंत्री ने उनके योगदान की चर्चा की और कहा की पार्टी आज जिन ऊंचाइयों तक पहुंची है, उसमें उनके महत्वपूर्ण योगदान को नहीं नकारा जा सकता है। अजेय ने पुराने व बुजुर्ग कार्यकर्ताओं को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। यही नहीं वे कई बुजुर्ग और अस्वस्थ चल रहे कार्यकर्ताओं के घर गए और उनकी कुशल क्षेम भी पूछी। प्रदेश संगठन मंत्री की इस पहल का पार्टी कार्यकर्त्ता सराहना कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि संगठन मंत्री के रुप में अजेय का उत्तराखंड में अभी मात्र एक वर्ष का कार्यकाल हुआ है। वो इससे पूर्व कई वर्षों तक संघ के प्रचारक बतौर उत्तराखंड में ही कार्य कर चुके हैं। उत्तराखंड आने से पहले वे भाजपा की पश्चिम उत्तर प्रदेश इकाई के संगठन मंत्री के पद पर कार्यरत रहे हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आए दिन लोगों पर भालुओं (Bear) के हमले को देखते हुए प्रदेश सरकार दो रेस्क्यू सेंटर बनाएगी। इसके साथ ही किसानों की फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए जंगलों में फलदार पेड़ लगाए जाएंगे।
यह जानकारी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राजधानी देहरादून में वन मुख्यालय में ई-ऑफिस कार्यप्रणाली के शुभारम्भ के लिए आयोजित कार्यक्रम में दी। उन्होंने घोषणा की कि चमोली एवं पिथौरागढ़ में भालुओं के लिए एक-एक रेस्क्यू सेंटर बनाया जाएगा। इसके अलावा बंदरों के लिए चार रेस्क्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि अगले वर्ष हरेला पर्व पर एक करोड़ फलदार वृक्ष लगाए जाएंगे। उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू की जाएं। फलदार वृक्ष जंगलों में भी लगाए जाएंगे, जिससे जंगली जानवरों को आहार की उपलब्धता जंगलों में ही पूरी हो और वह किसानों की फसलों को नुकसान ना पहुंचा सकें।

मुख्यमंत्री ने वन विभाग के अधिकारियों को यह भी निर्देश दिए कि ई-ऑफिस प्रणाली को जल्द ही जिला एवं क्षेत्रीय कार्यालयों में भी विस्तारित किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कार्यों में तेजी और पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटल इंडिया की जो शुरूआत की उसके बेहतर परिणाम आज सबके सम्मुख हैं। राज्य में ई-कैबिनेट की शुरूआत की गई है। ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को ई-विधानसभा बनाया जा रहा है। 37 कार्यालय ई-ऑफिस प्रणाली से जुड़ चुके हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल कार्यप्रणाली की ओर हम जितने तेजी से बढ़ेंगे, उतनी तेजी से जन समस्याओं का निदान होगा।
उन्होंने कहा कि राज्य में पिरूल पर जो कार्य हो रहा है, इसे और विस्तार देने की जरूरत है। पिरूल एकत्रीकरण पर राज्य सरकार द्वारा 02 रूपये प्रति किग्रा एवं विकासकर्ता द्वारा 1.5 रूपये प्रति किग्रा एकत्रकर्ता को दिया जा रहा है। इसका उपयोग ऊर्जा के लिए तो किया ही जायेगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा वन विभाग को होगा। वनाग्नि और जंगली जानवरों की क्षति को रोकने में यह नीति बहुत कारगर साबित होगी। स्थानीय स्तर पर गरीबों के लिए स्वरोजगार के लिए पिरूल एकत्रीकरण का कार्य एक अच्छा माध्यम बन रहा है।
इस अवसर पर वन विभाग के सलाहकार व ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डाॅ. एस.एस.नेगी, मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार रवींद्र दत्त, वन पंचायत सलाहकार समिति के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह बिष्ट, मुख्य वन संरक्षक जयराज, पीसीसीएफ रंजना काला, विनोद कुमार सिंघल, मुख्य वन संरक्षक आईटी नरेश कुमार एवं वन विभाग के अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल (Ajit Dobhal) नवरात्री के अवसर पर शनिवार को पत्नी अनु डोभाल के साथ उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल स्थित अपने पैतृक गांव घीड़ी पहुंचे। गांव में उन्होंने अपनी कुल देवी मां बाल कुंवारी की पूजा-अर्चना की और गांव के लोगों के हालचाल पूछे।

डोभाल रविवार की शाम मंडल मुख्यालय पौड़ी पहुंचे थे। सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम के बाद शनिवार सुबह वे गांव गए। गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। गांव में सबसे पहले उन्होंने काफी देर तक अपनी कुल देवी मां बाल कुंवारी के मंदिर में पूजा-अर्चना की।

पूजा-अर्चना के बाद डोभाल अपने अलग अंदाज में गांव के लोगों से मिले और उनकी कुशल-क्षेम पूछी। अपनी मातृभाषा गढ़वाली में बातचीत की। सभी को दीपावली की शुभकामनाएं दी। साथ ही गांव वालों को दीपावली की मिठाई व उपहार भी बांटे। बाद में वे दिल्ली के लिए वापस रवाना हो गए।

इससे पहले रविवार को पौड़ी जाते समय डोभाल प्रसिद्ध सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी के मंदिर में भी कुछ देर के लिए रुके थे। वहां उन्होंने पूजा की। इस अवसर पर स्थानीय पुजारियों के अलावा प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री पं.राजेंद्र अंथवाल आदि ने उनका स्वागत किया।

पौड़ी में सर्किट हाउस में गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत, विधायक मुकेश कोली आदि ने डोभाल का स्वागत किया और उनसे भेंट की। डोभाल का यह पूरी तरह से निजी भ्रमण था। वे सड़क मार्ग से ही दिल्ली से आये थे। लिहाजा, उनके दौरे को देखते हुए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किये गए थे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश सरकार द्वारा स्वरोजगार के लिए संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं के सफल क्रियान्वयन पर जोर दिया है। उन्होंने इस सम्बन्ध में गुरुवार को प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की और उन्हें कई निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सरकार की इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में जिलाधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री ने बिजली चोरी को रोकने के लिए सभी जनपदों में सघन अभियान चलाने को कहा और दोषियों के विरुद्ध सख्त कारवाई के निर्देश दिए।
त्रिवेंद्र ने अधिकारियों को कहा कि मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना, सौर ऊर्जा व पिरूल ऊर्जा नीति से रोजगार के अवसर बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाए। एलईडी ग्राम लाईट योजना के तहत जिन स्थानों पर प्रोडक्शन का कार्य शुरु हो चुका है, उन स्थानों पर जिलों के मुख्य विकास अधिकारी एवं सबंधित विभागीय अधिकारी जाकर महिला स्वयं सहायता समूहों से उनको कार्य करने में आ रही समस्याओं की जानकारी लें। इससे उनकी समस्याओं का शीघ्रता से निवारण हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि एलईडी ग्राम लाईट योजना के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों को उचित प्रशिक्षण, राॅ मेटिरियल एवं सप्लाई चेन की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए राज्य में कुछ क्षेत्र हब के रूप में विकसित करने होंगे। स्थानीय स्तर पर लोगों की आय में वृद्धि के लिए सुनियोजित तरीके से कार्य किए जाएं। त्योहारों के सीजन के दृष्टिगत स्थानीय स्तर पर निर्मित सामग्री की मार्केंटिंग के लिए स्वयं सहायता समूहों को सहयोग दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में पिरूल नीति से 40 हजार से अधिक लोगों के आय के संसाधन बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए जिलाधिकारियों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इससे बिजली उत्पादन के साथ ही अनेक पर्यावरणीय लाभ भी हैं। पिरूल एकत्रीकरण से स्थानीय स्तर पर महिलाओं के आय के संसाधन बढ़े हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने विद्युत विभाग की भी समीक्षा की। उन्होंने बिजली चोरी को रोकने के लिए सभी जनपदों में सघन अभियान चलाने को कहा और निर्देश दिए कि दोषियों पर सख्त कारवाई की जाए। साथ ही इसमें विद्युत विभाग के अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय की जाए। उन्होंने विद्युत लाईनों की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ठोस योजना बनाने को भी कहा और निर्देश दिए कि विद्युत लाईनों की नियमित जांच तथा आवश्यकतानुसार अंडर ग्राउण्ड केबलिंग की व्यवस्था की जाए।
उन्होंने विद्युत लाईनों की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं पर निर्धारित मानकों के अनुरूप क्षतिपूर्ति एक सप्ताह के अन्दर देने के निर्देश दिए। साथ ही कहा कि इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बरदाश्त नहीं की जाएगी। यह सुनिश्चित किया जाए कि दुर्घटना के कारणों की जांच रिपोर्ट सबंधित क्षेत्र के विद्युत विभाग के अधिकारियों से शीघ्र उपलब्ध हो। बिजली के बिल की रशीद लोगों तक नियमित रूप से पहुंचे।
सचिव ऊर्जा राधिका झा ने कहा कि विभागों को की-परफार्मेंस इंडिकेटर दिए जाने से ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हुई है। विद्युत उत्पादन में वृद्धि हुई है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत उपलब्धता की स्थिति बहुत अच्छी है। इस अवसर पर एमडी यूपीसीएल डाॅ. नीरज खैरवाल, अपर सचिव कैप्टन आलोक शेखर तिवारी आदि उपस्थित थे।
नवम्बर में उत्तर प्रदेश की 10 और उत्तराखंड की खाली होने वाली 1 राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को केंद्रीय चुनाव आयोग ने कार्यक्रम घोषित कर दिया है। राज्य सभा के द्विवार्षिक चुनावों के लिए 20 अक्टूबर को अधिसूचना होगी। नामांकन पत्र भरने की अंतिम तिथि 27 अक्टूबर, मतदान की तिथि 9 नवंबर और 11 नवंबर तक चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि 25 नवम्बर को उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से राज्य सभा के 11 सदस्य सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, कांग्रेस नेता पी.एल. पुनिया, अरुण सिंह, राम रामगोपाल यादव जैसे दिग्गज नेता उत्तर प्रदेश से हैं। उत्तराखंड से फिल्म अभिनेता व कांग्रेस नेता राज बब्बर सेवानिवृत हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश से सेवानिवृत होने वाले अन्य सदस्यों में डॉ चंद्रपाल सिंह यादव, जावेद अली खान, नीरज शेखर, रवि प्रकाश वर्मा, राजा राम व वीर सिंह शामिल हैं।
भारत निर्वाचन आयोग के अवर सचिव प्रफुल्ल अवस्थी द्वारा जारी बयान में जानकारी दी गई है कि इन द्विवार्षिक चुनावों के लिए 20 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की जाएगी। नामांकन पत्र भरने की अंतिम तिथि 27 अक्टूबर होगी। 28 अक्टूबर को नामांकन पत्रों की जांच और 2 नवम्बर नाम वापसी की अंतिम तिथि रहेगी। यदि आवश्यक होगा तो मतदान 9 नवम्बर को प्रातः 9 बजे से 4 बजे तक होगा और मतपत्रों की गिनती भी उसी दिन होगी। 11 नवम्बर तक चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न हो जाएगी।
चुनाव आयोग के अनुसार मतदान के समय बैलेट पेपर पर वरीयता (अंक) को चिह्नित करने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा दिए गए एकीकृत वायलेट कलर स्केच पेन का ही उपयोग किया जाएगा। किसी भी परिस्थिति में मतदाता दूसरे किसी पेन का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
चुनाव आयोग ने राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिए हैं कि वे चुनाव के दौरान कोविड-19 से बचाव व रोकथाम के निर्देशों का पालन कराने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी की तैनाती सुनिश्चित करें। आयोग ने इसके लिए विस्तृत निर्देश पूर्व में भी जारी किये हैं। आयोग ने संबंधित राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को इन चुनावों के लिए पर्यवेक्षक के रूप में तैनात किया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि कोविड -19 पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आने वाले कुछ माह और चुनौतीपूर्ण होंगे। उन्होंने अधिकारियों को इस चुनौती से निपटने के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पिछले एक सप्ताह में प्रदेश में कोविड पॉजिटिव केस कम आए हैं। मगर ऐसे समय में और सतर्कता बरतने की जरूरत है। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का सभी जगह पूर्ण रूप से पालन हो, ताकि संक्रमण को रोका जा सके।
मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की नियमित मॉनिटरिंग
मुख्यमंत्री ने शनिवार को सचिवालय में कोविड-19 की समीक्षा बैठक के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से यह निर्देश सभी जिलाधिकारियों एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दिये। उन्होंने कहा कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की नियमित मॉनिटरिंग की जाए। इसके लिए संबंधित क्षेत्र के उप जिलाधिकारी एवं पुलिस क्षेत्राधिकारी की जिम्मेदारी सुनिश्चित हो। किसी क्षेत्र की शिकायत आने पर सबंधित क्षेत्र के अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।
भ्रामक प्रचार करने वालों पर एफआईआर
उन्होंने कहा कि कोविड से बचाव के लिए आम जन के व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। कोविड के सबंध में सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से भ्रामक प्रचार करने वालों पर एफआईआर दर्ज कर सख्त कारवाई हो। उन्होंने कहा कि कोविड पर प्रभावी नियंत्रण के लिए विभिन्न माध्यमों से जन जागरूकता अभियान चलाने की जरुरत पर भी जोर दिया। जन जागरूकता के लिए उन्होंने प्रमुख हस्तियों एवं गणमान्य व्यक्तियों के वीडियो एवं ऑडियो संदेश बनाकर प्रचारित व प्रसारित करने को कहा।
पर्यटकों से शालीनतापूर्ण व्यवहार
त्रिवेंद्र ने कहा कि कोविड से बचाव के लिए जागरुकता पैदा करने हेतु ऑनलाइन लेख प्रतियोगिता, कार्टून प्रतियोगिता आदि गतिविधियां आयोजित हों और इन प्रतियोगिताओं के लिए जनपद व राज्य स्तर पर पुरस्कार भी दिये जाय। धार्मिक स्थलों, भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर कोविड से बचाव हेतु सुरक्षात्मक उपायों के लिए स्थाई होर्डिंग का प्रावधान करें। उन्होंने कहा कि अब अनेक गतिविधियों के लिए छूट मिल चुकी है। राज्य में पर्यटकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह सुनिश्चित किया जाय कि पर्यटकों के साथ सबका शालीनता पूर्वक व्यवहार हो। पर्यटक स्थलों पर थर्मल स्क्रीनिंग और सैंपल टेस्टिंग के लिए बूथ बने।
बैठक में सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी, पुलिस महानिदेशक (कानून व व्यवस्था) अशोक कुमार, सचिव आयुष डी सेंथिल पांडियन, सचिव डाॅ. पंकज पाण्डेय, दिलीप जावलकर, शैलेष बगोली, एस.ए. मुरूगेशन, आईजी अभिनव कुमार, संजय गुंज्याल, अपर सचिव युगल किशोर पंत, स्वास्थ्य महानिदेशक डाॅ.अमिता उप्रेती आदि उपस्थित थे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश सचिवालय की कार्यप्रणाली को चुस्त-दुरस्त करने और कार्मिकों के रवैये में सुधार लाने के लिए पिछले दिनों कई सख्त फैसले लेने पड़े थे। मगर सचिवालय के कुछ कार्मिकों ने तो शायद यह ठान रखी है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो सुधरेंगे नहीं। वर्तमान में एक प्रकरण वन विभाग से जुड़ा हुआ सामने आया है, जिसमें वन अनुभाग के कार्मिकों की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण शासन की फजीहत हो गयी। वन अनुभाग के कार्मिकों ने उत्तराखंड वन निगम में प्रतिनियुक्ति से संबंधित एक मामले के आदेश की प्रति प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर हुए बिना ‘लीक’ कर दी।
दरअसल, मई माह में उत्तराखंड वन विकास निगम के के प्रबंध निदेशक मोनिष मल्लिक ने प्रदेश के मुख्य वन सरंक्षक, मानव संसाधन विकास एवं कार्मिक प्रबंधन मनोज चंद्रन को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने वन निगम में विभिन्न अधिकारियों के सेवानिवृत होने के फलस्वरूप रिक्त पड़े पदों के कार्य संचालन में हो रही कठिनाइयों का उल्लेख किया और वन विभाग से 10 राजि अधिकारी स्तर के कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने का अनुरोध किया।
वन निगम के पत्र पर तत्काल कार्रवाई करते हुए मनोज चंद्रन ने मुख्य वन सरंक्षक, गढ़वाल और कुमायूं को निगम के पत्र का हवाला देते हुए प्रतिनियुक्ति हेतु वन क्षेत्राधिकारियों, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारियों तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों से आवेदन पत्र एक निर्धारित प्रारूप पर भेजने को कहा। इस क्रम में इच्छुक कार्मिकों द्वारा विभागीय माध्यम से अपने आवेदन पत्र भेज दिए गए। वन मुख्यालय ने अपने स्तर से आवश्यक कार्रवाई कर इस प्रकरण को शासन को भेज दिया।
मामला तब चर्चा में आया, जब विभागीय मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुमोदन के बाद फाइल वापस सचिवालय में पहुंची। सचिवालय पहुंचते ही फाइल से प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले कार्मिकों के आदेश की प्रति वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों के व्हाट्सएप पर घूमने लगी। मजेदार बात ये है कि इस आदेश पर विभाग के प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर भी नहीं हुए थे।


वन निगम के कार्मिकों को आदेश की जानकारी लगने पर उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। वन निगम के जूनियर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने तर्क दिया की वन विभाग से जिन कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर लिया जा रहा है, वो कनिष्ठ श्रेणी के हैं और उनको निगम में वरिष्ठ श्रेणी के पदों पर तैनाती देना उचित नहीं होगा। उन्होंने इस संबंध में प्रमुख सचिव (वन) आनंद वर्धन को अपना लिखित ज्ञापन भी सौंपा।
प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बावजूद आदेश को जारी होने से रोक दिया और इस पर वन निगम के प्रबंध निदेशक मल्लिक से आख्या मांगी। प्रबंध निदेशक ने निगम के कार्मिकों की मांग के अनुरूप अपनी आख्या शासन को भेज दी। प्रबंध निदेशक की आख्या के बाद प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने शुक्रवार को वन क्षेत्राधिकारी स्तर के पांच कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने की स्वीकृति दे दी।
इधर, वन विभाग के कार्मिकों का कहना है इस मामले में वन निगम के कार्मिकों का विरोध औचित्यहीन है। वन निगम में प्रतिनियुक्ति हेतु जिस स्तर के कार्मिक मांगे गए थे, उनके विभाग के कार्मिक उस लिहाज से कहीं कनिष्ठ नहीं हैं। वन निगम में स्केलर पद से पदोन्नति पाए कर्मचारी वरिष्ठ पदों पर कब्ज़ा जमाए हुए हैं और प्रभारी के रूप में चार्ज लिए हुए हैं। वन विभाग के वन क्षेत्राधिकारी, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारी तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों की वरिष्ठता व वेतनमान में प्रतिनियुक्ति हेतु मांगे गए पद में बहुत अंतर नहीं है।
बहरहाल, यह प्रकरण वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल उठ रहा है कि क्या जब प्रतिनियुक्ति के लिए नियम तय किये गए, तब विभागीय अधिकारियों और शासन को वरिष्ठता-कनिष्ठता का पता नहीं था? या फिर वन निगम के प्रबंधक निदेशक अपने कर्मचारी संगठन के दवाब में आ गए ? जब फाइल शासन में विभिन्न स्तरों पर गुजरी तब भी किसी स्तर पर आपत्ति क्यों नहीं लगाई गई ? सवाल यह भी हो रहा है कि विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बाद क्या विभागीय प्रमुख सचिव मामले में आपत्ति लगा सकते हैं ? और सबसे बड़ा सवाल कि सचिवालय के जिन कार्मिकों ने बिना हस्ताक्षरों के आदेश को लीक कर शासन की गोपनीयता भंग की और इस मामले को विवादित बना दिया, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी ?
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर ऐतिहासिक पहल कर चुके उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मुद्दे पर फ्रंट फुट पर खेलते दिखाई दे रहे हैं। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने पहले अस्थाई राजधानी देहरादून और फिर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधान भवन में ध्वजारोहण कर इतिहास ही नहीं रचा, अपितु गैरसैंण को लेकर ताबड़तोड़ घोषणाएं कर विपक्षियों पर भी बढ़त कायम कर ली। त्रिवेंद्र ने आज गैरसैंण को लेकर की गईं घोषणाओं और वहां ध्वजारोहण कर राजधानी के मुद्दे को लेकर अपने इरादों को भी साफ़ कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि, उत्तराखण्ड राज्य के गठन से पहले से ही गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाए जाने की मांग उठती रही है। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के समय भी गैरसैंण को ही राज्य की प्रस्तावित राजधानी माना गया। गैरसैंण को तब अधिक महत्व मिला, जब वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई और कल्याण सरकार ने गैरसैंण में अपर शिक्षा निदेशक के कार्यालय का उद्घाटन किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कल्याण सिंह सरकार ने ही उत्तराखंड पृथक राज्य निर्माण के संबंध में उत्तर प्रदेश विधान सभा में संकल्प प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था।
अलग राज्य निर्माण को लेकर उत्तराखंड के साथ कई अजीब विडंबना भी जुड़ी रही हैं। वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव सरकार ने प्रस्तावित राज्य की राजधानी निर्माण के मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपने कैबिनेट मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इस समिति ने गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में अपनी संस्तुति दी। मुलायम सरकार ने एक ओर जहां राज्य निर्माण के बिना ही राजधानी मामले में अपनी सक्रियता प्रदर्शित की, वहीं दूसरी तरफ राज्य निर्माण की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ मुजफरनगर में जघन्य व घृणित कांड को अंजाम दिया।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद उत्तराखंड राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। 9 नवम्बर, 2000 को उत्तराखण्ड को अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली। केंद्र सरकार ने राजधानी के मुद्दे पर जन भावनाओं और आधारभूत ढांचे को ध्यान में रखकर देहरादून को अस्थाई राजधानी के रूप में घोषित किया। मगर राज्य निर्माण के बाद गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग विभिन्न स्तरों पर उठती रही।
वर्ष 2001 में उत्तराखंड की नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में राजधानी के मुद्दे को लेकर एक आयोग का गठन किया। अगले वर्ष प्रदेश में पहली बार विधान सभा चुनाव हुए। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार गठित हुई। कांग्रेस सरकार के पूरे पांच साल के दौरान आयोग विस्तार पाता रहा और उसने कोई रिपोर्ट नहीं दी। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। एक सदस्यीय दीक्षित आयोग ने राजधानी पर अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी, जिसे 17 अगस्त 2008 को विधानसभा में पेश किया गया। दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था।
मगर जन भावनाओं के चलते दीक्षित आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई। गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्षधर यह मानते हैं कि पहाड़ी राज्य की राजधानी अगर पहाड़ में स्थित होगी तो वहां के विकास को नयी गति मिलेगी। गैरसैंण भावनात्मक मुद्दा होने के साथ ही राजनीतिक रंग भी लेता रहा। वर्ष 2012 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक कैबिनेट बैठक का आयोजन किया। इसके बाद बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण से लगभग 12 किमी दूर स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन, सचिवालय, ट्रांजिट हॉस्टल और विधायक आवास का शिलान्यास किया। विधान सभा आदि के निर्माण के बावजूद गैरसैंण को लेकर असमंजस बरक़रार रहा। इस बीच वहां विधान सभा के सत्र भी आयोजित होते रहे।
गैरसैंण के इतिहास में इस वर्ष 4 मार्च का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान उसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में घोषित कर दिया। गैरसैंण में ही आयोजित हुए बजट सत्र में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उन्होंने भावुक होकर कहा था कि “ये फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है”। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप विगत 8 जून को प्रदेश सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी। त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के साथ- साथ इसे ई-राजधानी के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई है, ताकि गैरसैंण में विधान सभा सत्र के आयोजन के दौरान फाइलों को अनावश्यक रूप से इधर-उधर नहीं ढोना पढ़े।
इस बीच कोरोना महामारी के कारण उपजी परिस्थितियों के चलते प्रदेश सरकार गैरसैंण को लेकर अपनी योजनाओं को गति नहीं दे सकी, तो कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाते हुए मुद्दे को लपकने की कोशिश की। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण की यात्रा कर भाजपा सरकार पर सवाल दागे। मगर तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अपने अंदाज में उनसे यही सवाल किया कि जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने राजधानी के विषय पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया ? मगर आज स्वतंत्रता दिवस के दिन त्रिवेंद्र ने गैरसैंण व आसपास के क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं व अन्य तमाम घोषणाएं कर राजनीतिक तौर पर बढ़त हासिल कर दी है। मुख्यमंत्री ने गैरसैण को लेकर घोषणाएं राजधानी देहरादून में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में की और इसके बाद वे विधान सभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल समेत अन्य प्रमुख लोगों के साथ गैरसैंण पहुंचे। गैरसैंण में विधान सभा भवन के सम्मुख ध्वजारोहण कर उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने आज ट्वीट कर इस अवसर को ऐतिहासिक बताया। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को लेकर जो प्रमुख घोषणाएं की, उनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण में 50 बेड्स के सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की स्थापना, विधानसभा परिसर में मिनी सचिवालय की स्थापना, स्थानीय हॉस्पिटल में टेलीमेडिसिन की सुविधा, क्षेत्र में पंपिंग पेयजल पाइप लाइन का निर्माण, जियो ओएफसी नेटवर्किंग का विस्तार, कोल्ड स्टोरेज की स्थापना आदि प्रमुख हैं।