देश में हलाल पर प्रतिबंध लगा कर इसके विरुद्ध कानून बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस मांग के समर्थन में देश के कुछ प्रमुख बुद्धिजीवियों ने बाकायदा हलाल नियंत्रण मंच का गठन किया है। नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंच ने कहा कि हलाल पद्धति भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में गैर कानूनी व असंवैधानिक है।
मंच के प्रवक्ता सेवानिवृत न्यायाधीश पवन कुमार व हरिंदर सिंह सिक्का ने कहा कि भारत के संविधान में पशुओं की सुरक्षा एक मौलिक कर्तव्य है, जो अनुच्छेद 48ए राज्य के नीति दिशा-निर्देश के अन्दर दिया गया है। इसके अतिरिक्त पशु कल्याण के लिए पशु क्रूरता निषेध एक्ट 1960 व वन्य-प्राणी सुरक्षा एक्ट 1972 है। साथ ही गोरक्षा व जानवर सुरक्षा कानून केन्द्र स्तर व राज्य स्तर पर बनाए गए हैं। भारतीय दण्ड संहिता 1860 (आईपीसी) की धारा 428 व 29 के अन्दर जानवरों के प्रति हिंसा व क्रूरता को रोकने के लिए सजा का प्रावधान है।
मंच के अनुसार बेल्जियम सरकार ने हलाल पद्धति से पशु वध पर कानूनी प्रतिबन्ध लगा दिया था। जिसके विरुद्ध मुस्लिम समुदाय ने यूरोपीयन यूनियन के सर्वोच्च न्यायालय (European Court of Justice) में अपील की। यूपोरियन कोर्ट ने अपील को निरस्त करते हुए हलाल प्रतिबन्ध को सही ठहराया और सभी यूरोपीयन देशों को निर्देश दिया कि वे हलाल पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए स्वतंत्र है।
उन्होंने कहा कि श्रीलंका में बहुसंख्यक बौद्ध समाज के विरोध करने के उपरान्त हलाल को बंद कर दिया गया। हलाल के विरुद्ध जर्मनी, फ्रांस, पोलैण्ड, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों में इसके विरुद्ध आवाज उठाई जा रही है। इन देशों में पशुओं के अधिकारों से सम्बन्धित संस्थाएं व समूह हलाल पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रही है।
मंच के नेताओं ने कहा कि हाल ही में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया कि मांस की दुकानों व रेस्टोरेंटों में स्पष्ट तौर पर दर्शाना होगा कि वे अपने ग्राहकों को हलाल एवं झटका में से कौन सा मांस बेच अथवा परोस रहे हैं। उन्होंने देश भर के नगर निगमों, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों से अनुरोध किया कि वे भी स्थानीय तौर पर दक्षिण दिल्ली नगर निगम की तरह के प्रस्ताव पारित करें।
उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है। ब्रिटेन और अमेरिका में कोविड-19 वैक्सीन लगनी शुरू हो गयी है और कुछ दिनों में ही यह भारत में भी लगना शुरू हो जाएगी। इसी दौरान दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों – इंण्डोनेशिया व मलेशिया में हलाल वैक्सीन लगाने की मांग आई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हलाल नियंत्रण मंच इसकी निन्दा करता है और मांग करता है कि गैर मुसलमानों को हलाल वैक्सीन ना लगाई जाए। हैरानी की बात है कि कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के लिए कोई भी मुस्लिम देश सक्षम नहीं है।
उन्होंने आरोप लगाया कि हलाल-सर्टिफिकेशन से जो पैसे वसूल किया जाता है, उसका उपयोग इस्लामिक कट्टरपंथी व आतंकवादी संगठनों द्वारा किया जाता है।हलाल का नियंत्रण देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी बहुत जरूरी है।
क्या होता है हलाल ?
शरीयत के अनुसार मुस्लिम समुदाय को पशुओं को काटने से पहले हलाल करना जरुरी होता है। हलाल करने के लिए पशु की गर्दन में थोड़ा सा चाकू चला कर उसका खून बहने देते हैं और पशु तड़प-तड़प कर मरता है। (विश्व संवाद केंद्र के इनपुट के साथ हिम दूत ब्यूरो)