उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस..
उत्तराखंड: देश के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया उत्तराखंड मंगलवार को अपना 21वां स्थापना दिवस मना रहा हैं। देवभूमि उत्तराखंड अपने 22वें साल में प्रवेश कर रहा हैं। 9 नवंबर यानी आज आयोजित होने वाले राज्य स्थापना दिवस समारोह ‘उत्तराखण्ड महोत्सव’ के रूप में मनाया जा रहा हैं। ये आयोजन 9 नवंबर से 15 नवंबर तक चलेगा।इस दिवस पर गौरव पुस्कार की भी शुरुआत की जाएगी।
राज्य गठन के 21 साल बाद भी उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिल सकी। देहरादून आज भी अस्थायी राजधानी है और गैरसैंण को भाजपा सरकार के कार्यकाल में ग्रीष्मकालीन राजधानी बन पाई है। जबकि राज्य आंदोलन से जुड़े लोग गैरसैंण को जनभावनाओं की स्थायी राजधानी के रूप में देखते हैं। राज्य गठन पर जब देहरादून को अस्थायी राजधानी बनाया गया था, तब शायद किसी ने सोचा होगा कि यह पर्वतीय राज्य स्थायी राजधानी को तरस जाएगा। सत्ता पर काबिज रही हर सरकार ने देहरादून पर ही फोकस किया, जबकि राज्य आंदोलनकारी राज्य गठन के पहले दिन से ही गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे।
पिछले दो दशक में देहरादून स्वयंभू स्थायी राजधानी के तौर पर विकसित हो चुका है। यह जनाकांक्षाओं का दबाव ही रहा कि राजनीतिक दल गैरसैंण को पूरी तरह से खारिज नहीं कर पाए। राजनीतिक दबाव के चलते पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधानमंडल भवन बनाया तो भाजपा सरकार को उसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना पड़ा।
भाजपा सरकार में गैरसैंण के लिए अगले 50 साल के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने की घोषणा हुई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। गैरसैंण में सचिवालय भवन के निर्माण के लिए बजटीय प्रावधान हो चुका है। लेकिन काम अभी तक भी शुरू नहीं हो पाया है।
गैरसैंण पर सियासत गर्म है। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि गैरसैंण राजधानी के तौर पर कब विकसित होगा? सरकार कह रही है कि विपक्ष को चिंता छोड़ देनी चाहिए। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच छिड़ी इस सियासी जंग से जुदा न स्थायी राजधानी का सवाल नेपथ्य में है।
तमाम योजनाएं बनीं लेकिन नहीं रुकी पलायन की गति..
पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड में वर्ष 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद पलायन के कारणों और इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया गया। आयोग ने इस संबंध में प्रदेश के सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसमें मुख्य रूप पलायन के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार प्रमुख कारण उबरकर सामने आए।
सरकार ने इन कारकों को दूर करने के लिए अपने स्तर पर कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन स्थितियां आज भी नहीं बदली हैं। राज्य में पलायन का दौर अब भी जारी है। गत वर्ष कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी लौटकर अपने गांव पहुंचे। कहा जा रहा था कि अब इनमें से अधिकतर लोग वापस नहीं जाएंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
रोजगार की कमी के कारण इनमें से अधिकतर लोग वापस महानगरों का रुख कर गए हैं। अब उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग को संवैधानिक संस्था बनाने की तैयारी है। पिछले दिनों ग्राम्य विकास मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने इस सिलसिले में प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए हैं।