विगत दो वर्ष पूर्व केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह को स्वर्ण मंडित किया गया था। मुंबई के एक दानी के सौजन्य से श्री बदरीनाथ – केदरनाथ मंदिर समिती (बीकेटीसी) ने गर्भ गृह की दीवारों पर स्वर्ण मंडित प्लेटें चढ़वाई। गर्भ गृह को स्वर्ण मंडित करने के बाद विगत वर्ष कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि सोने की जगह पीतल लगाया गया है। इस पर काफी विवाद भी हुआ। कांग्रेस नेताओं द्वारा लोकसभा चुनाव के दौरान भी इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की गई। केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में सोना लगाने को लेकर कुछ तथ्य हैं, जिनसे सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
कौन हैं दानीदाता ?
पहले तो यह जान लेते हैं कि गर्भगृह को स्वर्ण मंडित कराने वाले दानी दाता मुंबई के एक हीरा व्यापारी दिलीप लाखी और उनके अन्य परिजन हैं। लाख़ी परिवार ने देश के कई बड़े मंदिरों में सोने का काम कराया है। मगर इसके बदले उन्होंने कभी अपने नाम का प्रचार भी नहीं चाहा। सोमनाथ, काशी विश्वनाथ व मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में स्वर्ण मंडित कराने का कार्य उनके द्वारा ही किया गया है। कुछ समय पूर्व अयोध्या स्थित श्री रामलला के मंदिर के स्वर्ण मंडित द्वार का फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था। लाख़ी परिवार ने राम मंदिर में 13 स्वर्ण मंडित द्वार बनवाए हैं। इसके अलावा रामलला की मूर्ति के नीचे बना स्वर्ण मंडित प्लेटफार्म भी उनके सौजन्य से ही तैयार किया गया है।
दानीदाता ने अपने ज्वैलर्स से खुद कराया काम
लाख़ी परिवार अपने ज्वैलर्स महालक्ष्मी अंबा ज्वैलर्स दिल्ली के माध्यम से खुद ही मंदिरों को स्वर्ण मंडित कराने का काम कराते हैं। केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की प्लेटें लगाने का कार्य भी उन्होंने अपने ज्वैलर्स के माध्यम से किया। बदरी-केदार मंदिर समिती की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। प्रदेश सरकार की अनुमति के बाद पुरातत्व विभाग के दिशा-निर्देशन में यह कार्य दानी दाता के ज्वैलर्स ने खुद किया। मंदिर समिती ने ना ही सोना खरीदा और ना ही इसे लगवाया।
क्या होती हैं सोने की प्लेट ?
जब मंदिरो में स्वर्ण मंडित कराने वाली बात की जाती है तो इसमें दो तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। पहला, सोने की पॉलिश। सोने की पॉलिश किसी भी धातु चांदी, पीतल, अष्टधातु आदि पर की जाती है। हालांकि, पॉलिश लगाना भी काफी महंगा होता है।
दूसरी तकनीकी तांबे की प्लेटों पर सोने का पतर चढ़ाया जाता है, जिसे सोने का बर्क अथवा लेयर कहा जाता है। सोने का बर्क चढ़ाने से पहले तांबे की प्लेट तैयार की जाती हैं, उन पर डिजाइन बनाए जाते हैं और फिर सोने की परतें चढ़ाई जाती हैं। देश के जितने भी मंदिरों को स्वर्ण मंडित किया गया है सभी जगह इसी तकनीक से कार्य किया गया है। किसी भी मंदिर में केवल सोने की ही प्लेट नहीं लगाई जाती हैं। क्योंकि इतना सोना लगाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। लेकिन आम बोलचाल में इसे सोने की प्लेट ही बोला जाता है।
केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में कितना लगा है सोना ?
दानी दाता के ज्वैलर्स ने मंदिर समिती को अपने स्टॉक रजिस्टर में एंट्री कराने के लिए जो बिल-वाउचर दिए हैं उसमें सोने की मात्रा लगभग 23 किग्रा 777 ग्राम बताया गया है। इसके अलावा सोने के पतरों को चढ़ाने के लिए करीब एक हजार किग्रा तांबे की प्लेटों का इस्तेमाल किया गया है।
क्या है 230 किग्रा सोने का मामला ?
कांग्रेसी नेता अपने आरोपों में कहते हैं कि मंदिर समिती ने पहले यह कहा था कि 230 किग्रा सोना चढ़ाया जाएगा। जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि मंदिर समिती ने आधिकारिक रूप से कभी नहीं कहा कि 230 किग्रा सोना चढ़ाया जाएगा। केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में सोने की प्लेटें लगाने से पहले चांदी की प्लेटें लगी हुई थीं। इन प्लेटों का वजन 230 किग्रा था। कुछ मीडिया संस्थानों ने अनुमान लगा दिया की गर्भ गृह की दीवारों पर 230 किग्रा चांदी की प्लेट थी तो सोना भी इतना ही लगेगा। उन्होंने अपने अनुमान के आधार पर यह खबर चला दीं। जबकि चांदी की प्लेटें तो केवल चांदी की होती हैं। सोने की प्लेट पर तांबा भी होता है।
कौन सी फोटो हुईं वायरल?
केदारनाथ मंदिर में गर्भ गृह की दीवारों के अलावा शिवलिंग के चारों ओर की चौड़ी पट्टी, जिसे जलहेरी कहते हैं, को भी स्वर्ण मंडित किया गया है। जलहेरी के चारों कोनों पर मंदिर समिती के वेदपाठियों के आसन के रूप में चौकियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही जलहेरी में दानपात्र, पूजा के थाल, लोटा इत्यादि भी रखे जाते हैं। श्रद्धालु जल चढ़ाने के लिए जलहेरी के ऊपर ही खड़े होते हैं। इन सब कारणों से जलहेरी पर कतिपय स्थानों पर सोने के परतें उतर गईं। कुछ शरारती तत्वों ने ऐसे स्थानों की क्लोज अप फोटो खींच कर फोटो वायरल कर दीं और कह दिया कि सोना गायब हो गया। कांग्रेसी नेताओं को तो मुद्दा मिल गया और उन्होंने बिना तथ्यों के सोना गायब होने वाले आरोप लगा दिए।
कैसी पहुंची सोने की प्लेटें केदारनाथ ?
ज्वैलर्स द्वारा गुड़गांव स्थित फैक्टरी में स्वर्ण मंडित प्लेटें तैयार की गईं थीं। इनको ट्रक के माध्यम से गौरीकुंड तक पहुंचाया गया। फैक्टरी से गौरीकुंड तक ट्रक की सुरक्षा के लिए उत्तराखंड सरकार ने भारी पुलिस बंदोबस्त किया था। उत्तराखंड पुलिस ने एस्कॉर्ट और पायलट के साथ ट्रक को गौरीकुंड तक पहुंचाया। गौरीकुंड से इन प्लेटों को सशस्त्र पुलिस सुरक्षा के साथ करीब डेढ़ दर्जन घोड़े – खच्चरों के माध्यम से केदारनाथ पहुंचाया गया। रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने केदारनाथ में स्ट्रॉन्ग रूम बना कर पुलिस सुरक्षा में इन्हें रखा था।
कैसे हैं केदारनाथ मंदिर में सुरक्षा इंतजाम ?
यात्रा काल में केदारनाथ धाम में यात्रियों की चहल-पहल, मंदिर समिती के कार्मिक, तीर्थ-पुरोहित, पुलिस इत्यादि रहती है। मगर जब से मंदिर के गर्भ गृह को स्वर्ण मंडित किया गया है, तब से कपाट बंद होने के बाद वहां आईटीबीपी के जवान तैनात रहते हैं। इसके अलावा मास्टर प्लान के कार्यों के चलते मंदिर परिसर सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से रुद्रप्रयाग के जिला अधिकारी, प्रदेश की मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक कार्यालय के अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय की निगरानी में चौबीसों घण्टे रहता है।
उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि केदारनाथ धाम में सोने को लेकर किया जा रहा विवाद भ्रामक है और कांग्रेस के दुष्प्रचार अभियान का एक हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से केदारनाथ धाम आज दिव्य व भव्य स्वरूप लेता जा रहा है। विगत वर्षों में केदारनाथ धाम की यात्रा ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। ये बातें कांग्रेस को नहीं पच रही है। कांग्रेस हमेशा से ही हिंदू विरोधी रही है। हिंदुओं के तीर्थ स्थलों और संस्कृति का मजाक उड़ाना कांग्रेस की आदत में शुमार है। इसलिए वो केदारनाथ धाम की छवि को धूमिल करने के लिए ऐसे भ्रामक दुष्प्रचार का सहारा ले रही है