‘9/11 के आतंकी हमले जैसे थे दिल्ली दंगे, उमर खालिद ने रची थी साजिश..
धर्मनिरपेक्ष विरोध को ‘मुखौटा’ बनाकर किए गए प्रदर्शन..
देश – विदेश : दिल्ली पुलिस ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए फरवरी 2020 के साम्प्रदायिक दंगों की कथित साजिश की तुलना अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमले से की है।
विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान खालिद पर साजिश रचने के लिए बैठक आयोजित करने और नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ प्रदर्शन स्थल की निगरानी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष विरोध को एक ‘मुखौटा’ बनाकर कहीं भी प्रदर्शन की योजना बनाई गई और उसका टेस्ट किया गया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष उमर की जमानत याचिका का विरोध करते हुए अभियोजक ने कहा कि 9/11 होने से ठीक पहले इसमें जुड़े सभी लोग एक विशेष स्थान पर पहुंचे और ट्रेनिंग ली। उससे एक महीने पहले वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए। इस मामले में भी यही चीज हुई है।
उन्होंने आगे कहा कि 9/11 प्रकरण का संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। 9/11 के पीछे जो व्यक्ति था, वह कभी अमेरिका नहीं गया। मलेशिया में बैठक कर साजिश की गई थी। उस समय वाट्सऐप चैट उपलब्ध नहीं थे। आज हमारे पास दस्तावेज उपलब्ध हैं कि वह समूह का हिस्सा था। यह दिखाने के लिए आधार है कि हिंसा होने वाली थी।
प्रसाद ने अदालत से आगे कहा कि 2020 के विरोध प्रदर्शन का मुद्दा सीएए या राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) नहीं बल्कि सरकार को शर्मिंदा करने और ऐसे कदम उठाने का था कि यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ जाए।
सुनवाई की आखिरी तारीख पर अभियोजक ने अदालत को बताया कि सभी विरोध स्थलों को मस्जिदों से निकटता के कारण चुना गया था, लेकिन इसे एक मकसद से धर्मनिरपेक्षता का नाम दिया गया था। खालिद और कई अन्य लोगों पर गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया और उन पर दंगों के ‘मास्टरमाइंड’ होने का आरोप लगाया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
बिहार में छात्रों ने ट्रेनों को पहुंचाया नुकसान..
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर सजा भी मिल सकती है..
देश – विदेश : रेलवे ने कुछ दिनों पहले बयान जारी कर कहा है कि ‘जो भी अभ्यर्थी रेलवे स्टेशनों पर हिंसा और तोड़फोड़ में शामिल होते हैं और वीडियो में उनकी पहचान होती है तो उन्हें आजीवन रेलवे में नौकरी नहीं दी जाएगी।’
रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) की नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटिगरी (एनटीपीसी) परीक्षा के रिजल्ट में धांधली का आरोप लगाते हुए छात्रों ने बुधवार को यूपी से बिहार तक तीसरे दिन भी जमकर हंगामा किया। बिहार में एक ट्रेन में आग लगा दी गई। यार्ड में खड़ी कई पैसेंजर ट्रेन को भी आग के हवाले कर दिया। साथ ही गया रेलवे स्टेशन में चलती ट्रेन पर पत्थरबाजी की गई। गया के एससपी आदित्य कुमार के मुताबिक शरारती तत्वों ने ट्रेन की बोगी में आग लगाई है। इसके लिए कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है।
पिछले तीन दिनों से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में रेलवे भर्ती परीक्षा के उम्मीदवारों की ओर से किए जा रहे आंदोलन को देखते हुए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि पांच सदस्यों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर गिया गया है। सभी अभ्यर्थी अपनी-अपनी शिकायत-सुझाव तीन हफ्तों के भीतर दर्ज करा सकते हैं। इसी आधार पर समाधान निकाला जाएगा। रेल मंत्री ने आंदोलनकारी छात्रों से यह अपील भी है कि वे सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट नहीं करे। इससे पहले रेलवे ने कहा है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को आजीवन रेलवे में नौकरी नहीं दी जाएगी।
छात्रों के इस आंदोलन और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की खबरों के बीच इस बात को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है कि आंदोलन करना छात्रों का या किसी का भी मौलिक अधिकार है लेकिन आन्दोलनों के प्रभाव और उसके परिणामस्वरूप सामान्य जीवन में व्यवधान होने या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने पर उन्हें सजा के दायरे में लाया जाए या नहीं?
2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और जनता को असुविधा पहुंचाने के आरोप में 450 लोगों को दंडित किया जिसे लेकर खूब राजनीति भी हुई थी। 2019 में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत देशभर में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर हिंसा भड़की थी और उपद्रवी जगह-जगह सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान भी पहुंचा रहे थे।
कितना होता है नुकसान..
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को सजा देने का तर्क देने वालों का कहना है कि आंदोलन करना लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि बंद, विरोध या आंदोलनों में जब सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है तो आयोजकों और भाग लेने वाले ज्यादातर लोगों को कुछ घंटों की हिरासत के बाद छोड़ दिया जाता है, जबकि सार्वजनिक संपत्ति जिसे बनाने में जनता के ही करोड़ों रूपये खर्च होते हैं, उसको भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।
एसोचैम का अनुमान है कि 2016 में हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान 1,800-2,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इसी तरह जनवरी 2020 में जैसे ही सरकार ने संसद में नागरिकता संशोधन विधयेक पेश किया पश्चिम बंगाल भड़क उठा। अनुमान है कि राज्य में भड़के विद्रोह से भारतीय रेलवे ने चार दिनों में 80 करोड़ की संपत्ति खो दी।
बीते कुछ सालों में सार्वजनिक संपत्ति को और कब-कब पहुंचाया गया नुकसान..
2015 में गुजरात में पाटीदार आंदोलन के दौरान भी तोड़फोड़ में 660 सरकारी वाहनों और 1,822 सार्वजनिक भवनों को आग लगा दी गई थी।
कर्नाटक में 2016 कावेरी दंगों में 30 से अधिक राज्य परिवहन बसों को क्षतिग्रस्त किया गया था।
2018 में जब केरल में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध चल रहा था तब भी 49 सरकारी बसें क्षतिग्रस्त हो गईं थीं।
राजस्थान में 2017 में फिल्म पद्मावत की रिलीज के आसपास और 2019 में गुर्जर समुदाय के आरक्षण आंदोलन के दौरान भी तोड़फोड़ और आगजनी की कई घटनाएं देखी गईं।
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की वजह क्या..
सुप्रीम कोर्ट के वकील और कानूनी जानकार विराग गुप्ता छात्रों के आंदोलन के संदर्भ में मानते हैं कि कानून और संविधान के अलावा छात्रों के आंदोलन और हिंसा के कई और पहलू हैं। आजादी के पहले अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की जो परंपरा शुरू हुई वह आजादी के बाद भी जारी रही। जेपी आंदोलन हो या अन्य आंदोलन, उनमें छात्रों की विशेष भूमिका थी।
उनका कहना है ‘छात्र आंदोलनों को लोकतंत्र के भीतर विरोध का माध्यम भी बताया जाता है। परीक्षाओं में हो रही संस्थागत और सामूहिक गड़बड़ी को दूर करने के लिए सरकारों ने ठोस सुधार नही किया। इसलिए हिंसा और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इसलिए यह आंदोलनकारियों के साथ सरकार की भी संवैधानिक विफलता को दर्शाता है।’
बहरहाल, यह जानना जरूरी है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर किसी व्यक्ति को क्या सजा मिल सकती है? लेकिन पहले समझिए कि सार्वजनिक संपत्ति के दायरे में क्या-क्या आता है?
किसी भी ऐसे भवन या स्थान को सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है जिसका इस्तेमाल पानी, बिजली या ऊर्जा के उत्पादन और वितरण के लिए किया जाता है। टेलिकॉम और ऑयल इंस्टॉलेशन की संपत्ति, सीवेज वर्क, माइन्स, फैक्ट्री या सार्वजनिक परिवहन के साधन जैसे सरकारी बस और रेल को भी सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है।
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर क्या सजा हो सकती है..
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति रोकथाम अधिनियम, 1984 जैसा कानूनी प्रावधान है। इसके तहत दोषी पाए जाने वाले को कम से कम छह महीने और पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी भरना होगा। बशर्ते प्रदर्शन के दौरान आगजनी और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने के जिम्मेदार की पहचान हो जाए और उसका गुनाह कोर्ट में साबित कर दिया जाए।
इस कानून के मुताबिक आग या विस्फोटक पदार्थ से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले शरारती तत्व को धारा 3 की उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत कठोर कारावास की सजा मिल सकती है जो एक साल से कम नहीं होगी लेकिन उसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इस कानून में नुकसान की वसूली का कोई प्रावधान नहीं है।
इस संबंध में अदालतों के निर्देश क्या हैं..
आंदोलन या अन्य किसी वजहों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के संबंध में 2009 के सुप्रीम कोर्ट ने एक दिशा-निर्देश बनाया है।
इसके अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर विद्रोहियों को इसका जम्मेदार ठहराया जा सकता है।
2007 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस केटी थॉमस की अध्यक्षता वाली समिति ने 1984 के कानून में कुछ सख्त प्रावधान भी जोड़े। नियम बने कि विद्रोहों में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की घटनाओं के लिए उसके नेता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
वहीं, आंध्र प्रदेश के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में निर्देश दिए कि ‘अगर किसी विरोध प्रदर्शन में बड़े स्तर पर सार्वजनिक संपत्तियों की तोड़फोड़ की जाती है और उसे नुकसान पहुंचाया जाता है तो हाई कोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए घटना व नुकसान की जांच के आदेश दे सकता है। साथ ही ऐसा अपराध करने वाले उपद्रवियों को भी जिम्मेदार ठहरा सकता है।’
कितनों पर होती है कार्रवाई..
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में देशभर में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने के करीब 8 हजार मामले दर्ज किए गए।एनसीआरबी की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2020 में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर 4,524 मामले दर्ज किए गए थे लेकिन केवल 868 पर ही आरोप साबित हो सके।
यानी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की पहचान और उन पर दोष सिद्ध कर पाना इस कानून की सबसे बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि 2017 के आखिर तक सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के 14,876 केस देश की कई अदालतों में लंबित थे।
वजह क्या..
इसके पीछे दो बड़ी वजहें बताई जाती हैं। एक तो ऐसे जन आंदोलनों में उनका नेतृत्व या संचालन करने वालों का कोई निश्चित चेहरा नहीं होता। प्रदर्शनों के दौरान किसने क्या उपद्रव किया और किसने तोड़-फोड़ और आगजनी की, यह साबित करना मुश्किल हो जाता है।
जहां ऐसे आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले का चेहरा और नाम स्पष्ट है, वहां भी कोर्ट में यह बात आसानी से साबित नहीं हो पाती है कि उन्होंने ही हिंसा भड़ाकने या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की बात कही थी।
एक आंकड़े के अनुसार, पहचान न हो पाने के कारण सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर महज 29.8 फीसदी मामलों में ही दोषियों को सजा मिल पाती है। विराग गुप्ता के मुताबिक मान लीजिए कि अगर किसी के ऊपर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज भी हो जाता है, तो पुलिस के लिए उसके खिलाफ सबूत जुटाना मुश्किल काम हो जाता है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों ने भीड़ की वजह से फैली हिंसा या सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली के लिए भी नए कानून बनाए हैं लेकिन उसे कारगार बनाने की दिशा में अभी भी कई चुनौतियां हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की उत्तर प्रदेश वसूली विधेयक, 2021 पारित किया। इस कानून के तहत, प्रदर्शनकारियों को सरकारी या निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के दोषी पाए जाने पर एक साल की कैद या 5,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
उपाय क्या..
माना जाता है कि चेहरे की पहचान तकनीक, सार्वजनिक स्थानों और सार्वजनिक संपत्तियों पर सीसीटीवी कैमरे की संख्या बढ़ाने और कुछ मामलों में पुराने डेटाबेस के आधार पर पुलिस ऐसे लोगों की पहचान कर सकती है जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं।
अमेरिका की तरह सख्त कानून बने
सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ के लिए कड़ी दंडात्मक कार्रवाई का एकमात्र उदाहरण डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ मिलता है, पंथ के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके अनुयायियों ने 2017 में पूरे हरियाणा और पंजाब में संपत्तियों को नष्ट कर दिया था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि संपत्ति के सभी नुकसान डेरा से वसूल किए जाएंगे।
कुछ जानकार आंदोलन की प्रवृति को देखते हुए भारत में अमेरिका की तरह प्रदर्शनकारियों के लिए सख्त कानून बनाने की मांग करते हैं। अमेरिका में ट्रैफिक को अवरुद्ध करने वाले प्रदर्शनकारियों के लिए हुए कठोर दंड का प्रावधान है। साथ ही कानून प्रवर्तन एजेंसियों को राष्ट्र के ‘महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे’ को नुकसान पहुंचाने या बाधित करने वाले प्रदर्शनकारियों से लागत वसूलने के भी अधिकार हासिल हैं। महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के तौर पर सार्वजनिक उपयोगिताओं में तेल और गैस पाइपलाइन, बिजली टावर, रेलवे और सार्वजनिक परिवहन वाहन शामिल है।
हरीश रावत की बदली सीट , अब रामनगर नहीं लड़ेंगे चुनाव..
पांच सीटों पर बदले गए टिकट..
देश – विदेश : कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत लाल कुआं से, पूर्व विधायक रणजीत रावत सल्ट से, महेश शर्मा कालाढूंगी से और पूर्व सांसद महेंद्र पाल रामनगर से उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में जारी बगावत और असंतोष के परिणाम लगता है आने लगे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत की सीट बदल गई है।
कांग्रेस ने पांच सीटों पर टिकट बदल दिए हैं। डोईवाला से मोहित उनियाल का टिकट कटा। गौरव चौधरी को मिला। चौबट्टाखाल से केसर सिंह नेगी। नरेंद्रनगर से ओम गोपाल रावत और ज्वालापुर से बरखारानी का टिकट बदल कर रवि बहादुर को दिया। टिहरी पर अब भी सस्पेंस बना हुआ है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत लाल कुआं से, पूर्व विधायक रणजीत रावत सल्ट से, महेश शर्मा कालाढूंगी से और पूर्व सांसद महेंद्र पाल रामनगर से उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। उन्होंने बताया कि यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है। रामनगर विधानसभा सीट पर हरीश रावत के कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर घोषित किए जाने के बाद ही इस सीट पर बगावत होने लगी थी।
कांग्रेस में परिवारवाद की छाया..
टिकटों में बदलाव को लेकर पार्टी में परिवारवाद की बात भी उठने लगी है। हरीश रावत, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, स्व. इन्दिरह रद्देश और संसद केसी सिंह बाबा के परिवार के सदस्यों को टिकट मिला है।
हरक की पुत्रवधू अनुकृति को लैंसडौन से, पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के बेटे को काशीपुर से, इंदिरा के बेटे सुमित ह्रदयेश को हल्द्वानी से और हरीश रावत की बेटी अनुपमा को हरिद्वार ग्रामीण से उम्मीदवार बनाया गया है। यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य नैनीताल से हैं प्रत्याशी।
पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूड़ी को डोईवाला से उतारेगी भाजपा..
देश – विदेश : भाजपा डोईवाला और कोटद्वार सीट को लेकर ऋतु खंडूड़ी के नाम पर भी विचार कर रही है। बताया जा रहा है कि भाजपा मंगलवार तक फैसला करने के बाद 11 प्रत्याशियों की सूची जारी कर देगी।
भाजपा ने अभी 11 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान नहीं किया है। इनमें से डोईवाला और कोटद्वार विधानसभा सीट पर सबसे अधिक पेच है।
सूत्रों ने बताया कि डोईवाला और कोटद्वार को लेकर पहले पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत के भाई कर्नल विजय रावत को लेकर चर्चा हुई लेकिन उनके चुनाव लड़ने को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। उसके बाद भाजपा की ओर से सीडीएस जनरल रावत की बेटियों के नाम पर भी चर्चा की गई।
सूत्रों का कहना है कि अब पार्टी कोटद्वार और डोईवाला सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी व यमकेश्वर से विधायक ऋतु खंडूड़ी के नाम पर चर्चा कर रही है।
कोटद्वार के लिए ऋतु अभी सहमत नहीं हुई हैं। हालांकि पार्टी की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। विधायक ऋतु खंडूड़ी ने इस संदर्भ में जानकारी होने से इनकार किया है। उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में हैं और पार्टी ने अभी इस संदर्भ में उनकी राय नहीं ली है। उन्होंने कहा कि यदि उनसे पूछा जाएगा तो जरूर वह अपनी राय दे देंगी।
नामांकन पत्र निरस्त होने से नाराज AAP प्रत्याशी ने कलेक्ट्रेट में तेल डालकरकिया आत्मदाह का प्रयास..
देश – विदेश : यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुजफ्फनगर में आप प्रत्याशी का हाईवोल्डेज ड्रामा सामने आया है। आप प्रत्याशी ने अपने ऊपर तेल डालकर खुद को जलाने का प्रयस किया। हालांकि इससे पहले ही कलेक्ट्रेट में मौजूद पुलिस कर्मी ने प्रत्याशी को आत्मदाह करने से रोक लिया। विधानसभा चुनाव को लेकर पहले और दूसरे चरण के चुनाव को लेकर इन दिनों नामांकन हो रहे हैं। प्रथम चरण में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जनपद मुजफ्फरनगर की 6 विधानसभा सीटों पर करीब 97 प्रत्याशी ने नामांकन किया है। सोमवार सुबह इन नामांकन पत्रों की जांच शुरू हुई।
मीरापुर विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जोगिंदर सिंह का नामांकन प्रशासन ने निरस्त कर दिया है। जोगिंदर सिंह ने कलेक्ट्रेट में आत्मदाह की चेतावनी दी है। जोगिंदर सिंह ने बताया कि वह आर्मी में सूबेदार मेजर रहे हैं। रिटायर होने के बाद जनता की सेवा में लगे हैं। मीरापुर विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी से नामांकन दाखिल किया था। नामांकन पत्र में निराश्रित का कॉलम खाली छोड़ने पर उनका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया ।उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन दबाव में कार्य कर रहा है या फिर तानाशाही दिखा रहा है। अधिकारियों का अनुचित कृत्य का विरोध किया जाएगा। उसके बाद फिर से जोगिंदर सिंह रिटर्निंग ऑफिसर के पास पहुंचे।
आरोप है कि रिटर्निंग ऑफिसर ने उनकी कोई बात नहीं सुनी। रिटर्निंग ऑफिसर ने जोगिंदर सिंह से कहा कि उनका नामांकन पत्र निरस्त हो चुका है। इस बात से खफा जोगिंदर सिंह ने बाहर आकर अपने ऊपर पेट्रोल छिड़क दिया और आत्मदाह करने का प्रयास किया। मौके पर मौजूद पुलिस ने जोगिंदर सिंह के आत्मदाह को विफल कर दिया। कचहरी में हंगामे की सूचना मिलने पर एडीएम प्रशासन मौके पर पहुंचे। पीड़ित प्रत्याशी जोगिंदर सिंह ने एडीएम प्रशासन को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। एडीएम प्रशासन ने जोगिंदर सिंह को समझा कर शांत किया। उसके बाद जोगिंदर सिंह अपने अधिवक्ता के साथ डीएम से मिलने के लिए पहुंचे और डीएम को पूरे मामले की जानकारी दी।
उत्तराखंड में दो दिन और बारिश-बर्फबारी का अलर्ट,हाईवे बंद..
देश – विदेश : मौसम विभाग ने उत्तराखंड में अगले दो दिन और बारिश-बर्फबारी की संभावना जताई है। मैदानी क्षेत्रों में कोहरे की वजह से मौसम ठंडा बना रहेगा। मौसम को लेकर फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं है। बारीश के बाद हुई बर्फबारी की वजह से गंगोत्री-यमुनोत्री हाईवे सहित कई सड़कें बंद हो गई हैं, जिसकी वजह से जगह-जगह यात्री फंस गए हैं।
सोमवार को राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ स्थानों पर हल्की बारिश व बर्फबारी होने की संभावना है। जबकि, मैदानी क्षेत्रों में कहीं-कहीं बारिश हो सकती है। राज्य के 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में बर्फबारी की संभावना है। 25 जनवरी को पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं हल्की बारिश-बर्फबारी की संभावना है। जबकि, 26 को राज्य में मौसम शुष्क रहेगा। मैदानी क्षेत्रों में विशेषकर हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर जिलों में छिछले से मध्यम कोहरा रहने की संभावना है। 27 जनवरी को प्रदेश में मौसम शुष्क रहेगा।
बर्फबारी के बाद बढ़ीं मुश्किलें,गंगोत्री-यमुनोत्री हाईवे जगह-जगह बंद;फंसे यात्री
उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी के बाद लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गई है। गंगोत्री-यमुनोत्री हाईवे सहित थल-मुनस्यारी सड़क बंद होने की वजह से जगह-जगह यात्री फंसे हुए हैं। बारिश- बूंदाबादी के कारण रविवार को मौसम के तेवर तल्ख रहे। पूरा उत्तराखंड कड़ाके की ठंड की चपेट में है। पहाड़ी इलाकों में बारिश और कोहरा छाए रहने से कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। वहीं मैदानी क्षेत्र में कोहरा-बूंदाबांदी ने सर्दी का कहर बढ़ा दिया है।
उत्तरकाशी जनपद के ऊंचाई वाले इलाकों में दो दिनों से बर्फबारी का दौर जारी है। इस दौरान जमकर हुई बर्फबारी ने उत्तरकाशी के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बर्फबारी के कारण गंगोत्री-यमुनोत्री राजमार्ग सहित 4 संपर्क मार्ग भी बंद पड़े हैं। केदारनाथ घनसाली और लंबगांव मोटरमार्ग भी बर्फबारी के कारण ठप है।
बीते शनिवार सुबह से जिले में गंगोत्री यमुनोत्री के अलावा हर्षिल, जानकी चट्टी, रैथल, बार्सू, गंगनानी, जखोली, सांकरी सहित आदि क्षेत्रों में बर्फबारी हुई। निचले इलाकों में जमकर बारिश हुई। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग से बीआरओ की टीम ने झाला तक बर्फ को तो हटाया है लेकिन, हाईवे पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाया है। जिसमें फिसलन बनी हुई है।
ऐसे में हाईवे पर पर्यटकों के वाहनों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है। धरासू यमुनोत्री राजमार्ग रविवार की शाम तक बंद रहा। एनएच की टीम ने रविवार की शाम को छोटे वाहनों के लिए राजमार्ग को सुचारू किया। लेकिन, छोटे वाहनों की आवाजाही के दौरान कई स्थानों पर फिसलन बनी हुई है। वहीं हनुमान चट्टी से जानकी चट्टी तक भी मार्ग बंद है। उत्तरकाशी से लंबगांव श्रीनगर मार्ग चौरंगी के आसपास बंद पड़ा हुआ है।
केदारनाथ सहित अनेक स्थानों पर दूसरे दिन भी बर्फबारी..
जिले के केदारनाथ धाम समेत ऊंची चोटियों पर रविवार को दिनभर बर्फवारी हुई। जबकि निचले क्षेत्रों में हल्की बारिश होने मौसम ठंडा हो गया। जिससे जिला मुख्यालय सहित अनेक कस्बों में लोगों की चहल कदली कम देखी गई। रविवार सुबह से ही आसमान में बादल छाने से मौसम गुमशुम रहा। जिसके बाद केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, चन्द्रशिला, चोपता, दुगलविट्टा, कार्तिक स्वामी, देवरियाताल समेत ऊंचाई वाले स्थानों पर दूसरे दिन भी दिनभर बर्फवारी होती रही।
पिछले दो दिन से लगातार हो रही बर्फबारी के चलते जनपद में शीतलहर का प्रकोप भी बढ़ गया। जिला मुख्यालय समेत निचले इलाकों में भी बादलों के साथ बीच-बीच हल्की बारिश होती रही। पूरे दिनभर सूर्यदेव ने दर्शन नहीं दिए। बर्फबारी और बिगड़े मौसम का असर निचले इलाकों में भी देखा जा रहा है। जिले में ठंड से बचने के लिए लोग घरों में ही कैद होने के साथ बाजार के कई कस्बों में व्यापारियों ने अलाव भी जलाए। बर्फबारी के चलते चोपता-गोपेश्वर मार्ग पर आवाजाही प्रभावित हो गई है। जनपद के सीमांत क्षेत्रों में बर्फबारी ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी है।
चकराता की ऊंची पहाड़ियों ने ओढी बर्फ की सफेद चादर, बाजार में एक फीट से अधिक बर्फबारी..
शनिवार सुबह से चकराता की ऊंची चोटियों पर पर शुरु हुई। बर्फबारी का सिलसिला देर रात तक जारी रहा रविवार सुबह तक क्षेत्र की ऊंची चोटियों सहित चकराता बाजार भी बर्फ की सफेद चादर से ढक गया। चकराता बाजार में बर्फबारी हो जाने से यहां आए पर्यटकों ने पड़ रही बर्फ का जमकर लुत्फ उठाया। चकराता बाजार में सीजन की दूसरी व ऊंचाई वाले इलाको में पांचवीं बार जमकर बर्फबारी हुई।
शनिवार सुबह से ही चकराता की ऊंची पहाड़ियों देवबन, खडम्बा, मुंडाली, लोखंडी, व्यास शिखर, लोखंडी, मोयला टॉप, सहित चकराता छावनी बाजार, जाड़ी, मुंगाड, कोटी कनासर, मोहना, इंद्रोली आदि क्षेत्र में बर्फबारी शुरू हो गयी थी। जो पूरे दिन रुक रुक कर चलती रही शनिवार देर शाम से चकराता बाजार में भी जम कर बर्फबारी हो रही है। जो खबर लिखे जाने तक जारी है।
क्षेत्र में शाम से जमकर हुई बर्फबारी से क्षेत्र की ऊंची चोटियाँ बर्फ से लकदक हो गयी जहां लोखंडी में दो फिट के आसपास बर्फ पड़ी वहीं क्षेत्र के देवबन, खडम्बा, बुधेर मोयला टॉप, व्यास शिखर, आदि स्थानों पर तीन फीट से अधिक बर्फबारी की सूचना है। साथ ही चकराता छावनी बाजार में एक फीट से ज्यादा बर्फ पड़ गई है।
व अन्य निचले इलाकों में तीन से छह इंच तक बर्फ पड़ी है। उधर क्षेत्र के खारसी, जाड़ी, कांडोई, भरम, कथियान वैली आदि ऊंचाई वाले इलाकों सहित मोहना सावरा से लेकर कम ऊंचाई वाले इलाकों में भी बर्फबारी की सूचना है। बर्फबारी की खबर लगते ही शनिवार शाम से ही पर्यटकों ने चकराता का रुख करना शुरू कर दिया था। छावनी बाजार व आसपास के होटलो में 50% कमरे कल शाम को ही फुल हो गए थे।
आज सुबह से ही पर्यटक बर्फ में खेलते नजर आए। पर्यटकों ने क्षेत्र में हुई बर्फबारी का जमकर लुत्फ उठाया। विकासनगर से सपरिवार चकराता आये अंकित जैन, जगाधरी के नवप्रीत सिह, देहरादून के ओम शर्मा, आदि का कहना है कि वह कल चकराता पहुंचे थे। दिन तक बर्फ न पड़ने से सब मायूस थे। लेकिन शाम से सुबह तक हुई बर्फबारी से जो नजारा सामने आया यह उन्होंने तस्वीरों में ही देखा था।
मार्ग बंद..
बर्फबारी होने से चकराता त्यूणी मोटर मार्ग यातायात के लिए बाधित हो गया है। मार्ग बंद होने से क्षेत्र के कोटी, लोहारी, बुल्हाड, लेबरा, बायला, उदावा, सहित एक दर्जन से अधिक गांवो के ग्रामीण बर्फबारी से प्रभावित हुए है।
फसलों के लिए लाभदायी..
इस बर्फबारी से गर्मियों में पेयजल की समस्या में कुछ कमी आएगी्र। पानी के श्रोत रिचर्जा होंगे। साथ ही यह बर्फ बागवानों व किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित होगी। बर्फबारी से सेब, खुमानी, आड़ू, पुलम, अखरोट, नाशपती, के अलावा रवि की फसलों को लाभ मिलेगा। गेहूं, मटर, बेमौसमी सब्जी की अच्छी पैदावार होगी। बर्फबारी क्षेत्र में सेब आदि की फसलों के लिए सोना बरसी है। डॉ. संजय सिंह, कृषि विज्ञानकेंद्र ढकरानी
बर्फबारी से थल-मुनस्यारी सड़क बंद, फंसे लोग..
बर्फबारी के बाद थल-मुनस्यारी सड़क बंद रही। इस सड़क के बंद रहने से कई यात्री व पर्यटक वाहन फंसे रहे। पर्यटकों को माइनस 5 डिग्री के बीच वाहनों में बैठकर समय बिताना पड़ा। हिमनगरी सहित कालामुनी, बलाती में बीते शनिवार देर शाम जमकर बर्फबारी हुई। भारी हिमपात से थल-मुनस्यारी सड़क कालामुनी व बलाती में बंद हो गई। सड़क पर जमा 8 इंच से अधिक बर्फ में वाहन फंस गए।
आसमान से गिरती बर्फ व माइनस 5 डिग्री तापमान के बीच पर्यटकों को वाहन में बैठक सड़क खुलने का घंटों इंतजार करना पड़ा। लेकिन राहत नहीं मिली। भारी बर्फबारी के बीच लोनिवि के लिए सड़क से बर्फ हटाना मुश्किल हुआ। मजबूर होकर फंसे पर्यटकों को बिर्थी वापस लौटना पड़ा। किसी तरह 18 घंटे बाद दूसरे दिन रविवार को सड़क से बर्फ हटाकर आवाजाही शुरू कराई जा सकी। सड़क खुलने के बाद पर्यटकों व स्थानीय लोगों ने राहत की सांस ली।
बर्फबारी से निपटने के दावे हवाई..
भले ही बर्फबारी से निपटने के दावे किए जा रहे हों। लेकिन मुनस्यारी में आए दिन बर्फबारी से बंद हो रही सड़क इन दावों को खोखला साबित कर रही है। मुनस्यारी में अब तक पांच बार बर्फबारी हुई है। इसमें से चार बार थल-मुनस्यारी सड़क बंद रही। हैरान करने वाली बात यह है कि पर्याप्त मशीनरी के बाद भी सड़क को खोलने में 12 से 15 घंटे का समय लग रहा है।
बुरांश के फूल से कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज हो सकता है..
IIT मंडी की रिसर्च में किया गया दावा..
हिदेश -विदेश : मालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला बुरांश का फूल कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज हो सकता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित आईआईटी के शोध में यह बात कही गई है। बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोड्रेंड्रॉन अर्बोरियम (Rhododendron arboreum) है। इसके फूल के अर्क का इस्तेमाल पहाड़ पर रहने वाले लोग पीने के लिए करते हैं। इसे जूस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है और खासतौर पर गर्मियों के सीजन में इसे लोग काफी पसंद करते हैं। अब इसको लेकर वैज्ञानिकों ने एक नया शोध किया है जिसमें पाया गया है बुरांश की पंखुड़ियों के अर्क ने कोविड-19 वायरस को बनने से रोका है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं ने इस हिमालयी फूल की पंखुड़ियों में फाइटोकेमिकल्स की पहचान की है, जो संभवत कोविड-19 संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। अब शोध टीम बुरांश की पंखुड़ियों से हासिल विशिष्ट फाइटोकेमिकल्स से कोविड-19 का रेप्लिकेशन रोकने की सटीक प्रक्रिया समझने की कोशिश कर रही है। आईआईटी मंडी और आईसीजीईबी के शोधकर्ताओं ने बुरांश की पंखुड़ियों में फाइटोकेमिकल्स की पहचान की है। इसमें कोविड-19 के संक्रमण के इलाज की संभावना सामने आई है. शोध टीम के निष्कर्ष हाल ही में बायोमॉलिक्युलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
आईआईटी मंडी स्कूल ऑफ बेसिक साइंस में एसोसिएट प्रोफेसर श्याम कुमार मसाकापल्ली के मुताबिक उपचार के विभिन्न एजेंटों का अध्ययन किया जा रहा है। उनमें पौधे से प्राप्त रसायन फाइटोकेमिकल्स से विशेष उम्मीद है क्योंकि उनके बीच गतिविधि में सिनर्जी है और प्राकृतिक होने के चलते विषाक्त करने की कम समस्याएं पैदा होती हैं। हम बहु-विषयी दृष्टिकोण से हिमालयी वनस्पतियों से संभावित अणुओं की तलाश कर रहे हैं।’
पंखुड़ियों में वायरस रोधी गुण..
आईआईटी मंडी और आईसीजीईबी के वैज्ञानिकों ने वायरस रोकने के मद्देनजर शोध में विभिन्न फाइटोकेमिकल्स युक्त अर्क का वैज्ञानिक परीक्षण किया। उन्होंने बुरांश की पंखुड़ियों से फाइटोकेमिकल्स निकाले और इसके वायरस रोधी गुणों को समझने के लिए जैव रासायनिक परीक्षण और कंप्यूटेशनल सिमुलेशन का अध्ययन किया। आईसीजीईबी के रंजन नंदा ने बताया, ‘हमने हिमालय की वनस्पतियों से प्राप्त रोडोड्रेंड्रॉन अर्बोरियम की पंखुड़ियों के फाइटोकेमिकल का प्रोफाइल तैयार किया और परीक्षण किया. इनमें कोविड वायरस से लड़ने की उम्मीद दिखी है।
क्या फिर लौट रही मंडल बनाम कमंडल की राजनीति..
देश – विदश : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले नए राजनीतिक समीकरण भी सामने आ रहे हैं। एक दूसरे के समर्थन में सेंध लगाने के लिए राजनीतिक दल तमाम उपाय कर रहे हैं। आखिर जनता के फैसले का आधार क्या होगा?
बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा बिष्ट यादव को पार्टी में शामिल करके अपने चौदह विधायकों और मंत्रियों के पार्टी छोड़ने के गम को भुलाने और अखिलेश यादव के परिवार में सेंध लगाने की खुशी भले ही मनाई हो लेकिन इतनी बड़ी संख्या में विधायकों और नेताओं के जाने की अभी और कीमत चुकानी पड़ रही है। यूपी बीजेपी में मची इस भगदड़ का फायदा बीजेपी के सहयोगी दल भी उठाने में लगे हैं। यही वजह है कि टिकट बंटवारे पर दिल्ली से लेकर लखनऊ तक लगातार चल रही बैठकों के बावजूद ना तो अभी सहयोगी दलों के साथ सीटों की साझेदारी तय हो सकी है और ना ही उम्मीदवारों के नाम।
बीजेपी बैकफुट पर..
यूपी बीजेपी के एक बड़े नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग के एक दर्जन से ज्यादा विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी बैकफुट पर है और नहीं चाहती कि अब कोई और मौजूदा विधायक पार्टी छोड़े या फिर कोई सहयोगी दल उनसे अलग हो। उनके मुताबिक, “पिछले सात-आठ साल में बीजेपी ने जिस तरह से अन्य पिछड़ी जातियों को पार्टी से जोड़ा है, उस अभियान को पहली बार गहरा धक्का लगा है। इन विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से ना सिर्फ विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान होगा बल्कि पार्टी के सामाजिक आधार को भी नुकसान पहुंचेगा जिसे बड़ी मुश्किल से तैयार किया गया था।”
सहयोगी दलों को देने लगी भाव..
यूपी में बीजेपी की मुख्य रूप से अब दो सहयोगी पार्टियां रह गई हैं- अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी। अपना दल तो बीजेपी के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त से ही गठबंधन में है लेकिन निषाद पार्टी के साथ गठबंधन नया है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद कहते हैं कि बीजेपी ने उन्हें 15 सीटें देने का आश्वासन दिया है लेकिन बीजेपी की ओर से इस बात की अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
बीजेपी निषाद पार्टी को अधिकतम दस सीटें देने पर विचार कर रही है लेकिन इससे पहले पार्टी पांच से ज्यादा सीटें देने को राजी नहीं थी। वहीं अपना दल भी करीब तीस सीटों की मांग कर रही लेकिन बीजेपी उसे पंद्रह से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बीजेपी की तरह अपना दल के भी दो विधायक पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं।
टिकट बंटवारे में समस्या..
बीजेपी के नेता लगातार कह रहे हैं कि पार्टी के भीतर टिकट बंटवारे और सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर किसी तरह की कोई समस्या नहीं है लेकिन समस्या साफ दिख रही है क्योंकि एक हफ्ते से ज्यादा लंबे समय तक हुए मंथन के बावजूद कोई सहमति नहीं बन पा रही है। जहां तक अपना दल का सवाल है तो बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे 11 सीटें दी थीं जिनमें से 9 सीटों पर अपना दल के उम्मीदवार जीते थे। अपना दल के एक विधायक को योगी सरकार में राज्य मंत्री भी बनाया गया है लेकिन पार्टी की लगातार शिकायत रही है कि उसे एक सहयोगी की तरह सम्मान नहीं दिया गया और तमाम नियुक्तियों और दूसरी चीजों में नजरअंदाज किया गया। यहां तक कि पार्टी की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को 2019 में मोदी मंत्रिमंडल में भी नहीं शामिल नहीं किया गया था। काफी दबाव बनाने के बाद कैबिनेट विस्तार में उन्हें मंत्री बनाया गया लेकिन सिर्फ राज्यमंत्री ही।
अपना दल को भाव देने के मूड में नहीं थी भाजपा..
बीजेपी इस बार विधानसभा चुनाव में अपना दल को 11 से ज्यादा सीटें देने को कतई तैयार नहीं थी लेकिन राज्य की राजनीति में बदले नए समीकरणों ने उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, “स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथियों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद जिस तरह से नब्बे के दशक वाली मंडल-कमंडल की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है, उसे देखते हुए दोनों ही पार्टियां अब बीजेपी पर दबाव बना रही हैं और इस स्थिति में बीजेपी इन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाएगी।”
दोनों के ही पास समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में जाने के विकल्प अभी भी खुले हुए हैं, ये बीजेपी को भी पता है। इसलिए बीजेपी पूरी कोशिश करेगी कि इन्हें अपने साथ ही रखा जाए।”
मंडल और कमंडल..
कुछ दिन पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यूपी में लड़ाई 80 बनाम 20 की है। उन्होंने इस अनुपात को बहुत स्पष्ट तो नहीं किया लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उनका इशारा ”हिन्दू बनाम मुसलमान” की ओर था। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य जब बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में गए तो उन्होंने पार्टी दफ्तर में अपने भाषण में इसी तर्ज पर कहा, “लड़ाई 85 बनाम 15 की है।”
मौर्य के बयान से मिले संकेत..
स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, “सरकार बनवाएं दलित-पिछड़े और मलाई खाएं अगड़े 5 फीसदी लोग। आपने 80 बनाम 20 फीसदी का नारा दिया है, लेकिन मैं कह रहा हूं यह 15 बनाम 85 की लड़ाई है। 85 फीसदी हमारा है और 15 फीसदी में भी बंटवारा है।” स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान को नब्बे के दशक की उस राजनीति की ओर लौटने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है जब राममंदिर आंदोलन के चरमोत्कर्ष के दौरान भी दलितों और पिछड़ों की एकजुटता यानी सपा और बसपा के गठबंधन ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया। ये दोनों ही पार्टियां मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद राजनीतिक पटल पर तेजी से उभरीं और उसके बाद यूपी की राजनीति में सरकारें बनाती रहीं।
सोशल इंजीनियरिंग..
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, यूपी में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 21।1 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1।1 फीसदी है जबकि पिछड़ी जातियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। बहुजन समाज की चर्चा जब होती है तब इसी तबके में मुस्लिम समुदाय की आबादी को भी जोड़ दिया जाता है और इस आधार पर दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को 85 फीसदी से ज्यादा बताया जाता है। 85 बनाम 15 की राजनीति का यही आधार है और राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस आधार पर यदि वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो निश्चित तौर पर धर्म के आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण पर वो भारी पड़ेगा।
हालांकि यह भी माना जा रहा है कि तमाम पिछड़ी और अनुसूचित जातियों को अपनी ओर करने की बीजेपी की कोशिशों के बाद अब नब्बे के दशक वाले जातीय ध्रुवीकरण की उम्मीद नहीं है और इस ध्रुवीकरण में दलित समुदाय का एक बड़ा हिस्सा सपा गठबंधन से अलग है और वह या तो बीएसपी के साथ है या फिर बीजेपी के। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि करीब तीन दशक की इस राजनीतिक उठापटक में सिर्फ जातियों के आधार पर ही राजनीतिक रुझान तय नहीं हो रहे हैं बल्कि हर राजनीतिक पार्टी में हर वर्ग के लोग हैं। इस स्थिति में जाति के आधार पर कोई राजनीतिक पार्टी शायद वैसी आक्रामक राजनीति ना कर सके जैसी कि नब्बे के दशक में हो रही थी। सभी को साथ लेकर चलना उसके बाद से ही राजनीतिक दलों की जरूरत बन चुकी है और उसी आधार पर हर पार्टी अपने-अपने तरह से सोशल इंजीनियरिंग में लगी हुई हैं।
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद नोएडा में जब्त किए गए 1.33 करोड़ रुपये..
देश -विदेश : उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नोएडा में बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हो रही है। अभी तक पुलिस और स्टेटिक टीम सवा करोड़ से अधिक नकदी अलग अलग जगह से बरामद कर चुकी है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। इसकी कड़ी में बुधवार को भी 4 लाख रुपये बरामद किए गए।
उत्तर में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद से पुलिस और स्टेटिक टीमों ने भारी मात्रा में नकदी जब्त की है। इसके तहत गौतमबुद्ध नगर से 1 करोड़ 33 लाख 30 हजार 500 रुपये जब्त किए गए हैं। टीम ने अलग अलग जगह से 25 लाख, 5 लाख, 4 लाख और 99 लाख 30 हजार 500 रुपये बरामद किए हैं। खास बात यह है कि जब्त नकदी के संबंध में अभी तक कोई दस्तावेज पेश नहीं किए गए है। रकम को अलग अलग थानों में रखा गया है। इसके दस्तावेज पेश करने के लिए संबंधित व्यक्ति को बुलाया गया है, लेकिन कोई भी पेश नहीं हुआ है।
इनकम टैक्स भी अपने स्तर पर नकदी की जांच कर रही है। आशंका है कि संबंधित नकदी को चुनाव में प्रयोग किया जाना था। बता दें कि चुनाव आयोग ने 8 जनवरी को उत्तर प्रदेश और चार अन्य राज्यों में चुनावों के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसके बाद से ही पुलिस और अन्य टीमें सघन चेकिंग अभियान चलाकर कार्रवाई कर रही है।
इनोवा कार से 4 लाख रुपये बरामद..
नॉलेज पार्क पुलिस व एफएसटी टीम-3 ने बुधवार को चेकिंग के दौरान सेक्टर 151से एक इनोवा कार से 4 लाख रुपये बरामद किए हैं। कार चालक विनीत कुमार मदान नकदी के संबंध में कोई अभिलेख पेश नहीं कर सका। इसके चलते नकदी को सीज कर दिया गया।
कोरोना के नए केसों ने डराया,एक्टिव मामले 18 लाख से ज्यादा..
देश – विदेश : बीते 4 दिनों में कोरोना वायरस के नए केसों में जो कमी देखने को मिल रही थी, वह फिर से खत्म हो गई है। बुधवार को आए बीते एक दिन के आंकड़े में कोरोना के 2 लाख 83 हजार नए केस मिले हैं। इसके साथ ही देश भर में कुल सक्रिय मामलों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए 18 लाख 31 हजार हो गई है। हालांकि राहत की बात यह है कि एक तरफ कोरोना के नए केस 2,82,970 मिले हैं तो वहीं इसी दौरान 1 लाख 88 हजार से ज्यादा लोगों ने कोरोना को मात दी है। कोरोना के नए केसों में जिस तेजी से इजाफा हो रहा है, उससे माना जा रहा है कि अगले दो दिनों में आंकड़ा 20 लाख के पार हो सकता है।
देश में अब तक मिले कुल केसों की तुलना में एक्टिव मामले फिलहाल 4.83 फीसदी हैं। इसके अलावा रिकवरी रेट भी लगातार तेजी से घट रहा है और यह अब 93.88 पर्सेंट है। हालांकि एक्सपर्ट्स के मुताबिक राहत की बात यह है कि कोरोना की तीसरी लहर के दौरान नए केसों का आंकड़ा 4 लाख के पार नहीं जाएगा। इससे पहले कुछ अनुमानों में यह संख्या 4 से 8 लाख तक पहुंचने की बात कही गई थी। इस बीच कोरोना के डेली पॉजिटिविटी रेट की बात करें तो यह 15.13 पर्सेंट हो गया है, जबकि वीकली पॉजिटिविटी रेट 15.53 फीसदी है।
ओमिक्रॉन वैरिएंट के केस 9 हजार के करीब..
कोरोना के बढ़ते केसों के बीच थोड़ी सी राहत यह भी है कि इस बार दूसरी लहर की तरह ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ रही है। यही नहीं जिस ओमिक्रॉन वैरिएंट के तेजी से फैलने के दावे किए जा रहे थे, उसके मामले भारत में बहुत ज्यादा नहीं हैं। देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले फिलहाल 8,961 ही हैं। इससे साफ है कि तीसरी लहर में जो नए केस मिल रहे हैं, उसकी वजह ओमिक्रॉन वैरिएंट नहीं है बल्कि डेल्टा वैरिएंट के चलते ऐसा हो रहा है। देश में कोरोना टीकाकरण की बात करें तो अब तक 158 करोड़ से ज्यादा टीके लग चुके हैं। इसके अलावा 4 करोड़ के करीब किशोरों को भी कोरोना का टीका लगाया जा चुका है।