मुख्तार अब्बास नकवी
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री
वैसे तो अगस्त माह इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं के पन्नों से भरपूर है। 8 अगस्त भारत छोडो आंदोलन, 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 19 अगस्त विश्व मानवीय दिवस, 20 अगस्त सद्भावना दिवस, 5 अगस्त को 370 खत्म होना, जैसे इतिहास के सुनहरे लफ्जों में लिखे जाने वाले दिन हैं।
वहीं 1 अगस्त, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा, कुरीति से मुक्त करने का दिन, भारत के इतिहास में मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में दर्ज हो चुका है। तीन तलाक या तिलाके बिद्दत जो ना संवैधानिक तौर से ठीक था, ना इस्लाम के नुक्तेनजर से जायज़ था। फिर भी हमारे देश में मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न से भरपूर गैर-क़ानूनी, असंवैधानिक, गैर-इस्लामी कुप्रथा तीन तलाक वोट बैंक के सौदागरों के सियासी संरक्षण में फलता- फूलता रहा।
1 अगस्त 2019 भारतीय संसद के इतिहास का वह दिन है जिस दिन कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम तथाकथित सेक्युलरिज़्म के सियासी सूरमाओं के विरोध के बावजूद तीन तलाक कुप्रथा को ख़त्म करने के विधेयक को कानून बनाया गया। देश की आधी आबादी और मुस्लिम महिलाओं के लिए यह दिन संवैधानिक-मौलिक-लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया। यह दिन भारतीय लोकतंत्र और संसदीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों का हिस्सा रहेगा।
तीन तलाक कुप्रथा के खिलाफ कानून तो 1986 में भी बन सकता था जब शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बड़ा फैसला लिया था। उस समय लोकसभा में अकेले कांग्रेस सदस्यों की संख्या 545 में से 400 से ज्यादा और राज्यसभा में 245 में से 159 सीटें थी। मगर कांग्रेस की राजीव गाँधी सरकार ने 5 मई 1986 को इस संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और तीन तलाक क्रूरता-कुप्रथा को ताकत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संसद में संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल किया।
कांग्रेस ने कुछ दकियानूसी कट्टरपंथियों के कुतर्कों और दबाव के आगे घुटने टेक कर मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित करने का आपराधिक पाप किया था। कांग्रेस के लम्हों की खता मुस्लिम महिलाओं के लिए दशकों की सजा बन गई। जहाँ कांग्रेस ने सियासी वोटों के उधार की चिंता की थी, वहीँ मोदी सरकार ने सामाजिक सुधार की चिंता की।
भारत संविधान से चलता है। किसी शरीयत या धार्मिक कानून या व्यवस्था से नहीं। इससे पहले भी देश में सती प्रथा, बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए भी कानून बनाये गए। तीन तलाक कानून का किसी मजहब, किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं था। शुद्ध रूप से यह कानून एक कुप्रथा, क्रूरता, सामाजिक बुराई और लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए पारित किया गया। यह मुस्लिम महिलाओं के समानता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा विषय था। मौखिक रुप से तीन बार तलाक़ कह कर तलाक देना। पत्र, फ़ोन, यहाँ तक की मैसेज, व्हाट्सऐप के जरिये तलाक़ दिए जाने के मामले सामने आने लगे थे। जो कि किसी भी संवेदनशील देश-समावेशी सरकार के लिए अस्वीकार्य था।
दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर-क़ानूनी और गैर-इस्लामी घोषित कर ख़त्म कर दिया था। मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश है जिसने 1929 में तीन तलाक को ख़त्म किया, गैर क़ानूनी एवं दंडनीय अपराध बनाया। 1929 में सूडान ने तीन तलाक पर प्रतिबन्ध लगाया। 1956 में पाकिस्तान ने, 1972 बांग्लादेश, 1959 में इराक, सीरिया ने 1953 में, मलेशिया ने 1969 में इस पर रोक लगाई। इसके अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, क़तर, यूएई जैसे इस्लामी देशों ने तीन तलाक ख़त्म किया और कड़े क़ानूनी प्रावधान बनाये। लेकिन भारत को मुस्लिम महिलाओं को इस कुप्रथा के अमानवीय जुल्म से आजादी दिलाने में लगभग 70 साल लग गए।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2017 को तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। जहाँ कांग्रेस ने अपने संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए किया था, वहीँ मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक,मौलिक,लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए फैसला किया।
आज एक वर्ष हो गया है। इस दौरान तीन तलाक या तिलाके बिद्दत की घटनांओं में 82 प्रतिशत से ज्यादा की कमीं आई है। जहाँ ऐसी घटना हुई भी है वहां कानून ने अपना काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हर वर्ग के सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार को समर्पित है। कुछ लोगों का कुतर्क होता है कि मोदी सरकार को सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के तलाक की ही चिंता क्यों है? उनके आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए कुछ क्यों नहीं करते ? तो उनकी जानकारी के लिए बताना चाहता हूँ कि इन पिछले 6 वर्षों में मोदी सरकार के समावेशी विकास-सर्वस्पर्शी सशक्तिकरण के प्रयासों का लाभ समाज के सभी वर्गों के साथ मुस्लिम महिलाओं को भी भरपूर हुआ है।
पिछले छह वर्षो में 3 करोड़, 87 लाख अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप दी गई, जिसमें 60 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। पिछले 6 वर्षो में हुनर हाट के माध्यम से लाखों दस्तकारों-शिल्पकारों को रोजगार-रोजगार के मौके मिलें, जिनमे बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। सीखों और कमाओं , गरीब नवाज़ स्वरोजगार योजना, उस्ताद, नई मंजिल, नई रौशनी आदि रोजगारपरक कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से पिछले 6 वर्षों में 10 लाख से ज्यादा अल्पसंख्यकों को रोजगार और रोजगार के मौके उपलब्ध कराये गए हैं, जिनमे बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार के अंतरगर्त 2018 में शुरू की गई बिना मेहरम (पुरुष रिश्तेदार) के महिलाओं को हज पर जाने की प्रक्रिया के तहत अब तक बिना मेहरम के हज पर जाने वाली महिलाओं की संख्या 3040 हो चुकी है। इस वर्ष भी 2300 से अधिक मुस्लिम महिलाओं ने बिना मेहरम के हज पर जाने के लिए आवेदन किया था। इन महिलाओं को हज 2021 में इसी आवेदन के आधार पर हज यात्रा पर भेजा जायेगा। साथ ही अगले वर्ष भी जो महिलाएं बिना मेहरम हज यात्रा हेतु नया आवेदन करेंगी उन सभी को भी हज यात्रा पर भेजा जायेगा।
मोदी सरकार की अन्य सामाजिक सशक्तिकरण योजनाओं का लाभ मुस्लिम महिलाओं को भरपूर हुआ है। यही वजह है कि आज विपक्ष भी यह नहीं कह पाता कि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे कामों में किसी भी वर्ग के साथ भेद-भाव हुआ है, मोदी सरकार के सम्मान के साथ सशक्तिकरण, बिना तुष्टिकरण विकास का नतीजा है कि 2 करोड़ गरीबों को घर दिया तो उसमे 31 प्रतिशत अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समुदाय हैं। 22 करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत लाभ दिया, तो उसमे भी 33 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब किसान हैं। 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिया तो उसमे 37 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार लाभान्वित हुए। 24 करोड़ लोगों को मुद्रा योजना के तहत व्यवसाय सहित अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आसान ऋण दिए गए हैं, जिनमे 36 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यकों को लाभ हुआ। दशकों से अँधेरे में डूबे हजारों गांवों में बिजली पहुंचाई तो इसका बड़ा लाभ अल्पसंख्यकों को हुआ। इन सभी योजनाओं का लाभ बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाओं को भी हुआ है और वो भी तरक्की के सफल सफर की हमसफ़र बनी हैं।
(PIB)
ग्राहकों के साथ आए दिन होने वाले धोखाधड़ी को रोकने के लिए मोदी सरकार ने सोमवार 20 जुलाई से नया उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू कर दिया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 लागू होने के बाद उपभोक्ताओं को व्यापक अधिकार मिलेंगे। यह उपभोक्ता संरक्षण कानून-1986 का स्थान लेगा। नए कानून के तहत उपभोक्ता किसी भी उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा सकेगा। भ्रामक विज्ञापनों पर जुर्माना एवं जेल जैसे प्रावधान जोड़े गए हैं। पहली बार ऑनलाइन और टेलीशॉपिंग कंपनियों को भी कानून के दायरे में लाया गया है।
केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण बिल-2019 को संसद के उच्च सदन में 8 जुलाई 2019 को पेश किया था। यह 30 जुलाई, 2019 को लोकसभा में पास हो गया था और उसके बाद 6 अगस्त, 2019 को राज्यसभा ने इसे पारित कर दिया था। इस बिल पर पिछले साल 9 अगस्त को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने हस्ताक्षर किए थे। पहले इस कानून को जनवरी में लागू किया जाना था, जिसे बाद में मार्च कर दिया गया। मार्च में कोरोना के प्रकोप और लॉकडाउन के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका था। अब 20 जुलाई से सरकार ने इसे लागू कर दिया है। इसके लागू हो जाने के बाद उपभोक्ता की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई शुरू हो जाएगी। खासकर अब ऑनलाइन कारोबार में उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी भी कंपनियों पर भारी पड़ सकती है।
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपने मूल देश समेत रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी और गांरटी, डिलीवरी एवं शिपमेंट, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीके, भुगतान के तरीकों की सुरक्षा, शुल्क वापसी संबंधित विकल्प आदि के बारे में सूचना देना अनिवार्य है। इससे उपभोक्ता को अपने प्लेटफॉर्म पर खरीददारी करने से पहले उपयुक्त निर्णय लेने में सहूलियत होगी। अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को 48 घंटों के भीतर उपभोक्ता को शिकायत प्राप्ति की सूचना देनी होगी और शिकायत प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उसका निपटारा करना होगा।
अधिनियम में एक सक्षम न्यायालय द्वारा मिलावटी अथवा नकली सामानों के निर्माण या बिक्री के लिए सजा का प्रावधान है। पहली बार दोषी पाए जाने की स्थिति में संबंधित अदालत दो साल तक की अवधि के लिए व्यक्ति को जारी किए गए किसी भी लाइसेंस को निलंबित कर सकती है। दूसरी बार या उसके बाद दोषी पाए जाने पर उस लाइसेंस को रद्द कर सकती है। अब उपभोक्ता के साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी करना किसी भी उत्पादक व सेवा कम्पनी के लिए महंगा साबित होगा। नए काननू में उपभोक्ता को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। नए अधिनियम से भ्रामक विज्ञापनों पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा, जो लोगों को भ्रमित व गुमराह कर कारोबार करते थे। किसी उत्पाद के संबंध में गलत और भ्रामक विज्ञापन देने पर जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून के लागू होने के बाद विभिन्न विज्ञापनों में काम करने वाली सेलिब्रेटी को सोच-समझ कर ब्रांड अथवा उत्पाद का प्रचार करना पड़ेगा। अन्यथा वो भी कानून के फंदे में फंस सकते हैं।
इसी प्रकार, खाद्य पदार्थों में मिलावट करने, हानिकारक खाद्य पदार्थ बनाने और बेचने पर भी जेल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। नए उपभोक्ता संरक्षण काननू के प्रावधानों के मुताबिक अब कंज्यूमर फोरम यानी उपभोक्ता अदालत में जनहित याचिका दायर की जा सकती है। उपभोक्ता देश के किसी भी उपभोक्ता अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। इसके अलावा, पक्षों के बीच आपसी सहमति से मध्यस्थता का विकल्प चुनने और मध्यस्थता से विवादों के निपटारे के लिए उपभोक्ता मध्यस्थता सेल का गठन करने का भी प्रावधान है।
उपभोक्ता संरक्षण कानून देता है ये 6 अधिकार
1- सुरक्षा का अधिकार- इसके तहत ग्राहक को किसी गुड्स या सर्विस की मार्केटिंग से जीवन या प्रॉपर्टी के नुकसान से बचाया जाता है।
2- सूचना का अधिकार- ग्राहक को पूरा अधिकार है कि उसे प्रोडक्ट की क्वालिटी, उसकी मात्रा, शुद्धता, कीमत आदि के बारे में सही जानकारी दी जाए।
3- छांटने का अधिकार- इसके तहत ग्राहक को गुड्स और सर्विसेस की कई वैरायटी उपलब्ध कराई जाती हैं, ताकि वह अपने अनुकूल गुड्स या सर्विस को छांट सके।
4- सुने जाने का अधिकार- ग्राहक को सुने जाने का पूरा अधिकार है। उसे किसी तरह की दिक्कत होने पर फोरम में उसकी शिकायत को सुना जाएगा।
5- किसी भी गलत प्रैक्टिस के खिलाफ शिकायत करने का भी ग्राहक को अधिकार है, ताकि उसका शोषण ना हो।
6- कंज्यूमर एजुकेशन का अधिकार – यानी एक ग्राहक अपनी पूरी जिंदगी एक पूरी जानकारी रखने वाला ग्राहक रहेगा, जिससे वह शोषण से बचा रहेगा।
देश में कोविड-19 से मृत्यु दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। यह आज घटकर 2.46% रह गई है। भारत दुनिया में सबसे कम मृत्यु दर वाले देशों में से एक है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देखभाल प्रोटोकॉल के मानक को अच्छी तरह लागू करते हुए कोविड संक्रमण के मध्यम और गंभीर मरीजों के प्रभावी नैदानिक उपचार से कोविड मरीजों को बड़ी संख्या में स्वस्थ होना सुनिश्चित किया जा सका है। केंद्र सरकार सामूहिक रूप से कोविड-19 का मुकाबला करने में राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों की मदद कर रही है। ऐसी ही एक पहल एम्स, नई दिल्ली का ई-आईसीयू कार्यक्रम है। एम्स ने मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से 11 राज्यों के 43 बड़े अस्पतालों को आईसीयू रोगियों के नैदानिक प्रबंधन में विशेषज्ञों के अनुभवों को साझा करने और तकनीकी सलाह के माध्यम से मदद की है। इससे गंभीर मरीजों की देखभाल और उपचार में उनकी क्षमता में काफी वृद्धि हुई है।
अब तक 7 लाख से अधिक मरीजों को कोविड-19 के संक्रमण से ठीक कर दिया गया है और उन्हें अस्पताल से छुट्टी देकर घर भेज दिया गया है। इसके साथ ही कोविड-19 के सक्रिय रोगियोंकी संख्या और इस बीमारी से ठीक होने वाले लोगों की संख्या (7,00,086)के बीच का अंतर बढ़कर 3,09,627 हो गया है। पिछले 24 घंटों में कोविड-19 के संक्रमण से 22,664 मरीज स्वस्थ हुए हैं। इसके साथ ही इस बीमारी से ठीक होने की दर बढ़कर अब 62.62% है। अस्पतालों और घरों में आईसोलेशन में रहकर इलाज करा रहे सभी 3,90,459 मरीजों पर चिकित्सकीय ध्यान दिया जा रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 से संबंधित तकनीकी मुद्दों, दिशा-निर्देशों एवं परामर्शों पर सभी प्रामाणिक और अद्यतन जानकारी के लिए कृपया नियमित रूप से
मंत्रालय की वेबसाइट पर दी जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 से संबंधित तकनीकी सवाल के लिए technicalquery.covid19@gov.in और अन्य सवालों के लिए ncov2019@gov.in मेल आईडी जारी की है। इसके अलावा कोविड-19 को लेकर यदि कोई सवाल हो तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के हेल्पलाइन नंबर: + 91-11-23978046 या 1075 (टोल-फ्री) पर कॉल कर प्राप्त की जा सकती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विभिन्न मुद्दों पर संवेदनशीलता व सक्रियता समय-समय पर प्रदर्शित होती रहती है। खास कर सेना से जुड़े मामलों में उनकी तत्परता विपक्षियों को भी हैरान कर डालती है। सेना के मान-सम्मान की बात हो या सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का मसला, मोदी हर मौके पर मोर्चे पर नजर आते हैं।
शनिवार को देहरादून में करीब डेढ़ दर्जन सैनिकों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की खबर मिली, तो रविवार को प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से फोन पर सैनिकों के बारे में जानकारी ली और उनका हाल जाना। प्रधानमंत्री ने कोरोना संक्रमित हुए सैनिकों के स्वास्थ्य लाभ की कामना की और कहा कि राज्य सरकार व सेना के अधिकारी आपसी समन्वय बनाए रखते हुए सैनिकों के समुचित इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को जानकारी दी कि प्रदेश सरकार सेना से लगातार सम्पर्क में है। सेना को आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य में कोविड-19 की अद्यतन स्थिति की जानकारी देते हुए कहा कि पिछले दिनों कोरोना पाजिटिव मामलों में वृद्धि हुई है। मगर स्थिति नियंत्रण में है। राज्य में सर्विलांस व सेम्पलिंग में काफी बढ़ोतरी की गई है। आईसीयू, वेंटिलेटर व आक्सीजन सपोर्ट की सुविधाएं भी लगातार बढ़ाई जा रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने बरसात को देखते हुए राज्य में आपदा प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार से आवश्यकतानुसार हर सहयोग दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड-19 और आपदा प्रबंधन की निरंतर समीक्षा की जा रही है।
मोदी सरकार का मानना है कि जल जीवन मिशन से महिलाओं व बालिकाओं पर मेहनत का बोझ कम होगा। क्योंकि उन पर ही मुख्य रूप से पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है।
मोदी सरकार ने सबको स्वच्छ पेयजल पहुंचाने के लिए विगत वर्ष अगस्त माह में जल जीवन मिशन का शुभारम्भ किया था। मिशन के तहत विगत 7 महीनों में लगभग 84.83 लाख ग्रामीण घरों को नल कनेक्शन उपलब्ध कराए जा चुके हैं। कोविड-19 महामारी के बीच अनलॉक-1 के बाद लगभग 45 लाख नल कनेक्शन उपलब्ध करा दिए गए हैं। इस प्रकार, रोजाना लगभग 1 लाख घरों को नल कनेक्शन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
काम की गति के अंदाज से मोदी सरकार का मिशन को लेकर गंभीरता का पता चलता है। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य में बताया गया है कि योजना में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, हर संपदा की जिओ-टैगिंग की जा रही है और कनेक्शनों को ‘परिवार के मुखिया’ के ‘आधार’ से जोड़ा जा रहा है। जिला स्तर पर मिशन की प्रगति का संकेत देने वाला एक डैशबोर्ड तैयार किया गया है और यह मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
मिशन की शुरुआत के बाद राज्यों से बेसलाइन डाटा को पुनः सत्यापित करने का अनुरोध किया गया था, जिसके तहत पता चला कि देश के 19.04 करोड़ ग्रामीण घरों में 3.23 करोड़ घरों को पहले ही नल कनेक्शन दिए जा चुके हैं। शेष 15.81 करोड़ घरों को नल कनेक्शन उपलब्ध कराए जाने हैं। इस प्रकार समयबद्ध तरीके से 16 करोड़ घरों को इस योजना में कवर किया जाना है, वहीं पहले से उपलब्ध कनेक्शनों की कार्यशीलता भी सुनिश्चित करनी है। इसका मतलब है कि हर साल 3.2 करोड़ घरों को कवर किया जाना है, जिसके लिए दैनिक आधार पर 88,000 नल कनेक्शन उपलब्ध कराने होंगे। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, राज्य/संघ शासित राज्य हर ग्रामीण घर में नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
जल जीवन मिशन ( जेजेएम ) में बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का प्रदर्शन शानदार रहा है।2020-21 में जेजेएम के कार्यान्वयन के लिए कुल 23,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। वर्तमान में मिशन के कार्यान्वयन के लिए राज्यों/ संघ शासित राज्योंको 8,000 करोड़ रुपये का केन्द्रीय कोष उपलब्ध है। इसके अलावा, 2020-21 में ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 15वें वित्त आयोग के अनुदान का 50 प्रतिशत जल आपूर्ति और स्वच्छता के लिए निर्धारित किया गया है, जो 30,375 करोड़ रुपये के बराबर है। इस धनराशि का 50 प्रतिशत हिस्सा इस माह की 15 जुलाई को जारी कर दिया गया है। इससे उन्हें गांवों में पेयजल आपूर्ति प्रणालियों के लिए बेहतर योजना बनाने, कार्यान्वयन, प्रबंधन, परिचालन और रखरखाव में सहायता मिलेगी।
मोदी सरकार मिशन के तहत यूएन एजेंसियों सहित प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, एनजीओ, सीबीओ, सीएसआर संगठनों, ट्रस्टों, फाउंडेशंस आदि के साथ भागीदारी की संभावनाएं तलाश रही है। सरकार को उम्मीद है कि पानी अगला जनांदोलन बनकर सामने आएगा और यह हर किसी की जिम्मेदारी बन जाएगा, जिसे अभी तक सिर्फ सरकारी क्षेत्र के दायित्व के रूप में देखा जाता रहा है। इसीलिए मिशन के तहत सभी के लिए पेयजल सुरक्षा हासिल करने के लिए विभिन्न संस्थानों/व्यक्तियों के साथ भागीदारी तथा मिलकर काम करने पर जोर देता है।
जल शक्ति मंत्रालय 2024 तक देश में हर ग्रामीण घर को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर पर्याप्त मात्रा में सुझाई गई गुणवत्ता वाला पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्यों के साथ भागीदारी में जल जीवन मिशन (जेजेएम) का कार्यान्वयन कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत वर्ष 15 अगस्त को इस मिशन की घोषणा की थी। इसके लिए 25 दिसंबर, 2019 को परिचालन दिशा – निर्देश जारी कर दिए गए थे। जल शक्ति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय मिशन इसके कार्यान्वयन के लिए राज्यों/संघ शासित राज्यों के साथ मिलकर प्रयास कर रहा है। इस वर्ष मार्च-मई के दौरान सघन ग्राम वार विश्लेषण कार्य किया गया था। इस आधार पर राज्यों की कार्य योजनाएं तैयार की गईं।
केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मिशन के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए राज्यों और संघ शासित राज्योंके मुख्यमंत्रियों/उप राज्यपालों के साथ नियमित रूप से बैठक कर रहे हैं। राज्यों ने गांवों, विकास खंडों और जिलों में 100 प्रतिशत कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन (एफएचटीसी) कवरेज और अंततः राज्यों को ‘हर घर जल राज्य’ बनाने की योजना तैयार की है।
विभिन्न राज्यों/ संघ शासित राज्यों ने 2024 से पहले ही मिशन के लक्ष्य को हासिल करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। बिहार, गोवा, पुडुचेरी और तेलंगाना ने वर्ष 2021 में, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, मेघालय, पंजाब, सिक्किम व उत्तर प्रदेश ने 2022 में इस कार्य को पूरा करने की योजना बनाई है। वहीं अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ ने 2023 में, असम, आंध्र प्रदेश, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ने 2024 तक 100 प्रतिशत कवरेज हासिल करने की योजना बनाई है।
इस मिशन का उद्देश्य सार्वभौमिक कवरेज हासिल करना है और इसमें समानता और समावेशन के सिद्धांत पर जोर दिया गया है। ताकि गांव में हर परिवार को उनके घर पर ही नल कनेक्शन मिले और कोई भी इससे वंचित न रहे। इस क्रम में राज्य एससी/एसटी बहुल गांवों, आकांक्षी जिलों, सूखा प्रभावित और रेगिस्तानी क्षेत्रों तथा पानी की खराब गुणवत्ता वाली बस्तियों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
जापानी इंसेफ्लाइटिस/एक्यूट इंसेफ्लाइटिस (जेई/एईएस) से प्रभावित जिलों पर विशेष जोर दिया गया है, जो प्रभावित जिलों में शिशु मृत्यु की वजहों में से एक है। अभी तक 5 राज्यों असम, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 61 जेई/एईएस प्रभावित जिलों में 3.01 करोड़ घर हैं। इनमें से 27.32 लाख (9 प्रतिशत) घरों में ही एफएचटीसी हैं और बाकी 2.74 करोड़ घरों (91 प्रतिशत) को जेजेएम के अंतर्गत एफएचटीसी उपलब्ध कराए जाने हैं।
जेजेएम के अंतर्गत खराब गुणवत्ता वाले पानी से प्रभावित बस्तियों में पीने योग्य पानी की आपूर्ति सबसे पहली प्राथमिकता है। इसके पीछे फ्लूरोसिस और आर्सेनिकोसिस के दुष्प्रभावों में कमी लाना है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अंतरिम आदेश के प्रकाश में राज्यों को इस वर्ष दिसंबर तक आर्सेनिक और फ्लूरॉइड प्रभावित बस्तियों के सभी घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी है।
एक विकेंद्रीयकृत कार्यक्रम होने के कारण ग्राम स्तर पर न्यूनतम 50 प्रतिशत महिला सदस्यों के साथ ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियां (वीडब्ल्यूएससी)/ग्राम पंचायत की उप समिति के रूप में पानी समिति का गठन किया जा रहा है, जो जल संसाधन विकास, आपूर्ति, ग्रे वाटर (उत्सर्जित जल) प्रबंधन और परिचालन व रखरखाव पर विचार करते हुए ग्राम कार्य योजनाएं (वीएपी) तैयार करने के लिए जिम्मेदार हैं। जेजेएम का उद्देश्य ग्राम पंचायत या उसकी उप समिति के सदस्यों की क्षमता बढ़ाना भी है, जिससे गांव में एक ‘उत्तरदायी’ और ‘जिम्मेदार’ नेतृत्व तैयार किया जा सके। ताकि यह सदस्य गांव में जल आपूर्ति के आधारभूत ढांचे का प्रबंधन, योजना, परिचालन एवं रखरखाव जैसे काम कर सके। वहीं कई राज्यों ने पानी समिति के सदस्यों को ऑनलाइन प्रशिक्षण देने का काम पहले ही शुरू कर दिया है।
जेजेएम के अंतर्गत, स्रोतों की मजबूती, जल संरक्षण, भूमिगत जल को बढ़ाना, जल शोधन और ग्रे वाटर प्रबंधन आदि के लिए निचले यानी ग्राम/ ग्राम पंचायत के स्तर पर केन्द्रीय योजना पर जोर दिया गया है। इसके लिए मनरेगा के संसाधनों, 15वें वित्त आयोग के पीआरआई के लिए अनुदानों, एसबीएम (जी), जिसका खनिज विकास कोष, सीएसआर कोष, स्थानीय क्षेत्र विकास कोष आदि का उपयोग किया जाना चाहिए।जेजेएम के अंतर्गत ग्रामीणों राजगीरी, प्लम्बिंग, इलेक्ट्रिकल पहलुओं, मोटर मरम्मत आदि ‘कौशल’ को भी बढ़ावा दिया गया है। कुशल, अर्ध कुशल और अकुशल कामगारों को जोड़ने की संभावनाओं को देखते हुए जेजेएम को गरीब कल्याण रोजगार योजना (जीकेआरए) से भी जोड़ा गया है, जिसके तहत सार्वजनिक ढांचा तैयार करने के काम में प्रवासी कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस योजना को 6 राज्यों के 25,000 गांवों में लागू किया जा रहा है।
पेयजल परीक्षण प्रयोगशालाओं के माध्यम से जल आपूर्ति की निगरानी एक महत्वपूर्ण पहलू है। इन प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाने और उन्हें एनएबीएल द्वारा मान्यता दिलाने पर जोर दिया गया है। राज्यों को आम जनता के लिए जल गुणवत्ता प्रयोगशालाएं खोलनी हैं, जिसके लिए ग्रामीण महिलाएं आगे आ सकती हैं और अपने घरों में आने वाले पानी की गुणवत्ता की जांच करा सकती हैं।
जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार समुदाय पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए सक्षम हो रहे हैं। इसके लिए गांवों में पांच ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया गया है और इसमें महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके साथ ही ग्रामीण गांवों में ही पानी की जांच कर सकते हैं। इसका उद्देश्य पीने के पानी के लिए एक विश्वसनीय व्यवस्था तैयार करना है। जल गुणवत्ता की निगरानी के तहत प्रत्येक स्रोत की साल में एक बार रासायनिक मानदंडों पर और दो बार जीवाणु संबंधी संदूषण (मानसून से पहले और बाद में) के लिए परीक्षण किए जाने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री मोदी के वित्तीय समावेशन, घरों, सड़क, स्वच्छ ईंधन, बिजली, शौचालय, जल जीवन मिशन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराकर ग्रामीण क्षेत्रों में ‘जीवन सुगमता’ सुनिश्चित के आह्वान के क्रम में हर ग्रामीण को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। मोदी सरकार का मानना है कि जल जीवन मिशन से महिलाओं व बालिकाओं पर मेहनत का बोझ कम होगा। क्योंकि उन पर ही मुख्य रूप से पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है।
कोविड -19 के वैक्सीन जाइकोव–डी का क्लिनिकल ट्रायल शुरू
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) द्वारा लागू किये गए राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के तहत भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित वैक्सीन खोज कार्यक्रम के नैदानिक परीक्षण चरण की शुरुआत हो गयी है।
बीआईआरएसी ने घोषणा की है कि जाइडस द्वारा डिजाइन और विकसित प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन जाइकोव – डी के नैदानिक परीक्षणों की शुरुआत हो गयी है। यह कार्यक्रम भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित है। यह कोविड – 19 के लिए पहला स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन है, जिसके स्वस्थ मनुष्यों पर परीक्षण चरण की शुरुआत हो गयी है।
अनुकूलन चरण I / II के तहत खुराक वृद्धि के साथ बहु-केंद्रित अध्ययन वैक्सीन की सुरक्षा, सहनीयता और प्रतिरक्षा क्षमता का आकलन करेगा। फरवरी 2020 में कोविड – 19 के लिए त्वरित वैक्सीन विकास कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद से वैक्सीन का मानव पर परीक्षण चरण की शुरुआत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
डीबीटी की सचिव और बीआईआरएसी की चेयरपर्सन डॉ. रेणु स्वरूप ने कहा, “भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने नेशनल बायोपार्मा मिशन के तहत कोविड – 19 के लिए एक स्वदेशी वैक्सीन के तेजी से विकास के लिए जाइडस के साथ साझेदारी की है। जाइडस के साथ यह साझेदारी महामारी से लड़ने के लिए देश की वैक्सीन की जरूरत को पूरा करने के लिए है। महामारी ने एक अरब लोगों को जोखिम में डाल दिया है। इस तरह के शोध प्रयास, भविष्य में होने वाली बीमारी के प्रकोपों के खिलाफ निवारक रणनीतियों को विकसित करने में देश की मदद करेंगे और हमारे समाज के प्रासंगिक मुद्दों के समाधान के लिए नए उत्पाद नवाचार को पोषण और प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के फोकस को बढ़ावा देंगे। “
उन्होंने यह भी उल्लेख किया, “यह आत्मनिर्भर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि जाइडस ने स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन के मानव नैदानिक परीक्षण चरण की शुरुआत कर दी है। हम आशा करते हैं, कि यह वैक्सीन सकारात्मक परिणाम दिखायेगी क्योंकि अभी तक पूर्व-नैदानिक चरण में इसके सकारात्मक परिणाम आये हैं जहाँ इसे सुरक्षित, सहनीय और प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने वाला पाया गया है। यह भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। ”
जाइडस कैडिला के चेयरमैन पंकज आर पटेल ने कहा, “इस महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है और इससे देश को इस स्वास्थ्य संबंधी चुनौती का सामना करने में मदद मिलेगी। हम बीआईआरएसी और जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने कोविड – 19 को रोकने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन की खोज में हमें समर्थन प्रदान किया। “
जाइकोव –डी के बारे में
प्री-क्लिनिक चरण में, यह पाया गया कि वैक्सीन से चूहों, सूअरों और खरगोशों जैसे कई जानवरों की प्रजातियों में मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हुई है। वैक्सीन द्वारा उत्पादित एंटीबॉडी वायरस को बेअसर करने में सक्षम थे, जो वैक्सीन की सुरक्षात्मक क्षमता को दर्शाता है। दोबारा खुराक देने के बाद भी वैक्सीन के लिए कोई सुरक्षा चिंता नहीं देखी गयी। खरगोशों में, मानव के लिए अपेक्षित खुराक से तीन गुना तक सुरक्षित, सहनीय और प्रतिरक्षा को बेहतर बनाने वाला पाया गया।
जाइकोव –डी के साथ, कंपनी ने देश में डीएनए वैक्सीन प्लेटफ़ॉर्म को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इसके लिए गैर-प्रतिकृति और गैर-एकीकृत प्लास्मिड का उपयोग किया गया है जिसे बहुत सुरक्षित माना जाता है। इसके अलावा, वेक्टर प्रतिक्रिया और संक्रामक एजेंट की अनुपस्थिति में, यह प्लेटफॉर्म न्यूनतम जैव सुरक्षा आवश्यकताओं (बीएसएल -1) के साथ वैक्सीन के निर्माण को आसान बनाता है। इस प्लेटफ़ॉर्म में वैक्सीन स्थिरता बेहतर होती है और इसकी कोल्ड चेन आवश्यकता भी कम होती है जिससे देश के दूरस्थ क्षेत्रों में इसका परिवहन आसान हो जाता है। इसके अलावा, इस प्लेटफॉर्म में कुछ हफ़्ते के अन्दर वैक्सीन को संशोधित किया जा सकता है, यदि वायरस रूपांतरित होता है। वैक्सीन ऐसी स्थिति में भी सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
डीबीटी के राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के बारे में :
भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के उद्योग- शिक्षा जगत सहयोग मिशन के तहत जैव औषधि (बायोफार्मास्यूटिकल) के त्वरित अनुसंधान पर विशेष जोर दिया जाता है। मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित इस मिशन की कुल लागत 250 मिलियन डॉलर है और इसे विश्व बैंक द्वारा 50% वित्त पोषित किया जा रहा है। इस मिशन को जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) द्वारा लागू किया गया है। यह कार्यक्रम भारत में स्वास्थ्य मानकों में सुधार करने के उद्देश्य से राष्ट्र के लिए किफायती उत्पाद विकसित करने के लिए समर्पित है। वैक्सीन, चिकित्सा उपकरण, नैदानिक और जैव रोग चिकित्सा इसके सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
बीआईआरएसी के बारे में :
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा धारा 8, अनुसूची बी के अंतर्गत स्थापित एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम ( लाभ के लिए नहीं ) है। यह जैव प्रौद्योगिकी उद्यमों के लिए एक सुविधा व समन्वय प्रदान करनेवाली एजेंसी के रूप में कार्य करता है ताकि उभरते हुए जैव प्रौद्योगिकी उद्यमों में रणनीतिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक उत्पाद विकास आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
जाइडस के बारे में
जाइडस कैडिला एक नवोन्मेषी, वैश्विक दवा कंपनी है।