उत्तराखंड भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70 वें जन्मदिन को सेवा सप्ताह के रूप में मनाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस क्रम में बुधवार को पार्टी के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों, सांसदों, मंत्रियों, विधायकों, सरकार में विभिन्न निगमों-बोर्डों के अध्यक्ष व उपाध्यक्षों और संगठन के जिलाध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद स्थापित किया।
राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति में एक नये युग की शुरुआत की है। मोदी ने विकासपरक राजनीति की अवधारणा को जन्म दिया है और राजनीति को समाज सेवा से जोड़ कर उसमें गुणात्मक परिवर्तन करके दिखाया है।
उन्होंने कहा कि 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी का 70 वां जन्मदिवस है। उनके जन्मदिवस को देखते हुए भाजपा ने 14 से 20 सितंबर तक सेवा सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दौरान प्रदेश से लेकर जिला, मंडल व बूथ स्तर तक कोविड-19 के मानकों का पालन करते हुए कार्यक्रम आयोजित करने हैं।
उन्होंने कहा कि सेवा सप्ताह के प्रथम दिन दिव्यांगों को कृत्रिम अंग वितरण, दूसरे दिन गरीबों व अस्पतालों में मरीजों को फल वितरण, तीसरे दिन भाजपा युवा मोर्चा की ओर से रक्तदान व प्लाज्मा डोनेशन कैम्प लगाकर कोरोना की लड़ाई में सहभाग करने का कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। सप्ताह के चौथे दिन वृक्षारोपण, पांचवे दिन प्लास्टिक मुक्त पर्यावरण, छठे दिन स्वच्छता कार्यक्रम और अंतिम दिन मोदी सरकार की उपलब्धियों का सोशल मीडिया के माध्यम से जनता में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए योजना बनाकर क्रियान्वित करने को कहा।
इसके साथ उन्होंने 25 सितम्बर को एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को बूथ स्तर पर तक आयोजित किए जाने की बात कही। उन्होंने बताया कि पार्टी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितम्बर से महात्मा गांधी व लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर तक आत्मनिर्भर भारत सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए उन्होंने कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाकर प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। उन्होंने कहा कि इन सभी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं से लेकर विधायक,सांसद व मंत्रियों तक की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए ।
इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार ने पार्टी के आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की और सभी कार्यकर्ताओं से कार्यक्रमों की सफलता के लिए जुटने की अपील की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिग द्वारा श्री बदरीनाथ धाम के प्रस्तावित मास्टर प्लान का प्रस्तुतीकरण किया गया। साथ ही श्री केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी भी प्रधानमंत्री को दी गई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने निर्देश दिए कि बद्रीनाथ धाम की आध्यात्मिकता व पौराणिकता बरकरार रखते हुए इसे स्पिरिचुअल सिटी के रूप में विकसित किया जाए।
वीडियो कांफ्रेंसिंग में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, मुख्य सचिव ओमप्रकाश, पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम के प्रस्तावित मास्टर प्लान में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि वहां का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व बना रहे। बद्रीनाथ धाम को मिनी स्मार्ट व स्पिरीचुअल सिटी के रूप में विकसित किया जाए। वहां होम स्टे भी विकसित जा सकते हैं। निकटवर्ती अन्य आध्यात्मिक स्थलों को भी इससे जोड़ा जाए। बदरीनाथ धाम के प्रवेश स्थल पर विशेष लाइटिंग की व्यवस्था हो जो आध्यात्मिक वातावरण के अनुरूप हो। मास्टर प्लान का स्वरूप पर्यटन पर आधारित न हो बल्कि पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हो। प्रधानमंत्री ने श्री केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की भी समीक्षा की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम व श्री केदारनाथ धाम के विकास कार्यों में स्थानीय लोगों का सहयोग मिल रहा है। निकटवर्ती गांवों में होम स्टे पर काम किया जा रहा है। सरस्वती व अलकनंदा के संगम स्थल केशवप्रयाग को भी विकसित किया जा सकता है। बदरीनाथ धाम में व्यास व गणेश गुफा का विशेष महत्व है। इनके पौराणिक महत्व की जानकारी भी श्रद्धालुओं को मिलनी चाहिए। बदरीनाथ धाम के मास्टर प्लान पर काम करने में भूमि की समस्या नहीं होगी। केदारनाथ की तरह बद्रीनाथ में भी 12 महीने कार्य किए जाएंगे।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना और चारधाम राजमार्ग परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। इससे श्रद्धालुओं के लिए चारधाम यात्रा काफी सुविधाजनक हो जाएगी।
श्री बदरीनाथ धाम के मास्टर प्लान का प्रस्तुतीकरण करते हुए अधिकारियों ने बताया कि इसमें 85 हैक्टेयर क्षेत्र लिया गया है। देवदर्शिनी स्थल विकसित किया जाएगा। एक संग्रहालय व आर्ट गैलेरी भी बनाई जाएगी। दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से दशावतार के बारे में जानकारी दी जाएगी। बदरीनाथ मास्टर प्लान को 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मास्टर प्लान को पर्वतीय परिवेश के अनुकूल बनाया गया है।
मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी देते हुए बताया कि आदि शंकराचार्य जी के समाधि स्थल का काम तेजी से चल रहा है। सरस्वती घाट पर आस्था पथ का काम पूरा हो गया है। दो ध्यान गुफाओं का काम इस माह के अंत तक पूर्ण हो जाएगा। ब्रह्म कमल की नर्सरी के लिए स्थान चिन्हित कर लिया गया है। नर्सरी के लिए बीज एकत्रीकरण का कार्य किया जा रहा है। गरुड़ चट्टी में ब्रिज का पुनर्निर्माण कर लिया गया है।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर ऐतिहासिक पहल कर चुके उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मुद्दे पर फ्रंट फुट पर खेलते दिखाई दे रहे हैं। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने पहले अस्थाई राजधानी देहरादून और फिर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधान भवन में ध्वजारोहण कर इतिहास ही नहीं रचा, अपितु गैरसैंण को लेकर ताबड़तोड़ घोषणाएं कर विपक्षियों पर भी बढ़त कायम कर ली। त्रिवेंद्र ने आज गैरसैंण को लेकर की गईं घोषणाओं और वहां ध्वजारोहण कर राजधानी के मुद्दे को लेकर अपने इरादों को भी साफ़ कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि, उत्तराखण्ड राज्य के गठन से पहले से ही गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाए जाने की मांग उठती रही है। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के समय भी गैरसैंण को ही राज्य की प्रस्तावित राजधानी माना गया। गैरसैंण को तब अधिक महत्व मिला, जब वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई और कल्याण सरकार ने गैरसैंण में अपर शिक्षा निदेशक के कार्यालय का उद्घाटन किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कल्याण सिंह सरकार ने ही उत्तराखंड पृथक राज्य निर्माण के संबंध में उत्तर प्रदेश विधान सभा में संकल्प प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था।
अलग राज्य निर्माण को लेकर उत्तराखंड के साथ कई अजीब विडंबना भी जुड़ी रही हैं। वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव सरकार ने प्रस्तावित राज्य की राजधानी निर्माण के मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपने कैबिनेट मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इस समिति ने गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में अपनी संस्तुति दी। मुलायम सरकार ने एक ओर जहां राज्य निर्माण के बिना ही राजधानी मामले में अपनी सक्रियता प्रदर्शित की, वहीं दूसरी तरफ राज्य निर्माण की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ मुजफरनगर में जघन्य व घृणित कांड को अंजाम दिया।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद उत्तराखंड राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। 9 नवम्बर, 2000 को उत्तराखण्ड को अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली। केंद्र सरकार ने राजधानी के मुद्दे पर जन भावनाओं और आधारभूत ढांचे को ध्यान में रखकर देहरादून को अस्थाई राजधानी के रूप में घोषित किया। मगर राज्य निर्माण के बाद गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग विभिन्न स्तरों पर उठती रही।
वर्ष 2001 में उत्तराखंड की नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में राजधानी के मुद्दे को लेकर एक आयोग का गठन किया। अगले वर्ष प्रदेश में पहली बार विधान सभा चुनाव हुए। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार गठित हुई। कांग्रेस सरकार के पूरे पांच साल के दौरान आयोग विस्तार पाता रहा और उसने कोई रिपोर्ट नहीं दी। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। एक सदस्यीय दीक्षित आयोग ने राजधानी पर अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी, जिसे 17 अगस्त 2008 को विधानसभा में पेश किया गया। दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था।
मगर जन भावनाओं के चलते दीक्षित आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई। गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्षधर यह मानते हैं कि पहाड़ी राज्य की राजधानी अगर पहाड़ में स्थित होगी तो वहां के विकास को नयी गति मिलेगी। गैरसैंण भावनात्मक मुद्दा होने के साथ ही राजनीतिक रंग भी लेता रहा। वर्ष 2012 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक कैबिनेट बैठक का आयोजन किया। इसके बाद बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण से लगभग 12 किमी दूर स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन, सचिवालय, ट्रांजिट हॉस्टल और विधायक आवास का शिलान्यास किया। विधान सभा आदि के निर्माण के बावजूद गैरसैंण को लेकर असमंजस बरक़रार रहा। इस बीच वहां विधान सभा के सत्र भी आयोजित होते रहे।
गैरसैंण के इतिहास में इस वर्ष 4 मार्च का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान उसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में घोषित कर दिया। गैरसैंण में ही आयोजित हुए बजट सत्र में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उन्होंने भावुक होकर कहा था कि “ये फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है”। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप विगत 8 जून को प्रदेश सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी। त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के साथ- साथ इसे ई-राजधानी के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई है, ताकि गैरसैंण में विधान सभा सत्र के आयोजन के दौरान फाइलों को अनावश्यक रूप से इधर-उधर नहीं ढोना पढ़े।
इस बीच कोरोना महामारी के कारण उपजी परिस्थितियों के चलते प्रदेश सरकार गैरसैंण को लेकर अपनी योजनाओं को गति नहीं दे सकी, तो कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाते हुए मुद्दे को लपकने की कोशिश की। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण की यात्रा कर भाजपा सरकार पर सवाल दागे। मगर तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अपने अंदाज में उनसे यही सवाल किया कि जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने राजधानी के विषय पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया ? मगर आज स्वतंत्रता दिवस के दिन त्रिवेंद्र ने गैरसैंण व आसपास के क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं व अन्य तमाम घोषणाएं कर राजनीतिक तौर पर बढ़त हासिल कर दी है। मुख्यमंत्री ने गैरसैण को लेकर घोषणाएं राजधानी देहरादून में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में की और इसके बाद वे विधान सभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल समेत अन्य प्रमुख लोगों के साथ गैरसैंण पहुंचे। गैरसैंण में विधान सभा भवन के सम्मुख ध्वजारोहण कर उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने आज ट्वीट कर इस अवसर को ऐतिहासिक बताया। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को लेकर जो प्रमुख घोषणाएं की, उनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण में 50 बेड्स के सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की स्थापना, विधानसभा परिसर में मिनी सचिवालय की स्थापना, स्थानीय हॉस्पिटल में टेलीमेडिसिन की सुविधा, क्षेत्र में पंपिंग पेयजल पाइप लाइन का निर्माण, जियो ओएफसी नेटवर्किंग का विस्तार, कोल्ड स्टोरेज की स्थापना आदि प्रमुख हैं।