- प्रह्लाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिग सेवा के पूर्व अधिकारी
कोरोना महामारी के बीच एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रैस इंटरनेशनल (TRACE International) ने विश्व के 197 देशों में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर पर एक प्रतिवेदन जारी किया था। चूंकि भारत में कोरोना की दूसरी लहर जारी है। अतः इस प्रतिवेदन पर शायद किसी की नजर ही नहीं गई। इस प्रतिवेदन के अनुसार विश्व के 197 देशों में से भारत में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर बहुत तेजी से कम हुआ है। विश्व के 197 देशों की इस सूची में वर्ष 2014 में भारत का स्थान 185वां था जो वर्ष 2020 में 77वें स्थान पर पहुंच गया है। अर्थात 6 वर्षों के दौरान भारत ने 108 स्थानों की लम्बी छलांग लगाई है।
भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है और इसे प्राप्त करने के लिए देश में कई प्रयास किए गए हैं। भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में इतना बड़ा सुधार मुख्य रूप से इसलिए देखने में आया है क्योंकि देश में केंद्र सरकार ने समाज के सभी क्षेत्रों से भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी को हटाने का अभियान छेड़ दिया था। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार रोकथाम एवं निवारण कानून, 1988 में, 30 वर्षों के बाद, बहुत संशोधन करते हुए इसे कठोर बनाया गया है, जिसके तहत अब रिश्वत देने वाला एवं रिश्वत लेने वाला दोनों ही दोषी माने गए हैं। साथ ही, सरकार ने अपने दैनिक कार्यों में तकनीक के उपयोग को भी बढ़ाया है। ई-टेंडरिंग, ई- प्रोक्योरमेंट एवं विपरीत नीलामी जैसे नियमों को लागू करने से भी बहुत फर्क पड़ा है और इससे अभिशासन में पारदर्शिता बढ़ी है।
अब अधिकतर सरकारी काम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किया जाने लगा है। जिसके कारण अब अधिकारियों/कर्मचारियों एवं जनता के बीच सीधा-सीधा सम्पर्क कम ही रह गया है। फिर चाहे वह आयकर विभाग हो अथवा नगर निगम एवं नगर पालिकाएं, बिजली प्रदान करने वाली कम्पनियां भी अब ऑनलाइन बिल जारी करती हैं। देश में सबसे बड़ा अभियान तो जन-धन योजना के अंतर्गत चलाया गया जिसके अंतर्गत करोड़ों देशवासियों के विभिन्न बैकों में 40 करोड़ से अधिक जमा खाते खोले गए हैं, इनमे 22 करोड़ महिलाओं के खाते भी शामिल हैं।
इन जमा खातों में आज विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली लगभग सभी प्रकार की सहायता राशियां एवं सब्सिडी का पैसा केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा सीधे ही हस्तांतरित किया जा रहा है। मनरेगा योजना की बात हो अथवा केंद्र सरकार की अन्य योजनाओं की बात हो, पहिले ऐसा कहा जाता था कि केंद्र से चले 100 रुपए में से शायद केवल 8 रुपए से 16 रुपए तक ही अंतिम हितग्राही तक पहुंच पाते हैं, परंतु आज हितग्राहियों के खातों में सीधे ही राशि के जमा करने के कारण बिचोलियों की भूमिका एकदम समाप्त हो गई है और हितग्राहियों को पूरा का पूरा 100 प्रतिशत पैसा उनके खातों में सीधे ही जमा हो रहा है। साथ ही आज, मनरेगा योजना के अंतर्गत हजारों करोड़ रुपए की राशि भी ग्रामीण इलाकों में मजदूरों के खातों में सीधे ही हस्तांतरित की जा रही है। इस तरह के प्रयासों से भ्रष्टाचार पर सीधे ही अंकुश लगा है।
भारत में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम में हुए सुधार के चलते अब केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के द्वारा भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के मामलों में सीधे ही की जाने वाली कार्यवाही की संख्या में भी कमी देखने में आई है। वर्ष 2015 में जहां 3,592 प्रकरणों में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सीधे ही कार्यवाही की थी वहीं वर्ष 2019 में केवल 1,508 प्रकरणों में सीधी कार्यवाही की गई थी। इसी प्रकार, इस दौरान बाहरी संस्थानों से भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी से सम्बंधित प्राप्त शिकायतों की संख्या में भी कमी आई है। वर्ष 2014 में केंद्रीय सतर्कता आयोग को भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी से सम्बंधित 62,362 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जो वर्ष 2019 में घटकर 32,579 रह गईं थीं।
प्रायः यह भी पाया गया है कि व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर यदि किसी देश में अधिक रहता है तो उस देश के सरकारी खजाने में आय कम हो जाती है क्योंकि भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के माध्यम से उस रकम का कुछ हिस्सा कुछ अधिकारियों की जेब में पहुंच जाता है। इससे उस देश द्वारा विकास कार्यों पर ख़र्च की जाने वाली रकम पर विपरीत असर पड़ता है और उस देश की विकास दर भी प्रभावित होने लगती है।
भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में कमी का फायदा जीएसटी संग्रहण में लगातार हो रही वृद्धि के रूप में भी देखने में आया है। माह अप्रेल 2021 के दौरान देश में जीएसटी संग्रहण, पिछले सारे रिकार्ड को पार करते हुए, एक नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। माह अप्रेल 2021 में 141,384 करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रहण हुआ है। यह मार्च 2021 माह में संग्रहित की गई राशि से 14 प्रतिशत अधिक है। पिछले 7 माह से लगातार जीएसटी संग्रहण न केवल एक लाख रुपए की राशि से अधिक बना हुआ है, बल्कि इसमें लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। यह भी देश में भ्रष्टाचार के स्तर में कमी होने का एक संकेत माना जा सकता है।
जिन देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम कम है उन देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत तेजी से बढ़ता है क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास उस देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ता है। भारत भी इसका अपवाद नहीं हैं। भारत में शुद्ध विदेशी निवेश, वर्ष 2013-14 में, 2,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था, जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 4,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। वर्ष 2010-11 में तो यह मात्र 1,180 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही था। वर्ष 2010-11 एवं 2019-20 के बीच देश में शुद्ध विदेशी निवेश में 263 प्रतिशत की वृद्धि आंकी की गई है।
हालांकि, व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतख़ोरी जोखिम के स्तर एवं देश के सकल घरेलू उत्पाद में कोई सीधा सम्बंध तो पता नहीं चलता है। जब इसका आंकलन कई देशों के व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर को उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में हो रही वृद्धि दर से जोड़कर देखा गया तो पाया गया है कि जिन-जिन देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम का स्तर कम है उन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर अधिक रही है। भारत में भी यह दृष्टिगोचर है। विश्व के अन्य देशों यथा- ब्रिटेन, ईजिप्ट, ग्रीस, इटली आदि देशों में भी व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में कमी देखी गई है तो उसी अवधि में इन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर तेज हुई है। वहीं दूसरी ओर चीन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, तुर्की, रूस जैसे देशों में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर में बढ़ोतरी देखी गई है तो उसी अवधि में इन देशों की अर्थव्यवस्था में विकास की दर भी कम हुई है।
भारत में व्यापार भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी जोखिम कम होते जाने का तात्पर्य यह कदाचित नहीं है कि देश में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी समाप्त हो गई है। हां, इस सूचकांक में लगातार हो रहे सुधार का आशय यह जरूर है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी कम हो रही है। परंतु अभी भी पूरे विश्व में 76 देश ऐसे हैं जहां भारत की तुलना में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी कम है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए शुक्रवार को राज्यों को 5,000 करोड़ रुपये की 17वीं किश्त जारी की है। अभी तक, राज्यों को कुल अनुमानित जीएसटी मुआवजे की कमी की 91 प्रतिशत यानी एक लाख करोड़ रूपये की राशि जारी की जा चुकी है।
भारत सरकार ने जीएसटी कार्यान्वयन के कारण पैदा हुई 1.10 लाख करोड़ रुपये की कमी को पूरा करने के लिए पिछले वर्ष अक्टूबर में एक विशेष उधार विंडो स्थापित की थी। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से भारत सरकार द्वारा इस विंडो के माध्यम से ऋण लिया जा रहा है। 23 अक्टूबर, 2020 से शुरू होने के बाद अब तक ऋण के 17 दौर पूरे हो चुके हैं।
विशेष विंडो के तहत, भारत सरकार 3 साल और 5 साल के कार्यकाल के लिए सरकारी स्टॉक में उधार ले रही है। प्रत्येक टेनर के तहत किए गए उधार को जीएसटी क्षतिपूर्ति की कमी के अनुसार सभी राज्यों में समान रूप से विभाजित किया गया है। वर्तमान जारी राशि के साथ, 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 5 साल के लिए लंबित जीएसटी अनुपात समाप्त हो गया है। ये राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश को पहली किस्त से जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी की जा रही थी।
इस सप्ताह जारी की गई राशि राज्यों को उपलब्ध कराई गई धनराशि की 17वीं किश्त थी। इस सप्ताह यह राशि 5.5924 प्रतिशत की ब्याज दर पर उधार ली गई है। अभी तक केंद्र सरकार द्वारा इस विशेष उधार विंडो के माध्यम से 4.8307 प्रतिशत की औसत ब्याज दर पर 1,00,000 करोड़ रुपये की राशि उधार ली गई है।
जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण राजस्व में हुई कमी को पूरा करने के लिए विशेष ऋण विंडो के माध्यम से धन उपलब्ध कराने के अलावा भारत सरकार ने जीएसटी मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए विकल्प-1 चुनने वाले राज्यों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.50 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति भी दी है, ताकि इन राज्यों की अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने में मदद की जा सके। सभी राज्यों ने विकल्प-1 के लिए अपनी प्राथमिकता दी है। इस प्रावधान के तहत 28 राज्यों को 1,06,830 करोड़ रुपये (जीएसडीपी का 0.50 प्रतिशत) की पूरी अतिरिक्त राशि उधार लेने की अनुमति दी गई है।
उत्तराखंड के हिस्से आया ये
उत्तराखंड को जीएसडीपी की 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त ऋण की अनुमति के रूप में अब तक 1405 करोड़ और विशेष विंडो के मार्फत 2227.49 की धनराशि जारी की गयी है।
उत्तराखंड देश के उन सात राज्यों में शामिल हो गया है, जिसने केंद्र सरकार द्वारा ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों को लेकर तय किये गए मानकों को पूरा कर लिया है। सुधार प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उत्तराखंड ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तय किए गए सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) हानियों में कमी अथवा औसत आपूर्ति लागत और औसत राजस्व प्राप्ति (एसीएस-एआरआर) में अंतर को कम करने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल किया है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। वित्त मंत्रालय एटीएंड सी हानियों में कमी के राज्य के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.05 प्रतिशत के बराबर राशि और एसीएस-एआरआर में अंतर में कमी का लक्ष्य हासिल करने पर अतिरिक्त जीएसडीपी के 0.05 प्रतिशत राशि की अतिरिक्त उधारी लेने की राज्यों को अनुमति दे रहा है।
उत्तराखंड ने एटीएंडसी हानियों और एसीएस-एआरआर अंतर में कमी के दोनों लक्ष्यों को हासिल किया है। राज्य में एटीएंडसी हानियां 19.35 प्रतिशत के लक्ष्य के विरुद्ध 19.01 प्रतिशत कम हो गई हैं। एसीएस-एआरआर में अंतर राज्य में प्रति इकाई 0.40 के लक्ष्य के मुकाबले 0.36 रुपए प्रति यूनिट तक कम हो गया है।
उत्तराखंड के अलावा जिन अन्य राज्यों ने ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया पूरी की है, उनमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गोवा, कर्नाटक व राजस्थान शामिल हैं। इससे पूर्व उत्तराखंड देश के उन 15 राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधारों (Ease of doing business) को लेकर केंद्र द्वारा तय मानकों को पूरा कर दिखाया है।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी की वजह से संसाधन जुटाने की चुनौती को देखते हुए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में राज्यों के लिए उधारी लेने की सीमा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी।
इस विशेष राशि में से आधी पूंजी यानी कि जीएसडीपी की एक प्रतिशत राशि जुटाने की अनुमति राज्य सरकारों को तब दी जा रही है, जब वे नागरिकों की सुविधा को लेकर केंद्र सरकार द्वारा तय मानकों कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने नागरिक केंद्रित चार सुधार कार्यक्रम चिन्हांकित किये हैं। इनमें एक देश, एक राशन कार्ड व्यवस्था लागू करना, कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधार, शहरी स्थानीय निकाय/उपयोगिता सुविधाओं में सुधार और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार।
उत्तराखंड भी कारोबार में सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) सुधारों को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले राज्यों की श्रेणी में आ गया है। इस सुधार प्रक्रिया को पूरा करने के बाद राज्य को खुले बाजार से 702 करोड़ रुपये जुटाने की अनुमति मिल गई है। उत्तराखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश व गुजरात द्वारा भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के बाद इस श्रेणी में आने वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बुधवार को यह जानकारी दी है। मंत्रालय के अनुसार इससे पहले, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना इस श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सहायता प्रदान करने वाले सुधारों को पूरा करने पर इन 15 राज्यों को 38,088 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ऋण जुटाने की अनुमति दी गई है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस देश में निवेश के अनुकूल कारोबार के माहौल का महत्वपूर्ण सूचक है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार राज्य अर्थव्यवस्था की भविष्य की प्रगति तेज करने में समर्थ बनाएंगे। इसलिए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में यह निर्णय लिया कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करने वाले राज्यों को अतरिक्त ऋण जुटाने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा कुछ मानक तय किये गए हैं।
प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
इस वर्ष बजट में राजकोषीय नीति को विस्तारवादी बनाया गया है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके। केंद्र सरकार द्वारा बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। केंद्र सरकार विभिन्न मदों पर कुल मिलाकर 30.42 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च करने जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा बाजार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा।
चूंकि निजी क्षेत्र अभी अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलायमान रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अपने पूंजीगत खर्चों में भारी भरकम वृद्धि करते हुए अपने निवेश को बढ़ा रही है। यानी केंद्र सरकार निवेश आधारित विकास करना चाह रही है। इस सब के लिए तरलता की स्थिति को सुदृढ़ एवं ब्याज की दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना बहुत जरुरी है और यह कार्य भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से आसानी किया जा सकता है। आरबीआई ने विगत 5 फरवरी को घोषित की गई मौद्रिक नीति के माध्यम से इसका प्रयास किया भी है।
आरबीआई ने मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। आरबीआई के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का एलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है।
साथ ही आरबीआई के गवर्नर ने वर्तमान वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई की दर में कमी आई है और यह अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे आई है। यह भी कहा गया है कि आज समय की मांग है कि अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाय। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाने से यह संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कमी की जा सकती है। एक प्रकार से मौद्रिक नीति अब देश की राजकोषीय नीति का सहयोग करती दिख रही है। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाना एक अच्छी नीति है क्योंकि कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध होने से ऋण की मांग बढ़ती है।
कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार व आरबीआई तालमेल से कार्य कर रहे हैं, यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) से अधिक होते ही आरबीआई रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता है। परंतु वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रा स्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना जरुरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेजी लाना अभी अधिक आवश्यक है। मुद्रा स्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फ़ोकस करना ज़रूरी है। वैसे भी अभी खुदरा महंगाई दर 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है।
केंद्र सरकार की इस वित्तीय वर्ष में भारी मात्रा में बाजार से कर्ज लेने की योजना है ताकि बजट में किए गए खर्चों संबंधी वायदों को पूरा किया जा सके। इसलिए भी आरबीआई के लिए यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाए और ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास करे। अन्यथा की स्थिति में बजट ही फैल हो सकता है। रेपो रेट को बढ़ाना मतलब केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से उधार ली जाने वाली राशि पर अधिक ब्याज का भुगतान करना। वैसे वर्तमान में तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में तरलता उपलब्ध है।
अब तो कोरोना की बुरी आशकाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। अतः व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का विश्वास भी वापिस आ रहा है। सरकार ने बजट में खर्चे को बहुत बड़ा पुश दिया है। सरकार निवेश आधारित विकास करना चाहती है और इस खर्चे व निवेश का क्रियान्वयन केंद्र सरकार खुद लीड कर रही है। वितीय सिस्टम में न तो पैसे की कमी है और न ब्याज की दरें बढ़ी हैं। अतः इन अनुकूल परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने का प्रयास केंद्र सरकार भी कर रही है जिसका पूरा पूरा फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होने जा रहा है।
सामान्यतः देश में यदि मुद्रा स्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी कीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रा स्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई जरुरत भी नहीं हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत से कुछ ही अधिक उपयोग हो पा रहा है जब तक यह 75-80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचता है तब तक निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ाएगा और इस प्रकार मुद्रा स्फीति में वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है। मुद्रा स्फीति पर ज्यादा सख्त होने से देश की विकास दर प्रभावित होगी, जो कि देश में अभी के लिए प्राथमिकता है। हालांकि अभी हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में स्थापित क्षमता के उपयोग में सुधार हुआ है और अर्थव्यवस्था में रिकवरी और तेज हुई है।
बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को भी मदद देने की बात की गई है क्योंकि यही क्षेत्र कोरोना महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतम लोग बेरोजगार हो गए थे। अतः इस क्षेत्र को शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की बात की जा रही है। साथ ही इस क्षेत्र को तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाना जरुरी है। यह क्षेत्र ही देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा। इसलिए भी मौद्रिक नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र को ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा सके एवं तरलता बनाए रखी जा सके।
देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से उसी ओर बढ़ रही है। रिजर्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष में 10 से 10.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेगी।
वर्तमान समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है। इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब रिज़र्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नजर बनाए रखनी होगी। यदि यह दर बढ़ती है तो देश के विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि इस बार का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देगा। यह सब अचानक नहीं हुआ है बल्कि यह सोच भारतीय मानस में पिछले तीस वर्षों से कहीं न कहीं काम कर रही थी। सीतारमण ने उद्योग संगठन फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए ये बात कही।
उन्होंने कहा कि खर्च के लिए बहुत ज्यादा पैसों की आवश्यकता होने के बावजूद बजट में इस तरह से वित्तीय संसाधन जुटाने के प्रयास किए गए हैं जो करों पर आधारित नहीं है। उन्होंने कहा “यह एक ऐसा बजट है जिसमें बिना करों के वित्तीय संसाधन जुटाने की कोशिश की गई है। बजट में दिशात्मक परिवर्तन अपने आप में इतना विशिष्ट है जो ऐसी उद्यमिता को प्रोत्साहित करेगा जिसका प्रदर्शन सही अवसर पर मिलने पर देशवासी अक्सर करते हैं”।
वित्त मंत्री ने कहा, “मैं यह जोकर देकर कहना चाहती हूं कि हमने समाज के किसी भी वर्ग पर एक रुपए का भी अतिरिक्त बोझ नहीं डाला”। उन्होंने कहा ” हमें इस बात का भरोसा है कि इस वर्ष से राजस्व संग्रह में सुधार होगा और सरकार केवल अपनी परिसंपत्तियों में विनिवेश के माध्यम से ही नहीं बल्कि कई अन्य तरीकों से भी गैर कर राजस्व जुटाने का प्रयास करेगी”।
सीतारमण ने उद्योग जगत से अनुरोध किया कि वह भी निवेश करने के लिए आगे आएं। उन्होंने कहा “मुझे उम्मीद है कि उद्योग जगत उस भावना को समझेगा जिसके साथ बजट लाया गया है। इसलिए आप सभी को इस काम में हाथ बंटाने के लिए आगे आना चाहिए”। उन्होंने कहा कि अपने सभी कर्ज और देनदारियों से मुक्त हो चुके उद्योगों को अब निवेश करने और अपना कारोबार बढ़ाने की स्थिति में आ जाना चाहिंए और उनसे ऐसा संकेत मिलना चाहिए कि जरुरी प्रौद्योगिकी हासिल करने के लिए आगे वे किसी भी तरह के संयुक्त उपक्रम लगा सकते हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था को तत्काल प्रोत्साहन देने के लिए सरकार सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और कृषि पर ज्यादा खर्च करेगी। उन्होंने कहा कि “सरकार भले ही पैसों से भरा बैग ले आए तो भी वह विकसित होते आकांक्षी भारत की सारी जरुरतें अकेले पूरा नहीं कर सकती”।
सीतारमण ने कहा कि सरकार ने इस बार बजट में एक विश्वसनीय और पारदर्शी लेखा विवरण दिया है। इसमें न तो कुछ छुपाया गया है और न ही किसी तरह की लीपा-पोती की गई है। यह सरकारी वित्त के साथ ही घोषित आर्थिक सुधारों और प्रोत्साहन पैकेजों के बारे में जानकारी देने का एक ईमानदार प्रयास है। इसने यह साफ कर दिया है कि सरकार किसी तरह की आशंका से घिरी नहीं बैठी है, बल्कि भारतीय उद्योगों और व्यापार जगत पर पूरा भरोसा करते हुए आगे बढ़ रही है।
वित्त सचिव डा. अजय भूषण पांडे, आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज तथा निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव तुहिन कांत पांडे सहित कई लोगों ने भी इस अवसर पर फिक्की के सदस्यों को संबोधित किया।
फिक्की के अध्यक्ष उदय शंकर ने कहा कि इस बजट का सबसे संतोषजनक पहलू यह है कि इसमें करों को लेकर कोई बहुत अधिक बदलाव नहीं किए गए। यह नीति को लेकर निश्चितंता और निवेशकों में भरोसा कायम करती है। बजट में नियमों के आसान अनुपालन और फेसलेस टैक्स असेसमेंट की व्यवस्था के माध्यम से देश में कारोबारी सुगमता की दिशा में सरकारी प्रयासों को जारी रखा गया है। इससे करदाताओं को बड़ी राहत मिली है। इससे दीर्घ अवधि में देश में कर आधार का दायरा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
कार्यक्रम के समापन पर फिक्की के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजीव मेहता ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
- प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
कोरोना महामारी के समय पूरे विश्व में ही लाखों लोगों के रोज़गार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। भारत भी इससे अछूता नहीं रह सका और हमारे देश में भी कई लोगों के रोज़गार पर असर पड़ा। हालांकि, छोटी अवधि के लिए इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से कोरोना महामारी के दौरान, लगभग 80 करोड़ लोगों को 8 महीनों तक मुफ़्त अनाज, दालें एवं अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध करायी गईं थी। साथ ही, करोड़ों परिवारों को मुफ़्त गैस सिलेंडर उपलब्ध कराए गए एवं जन धन योजना के अंतर्गत खोले गए करोड़ों महिलाओं के खातों में प्रतिमाह 500 रुपए केंद्र सरकार द्वारा जमा किए जाते रहे। करोड़ों किसानों के खातों में भी इस दौरान रुपए 6000 जमा किए गए थे। परंतु, बेरोज़गारी की समस्या का लम्बी अवधि के लिए समाधान निकालना बहुत आवश्यक प्रतीत होता है।
कोरोना महामारी के चलते वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की अर्थप्राप्ति में बहुत कमी रही है। जबकि ख़र्चों में कोई कमी नहीं आने दी गई ताकि इस महामारी के दौर में जनता को किसी प्रकार की तकलीफ़ महसूस न हो। देश में तरलता के प्रवाह को लगातार बनाए रखा गया तथा आत्म निर्भर भारत पैकेज को लागू करते हुए इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की भरपूर मदद की गई। आत्म निर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों सहित, कुल मिलाकर 27.1 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय प्रभाव रहा है, यह सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत है।
विगत दिवस वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में बजट पेश किया। यह बजट कई विपरीत परिस्थितियों में पेश किया गया है। इस लिहाज़ से यह बजट भी अपने आप में विशेष बजट ही कहा जाएगा। इस बजट के माध्यम से भरपूर प्रयास किया गया है कि देश में रोज़गार के अधिक से अधिक नए अवसर सृजित किए जा सकें। सबसे पहले तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। इसका सीधा सीधा परिणाम देश में रोज़गार के नए अवसरों के सृजित होने के रूप में देखने को मिलेगा।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में किए गए 13 वायदों पर तेज़ी से काम हो रहा है। अगले वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र चुने गए हैं, जिन पर विशेष ध्यान केंद्रित कर तेज़ी से काम किया जाएगा। इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शामिल हैं स्वास्थ्य सेवाएं, स्वच्छ जल की व्यवस्था, स्वच्छ भारत, अधोसंरचना का विकास, गैस की उपलब्धता, आदि।
कोरोना महामारी के दौर में देश में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता मिली है और यह ज़रूरी भी है कि अब देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाए। अतः प्रधानमंत्री आत्म निर्भर स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक स्वास्थ्य देखभाल अधोसंरचना को और भी मज़बूत करने के उद्देश्य से अगले 6 वर्षों के दौरान 64,180 करोड़ रुपए ख़र्च करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि स्वास्थ्य योजनाओं पर वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल मिलाकर 223,846 करोड़ रुपए ख़र्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, इस मद पर किए जाने वाले कुल ख़र्च में 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी दृष्टिगोचर है।
कोरोना वायरस महामारी को रोकने हेतु तैयार की गई वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यदि आवश्यकता होगी तो और फ़ंड भी उपलब्ध कराया जाएगा। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ ही ग्रामीण एवं शहरी इलाक़ों में समस्त परिवारों को स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस मद पर अगले 5 वर्षों के दौरान 2.87 लाख करोड़ रुपए ख़र्च किए जाने का प्रावधान किया गया है। इस कार्य को गति देने के उद्देश्य से शीघ्र ही शहरी जल जीवन मिशन भी प्रारम्भ किया जा रहा है।
स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत के नारे को साकार करने के उद्देश से “शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2” को भी प्रारम्भ किया जा रहा है। इसके लिए 1.42 लाख करोड़ रुपए ख़र्च करने की योजना बनाई गई है।
देश में अधोसंरचना को एक लेवल और आगे ले जाने के लिए नए- नए सड़क मार्ग विकसित करने के साथ ही सड़क, रेलवे व पोर्ट को आपस में जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है। देश के अंदर ही नदियों को जल मार्ग के रूप में विकसित किए जाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं क्योंकि जल मार्ग यातायात का एक बहुत ही सुगम एवं सस्ता साधन है। अतः देश में अधोसंरचना विकसित करने के उद्देश्य से रोड मंत्रालय को वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये रुपए 1.18 लाख करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में राष्ट्रीय राजमार्ग के 13,000 किलोमीटर रोड बनाए जाने के लिए टेंडर पास किए गए थे। इसके अतिरिक्त वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी राष्ट्रीय राजमार्ग के 8500 किलोमीटर नए रोड का निर्माण किए जाने का प्रावधान किया गया है।
इसी प्रकार, रेलवे मंत्रालय को भी वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। दिसम्बर 2023 के अंत तक देश में रेलवे की समस्त ब्रॉड गेज लाइन का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा और 27 नगरों में मेट्रो रेल लाइन उपलब्ध करा दी जाएगी। देश में कुछ पोर्ट्स का निजीकरण किए जाने की योजना भी बनाई गई है।
100 नए शहरों में गैस वितरण, पाइप लाइन के ज़रिए किए जाने की योजना है। साथ ही, उज्जवला योजना के अंतर्गत 1 करोड़ गैस के नए कनेक्शन योग्य परिवारों को उपलब्ध कराए जायेंगे। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइप लाइन को तेज़ी से विकसित करने के उद्देश्य से वित्तीय विकास संस्था के माध्यम से राज्य एवं केन्द्र उपक्रमों को पूंजी उपलब्ध करायी जाएगी।
अधोसंरचना को विकसित करने के लिए किए जा रहे भारी भरकम ख़र्च के चलते देश में न केवल रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे बल्कि इससे अन्य कई उत्पादों जैसे सीमेंट, स्टील, आदि की मांग में भी वृद्धि होगी जिसके कारण अन्य कई उद्योग भी तेज़ी से विकास करते नज़र आएंगे।
भारत में बीमा के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है क्योंकि देश का बहुत बड़ा वर्ग बीमा के कवरेज से बाहर है। अतः बीमा क्षेत्र को तेज़ी से विकसित करने के उद्देश्य से बीमा कम्पनियों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत किया जा रहा है, इसके लिए बीमा क़ानून में ज़रूरी संशोधन भी किया जा रहा है।
देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को विभिन्न समस्याओं से बाहर निकालने के उद्देश्य से हालांकि सरकारी क्षेत्र की बैंकों में पिछले 5 वर्षों के दौरान 3.16 लाख करोड़ रुपए की पूंजी सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गई है। फिर भी, वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकारी क्षेत्र के बैकों को 20,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध करायी जाएगी। सरकारी क्षेत्र की बैंकों में दबाव में आई आस्तियों के लिए विशेष आस्ती प्रबंधन कम्पनियों की स्थापना किए जाने की योजना है। इससे इन बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी की जा सकेगी।
75 वर्ष से अधिक की आयु के बुज़ुर्गों को, जिनकी आय केवल पेंशन एवं ब्याज की मदों से होती है, अब आय कर विवरणी फ़ाइल करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह देश के बुज़ुर्गों के लिए एक विशेष तोहफ़ा माना जा रहा है।
कोरोना महामारी के चलते केंद्र सरकार की कुल आय में आई भारी कमी के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 9.5 प्रतिशत का राजकोषीय घाटा होने का अनुमान लगाया गया है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसे घटाकर 6.8 प्रतिशत पर लाया जाएगा एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में इसे 5.5 प्रतिशत तक नीचे लाया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकार द्वारा विभिन मदों पर ख़र्चों के लिए किए गए प्रावधानों के चलते बाज़ार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा। साथ ही, 1.75 करोड़ रुपए का पूंजी विनिवेश भी किया जाएगा ताकि देश की जनता के लिए किए जा रहे विकास कार्यों पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आए।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में प्रस्तुत किए गए बजट में यह प्रयास किया गया है कि देश में किस प्रकार रोज़गार के अधिक से अधिक नए अवसर सृजित किए जाएं।
- प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
पूरे विश्व में फैली कोरोना महामारी के चलते सभी देशों में तुलनात्मक रूप से राजस्व संग्रहण में बहुत कमी आई है। भारत में भी यही स्थिति देखने में आई है और करों की वसूली एवं अन्य स्त्रोतों से आय वित्तीय वर्ष 2020-21 में वर्ष 2019-20 की तुलना में बहुत कम रही है। हालांकि कोरोना महामारी के बाद, अब जब आर्थिक विकास दर में पुनः वृद्धि दृष्टिगोचर है तब करों की वसूली में भी सुधार देखने में आ रहा है। माह दिसम्बर 2020 में जीएसटी संग्रहण रिकार्ड स्तर पर, रुपए 1.15 लाख करोड़ रुपए का हुआ है। माह अक्टोबर 2020 एवं नवम्बर 2020 में भी यह एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का रहा था।
कोरोना महामारी के चलते राजस्व के संग्रहण में आई कमी के चलते केंद्र सरकार ने आवश्यक ख़र्चों विशेष रूप से ग़रीब वर्ग एवं किसानों को सहायता पहुंचाने के लिए होने वाले ख़र्च में कोई कमी नहीं आने दी है। बल्कि, पूंजीगत ख़र्चों को तो पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ाया ही है ताकि देश की अर्थव्यवस्था को बल मिल सके एवं रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित हो सकें, जिसकी कि आज देश में बहुत अधिक आवश्यकता है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में माह दिसम्बर 2020 को समाप्त अवधि तक 499 डीबीटी योजनाओं पर 2.21 लाख करोड़ रुपए ख़र्च किए गए हैं। विपरीत परिस्थितियों में आर्थिक विकास को गति देने के लिए सरकारी ख़र्चों को बढ़ाने की बहुत ज़रूरत है।
माह अप्रेल 2020 से नवम्बर 2020 को समाप्त अवधि में केंद्र सरकार का कुल व्यय 19,06,358 करोड़ रुपए रहा है जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 की इसी अवधि के दौरान यह 18,20,057 करोड़ रुपए रहा था। इसी प्रकार पूंजीगत ख़र्चे भी वित्तीय वर्ष 2020-21 में नवम्बर 2020 तक 2,41,158 करोड़ रुपए के रहे हैं जो वित्तीय वर्ष 2019-20 में इसी अवधि का दौरान 2,13,842 करोड़ रुपए के रहे थे। वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार के कुल राजस्व की वसूली 830,851 करोड़ रुपए की रही है जबकि कुल ख़र्चे 19,06,358 करोड़ रुपए के किए गए हैं। इस प्रकार कम राजस्व वसूली का ख़र्चों पर किसी भी तरह से असर आने नहीं दिया गया है। ऐसा कोरोना महामारी जैसी विशेष विषम परिस्थितियों के चलते ही किया गया है ताकि देश की जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो सके एवं देश के विकास को गति मिल सके। विशेष रूप से देश में जब निजी निवेश भी गति नहीं पकड़ पा रहा हो, तो केंद्र सरकार को तो आगे आना ही होगा।
वैसे देश में अब परिस्थितियां तेज़ी से बदल रही हैं और आर्थिक विकास दर तेज़ी से वापिस पटरी पर आती दिख रही है। जैसे जैसे आर्थिक विकास दर की रफ़्तार बढ़ेगी वैसे वैसे केंद्र सरकार के राजस्व में भी तेज़ गति से वृद्धि होगी। साथ ही, कोरोना महामारी जैसी विषम परिस्थितियों के कारण विनिवेश के लक्ष्य भी हासिल नहीं किये जा सके और अब जब शेयर बाज़ार में तेज़ी दिखाई पड़ रही है और शेयर बाज़ार नित नई रिकार्ड ऊंचाईयों को छू रहा है। ऐसे में, केंद्र सरकार के लिए विनिवेश के लक्ष्य हासिल करना भी थोड़ा आसान होता दिखाई दे रहा है।
कुछ क्षेत्रों में विकास दर को हासिल करने में अभी और समय लगेगा जैसे टुरिज़म, एवीएशन एवं होटेल उद्योग आदि क्योंकि इन क्षेत्रों को अभी तक पूरे तौर पर खोला भी नहीं गया है। अतः केंद्र सरकार को इन क्षेत्रों सहित अन्य कई क्षेत्रों में प्रोत्साहन/सहायता कार्यक्रम चालू रखने होंगे, केंद्र सरकार ऐसा कर भी रही है।
कोरोना महामारी के कारण देश में बरोज़गारी की दर में भी इज़ाफ़ा हुआ है। इस मुद्दे को गम्भीरता एवं शीघ्रता से सुलझाने का प्रयास केंद्र सरकार कर रही है। विशेष रूप से हॉस्पिटैलिटी एवं ट्रैवल के क्षेत्रों को धीरे धीरे खोला जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर एक बार पुनः कोरोना महामारी के काल के पहिले के स्तर को प्राप्त कर सकें। अभी तक ये क्षेत्र 50 प्रतिशत से कुछ अधिक खुल पाए हैं। ये थोड़े जोखिम भरे क्षेत्र हैं क्योंकि इन क्षेत्रों को पूरे तौर पर खोलने से कोरोना महामारी के वापिस फैलने का ख़तरा हो सकता है।
हालांकि केंद्रीय बजट में बजटीय घाटे की एक सीमा निर्धारित की गई है जिसका पालन केंद्र सरकार को करना होता है परंतु कोरोना महामारी जैसी विशेष परिस्थितियों के चलते इस सीमा का पालन किया जाना अब बहुत मुश्किल हीं नहीं बल्कि असम्भव भी होगा। अतः वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट के लिए इस सीमा के पालन में छूट लेते हुए इसे बढ़ाया जाना चाहिए। बजटीय घाटे में यदि वृद्धि भी होती है तो देश की अर्थव्यवस्था पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ने वाला नहीं हैं क्योंकि एक तो यह ख़र्चा पूंजीगत मदों पर अधिक किया जा रहा है, दूसरे अब देश में ब्याज की दरें काफ़ी कम हो गई हैं अतः केंद्र सरकार को बाज़ार से लिए जा रहे ऋणों पर कम ब्याज देना पड़ रहा है। साथ ही, यदि यह राशि पूंजीगत मदों पर ख़र्च की जा रही है तो इससे एक तो संपतियों का निर्माण होगा, दूसरे रोज़गार के नए अवसर निर्मित होंगे, तीसरे उत्पादों की मांग बढ़ेगी और इस तरह आर्थिक विकास का पहिया तेज़ी से घूमने लगेगा और केंद्र सरकार के राजस्व में वृद्धि करने में भी सहायक सिद्ध होगा। हां, निर्माण के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में एवं अधोसंरचना को विकसित करने के लिए, पूँजीगत ख़र्चे अधिक मात्रा में किए जाने चाहिए क्योंकि इन क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित होते हैं।
केंद्र सरकार ने पिछले 6 महीनों के दौरान कई क़दम उठाए हैं और उसका असर नवम्बर एवं दिसम्बर माह के राजस्व संग्रहण में दिखने भी लगा है। कोरोना महामारी के दौरान, दरअसल पूंजीगत ख़र्चे निजी क्षेत्र एवं सरकारी क्षेत्र, दोनों ही क्षेत्रों में कम हो गए थे। परंतु अब जब केंद्र सरकार ने अपने ख़र्चों में बढ़ौतरी करनी शुरू कर दी है तो आशा की जा रही है कि निजी क्षेत्र भी सरकार के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलेगा एवं अपने पूंजीगत ख़र्चों को बढ़ाएगा। विदेशी निवेशक भी अब आगे आ रहे हैं एवं उन्होंने नैशनल हाईवेज़ के प्रोजेक्ट्स में 10,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इस तरह के प्रोजेक्ट की आस्तियों का मुद्रीकरण (Monetise) किया जा रहा है ताकि निवेश बढ़ाया जा सके। पूंजीगत ख़र्चों को हर हालात में बढ़ाया जा रहा है। एयरपोर्ट्स का निजीकरण किया जा रहा है इससे भी राजस्व की प्राप्ति केंद्र सरकार को होगी।
केंद्र सरकार ने स्ट्रीटीजिक उद्योग नीति की घोषणा की है। इससे कई क्षेत्रों का निजीकरण करने में आसानी होगी। क्षेत्र निर्धारित कर लिए गए हैं। यह एक बड़ा क़दम है, जो केंद्र सरकार द्वारा उठाया जा रहा है। अपने राजस्व में वृद्धि करने के लिए इसी प्रकार के कई क्रांतिकारी क़दम अब राज्य सरकारों को भी उठाने होंगे। देश के आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य केंद्र एवं राज्य सरकारों को अब मिलकर काम करना आवश्यक हो गया है।
भारत सरकार ने जीएसटी राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए राज्यों को 10वीं साप्ताहिक किस्त के तहत 6000 करोड़ रुपये जारी किए हैं। इस किस्त के बाद राज्यों की जीएसटी राजस्व के संग्रह में आई कमी की 50 फीसदी भरपाई हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार भारत सरकार ने विगत वर्ष अक्टूबर में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से जीएसटी राजस्व में आई कमी की भरपाई के लिए विशेष उधारी खिड़की (Special Borrowing Window) का गठन किया था। जिसके तहत 1.10 लाख करोड़ रुपये की पूंजी केंद्र सरकार मुहैया करा रही है। राज्यों की ओर से केंद्र सरकार कर्ज ले रही है। केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को पहली किस्त जारी की थी और 4 जनवरी को दसवीं किस्त जारी की गई।
इस हफ्ते केंद्र सरकार ने यह रकम 4.1526 प्रतिशत ब्याज दर पर उधार ली है। केंद्र सरकार, विशेष उधारी खिड़की के तहत अब तक 60 हजार करोड़ रुपये उधार के रूप में ले चुकी है। जिस पर उसे औसतन 4.6892 फीसदी का ब्याज चुकाना होगा।
जीएसटी के कारण राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए विशेष उधारी खिड़की के अलावा भारत सरकार राज्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद (Gross States Domestic Product, GSDP) का 0.50 फीसदी अतिरिक्त राशि के रूप में उधार लेने का भी विकल्प दे रही है। इसके तहत 28 राज्यों को 1,06,830 करोड़ की अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति दी गई है।
दसवीं किस्त मिला कर उत्तराखंड के हिस्से अब तक 1436.55 करोड़ की धनराशि आई है, जबकि GSDP का 0.50 फीसदी अतिरिक्त राशि के रूप में उधार लेने के प्रावधान के तहत उत्तराखंड को 1405 करोड़ की अनुमति मिली है। उत्तर प्रदेश को अब तक 3725.41, महाराष्ट्र को 7428.29, कर्नाटक को 7694.69, मध्य प्रदेश को 2816.91, हरियाणा को 2699.05, हिमाचल प्रदेश को 1064.87, गुजरात को 5719.15, बिहार को 2421.54, दिल्ली को 3637.32, पश्चिम बंगाल को1458.37, पंजाब को 2751.20, राजस्थान को 2160.37, जम्मू एवं कश्मीर को 1408.98 करोड़ रूपये की धनराशि जारी की गई है।
उत्तर-पूर्व के 5 राज्य अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में में जीएसटी लागू करने के दौरान राजस्व में कमी नहीं आई है। लिहाजा, इन राज्यों को धनराशि जारी नहीं की गई।