कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर जारी घमासान के बीच मंगलवार को वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के एक ट्वीट ने यह साफ़ कर दिया है कि पार्टी गंभीर संकट से जूझ रही है। सिब्बल का यह ट्वीट बगावती तेवर प्रदर्शित करता दिखाई दे रहा है।
सोमवार को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष चुने जाने के बाद फिलहाल यह मामला कुछ हद तक शांत होता दिखाई दे रहा था। मगर आज सिब्बल ने एक ट्वीट किया है। ट्वीट में उन्होंने कहा है कि – यह किसी पद की बात नहीं है। यह मेरे देश की बात है जो सबसे ज्यादा मायने रखता है‘। सिब्बल के ट्वीट के बाद कांग्रेस की अंदरूनी राजनीती के स्वाभाविक तौर पर गरमाने के आसार हैं। उनके ट्वीट के अंदाज को बगावती माना जा रहा है।
गौरतलब है कि सिब्बल ने कल भी नाराजगी से भरा एक ट्वीट किया था। मगर राहुल गाँधी से बातचीत के बाद उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दिया था। तब यह समझा जा रहा था की मामला सुलटा लिया गया है। सोमवार को ट्वीट करने के बाद सिब्बल ने ट्विटर हैंडल पर अपने परिचय में से कांग्रेस शब्द भी हटा दिया था। यहाँ यह भी बता दें की कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने सोनिया गाँधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें पार्टी संगठन में बदलाव की जरुरत बताई गयी थी। इस पत्र के बाद से कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में उछाड़-पछाड़ के हालात बने हुए हैं।
इधर, सिब्बल के ट्वीट पर यूजर्स ने कई तरह की टिप्पणियां की हैं। किसी ने पूछा है सिब्बल जी किस देश की बात कर रहे हैं ? इटली। किसी ने उनके ट्वीट को उनका मजाकिया अंदाज बताया तो किसी उन्हें भाजपा का एजेंट कहा। किसी ने कांग्रेस को लेकर सिब्बल की निष्ठा पर सवाल खड़े किये हैं तो, कुछ लोगों ने उनको गाँधी परिवार की गुलामी छोड़ कर कांग्रेस से नाता तोड़ने की सलाह दी है।
उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 16 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने पहली बार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन किया है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी कर दी गई है। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को परिषद में बतौर सदस्य शामिल किया गया है।
अधिसूचना के अनुसार केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री इसके पदेन अध्यक्ष व केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री पदेन उपाध्यक्ष होंगे। महामंडलेश्वर त्रिपाठी समेत परिषद में ट्रांसजेंडर समाज के पांच सदस्य नियुक्त किये गए हैं। महामंडलेश्वर त्रिपाठी उत्तर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगी। जबकि गोपी शंकर मदुरै दक्षिण क्षेत्र, मीरा परीदा पूर्व क्षेत्र, जैनब जाविद पटेल पश्चिम क्षेत्र व काक चिंगताबम श्याम चंद्र शर्मा पूर्वोत्तर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे।
इसके साथ ही ट्रांसजेंडरों के लिए काम करने करने वाले विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के चार प्रतिनिधियों को भी परिषद में जगह दी गई है। इनमें आर्यन पाशा, विहान पीताम्बर, रेशमा प्रसाद व पटेल चन्दूमाई गणेशदास शामिल हैं। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि नामित सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष के लिए होगा। परिषद के अन्य सदस्यों में केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के प्रतिनिधि, राष्ट्रीय मानवाधिकारआयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
परिषद के कार्य
उल्लेखनीय है कि ट्रांसजेंडरों की विभिन समस्याओं और उनके कल्याण के लिए मोदी सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया है। इस क्रम में परिषद का गठन किया गया है। मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि राष्ट्रीय परिषद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियों, कार्यक्रमों, कानून और परियोजनाओं के निर्माण पर केंद्र सरकार को सलाह देगा। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की समानता और पूर्ण भागीदारी हासिल करने के लिए बनाई गई नीतियों और कार्यक्रमों के प्रभाव की निगरानी और मूल्यांकन करेगा। परिषद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मामलों से जुड़े सभी सरकारी विभागों और अन्य सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों की गतिविधियों की समीक्षा और समन्वय स्थापित करने के साथ ही ट्रांसजेंडरों की शिकायतों का निवारण भी करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रकृति व पर्यावरण को लेकर अपनी संवेदनशीलता अक्सर प्रकट करते रहते हैं। इस क्रम में उन्होंने आज ट्वीटर व इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है। वीडियो में वे अलग-अलग लोकेशन पर मोरों को अपने हाथों से दाना खिलाते हुए नजर आ रहे हैं। वीडियो देखने से स्पष्ट लग रहा है की यह प्रधानमंत्री आवास, 7-लोक कल्याण मार्ग का है। वीडियो में मोर नाचते हुए भी दिख रहा है। वीडियो को चार घंटे के भीतर ट्वीटर पर करीब 5 हजार से अधिक लोगों ने रीट्वीट व 84 हजार लोगों ने लाइक किया है, जबकि इंस्टाग्राम पर 25 लाख से अधिक व्यूज मिले हैं।
वीडियो के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने एक कविता भी पोस्ट की है। इसमें मोर, भोर, शांति, संवाद व मौन की अहमियत बताई है। जीव मात्र को शिवात्मा मानने की बात कही गयी है।
भोर भयो, बिन शोर,
मन मोर, भयो विभोर,
रग-रग है रंगा, नीला भूरा श्याम सुहाना,
मनमोहक, मोर निराला।
रंग है, पर राग नहीं,
विराग का विश्वास यही,
न चाह, न वाह, न आह,
गूँजे घर-घर आज भी गान,
जिये तो मुरली के साथ
जाये तो मुरलीधर के ताज।
जीवात्मा ही शिवात्मा,
अंतर्मन की अनंत धारा
मन मंदिर में उजियारा सारा,
बिन वाद-विवाद, संवाद
बिन सुर-स्वर, संदेश
मोर चहकता मौन महकता।
प्रकृति की एक सुन्दरतम कृति है मोर
प्रधानमंत्री ने जिस मोर के साथ वीडियो जारी किया है, वह हमेशा से ही मानव के आकर्षण का केन्द्र रहा है। हिन्दू मान्यताओं व परम्पराओं में मोर को विशेष स्थान मिला है। कई प्राचीन मंदिरों में चित्रित कला में इसे दर्शाया गया है। भगवान श्री कृष्ण के मुकुट पर मोर पंख लगा रहता था। बौद्ध दर्शन में मोर ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। पौराणिक काल में ऋषि – मुनियों ने मोर पंख की कलम बनाकर बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं। मोर के विषय में माना जाता है कि यह पक्षी किसी भी स्थान को बुरी शक्तियों और अनिष्टकारी प्रभाव से बचाकर रखता है। यही वजह है कि अधिकांश लोग अपने घरों में मोर के पंखों को लगा कर रखते हैं। यह अनादि काल से चित्रकारों, कवियों व अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। महाकवि कालिदास से लेकर आधुनिक युग के कवियों तक के लिए मोर के उल्लेख के बिना वर्षा ऋतु का वर्णन करना असंभव सा ही रहा है। प्रकृति ने दिल खोल कर इस पर अपने रंगों का उपयोग किया है। यानी मोर प्रकृति की एक सुन्दरतम कृति है।
भाजपा के राष्ट्रीय सह महासचिव (संगठन) शिवप्रकाश ने पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफान अम्फान से हुए नुकसान के बाद वहां की सरकार को एक हजार करोड़ रुपए की सहायता दी। मगर पीड़ितों की मदद के बजाय तृणमूल कार्यकर्ताओं ने इसे लूटने का काम किया।
शिवप्रकाश शनिवार को उत्तराखंड भाजपा द्वारा राजधानी देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में उत्तराखंड भाजपा द्वारा कोरोना काल में कार्यकर्ताओं के माध्यम से किए गए सेवा कार्यों पर आधारित सेवा ही संगठन है ई- बुक का लोकार्पण किया गया। यहां यह बता दें कि राष्ट्रीय सह महासचिव (संगठन) शिवप्रकाश को पिछले कुछ वर्षों से भाजपा ने पश्चिम बंगाल की विशेष जिम्मेदारी दी है। उनके प्रयासों के चलते विगत लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली थी और वहां भाजपा संगठन पहले से मजबूत हुआ है।
आज देहरादून में जब शिवप्रकाश भाजपा के सेवा कार्यों पर बोल रहे थे, तो तब उन्होंने पार्टी की गतिविधियों की विस्तृत चर्चा की और कहा कि भाजपा इसी कारण पार्टी विद डिफरेंस है। उन्होंने कहा कि देश में लगभग साढ़े चौदह-पंद्रह सौ पंजीकृत राजनीतिक दल हैं। मगर ये सभी मात्र चुनावों के समय ही दिखाई देते हैं। भाजपा ही एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है, जो राजनीतिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक कार्यों का भी पूरी तत्परता के साथ निर्वहन करता है। कोरोना काल में भाजपा के अलावा कोई अन्य राजनीतिक दल प्रभावितों की सहायता के लिए आगे नहीं आया।
इस क्रम में उन्होंने उदाहरण के रूप में बंगाल में आए साइक्लोन अम्फान की चर्चा की। इस तूफान में बंगाल व उड़ीसा में व्यापक स्तर पर नुकसान हुआ था। तूफान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल का हवाई सर्वेक्षण कर 1000 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की थी। शिवप्रकाश ने कहा कि ममता सरकार ने राजनीतिक हिंसा को बढ़ावा दिया है। बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की जा रही है। केंद्र सरकार ने तूफान पीड़ितो के लिए मदद भेजी तो टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उसे लूट लिया।
उन्होंने कहा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान भाजपा के असंख्य कार्यकर्ता गरीब, जरूरतमंद, असहाय लोगों की सहायता के लिए पूरी जी-जान से जुटे रहे। देशभर में मोदी किचेन व मोदी रसोई के माध्यम से लोगों को भोजन उपलब्ध कराया गया। जरूरतमंदों को सूखा राशन पहुंचाने से लेकर मास्क व सैनिटाइजर तक वितरित किए गए। बुजुर्गों व बीमार लोगों को दवाई उपलब्ध कराई गई। प्रवासी मजदूर जब घर वापसी कर रहे थे, तब भी पार्टी कार्यकर्ता उनकी सहायता के लिए तत्पर रहे।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से निबटने को लेकर मोदी सरकार ने बेहद संजीदगी व गंभीरता के साथ कार्य किया है। मोदी सरकार के प्रयासों की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने सम्पूर्ण वृक्षारोपण परियोजना के अंतर्गत राजमार्गों पर लगाए जा रहे प्रत्येक पौधे के स्थान, उसकी वृद्धि, प्रजातियों के विवरण, रखरखाव गतिविधियां आदि की निगरानी के लिए हरित पथ नाम का एक मोबाइल ऐप विकसित किया है। आज केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ऐप को लांच किया।
पर्यावरण अनुकूल राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित करने के लिए NHAI समय-समय पर वृक्षारोपण अभियान चलाता रहता है। NHAI की राज्य सरकारों, निजी पौधारोपण एजेंसियों आदि के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजमार्गों पर 72 लाख पौधे लगाने की योजना है। NHAI हरित पथ एप के जरिये इन पौधों पर नज़र रखेगा। मोबाइल ऐप का उद्घाटन करते हुए गडकरी ने वृक्षारोपण की सतत निगरानी और पेड़ों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रतिरोपण पर जोर दिया। गडकरी ने राजमार्गों के किनारे वृक्षारोपण के लिए विशेष व्यक्तियों व एजेंसियों को हायर करने का सुझाव दिया। उन्होंने इस कार्य में गैर-सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों और बागवानी तथा वन विभाग को शामिल करने का भी सुझाव दिया।
मोबाइल ऐप पौधों की वृद्धि व उनकी सेहत पर नज़र रखेगा और पौधों के डेटा के साथ तस्वीरें NHAI संचालित बिग डेटा एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म – डेटा लेक पर हर 3 महीने में अपलोड की जाएंगी। NHAI राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहले किए जा चुके सम्पूर्ण पौधारोपण और इन स्थानों पर लगाए जाने वाले पौधों का डेटा बेस बना रहा है। सड़क निर्माण करने वाले ठेकेदार लगाए गए पौधों के रखरखाव और लापता अथवा मुरझाए हुए पौधों को बदलने के लिए जवाबदेह होंगे। पौधों के की वृद्धि और विकास को इस काम के लिए ठेकेदारों के भुगतान से जोड़ा जाएगा।
25 दिन में 25 लाख पौधे लगाए
इधर, NHAI द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, उसने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हाल ही में हरित भारत संकल्प शुरू किया है, जो एक राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान है। इस अभियान के तहत NHAI ने 21 जुलाई से 15 अगस्त के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों पर 25 दिन में 25 लाख पौधे लगाए। अभियान के दौरान चालू वर्ष में 35.22 पौधारोपण का लक्ष्य रखा गया है।
NHAI के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान को सक्रिय रूप से हाथ में लिया गया है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 5 लाख, राजस्थान में 3 लाख और मध्य प्रदेश में 2.67 लाख से अधिक पौधे लगाए गए हैं। पौधों के 100% जीवित रखने के लिए, राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ 1.5 मीटर की न्यूनतम ऊंचाई वाले वृक्षों या बड़ी झाडि़यों की कतार लगाने पर जोर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पीएम केयर्स फंड के मामले में अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पीएम केयर्स फंड की राशि को कोरोना महामारी के मद्देनजर राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) में हस्तांतरित करने की मांग की गई थी। कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए भाजपा नेताओं ने कांग्रेस और और गांधी परिवार पर जमकर हमला बोला।
एक NGO सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) की याचिका पर जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी व न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि पीएम केयर्स फंड का पैसा एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने का आदेश नहीं दे सकते। ये दोनों अलग-अलग फंड हैं। कोई व्यक्ति एनडीआरएफ में दान देना देना चाहे तो उस पर पाबंदी नहीं है। नई आपदा राहत योजना की भी जरूरत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार इसकी राशि को उचित जगह हस्तांतरित करने के लिए स्वतंत्र है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 28 मार्च को आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं राहत (PM केयर्स) कोष की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य कोविड-19 की वजह से उत्पन्न मौजूदा परिस्थिति से निपटना और प्रभावितों को राहत पहुंचाना था। इस कोष के प्रधानमंत्री पदेन अध्यक्ष बनाए गए हैं और रक्षामंत्री, गृहमंत्री व वित्तमंत्री पदेन न्यासी हैं।
नड्डा ने ट्वीट कर कांग्रेस पर साधा निशाना
कोर्ट का फैसला आते ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर निशाना साधा है। नड्डा ने सिलसिलेवार ट्वीट कर कहा, ‘पीएम केयर्स पर सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए फैसले ने राहुल गांधी के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया है। यह दिखाता है कि कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगियों के बुरे इरादे और दुर्भावनापूर्ण प्रयासों के बावजूद सच्चाई की जीत होती है।’ भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि राहुल गांधी के हल्ला मचाकर दोषारोपण करने की आदत को जनता ने लगातार नकारा है और उसी जनता ने पीएम केयर्स कोष में दिल खेलकर दान किया है। गांधी परिवार ने पीएमएनआरएफ को दशकों तक व्यक्तिगत जागीर के रूप में माना और अपने परिवार के ट्रस्टों में पीएमएनआरएफ में नागरिकों की मेहनत से अर्जित धन हस्तांतरित किया।’
रविशंकर प्रसाद ने दिया हिसाब
इधर, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कहा कि पीएम केयर्स फंड से अब तक कोरोना की लड़ाई में 3100 करोड़ रुपये की मदद की गई है। जिसमें 2,000 करोड़ रुपये सिर्फ वेंटिलेटर के लिए दिए गए हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 1000 करोड़ रुपये राज्यों को प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था के लिए दिए गए। 100 करोड़ रुपये कोरोना की वैक्सीन के अनुसंधान के लिए दिए गए है। पीएम केयर्स फंड पंजीकृत सार्वजनिक ट्रस्ट है, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्यक्ष हैं। यह ट्रस्ट कोविड-19 जैसी आपातकाल स्थितियों के लिए बनाया गया है। इस फंड में लोगों ने स्वेच्छा से दान दिया। पिछले 6 साल के दौरान मोदी सरकार पर कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। सभी चीजें पारदर्शिता के साथ हो रही है।
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रसाद ने कहा, राजीव गांधी फाउंडेशन एक फैमिली फाउंडेशन था। उसे चीन से भी मदद मिली थी। उस फाउंडेशन की रिपोर्ट में भारत के बाजार को चीनी उत्पाद के लिए खोलने की बात भी कही गई थी। उन्होंने कहा कि राहुल ने कोरोना की लड़ाई को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीएम मोदी ने डॉक्टर, नर्स और कोविड की लड़ाई लड़ने वाले कोरोना वारियर्स के लिए ताली और थाली बजाने की बात कही तो राहुल गांधी ने कहा कि क्यों बजा रहे हो ? पूरे देश ने पीएम के कहने पर कोरोना के खिलाफ आशा का दीया जलाया तो राहुल ने कहा कि क्यों जला रहे हो?
केंद्रीय सतर्कता आयोग ( Central Vigilance Commission, CVC) ने केंद्र सरकार के सभी विभागों से कहा है कि भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच रिपोर्ट वे समय पर दें। साथ ही चेतावनी दी कि तय समय-सीमा का पालन नहीं करने को गंभीरता से लिया जाएगा।
CVC ने मुख्य सतर्कता अधिकारियों (Chief Vigilance Officers, CVOs) से ये रिपोर्ट मांगी। CVOs केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों, संगठनों के खिलाफ मिलने वाली भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करते हैं। ऐसे मामलों की शिकायत मिलने पर CVOs को तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट जमा करनी होती है।
CVC ने कहा, ‘आयोग को पता चला है कि विभाग व संगठन तय समयसीमा का पालन नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से मामलों में बेवजह देरी हो रही है और शिकायत पर समयबद्ध कार्रवाई नहीं हो पा रही है। ‘
आयोग ने वर्तमान निर्देशों की समीक्षा के बाद कहा कि विभागों व संगठनों के CVOs तीन महीने की समय सीमा का ध्यान रखें। इस संबंध में आयोग के निदेशक जे.विनोद कुमार द्वारा केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों के आदि के CVO को निर्देश जारी किए गए।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को गोवा के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।
राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा आज जारी एक विज्ञप्ति में जानकारी दी गयी है कि राष्ट्रपति ने गोवा के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का स्थानांतरण मेघालय के राज्यपाल के पद पर किया है। मलिक के स्थानांतरण के फलस्वरूप महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को गोवा के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। उपरोक्त नियुक्तियां संबंधित व्यक्तियों के कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी होंगी।
जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार
पिछड़ापन, आर्थिक असमानता, गरीबी, लाचारी और सर्वसुलभ न्याय दुर्लभ होने के कारण अब भी भारत की आजादी को अधूरी मानने वाले लोगों से हम सहमत हो या नहीं, मगर इतना तो मानना ही पड़ेगा कि 15 अगस्त 1947 को हमें जो आजादी मिली थी वह सचमुच अधूरी ही थी, क्योंकि आजादी की घोषणा केवल ब्रिटिश भारत के लिए की गई थी और लगभग 562 रियासतों वाले शेष भारत का भविष्य तब भी अधर में लटका हुआ था।
देखा जाए तो जिस 15 अगस्त के दिन अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई मुकाम तक पहुंची। उसी दिन से देशी शासकों के अधिपत्य वाले रियासती भारत में आजादी की निर्णायक जंग शुरू हुई, जो कि 1975 में सिक्किम के विलय तक जारी रही। मानने वाले तो 5 अगस्त 2019 को संविधान की धारा 370 और 35 ए के प्रावधानों की समाप्ति को ही आजादी के समय शुरू हुई विलय की प्रक्रिया की सम्पूर्णता मानते हैं। 15 अगस्त 1947 को जब भारत में नए लोकतांत्रिक युग का सूत्रपात हुआ उस समय भारत में दो तरह की शासन व्यवस्थाएं थीं। इनमें से एक देशी रियासतों की सामंती व्यवस्था और दूसरी ब्रिटिश शासन व्यवस्था थी।
ब्रिटिश भारत भी बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों तथा पूर्वी तथा पश्चिमी पाकिस्तान समेत भारत के 17 प्रोविन्सों में बंटा हुआ था। उस समय लगभग 562 देशी राज्य थे जिनमें कुल 27 की जनसंख्या वाली बिलबाड़ी रियासत भी थी, तो इटली देश से बड़ी हैदराबाद रियासत भी थी। जिसकी जनसंख्या उस समय 1.40 करोड़ थी। इनमें वे 35 हिमालयी रियासतें भी थीं जिनसे बाद में हिमाचल प्रदेश बना। एक अनुमान के अनुसार इन सभी रियासतों का क्षेत्रफल लगभग 7,12,508 वर्गमील या 11,40,013 वर्ग किमी था।
कैबिनेट मिशन स्पष्ट कर चुका था कि देशी राज्यों को पौरामौंट्सी संधि के तहत आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की जो गारंटी ब्रिटिश सरकार ने दे रखी है, वह 15 अगस्त 1947 को संधि के समाप्त होने पर स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। सन् 1857 की गदर के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छीन कर अपने हाथ में लिए जाने के बाद जब 1876 के अधिनियम के तहत ब्रिटिश साम्राज्ञी को ‘‘क्वीन एम्प्रेस ऑफ इंडिया’’ या भारत की महारानी घोषित किया गया और राज्यहरण की नीति त्याग कर देशी रियासतों को आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की गारंटी दी गई तो बदले में उनकी सार्वभौम सत्ता ब्रिटिश क्राउन में सन्निहित हो गई थी।
इसमें देशी राज्यों के रक्षा, संचार, डाक एवं तार, रेलवे एवं वैदेशिक मामले ब्रिटिश हुकूमत में निहित हो गए थे। इसलिए सरदार पटेल और वीपी मेनन ने बहुत ही होशियारी से सबसे पहले देशी राज्यों को भारत संघ में मिलाने से पहले उनसे ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करा कर स्वतंत्र निर्णय लेने के मामले में कानूनी तौर पर उनके हाथ बांध दिए थे। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से उन सबका भारत संघ में विलय करा दिया गया। इस प्रक्रिया में उड़ीसा के 36 राज्यों का विलय 15 दिसंबर 1947 को तो कोल्हापुर और दक्कन ऐजेंसी के 17 राज्यों का विलय 8 मार्च 1948 को हुआ। सन् 1948 में ही सौराष्ट्र और काठियावाड़ की रियासतों का विलय हुआ।
बुंदेलखंड और बाघेलखंड की 35 रियासतों का 13 मार्च 1948, राजपूताना की 19 रियासतों का विलय भी मार्च 1948 में, जोधपुर, जैसलमेर, जयपुर, एवं बीकानेर का 19 मार्च 1948 को, इंदौर, ग्वालियर, झाबुआ एवं देवास का जून 1949 में, पंजाब की 6 रियासतों का 1948 में, उत्तर पूर्व के मणिपुर का 21 सितंबर 1948 में, त्रिपुरा का 9 सितम्बर 1949 में, कूच बिहार का 30 अगस्त 1949 में विलय हुआ। बड़े राज्यों में से हैदराबाद का पुलिस कार्यवाही के बाद 18 सितंबर 1948 को अधिग्रहण किया गया। जबकि त्रावनकोर-कोचीन 27 मई 1949, कोल्हापुर फरबरी 1949 तथा मैसूर का विलय 25 नवंबर 1949 को तथा हिमालयी राज्य टिहरी का विलय 1 अगस्त 1949 को हुआ। हिमाचल प्रदेश का गठन करने से पहले 1948 में ही वहां की 27 रियासतों का संघ बना कर उसे केंद्रीय शासन के तहत लाया गया।
ब्रिटिश भारत में जहां कांग्रेस आजादी के लिए लड़ रही थी, वहीं रियासतों में कांग्रेस के ही दिशा-निर्देशन में प्रजामंडल सक्रिय थे। इन प्रजामंडलों का संचालन सन् 1927 में बंबई में गठित अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद (ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कान्फ्रेंस) कर रही थी। इसकी कमान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1939 में स्वयं संभाली, जो कि 1946 तक इसके अध्यक्ष रहे। नेहरू के बाद डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने परिषद की कमान संभाली जो कि 25 अप्रैल सन् 1948 में लोक परिषद के कांग्रेस में विलय के समय तक इसके अध्यक्ष रहे। इसी लोक परिषद के तहत पंजाब हिल्स की टिहरी समेत हिमाचल की 35 रियासतों के प्रजामंडलों के दिशा-निर्देशन के लिए हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल का गठन किया गया।
दरअसल, देशी रियासतें ब्रिटिश हुकूमत के लिए बफर स्टेट्स के समान थी। सन् 1857 की गदर के दौरान देशी शासकों ने अंग्रेजों का साथ देकर उन्हें अहसास दिला दिया था कि भारत पर शासन करना है तो राज्य हरण की नीति पर चलने के बजाय उनसे मिलकर चलने में ही अंग्रेजी हुकूमत की भलाई है। अंग्रेजों का इन पर नियंत्रण भी था और इनके प्रति सुरक्षा के अलावा कोई खास जिम्मेदारी भी नहीं थी। अंग्रेजी हुकूमत ने पैरामौंटसी हासिल कर देशी शासकों को दंडित करने और उनके उत्तराधिकारी के चयन का अधिकार अपने पास रख कर सार्वभौमिकता साथ ही उनकी वफादारी भी गिरवी रख दी थी।
सन् 1921 में माउटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के तहत देशी शासकों को अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिए चैम्बर ऑफ प्रिंसेेज का गठन हो चुका था, जिसे नरेंद्र मंडल भी कहा जाता था। इसके पहले चांसलर बिकानेर के महाराजा गंगा सिंह बने। जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने के लिए जब देशी राज्यों से संविधान सभा में अपने प्रतिनिधि भेजने की अपील की तो भोपाल के नवाब, जो कि उस समय नरेंद्र मंडल के चांसलर भी थे, ने अपील ठुकरा दी। जबकि बीकानेर के महाराजा ने सबसे पहले अपना प्रतिनिधि संविधान सभा के लिए मनोनीत कर दिया। उसके बाद पटियाला, बड़ोदा, जयपुर और कोचीन के प्रतिनिधियों के संविधान सभा में शामिल होने से इन राज्यों की नई व्यवस्था के साथ चलने की शुरुआत हो गई।
तत्कालीन गर्वनर जनरल माउंटबेटन ने चैम्बर ऑफ प्रिंसेज की बैठक में साफ कह दिया था की राज्यों का अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना अब व्यवहारिक नहीं रह गया है। इसलिए इन राज्यों को भारत या पाकिस्तान में से किसी के साथ भौगोलिक सम्बद्धता के अनुसार मिल जाना चाहिए। चूंकि जितने देशी राज्य उतने प्रांत बनाना संभव नहीं था। इसलिए पूर्ण रूप से भारत संघ में इनके विलय से पहले एकीकरण की कार्यवाही की गई और विलीनीकरण या मर्जर से पहले इंस्ट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन पर देशी शासकों से हस्ताक्षर करा कर पटेल और मेनन ने एक तरह से उनकी सार्वभौमिकता हासिल कर ली, जिसके तहत देशी राज्यों ने सुरक्षा, यातायात और वैदेशिक मामलों के अधिकार भारत संघ को सौंप दिए मगर उनकी आंतरिक स्वायत्तता बरकरार रही। 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर 136 राज्यों ने विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
इस तरह भारत संघ में मिलने वाले 554 देशी राज्यों में से 551 तो इंस्ट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर के बाद शांतिपूर्ण ढंग से भारत संघ में विलीन हो गए। लेकिन हैदराबाद और भोपाल के विलय में मामूली बल का प्रयोग करना पड़ा। जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर पाकिस्तान भाग गया था और उसकी रियासत को जनमत के आधार पर भारत में मिलाना पड़ा। कश्मीर के शासक ने भी स्वतंत्र रहने की घोषणा की थी, लेकिन जब 1948 में पाकिस्तान की ओर से उस पर कबाइली हमला हुआ तो उसने भी इंस्ट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर लिए। उस समय 216 छोटे राज्यों को निकटवर्ती प्रांतों से जोड़ कर उन प्रांतों को पार्ट-ए में रखा गया। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के 39 राज्यों को सेंट्रल प्रोविन्स और उड़ीसा में जोड़ा गया जबकि गुजरात के राज्य बंबई में मिलाए गए।
इसी तरह के 61 छोटे राज्यों का एकीकरण कर उन्हें पार्ट-सी की श्रेणी में तथा कुछ राज्यों के पांच संघ बना कर उन्हें पार्ट-बी में रखा गया। इनमें संयुक्त प्रांत पंजाब राज्य संघ राजस्थान संयुक्त प्रांत त्रानकोर-कोचीन आदि शामिल थे। सन् 1956 में संविधान के सातवें संशोधन से पार्ट-बी श्रेणी समाप्त कर दी गया।आजादी के बाद भी सन् 1975 में सिक्किम का भारत संघ में विलय हुआ, जबकि 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद ने जम्मू-कश्मीर के लिए विशेषाधिकार वाली संविधान की धारा 370 और 35 को समाप्त कर उस राज्य की भारत संघ में पूर्ण विलय की जो प्रक्रिया 1948 में अधूरी रह गई थी उसे पूरा कर लिया। इसलिए देखा जाए तो 15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के साथ ही अखंड भारत के संकल्प का दिवस भी है।
पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्म-निर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) योजना के तहत ऋण देने की प्रक्रिया के शुरू होने के 41 दिनों के भीतर पांच लाख लोगों ने ऋण के लिए आवेदन किया है, जबकि एक लाख लोगों को ऋण उपलब्ध कराया जा चूका है। पीएम स्वनिधि योजना को केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने ‘आत्म-निर्भर भारत अभियान’ के तहत लॉन्च किया था।
आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार इस योजना के तहत २ जुलाई से ऋण देने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी। इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों और उसके आसपास के अर्द्ध-शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर (रेहड़ी वाले छोटे व्यापारियों) को कोविड-19 लॉकडाउन के बाद फिर से अपना कारोबार शुरू करने के लिए बिना किसी की गारंटी के एक साल की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक के कार्यशील पूंजी ऋण की सुविधा देना है। इसके तहत ऋण के नियमित किश्त चुकाने पर प्रोत्साहन के रूप में प्रति वर्ष 7 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी दी जाएगी। इसके आलावा निर्धारित डिजिटल लेनदेन करने पर सालाना 1,200रुपये तक का कैशबैक और आगे फिर से ऋण पाने की पात्रता भी प्रदान की गई है।
पीएम स्वनिधि योजना में व्यावसायिक बैंकों- सार्वजनिक एवं निजी, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों, स्वयं सहायता समूह (SHG) बैंकों आदि के अलावा ऋण देने वाली संस्थाओं के रूप में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC)और लघु वित्तीय संस्थानों (MFI) को योजना से जोड़कर इन छोटे उद्यमियों के द्वार तक बैंकों की सेवाएं पहुंचाने का विचार किया गया है। डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म पर इन विक्रेताओं को लाना इनके क्रेडिट प्रोफाइल का निर्माण करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है ताकि इन्हें औपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने में मदद मिल सके।
इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDB) को दी गई है। रेहड़ी-खोमचे वालों को उधार देने के लिए इन ऋणदाता संस्थानों को लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMS) के माध्यम से प्रोत्साहित करने हेतु इनके पोर्टफोलियो के आधार पर एक ग्रेडेड गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
सड़कों पर रेहड़ी लगाकर व्यापार करने वाले ज्यादातर विक्रेता बहुत कम लाभ पर अपना व्यवसाय करते हैं। इस योजना के तहत ऐसे विक्रेताओं को लघु ऋण से न केवल बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है,बल्कि उन्हें आर्थिक प्रगति करने में भी मदद मिलेगी।