केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 5 अगस्त को मंदिर निर्माण के शुभारंभ के अवसर पर भगवान के श्रृंगार में हरे रंग के वस्त्रों पर खड़े किए जा रहे विवाद को औचित्यहीन बताया है। ट्रस्ट ने स्पष्ट किया है कि देव विग्रह के वस्त्रों का निर्धारण परम्पराओं के अनुरूप किया जा रहा है। ट्रस्ट के अनुसार शुभारंभ समारोह में 135 संतों व विशिष्ट अतिथियों को आमंत्रित किया गया है।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपत राय द्वारा जारी वक्तव्य के अनुसार कुछ लोग 5 अगस्त के दिन भगवान के श्रृंगार में हरे रंग के वस्त्रों का उपयोग किए जाने पर विवाद खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बात का प्रधानमंत्री कार्यालय अथवा ट्रस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह विषय पूरी तरह से मुख्य पुजारी और परंपराओं से जुड़ा है। इसका निर्णय मुख्य पुजारी स्थापित परम्पराओं के अनुरूप करते हैं। यह सर्वविदित है कि देव विग्रह के वस्त्रों का निर्धारण प्रत्येक दिन के स्वामी ग्रह और उससे सम्बन्धित रंग के आधार पर किया जाता है। 5 अगस्त को बुधवार है। बुध ग्रह का सम्बन्ध हरे रंग से है। इस परंपरा का पालन पूर्व से चला आ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस इस मामले को तूल देना पूर्वाग्रह का परिचायक है।
ट्रस्ट के महासचिव ने कहा कि राम मंदिर के भूमि पूजन और निर्माण कार्य के शुभारंभ का मुख्य कार्यक्रम 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा किया जा रहा है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि श्रीराम जन्मभूमि पर पूजन कार्यक्रम का सिलसिला 108 दिन पूर्व 18 अप्रैल से शुरू हो गया था। तब से वहां पर प्रतिदिन तमाम तरह के पाठ, हवन, अनुष्ठान आदि किए जाते रहे हैैं, ताकि संपूर्ण क्षेत्र आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत रहे।
चंपतराय ने बताया कि ट्रस्ट इस आयोजन में व्यापक स्तर पर रामभक्तों की उपस्तिथि चाहता था। मगर कोरोना काल को देखते हुए इसे सीमित करना पड़ा है। भूमि पूजन कार्यक्रम में मात्र 135 संतों व विशिष्ट अतिथियों को आमन्त्रित किया गया है। विभिन्न 36 परम्पराओं से जुड़े प्रमुख संत आमंत्रितों में शामिल हैं।
इनमें दशनामी परंपरा, रामानंद वैष्णव, रामानुज, नाथ, निंबार्क, माध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, रामसनेही, कृष्णप्रणामी, उदासीन, निर्मल संत, कबीर पंथी, चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन, लिंगायत, वाल्मीकि संत, रविदास परंपरा, आर्य समाजी, सिक्ख परंपरा, बौद्ध, जैन, संत कैवल्य ज्ञान, सतपंथ, इस्कॉन, स्वामीनारायण, वारकरी, एकनाथ, बंजारा, सिंधी व अखाड़ा परिषद से जुड़े संत शामिल हैं। नेपाल से भी संत इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।
उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण कार्य के लिए अभी तक देशभर से लगभग 1500 से अधिक पवित्र व ऐतिहासिक स्थानों से मिट्टी अयोध्या पहुंच गई है। इसके साथ ही 2000 से भी अधिक पवित्र नदियों व कुंडों का जल भी अयोध्या पहुंच गया है। इनका उपयोग मंदिर निर्माण के दौरान किया जाएगा।